पहले हमें हिबा की परिभाषा एंव इसके आवश्यक तत्वों को जाना था और इस आलेख में मुस्लिम विधि के तहत हिबा के प्रकार | हिबा बिलएवज की आवश्यक शर्ते, हिबा,हिबाबिलएवज तथा हिबाशर्तुलएवज में अन्तर का विस्तार से वर्णन किया गया है जो विधि के छात्रो आमजन के लिए महत्वपूर्ण हैं –

मुस्लिम विधि में हिबा के प्रकार

मुस्लिम विधि में मुख्य तौर पर हिबा के प्रकार निम्नलिखित है –

(1) हिबा बिल एवज

हिबा के प्रकार में इसका पहला स्थान है, शब्द ‘हिबा’ का अर्थ – “दान” तथा शब्द ‘एवज’ का अर्थ – “प्रतिकर या बदले में” होता है| इस प्रकार हिबा-बिल-एवज का अर्थ – प्रतिकर के बदले में दान है|

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत इसे एक विशेष प्रकार का हिबा माना जाता है| यह आमतौर पर सामान्य हिबा (दान) से अलग होता है क्योंकि सामान्य दान में प्रतिफल का आभाव होता है और इसमें (हिबा-बिल-एवज) प्रतिफल शामिल होता है|

यानि जब कोई व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का अन्तरण किसी अन्य सम्पत्ति या वस्तु के प्रतिफलस्वरूप (एवज) में करता है तब इस प्रकार का संव्यवहार हिबा-बिल-एवज कहलाता है|

हिबा-बिल-एवज दो व्यक्तियों के बीच दो पारम्परिक दानों से संगठित एक व्यवहार है, इसमें विधिमान्य हिबा की समस्त औपचारिकताओं को पूरा करना होता है|

हिबा-बिल-एवज में दाता एंव आदाता दोनों एक दुसरे को दान करते है यानि इसमे एक दान, दानदाता द्वारा आदाता को और दूसरा दान, आदाता द्वारा दाता को किया जाता है।

उपहार (दान) और प्रतिदान (return gift) दोनों अलग-अलग संव्यवहार होते हैं, जिनको मिलाकर हिबा-बिल-एवज कहा जाता है।

मुल्ला के अनुसार  साधारण हिबा से अलग हिबा-बिल-एवज प्रतिफलस्वरूप किया गया हिबा है यानि यह एक विक्रय की भांति है|

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हिंबाबिलएवज की आवश्यक शर्तें

(i) दानग्रहीता की ओर से प्रतिकर का वास्तविक भुगतान होना।

हिबा-बिल-एवज में प्रतिफल का पर्याप्त होना आवश्यक नहीं है, बल्कि प्रतिफल राशि जो भी हो, उसका वास्तविक और सद्भावनापूर्ण भुगतान होना आवश्यक है।

यानि दान की वस्तु की तुलना में बिल्कुल अपर्याप्त प्रतिकर भी पूर्णतया मान्य हो सकता है। (खजुरुन्निसा बनाम रोशन जहाँ, 1876, 2 कलकत्ता 184)

हिबा-बिल-एवज के मामलों में एक अंगूठी का दान भी पर्याप्त प्रतिकर हो सकता है इसके अलावा कुरान की प्रति या नमाज की चटाई या तस्बीह (पूजा को माला) भी हिबा-बिल-एवज के संव्यवहार में अच्छा प्रतिफल हो सकता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि हिबा-बिल-एवज का प्रतिकर, चाहे कितना भी कम हो, परन्तु यदि प्रतिफल का वास्तव में सद्भावनापूर्ण भुगतान किया गया है तब वह संव्यवहार मान्य होगा। इसमें केवल भुगतान करने का मात्र वादा पर्याप्त नहीं है।

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(ii) दाता की ओर से अपनी सम्पत्ति पर कब्जे से विरत करने और उसे दानग्रहीता को देने का सद्भावनापूर्ण आशय हो |

उदाहरण – (अ) क और ख, दो मुसलमान भाई, सह आभोगी (tenant-in-common) हैं। क, ख और अपनी विधवा ब को छोड़कर मर जाता है।

क की मृत्यु के बाद ख एक दस्तावेज लिखता है जिसके द्वारा वह दो गाँवों का अनुदान ब को कर देता है और ब एक दस्तावेज द्वारा अपने पक्ष में अनुदान के प्रतिफलस्वरूप ख के पक्ष में अपने पति की सम्पदा में अपने दावे का त्याग कर देती है। यह संव्यवहार हिबा-बिल-एवज है और मान्य है, चाहे कब्जा न दिया गया हो।

(ब) एक मुसलमान स्त्री, जो एक विभाज्य अचल सम्पत्ति में एक अविभाजित हिस्से (मुशा) की स्वामी है| एक दस्तावेज लिखकर उसके द्वारा अपने भतीजों के द्वारा अपने भरण पोषण के लिये उसे 999 रुपये वार्षिक भुगतान किये जाने के प्रतिफलस्वरूप, सम्पत्ति में अपने हिस्से का हिबा के रूप में अन्तरण अपने दो भतीजों के पक्ष में कर देती है।

दस्तावेज में यह उपबन्धित है कि यदि वे नियमित रूप से भुगतान न करें तो उसे वाद के द्वारा वसूली का अधिकार होगा। दस्तावेज की यथारीति रजिस्ट्री होती है। संव्यवहार हिबा नहीं है यद्यपि यह, ‘मुशा’ का हस्तान्तरण है, फिर भी वह मान्य हिबा-बिल-एवज है।

एक अन्य वाद में एक हिबानामा इस प्रतिफल के एवज में लिखा गया कि दानग्रहीता दान की सम्पत्ति पर भारित ऋण का भुगतान करेगी और दाता के पुत्र के साथ विवाह करने के पश्चात् सम्पत्ति की हकदार होगी।

इसमें यह निर्णय हुआ कि यह दान हिबा-बिल-एवज है जिसमें दाता के पुत्र से विवाह करना प्रतिफल है। ऐसे मामलों में कब्जे का अन्तरण न होने पर भी हिबा मान्य होगा और दानग्रहीता सम्पत्ति का हकदार होगा। (इस्माइल बीबी बनाम सुलायकल बीबी)

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भारत में हिबा बिलएवज का रूप

भारत में हिबा-बिल-एवज की शुरुआत विभाज्य सम्पत्ति में मुशा के दान को करने के उपाय के रूप में हुई| जिस पर भारत में हिबा-बिल-एवज का विकृत रूप प्रचलित है,  भारत में यह विक्रय या विनिमय का ही एक रूप है क्योंकि इसमे विक्रय की सभी प्रसंगतियाँ और शर्तें पायी जाती हैं।

इस कारण पूर्ण अन्तरण के लिये कब्जा जरूरी है और मुशा का निषेध नहीं है कि विक्रय की तरह हिबा-बिल-एवज की रजिस्ट्री भी अनिवार्य होती है। हिबा-बिल-एवज विक्रय है, अतः इसका प्रतिसंहरण नहीं हो सकता।

(2) हिबाशर्तुलएवज

शब्द ‘शर्त’ का अर्थ – अनुबन्ध इस प्रकार ‘हिबा-ब-शर्तुल-एवज’ का अर्थ – “अनुबन्ध के साथ किसी प्रतिफल के लिये किया गया हिबा” है।

ऐसा हिबा (दान) जो ऐसी शर्त या अनुबंध के साथ किया जाता है कि दानग्रहीता इस दान के उपलक्ष्य (बदले) में दाता कोई निश्चित सम्पत्ति प्रदान करेगा तब ऐसे संव्यवहार को हिबा-ब-शर्तुल-एवज कहा जाता है।

प्रारम्भ में हिबा-ब-शर्तुल-एवज, हिबा के समान होता है, लेकिन प्रतिफल (एवज) का भुगतान हो जाने पर यह संव्यवहार विक्रय की प्रकृति को धारण कर लेता है|

हिबा-ब-शर्तुल-एवज में भी साधारण हिबा की तरह दाता एंव आदाता के मध्य कब्जे का परिदान आवश्यक होता है| प्रतिफल के भुगतान से पहले हिबा को कभी भी रद्द किया जा सकता है लेकिन प्रतिफल के भुगतान के पश्चात् हिबा को रद्द नहीं किया जा सकता|

जैसा कि  हिबा-बिल-एवज और हिबा-ब-शर्तुल-एवज में अन्तर से यह स्पष्ट है कि “जो वस्तुयें हिबा द्वारा दी जा सकती है वही हिबा-ब-शर्तुल-एवज द्वारा भी दी जा सकती है।

इसकी प्रकृति निरन्तर ही हिबा की रहती है और वह अपने प्रारम्भ या पूर्ण होने पर विक्रय की प्रकृति नहीं ग्रहण करता और हिबा-ब-शर्तुल-एवज अपनी पहली स्थिति में हिबा रहता है परन्तु दानग्रहीता द्वारा दान की गयी वस्तु पर कब्जा ले लेने और दाता द्वारा एवज प्राप्त का लेने के बाद यह विक्रय की प्रकृति ग्रहण कर लेता है,

जिसके पूर्ण हो जाने पर संव्यवहार के सम्बन्ध में  अग्रक्रयाधिकार (शुफ़ा) का दावा किया जा सकता है और कोई भी पक्षकार दोष के आधार पर दी गई वस्तु को वापस कर सकता है।

ये दो प्रसंगतियाँ अर्थात् शुफा का अधिकार और दोष के कारण किसी वस्तु को वापस कर देने का अधिकार मुस्लिम विधि में विक्रय की संविदा की प्रसंगतियाँ हैं।

चूंकि हिबा-ब-शर्तुल-एवज भारत में सामान्यतः प्रचलित नहीं है, इसलिये उसका अधिक विवरण नहीं देते हुए केवल हिबा के प्रकार के रूप में बताया गया है।

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हिबा,हिबाबिलएवज तथा हिबाशर्तुलएवज में अन्तर

हिबा हिबाबिलएवज हिबाशर्तुलएवज
सम्पति का स्वामित्व बिना प्रतिकर के अन्तरित होता है इसमें प्रतिफल का संदाय (भुगतान) स्वेच्छा से किया जाता है| इसमें प्रतिफल की शर्त या अनुबंध मूल हिबा करते समय लगा दी जाती है|
हिबा की मान्यता के लिये कब्जे का परिदान पूर्वभावी शर्त है कब्जे का परिदान आवश्यक नहीं है। कब्जे का परिदान आवश्यक है।
विभाज्य सम्पत्ति की अवस्था में मुशा का हिबा अमान्य है। विभाज्य सम्पत्ति के मुशा का दान भी वैध है। विभाज्य सम्पत्ति में मुशअ का दान अमान्य है।
कुछ अपवादों को छोड़कर यह प्रतिसंहरणीय होता है। किये जाने के समय से ही प्रतिसंहरणीय होता है। प्रतिज्ञात शर्त के पालन के बाद अप्रतिसंहरणीय किन्तु पहले नहीं
यह शुद्ध शुद्ध हिबा है। यह विक्रय की संविदा के समान है। प्रारम्भ में वह एक हिबा के समान है, परन्तु प्रतिज्ञात की शर्त पालन हो जाने पर यह विक्रय के रूप में प्रवृत होता है।

हिबा के प्रकार में शामिल अन्य हिबा

(i) सदका

जब कोई हिबा (दान) धार्मिक उद्देश्य से किया जाता है तब वह सदका कहलाता है| सदका में सम्पति का कब्ज़ा दिया जाना आवश्यक होता है और कब्जे का परिदान पूर्ण हो जाने पर इसे रद्द नहीं किया जा सकता|

जिस तरह से हिबा में स्नेह की इच्छा निहित होती है उसी तरह सदका में भी धार्मिक उत्थान प्राप्त करने की इच्छा निहित होती है| जिस सम्पति का विभाजन किया जा सकता हो वहां पर मुशा का हिबा वैध नहीं माना जाता है| इस तरह सदका को भी हिबा के प्रकार में शामिल किया जा सकता है|

हिबा और सदका में निम् अन्तर है

(i) हिबा का उद्देश्य सांसारिक होता है और सदका का उद्देश्य धार्मिक होता है|

(ii) हिबा कुछ परिस्थितियों में प्रतिसंहरणीय होता है, परन्तु कब्जे के परिदान के पश्चात सदका अप्रतिसंहरणीय हो जाता है।

(iii) फातबा-ए-आलमगीर के अनुसार, स्वीकृति के बिना कोई हिबा मान्य नहीं होता, लेकिन सदका औपचारिक स्वीकृति के बिना भी मान्य होता है।

(iv) हिबा के विपरीत, सदका दो या अधिक व्यक्तियों के पक्ष में संयुक्त रूप में किये जाने पर यदि वे गरीब हो मान्य होता है।

(ii) आरियत

मुल्ला के अनुसार – ‘दाता के विकल्प पर ग्रहणीय (resumable) किसी वस्तु के फलोपभोग को ग्रहण करने और उसका उपभोग करने की अनुमति के दान को “आरियत” कहते हैं”। इसमें बिना प्रतिकर के सम्पत्ति के उपभोग या लाभ प्राप्त करने के अधिकार का दान किया जाता है।

दारुल मुख्तार के अनुसार “किसी व्यक्ति को किसी वस्तु के काय (corpus) का स्वामी बना देना हिबा है, किन्तु उसे केवल वस्तु से होने वाले लाभ का स्वामी बनाना आरियत है।”

आरियत के आवश्यक तत्व

(i) वह प्रतिसंहत (रद्द) की जा सकती है।

(ii) सम्पत्ति के स्वामित्व का अन्तरण नहीं होता।

(iii) उसका एक नियत समय के लिये होना आवश्यक है।

(iv) आरियत ग्रहीता की मृत्यु हो जाने पर वह उसके उत्तराधिकारियों को नहीं पहुँचती।

आरियत और हिबा की तुलना

(i) हिबा के समान ही जब तक कब्जे का परिदान न कर दिया जाये, आरियत मान्य नहीं होती।

(ii) हिबा के समान ही विभाज्य सम्पत्ति के अविभाजित हिस्से की आरियत मान्य नहीं होती।

(iii) हब्स

हब्स शब्द का अर्थ “रोकना या नियन्त्रित करना” होता है। यह वक्फ से बहुत कुछ मिलता जुलता है। भारत में शिया विधि के अनुसार इस शब्द का प्रयोग केवल कुछ विशेष सम्पत्ति तक ही सीमित रखा गया है।

(iv) मेहर

हिबा के प्रकार में मेहर को भी शामिल किया जाता है, मेहर वह धनराशी अथवा सम्पति होती है जो विवाह के बाद पति द्वारा पत्नी को पक्षकारो के करार या कानून के अनुसार देय होता है|

इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि “मेहर ऋण के एवज में, जो 100 रुपये से ज्यादा का हो, कोई मुस्लिम पति दान के रूप में 100 रुपये से अधिक मूल्य की अचल सम्पत्ति अपनी पत्नी के पक्ष में मौखिक रूप से अन्तरित नहीं कर सकता।

ऐसा संव्यवहार न तो दान है और न दानों का संयोग है, जो केवल रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज द्वारा किया जा सकता है|

बम्बई उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि “जहाँ विवाह के समय धन के बदले में पति द्वारा पत्नी को भूमि का दान किया जाये, तो रजिस्ट्री कराना जरूरी नहीं है और यदि कब्जे का परिदान कर दिया जाता है तो ऐसा संव्यवहार हिबा हो जाता है| लेकिन मुशा के सिद्धान्त के अधीन रहता है।

एच० एम० मण्डल बनाम डी० आर० बीबी’ के वाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अवलोकन किया है कि मेहर के एवज में भूमि का अन्तरण हिबा-बिल-एवज होता है। हिबा के प्रकार

(v) वक्फ

अर्थ धार्मिक पवित्र या खैराती कार्यों के लिये सम्पत्ति का स्थायी रूप से दिया जाना वक्क कहलाता है। वक्फ के मामले में ख़ुदा सम्पत्ति की वस्तु का स्वामी होता है उसे इच्छानुसार व्यय नहीं किया जा सकता है।

सदका और वक्फ दोनों का उद्देश्य धार्मिक या खैराती होता है, लेकिन दोनों एक दूसरे से काफी अलग होते हैं।, हिबा के प्रकार

किसी मुसलमान द्वारा किसी ऐसे कार्य के लिये, जो मुस्लिम विधि के अन्तर्गत धार्मिक पवित्र या खैराती माना जाता हो, अपनी सम्पत्ति का स्थायी समर्पण वक्फ कहलाता है। इसमें सम्पत्ति के कार्य (corpus) का स्वामित्व ईश्वर में निहित होता है और उसे व्यय नहीं किया जा सकता।

नोट हिबा के प्रकार से सम्बंधित अन्य जानकारी जरुर सांझा करें, धन्यवाद|

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