हेल्लो दोस्तों, इस लेख में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत दण्ड न्यायालयों का वर्गीकरण तथा हर एक न्यायालय द्वारा किस सीमा तक दण्डादेश पारित किया जा सकता की विस्तृत विवेचनाCrPC Sec 6 | Class of Criminal Courts and Their powers in hindi का उल्लेख किया गया है| उम्मीद है कि, यह आलेख आपको जरुर पसंद आएगा  –

दण्ड न्यायालयों के वर्ग, उनकी शक्तियां (CrPC Sec 6)

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में संशोधन करके मजिस्ट्रेट न्यायालयों की अलग अलग नीतियों एंव कार्यों के अन्तर्गत न्यायालयों को मुख्यतया दो भागों में विभाजित किया गया है – (अ) न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय एवं (ब) कार्यपालक मजिस्ट्रेट के न्यायालय, इन न्यायालयों के भी अलग अलग वर्ग है।

CrPC की धारा 6 में प्रत्येक राज्य में उच्च न्यायालयों एंव विधि के अधीन गठित न्यायालयों के अलावा निम्नांकित दण्ड न्यायालय होगें –

(क) सेशन न्यायालय

(ख) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट और किसी महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय

(ग) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय

(घ) कार्यपालक मजिस्ट्रेट के न्यायालय ।

संविधान के प्रावधानों के अनुसार उच्चतम न्यायालय भी विशेष आपराधिक मामलों में कार्यवाही के लिए अधिकृत है, लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय का मुख्य कार्य कानूनों की व्याख्या करना एंव संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों का सरंक्षण करना है|

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दण्ड न्यायालयों प्रमुख वर्ग

(1) सेशन न्यायालय –

(अ) अपर सेशन न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) एंव

(ब) सहायक सेशन न्यायाधीश (assistant sessions judge)

 

(2) न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय –

(अ) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय

(ब) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय

 

(3) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय

(4) विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय

(5) महानगर मजिस्ट्रेट न्यायालय

(6) विशेष महानगर मजिस्ट्रेट न्यायालय

 

(7) कार्यपालिका मजिस्ट्रेट न्यायालय –

(क) जिला मजिस्ट्रेट न्यायालय

(ख) उप-खण्ड मजिस्ट्रेट न्यायालय

(8) विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट न्यायालय

विशेष :- राज्य का कोई क्षेत्र जिसमे ऐसा नगर शामिल है जिसकी जनसख्याँ दस लाख से अधिक है CrPC की धारा 8 के अनुसार राज्य सरकार अधिसूचना जारी करके महानगर क्षेत्र घोषित कर सकती है| किन्तु जो क्षेत्र महानगर नहीं है वहां पर महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालयों को छोड़कर प्रायः शेष सभी प्रकार के न्यायालय अवस्थित है।

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दण्ड न्यायालयों के वर्ग और उनकी शक्तिया

(i) सेशन न्यायालय

CrPC की धारा 9 में राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक सेशन खण्ड के लिए एक सेशन न्यायालय (Court of Sessions) के गठन का प्रावधान किया गया है जिसमें एक पीठासीन न्यायाधीश होगा जो सेशन (सत्र) न्यायाधीश के नाम से जाना जायेगा और जिसकी नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जायेगी।

धारा 9(3) के तहत, उच्च न्यायालय निम्नाकिंत न्यायाधीशों की भी नियुक्त कर सकता है –

(अ) अपर सेशन न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) एंव

(ब) सहायक सेशन न्यायाधीश (assistant sessions judge)

CrPC की धारा 10 के अंतर्गत अपर सेशन न्यायाधीश एंव सहायक सेशन न्यायाधीश, सेशन न्यायाधीश के अधीन होंगे तथा सेशन न्यायाधीश द्वारा ऐसे सेशन न्यायाधीशों में कार्य के वितरण से सम्बन्धित नियम बनाये जा सकते है।

इसी तरह CrPC की धारा 10(3) के अनुसार सेशन न्यायाधीश की अनुपस्थिति में या कार्य करने की असमर्थता में आवश्यक आवेदनों का निपटारा अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा और यदि अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश उपस्थित ना हो तब ऐसे आवेदनों का निपटारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकेगा।

अब्दुल मनन बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल के मामले में सेशन न्यायालय में अपर सेशन न्यायालय को भी सम्मिलित माना गया है। (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 905)

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दण्ड न्यायालयों के दण्डादेश की शक्तिया

उच्च न्यायालय – CrPC की धारा 28 (1) के तहत विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकता है|

सेशन या अपर सेशन न्यायाधीश – CrPC की धारा 28 (2) के अनुसार सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकता है यानि मृत्यु दण्ड, या 10 वर्ष से अधिक कारावास या जुर्माना (जितना चाहे उतना लेकिन मनमाना नहीं) दे सकता है|

लेकिन मृत्यु दण्डादेश देने से पूर्व धारा 366 के तहत उच्च न्यायालय से इजाजत ली जानी आवश्यक होगी, उच्च न्यायालय (High Court) जाँच के बाद यह पाता है की सेशन न्यायाधीश का निर्णय सही है तब इजाजत दे देगा अन्यथा उच्च न्यायालय, सेशन न्यायाधीश के निर्णय में बदलाव भी कर सकता है|

सहायक सेशन न्यायाधीश – CrPC की धारा 28 (3) मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास की सजा के अलावा, ऐसा कोई दण्डादेश दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता में दण्ड न्यायालयों को दण्ड देने की शक्तियों का भी उल्लेख किया गया है। स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम राज के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि – अपराधों के निवारण के लिए अपराधियों को समुचित दण्ड दिया जाना अपेक्षित है, दण्ड के प्रति उदारता या सहानुभूति बरतना न्याय के लिए घातक है। (ए.आई. आर. 2007 एस.सी. 3225)

स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश बनाम घनश्याम सिंह – दण्ड न्यायालयों द्वारा दण्ड को कम किया जा सकता है, लेकिन मामले की प्रकृति, अपराध की गम्भीरता एवं अभियुक्त के आचरण को दृष्टिगत रखते हुए केवल लम्बे समय तक मुकदमे का चलना दण्ड को कम करने का आधार नहीं हो सकता। (ए. आई. आर. 2003 एस.सी. 3191)

(ii) न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय

CrPC की धारा 11 (1) के तहत – प्रत्येक जिले में (महानगर क्षेत्र के अलावा) राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद किसी विशेष मामले या विशेष वर्ग के मामलों का विचारण करने के लिए एक या एक से अधिक निम्नाकिंत वर्ग के विशेष न्यायालय स्थापित किये जा सकते है –

(अ) प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट न्यायालय (judicial magistrate First class)

(ब) द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट (judicial magistrate second class)

इन न्यायालयों में पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्ति किये जाते है और जब कभी उच्च न्यायालय को यह प्रतीत हो, तब किसी सिविल न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत राज्य की न्यायिक सेवा के किसी सदस्य को प्रथम वर्ग या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्रदान कर सकता है।

दण्ड न्यायालयों के दण्डादेश की शक्तियाँ –

प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट न्यायालय – संहिता की धारा 29(2) के तहत यह न्यायालय अधिकतम तीन वर्ष के लिए कारावास या अधिकतम 10,000/- रूपये का जुर्माना या दोनों का दण्डादेश दे सकता है।

द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट न्यायालय – धारा 29(3) के तहत यह न्यायालय अधिकतम एक वर्ष के लिए कारावास या अधिकतम 5,000/- रूपये का जुर्माना या दोनों का दण्डादेश दे सकता है।

(iii) मुख्य और अपर न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय 

CrPC की धारा 12 के अन्तर्गत – प्रत्येक जिले के लिए (जो महानगर क्षेत्र नहीं है) एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं आवश्यकतानुसार अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालयों की स्थापना की गई है और इन न्यायालयों में उच्च न्यायालय द्वारा किसी प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट की नियुक्ति की जा सकती है।

दण्ड न्यायालयों के दण्डादेश की शक्तिया –

संहिता की धारा 29(1) के अनुसार – मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय मृत्यु या आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक अवधि के कारावास के अलावा ऐसा कोई दण्डादेश दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है।

यानि यह न्यायालय अधिकतम सात वर्ष के लिए कारावास या जुर्माना जितना चाहे (लेकिन यह जुर्माना मनमाना नहीं हो) या दोनों का दण्डादेश दे सकता है।

(iv) विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय

CrPC की धारा 13 के अन्तर्गत, किसी विशेष मामले या विशेष वर्ग के मामलों के विचारण के लिए विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट (Special Judicial Magistrate) के न्यायालयों के गठन का प्रावधान किया गया है। ऐसे न्यायालयों का गठन एक समय में एक वर्ष के लिए केन्द्रीय या राज्य सरकार के अनुरोध पर उच्च न्यायालय द्वारा किया जायेगा।

या न्यायालय उस स्थानीय क्षेत्र के अन्दर जिसके लिए उसकी स्थापना की गई है, किसी स्थान पर बैठक कर सकता है|

(v) महानगर मजिस्ट्रेट न्यायालय

CrPC की धारा 16 के अनुसार – प्रत्येक महानगर क्षेत्र में आवश्यकतानुसार महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालयों का गठन किया जाएगा और इन न्यायालयों में पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जायेगी।

दण्ड न्यायालयों के दण्डादेश की शक्तिया –

जैसा की धारा 29 (4) में बताया गया है कि, महानगर मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate) के न्यायालय की दण्डादेश शक्तियाँ वे ही होगी जो प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय की है।

(v) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट न्यायालय

धारा 17 के तहत, प्रत्येक महानगर क्षेत्र के लिए एक मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट (Chief Metropolitan Magistrate) के न्यायालय के गठन की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार प्रत्येक महानगर क्षेत्र के लिए आवश्यकतानुसार अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालयों के गठन का भी प्रावधान किया गया है।

उच्च न्यायालय द्वारा किसी महानगर मजिस्ट्रेट को मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट अथवा अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया जायेगा।

दण्ड न्यायालयों के दण्डादेश की शक्तिया –

CrPC की धारा 29(4) के तहत – मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय की वे ही शक्तियाँ होंगी जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की है।

(vi) विशेष महानगर मजिस्ट्रेट न्यायालय

CrPC की धारा 13 के समान ही धारा 18 के अन्तर्गत महानगर क्षेत्रों (Metropolitan Areas) में, किसी विशेष मामले या विशेष वर्ग के मामलों के विचारण के लिए विशेष महानगर मजिस्ट्रेट (Special Judicial Magistrate) के न्यायालयों के गठन का प्रावधान किया गया है। ऐसे न्यायालयों का गठन एक समय में एक वर्ष के लिए केन्द्रीय या राज्य सरकार के अनुरोध पर उच्च न्यायालय द्वारा किया जायेगा।

(vii) कार्यपालक मजिस्ट्रेट न्यायालय

संहिता की धारा 20 में कार्यपालक मजिस्ट्रेट के न्यायालयों (Courts of Executive Magistrates) के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार – राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक जिले और प्रत्येक महानगर क्षेत्र में आवश्यकतानुसार कार्यपालक मजिस्ट्रेटों के न्यायालय का गठन किया जा सकेगा जिनमें से एक जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) होगा।

(अ) अपर जिला मजिस्ट्रेट (Additional District Magistrate) – CrPC की धारा 20 (2) के तहत राज्य सरकार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को अपर जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है और इसके पास विधि के अधीन जिला मजिस्ट्रेट की वे शक्तियां होगी जो राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट की जाएगी|

(ब) उपखण्ड मजिस्ट्रेट (Sub-Divisional Magistrate) – इसी तरह CrPC की धारा 20 (4) के तहत, राज्य सरकार आवश्यकतानुसार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को भारसाधक बना सकती है और उसको मुक्त भी कर सकती है, इस तरह जब किसी उपखण्ड का भारसाधक बनाया जाता है तो उसे उपखण्ड मजिस्ट्रेट कहा जाता है।

(viii) विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट

धारा 21 में इस न्यायालय की स्थापना के बारे में प्रावधान किया गया है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट एवं विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ वे होंगी जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जायें।

राज्य सरकार ऐसे मजिस्ट्रेट की नियुक्ति विशिष्ट क्षेत्र या विशिष्ट कृत्यों के पालन के लिए कर सकती है, राज्य सरकार इतनी अवधी के लिए जीतनी वह उचित समझे तथा इस संहिता के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट को प्रदान की जा सकने वाली शक्तियों में से ऐसी शक्तिया जिन्हें वह उचित समझे, विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट को प्रदत कर सकती है|

मै. लक्ष्य कनकोस्ट्स प्रा.लि. बनाम बैंक ऑफ बड़ोदा के मामले अनुसार – जिला मजिस्ट्रेट एवं अपर जिला मजिस्ट्रेट दोनों कार्यपालक मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) है तथा दोनों के कृत्य प्रशासनिक एवं कार्यपालक प्रकृति के हैं। (ए.आई.आर. 2017 इलाहाबाद 172)

दण्ड न्यायालयों की अधीनस्थता

दण्ड न्यायालयों की अधीनस्थता (Subordination) निम्न प्रकार से होंगी –

(1) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा।

(2) अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के साधारण नियन्त्रण में रहते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे। [ धारा 15 (1)]

(3) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट एवं अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होंगे।

(4) अन्य महानगर मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के साधारण नियन्त्रण में रहते हुए मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे। [ धारा 19 (1)]

(5) अपर जिला मजिस्ट्रेटों से भिन्न सब कार्यपालक मजिस्ट्रेट जिला मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे।

(6) उपखण्ड मजिस्ट्रेट से भिन्न अन्य सब कार्यपालक मजिस्ट्रेट जिला मजिस्ट्रेट के साधारण नियन्त्रण में रहते हुए उपखण्ड मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे। [ धारा 23 (1)]

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संदर्भ :- बाबेल लॉ सीरीज (बसन्ती लाल बाबेल)

बूक : दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (सूर्य नारायण मिश्र)