नमस्कार दोस्तों, इस लेख में सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत समन क्या है, समन की तामील की प्रक्रिया क्या है, प्रतिवादी पर समन जारी कर इसकी तामील कैसे करवाई जाती है, प्रतिवादी पर समन तामील करने के विभिन्न तरीकों के बारे में बताया गया है, यदि आप वकील, विधि के छात्र या न्यायिक प्रतियोगी परीक्षा की  तैयारी कर रहे है, तो ऐसे में आपको समन एंव प्रतिवादी पर समन तामील करने के विभिन्न तरीकों के बारे में जानना बेहद जरुरी है –

समन की तामील

किसी भी देश या राज्य के न्याय प्रशासन में समन का महत्त्वपूर्ण स्थान है न्यायिक प्रक्रिया में यह एक चिर परिचित नाम है। सामान्यतः किसी पक्षकार, व्यक्ति, साक्षी अथवा प्रतिवादी को न्यायालय के समक्ष उपस्थित कराने का यह एक आसान एंव सुलभ माध्यम है।

समन के द्वारा ही किसी पक्षकार, व्यक्ति अथवा साक्षी को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया जाता है यानि समन न्यायालय द्वारा विपक्षी पक्षकार के लिए मुकदमा की सूचना हेतु जारी किया जाता है, उसे समन की तामील कहा जाता है|

इस प्रकार समन न्यायालय द्वारा जारी किया जाने वाला एक ऐसा आदेश है जो किसी व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए दिया जाता है।

सामान्यतः वादी द्वारा वाद पेश किए जाने के बाद प्रतिवादी को लिखित कथन प्रस्तुत करने के लिए न्यायालय में उपस्थित होने हेतु समन जारी किया जाता है। इसे आम भाषा में समन तामील भी कहा जाता है, क्योंकि यह न्यायालय की और से प्रतिवादी को भेजा जाता है|

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सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 5 नियम 1 के तहत प्रतिवादी को लिखित कथन प्रस्तुत करने हेतु प्रथमतः समन 30 दिन की अवधि का जारी किया जा सकेगा लेकिन समुचित कारण होने पर न्यायालय द्वारा इस अवधि में वृद्धि भी की जा सकती है, जो किसी भी दशा में 90 दिन से अधिक की नहीं होगी।

केस – लक्ष्मीबाई बनाम केशरीमल जैन (1995 एम.पी.एल.जे. 105 ) –

इस मामले में न्यायालय ने मत व्यक्त किया कि, समन के साथ वाद की प्रति संलग्न किया जाना आवश्यक है इसके आभाव में समन की तामील को विधिमान्य नहीं माना गया है।

विधिमान्य समन के आवश्यक तत्व क्या है

(क) समन पर जारी करने वाले पीठासीन अधिकारी अथवा तदनिमित्त नियुक्त पदाधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए।

(ख) न्यायालय की मुद्रा (seal) अंकित होनी चाहिए।

(ग) समन के साथ वाद पत्र की प्रति संलग्न होनी चाहिए।

(घ) समन पर उस समय, स्थान व तिथि का उल्लेख होना चाहिए जब किसी व्यक्ति अथवा उसके अधिवक्ता को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होनी हो।

(ङ) समन जारी किए जाने का प्रयोजन/उद्देश्य अंकित होना चाहिए।

(च) यदि समन किसी दस्तावेज की तलबी के लिए है तो उस दस्तावेज का पूर्ण ब्यौरा दिया जाना चाहिए।

समन की तामील अब निम्नांकित माध्यमों से कराई जा सकती है –

(i) रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा।

(ii) स्पीड पोस्ट द्वारा।

(iii) कोरियर सर्विस द्वारा।

(iv) फैक्स मैसेज द्वारा। (आदेश 5 नियम 9)

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प्रतिवादी पर समन की तामील की प्रक्रिया क्या है

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 5 नियम 12 से 30 तक में समन तामील कराने की रीतियों (Modes of Service) का उल्लेख किया गया है। यह रीतियाँ निम्नलिखित है –

(1) व्यक्तिशः तामील

समन की तामील का यह एक सामान्य एवं प्रचलित रीती है इसमें समन की एक प्रति स्वयं प्रतिवादी को देकर तामील कराई जाती है तथा दूसरी प्रति पर प्रतिवादी के हस्ताक्षर ले लिए जाते है। ऐसी तामील प्रतिवादी द्वारा प्राधिकृत उसके अभिकर्ता पर भी कराई जा सकती है। (आदेश 5 नियम 12 एवं 16 )

यदि समन की तामील के समय प्रतिवादी अपने निवास से अनुपस्थित है तब ऐसी तामील उसके साथ रहने वाले परिवार के किसी वयस्क पुरुष अथवा स्त्री सदस्य पर कराई जा सकती है। (आदेश 5 नियम 15)

आर.के. शर्मा बनाम अशोकनगर वेलफेयर एसोसिएशन एण्ड कम्पनी (ए. आई. आर. 2001 दिल्ली 272) –

इस मामले में समन की तामील के बारे में निम्न सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए है –

(क) समन की तामील यथासम्भव व्यक्तिशः प्रतिवादी पर कराई जानी चाहिए।

(ख) जहाँ एक से अधिक प्रतिवादी हो, वहाँ प्रत्येक प्रतिवादी पर व्यक्तिशः एवं पृथक् पृथक् तामील कराई जानी चाहिए।

(ग) जहाँ प्रतिवादी अपने निवास पर नहीं मिले और युक्तियुक्त समय में मिलने की सम्भावना नहीं हो, वहाँ परिवार के किसी वयस्क पुरुष या स्त्री सदस्य पर उसकी तामील कराई जा सकती है।

(घ) समन की तामील कराने वाले अधिकारी द्वारा समन पर तामील का समय एवं रीति का पृष्ठांकन किया जाना चाहिए।

(ङ) प्रतिस्थापित तामील का आदेश तब तक नहीं दिया जाना चाहिए जब तक कि पूर्व में जारी किए गए समन लौटकर नहीं आ जायें।

(2) चिपका कर तामील –

यह समन के तामील की दूसरी रीति है, जब किसी समन की व्यक्तिशः तामील सम्भव नहीं हो पाती है तब आदेश 5 नियम 17 के अधीन समन की एक प्रति उस भवन या मकान के बाहरी दरवाजे पर या सहज दृश्य (आसानी से दिखाई देने वाले स्थान) ऐसे किसी स्थान पर चिपका कर (by affixing) की जा सकेगी, जहाँ कि ऐसा प्रतिवादी –

(क) स्वयं निवास करता है, या

(ख) कारवार करता है; या

(ग) लाभ के लिए स्वयं कार्य करता है।

जब समन की तामील उक्त रीति से की जाती है तब तामील कराने वाला पदाधिकारी ऐसे कारणों का उल्लेख करते हुए न्यायालय में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। ऐसी रिपोर्ट में उन व्यक्तियों के नाम व पते भी लिखे जाएंगे जिनके द्वारा उक्त मकान की पहचान स्थापित की गई थी।

जहाँ प्रश्न पति-पत्नी दोनों पर जारी समन की तामील का हो उस स्थिति में पति ने समन लेने से इन्कार कर दिया हो और पत्नी के मकान के अन्दर होने से उस पर तामील नहीं हो पाई हो, वहाँ मीरा रानी डे बनाम गोस्वामी (ए. आई. आर. 1977 कोलकाता 372) के प्रकरण अनुसार समन की, प्राप्त मकान के सहज दृश्य भाग पर चिपका कर की गई तामील को उचित माना गया है।

पी.एस. नारायण रेड्डी बनाम एम.आर.रेड्डी (ए.आई.आर. 2005 आन्ध्रपदेश 239) –

परन्तु इस मामले में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, मकान पर समन की प्रति चिपकाकर तामील का तरीका तभी काम में लाया जाना चाहिए जब अनेक प्रयास (repeated efforts) करने के बाद भी प्रतिवादी या उसका अभिकर्ता अपने निवास या कारोबार स्थल पर नहीं मिला हो।

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(3) प्रतिस्थापित तामील –

प्रतिस्थापित तामील (substituted service), समन की तामील का तीसरा तरीका है, संहिता के आदेश 35 नियम 20 में इसका उल्लेख किया गया है। प्रतिस्थापित तामील का वही प्रभाव होता है जो व्यक्तिशः तामील का होता है। इसका सहारा तब लिया जाता है जब –

(क) प्रतिवादी समन की तामील से बच रहा हो, या

(ख) अन्य किसी सामान्य रीति से समन की तामील नहीं हो पा रही हो। ऐसी दशा में समन की तामील निम्नांकित रीतियों से की जा सकती है –

(i) समन की एक प्रति न्यायालय कक्ष के किसी सहजदृश्य स्थान (conspicuous place) पर चिपकाकर,

(ii) प्रतिवादी के निवास, कारबार या लाभ के लिए काम कर रहे स्थल के सहजदृश्य स्थान पर चिपकाकर, अथवा

(iii) उस क्षेत्र में प्रसारित होने वाले किसी दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित करा कर। श्रीमती रामप्यारी देवी बनाम अपर जिला न्यायाधीश (द्वितीय) आजमगढ़ (ए. आई. आर. 1989 इलाहाबाद 93) के मामले में ऐसी तामील को विधिमान्य ठहराया गया है।

श्रीमती आर. स्मिथा बनाम आर. उमाशंकर (ए.आई. आर. 2016 एन.ओ.सी. 331 कर्नाटक) –

इस मामले में समन का विपक्षी के क्षेत्र में व्यापक प्रचलन वाले समाचार पत्र में प्रकाशन कराया गया था। विपक्षी का यह कहना है कि उसे प्रकाशन की जानकारी नहीं थी और उसके द्वारा समाचार पत्र न तो खरीदा गया और न पढ़ा गया, मान्य नहीं है लेकिन इसे समन की पर्याप्त तामील माना गया।

ऑटो कार बनाम त्रिमूर्ति कारगो मुवर्स प्रा. लि. (ए.आई. आर. 2018 एस.सी. 1965) –

इस प्रकरण में ‘समाचार पत्र’ में प्रकाशन द्वारा प्रतिस्थापित तालीम कराई गई लेकिन उसमें प्रतिवादी की उपस्थिति के लिए दिन, दिनांक, वर्ष एवं समय आदि का उल्लेख नहीं किया गया। इस कारण ऐसी तामील को समुचित तामील नहीं माना गया।

(4) डाक आदि द्वारा तामील –

संहिता के आदेश 5 नियम 9 के अन्तर्गत किसी समन की तामील निम्नलिखित रीतियों से भी की जा सकती है –

(क) रजिस्ट्रीकृत डाक (Registered post) द्वारा;

(ख) स्पीड पोस्ट (Speed post) द्वारा;

(ग) कोरियर सर्विस (Courier Services) द्वारा;

(घ) फैक्स मैसेज (Fax message) द्वारा, अथवा

(ङ) इलेक्ट्रोनिक मेल सर्विस (Electronic mail Service) द्वारा।

समीर स्त्रिग्धा चन्द्र बनाम प्रणय भूषण चन्द्र (ए.आई.आर. 1989 उड़ीसा 185) –

इस मामले अनुसार यदि रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेजे गये समन को प्राप्त कर प्रतिवादी या उसके अभिकर्ता द्वारा पावती (acknowledgement) पर हस्ताक्षर कर दिए जाते है तो यह समन की पर्याप्त तामील है मानी जाएगी, इसके अलावा यदि प्रतिवादी ऐसी डाक को लेने से इन्कार करता है तब भी उसे पर्याप्त तामील माना गया है।

(5) अन्य न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रहने वाले प्रतिवादी पर तामील –

जब समन की तामील ऐसे व्यक्ति पर की जानी हो जो किसी दुसरे न्यायालय के क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास करता हो तब ऐसे समन की तामील –

(क) डाक द्वारा; या

(ख) कोरियर सर्विस द्वारा; या

(ग) फैक्स द्वारा या

(घ) इलेक्ट्रोनिक मेल सर्विस द्वारा कराई जा सकेगी। (आदेश 5 नियम 21 )

मै. एएआर के ट्रेडर्स बनाम मै. सतीश इलेक्ट्रोनिक्स (ए.आई.आर. 2009 एन.ओ.सी. 341 हिमाचल प्रदेश) –

इस प्रकरण में अभिनिर्धारित किया गया कि – जहाँ प्रतिवादी न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर निवास करता हो, वहाँ उस पर रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा समन की तामील कराया जाना समुचित तामील नहीं है, ऐसे मामलों में समन की तामील स्पीड पोस्ट, कोरियर सर्विस, फैक्स मैसेज अथवा ई-मेल द्वारा कराई जा सकती है।

(6) कारागार में परिरुद्ध व्यक्ति पर तामील –

ऐसा प्रतिवादी जिस पर समन की तामील की जानी हो और वह किसी कारागार में परिरुद्ध हो, तब समन की तामील हेतु उस कारागार के प्रभारी को संहिता के आदेश 5 नियम 24 के तहत समन –

(क) परिदत्त किया जायेगा, या

(ख) डाक द्वारा या

(ग) कोरियर सर्विस द्वारा, या

(घ) फैक्स द्वारा, या

(ङ) इलेक्ट्रोनिक मेल सर्विस द्वारा प्रेषित किया जायेगा और ऐसे प्रभारी द्वारा उस समन की प्रतिवादी पर तामील कराई जाएगी।

(7) भारत से बाहर समन की तामील –

यदि समन की तामील ऐसे व्यक्ति पर की जानी हो जो भारत से बाहर निवास करता है और भारत में उसका कोई अभिकर्ता (ऐजन्ट) नहीं है, तब संहिता के आदेश 5 नियम 25 के अधीन समन तामील हेतु ऐसे व्यक्ति को –

(क) डाक द्वारा;

(ख) कोरियर सर्विस द्वारा;

(ग) फैक्स मैसेज द्वारा अथवा

(घ) इलेक्ट्रोनिक मेल सर्विस द्वारा, भेजा जा जा सकता है।

इसके अलावा यदि ऐसा प्रतिवादी बांग्लादेश अथवा पाकिस्तान में रहता है तो समन उस देश के किसी न्यायालय को भेजा जायेगा।

(8) राजनैतिक अभिकर्ता अथवा न्यायालय द्वारा तामील –

संहिता के आदेश 5 नियम 26 में विदेशों में समन की तामील का तरीका बताया गया है इसके अनुसार समन उस न्यायालय को या उस राज्य क्षेत्र के राजनैतिक अभिकर्ता (political agent) को भेजा जा सकता है, जिसके क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर ऐसा प्रतिवादी निवास करता है अथवा कारोबार करता है अथवा लाभ के लिए स्वयं काम करता है जिस पर समन की तामील किया जाना हो।

(9) लोक पदाधिकारी आदि पर समन की तामील –

जहाँ किसी समन की तामील किसी –

(क) लोक पदाधिकारी;

(ख) रेलवे कम्पनी में सेवारत किसी कर्मचारी, अथवा

(ग) स्थानीय प्राधिकारी पर की जानी हो,

तब ऐसा समन तामील हेतु उस कार्यालय के अध्यक्ष (head of the office) को भेजा जाएगा जिसके अधीनस्थ ऐसा लोक पदाधिकारी या स्थानीय प्राधिकारी नियुक्त हो। संहिता के आदेश 5 नियम 27 के तहत अध्यक्ष द्वारा ऐसे व्यक्ति पर समन की तामील कराई जाएंगी।

संहिता के आदेश 5 नियम 28 के तहत, यदि समन को तामील किसी ऐसे व्यक्ति पर की जानी हो जो जल, थल या नभ सेना में कार्यरत हो, तब ऐसा समन सम्बन्धित कमाण्डिंग ऑफिसर (commanding officer) के पास भेजा जाएगा और उस ऑफिसर द्वारा उसकी तामील थल, जल अथवा नभ सेनाकर्मी (Soldier, Sailor or airman) पर कराई जाएगी।

समन की तामील के यही विभिन्न तरीके है। साक्षियों, भागीदारी फर्मों, निगमों आदि पर भी समन की तामील इन्हीं रीतियों से की जा सकती है।

निष्कर्ष –

समन एक कानूनी दस्तावेज है जिसे अदालत द्वारा किसी पक्षकार को कानूनी कार्यवाही में शामिल होने के लिए उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जारी किया जाता है। यह पक्षकार को कानूनी कार्यवाही में शामिल होने की सूचना देने, नोटिस देने तथा उसे अपना बचाव करने का अवसर देने के लिए समन जारी किया जाता है।

यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप जारी किया जाता है। भारतीय कानून तंत्र यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी पक्षकार की अनदेखी ना की जाए। माननीय न्यायालय समन की तामील सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग करती है ताकि प्रतिवादियों/अभियुक्तों/गवाहों की उपस्थिति, जैसा भी प्रकरण हो, सुनिश्चित किया जा सके।

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संदर्भ – बुक सिविल प्रक्रिया संहिता चतुर्थ संस्करण (डॉ. राधा रमण गुप्ता)