इस लेख में भारत का संविधान भाग 3 के अंतर्गत समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18) | Right to Equality in the Indian Constitution का वर्णन किया गया है, उम्मीद है कि यह आलेख आपको जरुर पसंद आऐगा –

सामान्य परिचय समता का अधिकार

अनुच्छेद 14 से 18 के द्वारा संविधान प्रत्येक भारतीय व्यक्ति को समता का अधिकार (Right to Equality) प्रदान करता है। अनुच्छेद 14 में समता का सामान्य नियम दिया गया है जो व्यक्तियों के बीच अयुक्तियुक्त विभेद को रोकता है। संविधान की प्रस्तावना में परिकल्पित समता का आदर्श अनुच्छेद 14 में निहित है। अनुच्छेद 15, 16, 17 और 18 अनुच्छेद 14 में निहित सामान्य नियम के विशिष्ट उदाहरण है।

एक और जहाँ अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान के आधारों पर विभेद का प्रतिषेध करता है तो वही अनुच्छेद 16 सार्वजनिक नियोजन के मामलों में अवसर की समानता की गारन्टी करता है त्तथा अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का एंव अनुच्छेद 18 उपाधियों को समाप्त करता है ।

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समता का अधिकार bare act

अनुच्छेद 14. विधि के समक्ष समता

राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

अनुच्छेद 14 यह उपबन्धित करता है कि “भारत राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जायेगा।” इस अनुच्छेद में दो पहलुओं का प्रयोग किया गया है –

(क) विधि के समक्ष समता तथा (ख) विधियों का समान संरक्षण और इन दोनों पहलुओं का उद्देश्य समान न्याय है।

विधि के समक्ष समता का वाक्यांश ब्रिटिश संविधान से लिया गया है जिसे प्रोसेसर डायसी के अनुसार ‘विधि-शासन’ (Rule of Law) कहा जाता है और दूसरा वाक्यांश अमेरिका के संविधान से लिया गया है।

 

अनुच्छेद 15. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध

(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर –

(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या

(ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग, के सम्बन्ध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।

(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य की स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।

(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खण्ड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।

(5) इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 19 के खण्ड (1) के उपखण्ड (छ) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए, विधि द्वारा, कोई विशेष उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी, जहाँ तक ऐसे विशेष उपबन्ध, अनुच्छेद 30 के खण्ड (1) में निर्दिष्ट अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं से भिन्न, शिक्षा संस्थाओं में, जिनके अन्तर्गत प्राइवेट शिक्षा संस्थाएँ भी हैं, चाहे वे राज्य से सहायता प्राप्त हों या नहीं, प्रवेश से सम्बन्धित हैं।

(6) इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (छ) या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात, राज्य को –

(क) खंड (4) और खंड (5) में उल्लिखित वर्गों से भिन्न नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए कोई भी विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी, और

(ख) खंड (4) और खंड (5) में उल्लिखित वर्गों से भिन्न नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल किन्हीं व की उन्नति के लिए कोई भी विशेष उपबंध करने से वहां निवारित नहीं करेगी, जहां तक ऐसे उपबंध, ऐसी शैक्षणिक संस्थाओं में, जिसके अंतर्गत अनुच्छेद 30 के खंड (1) में निर्दिष्ट अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं से भिन्न प्राइवेट शैक्षणिक संस्थाएं भी हैं, चाहे वे राज्य द्वारा सहायता पाने वाली हैं या सहायता न पाने वाली हैं, प्रवेश से संबंधित हैं, जो आरक्षण की दशा में विद्यमान आरक्षण के अतिरिक्त तथा प्रत्येक प्रवर्ग में कुल स्थानों के अधिकतम दस प्रतिशत के अध्यधीन होगा।

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स्पष्टीकरण

इस अनुच्छेद और अनुच्छेद 16 के प्रयोजनों के लिए ” आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग” वे हांगे, जो राज्य द्वारा कुटुंब की आय और आर्थिक अलाभ के अन्य सूचकों के आधार पर समय-समय पर अधिसूचित किए जाएं।

अनुच्छेद 15 का प्रथम खण्ड केवल धर्म, जाति, वर्ण, लिंग, जन्म-स्थान अथवा इनमें से किसी आधार पर नागरिकों के विरुद्ध कोई विभेद करने से राज्य को रोकता है । ‘विभेद’ शब्द से अभिप्राय ‘किसी व्यक्ति के साथ दूसरों की तुलना में प्रतिकूल व्यवहार करना है’। यदि कोई कानून उपर्युक्त किसी भी आधार पर असमानता बरतता है तो वह शून्य होगा।

 

अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता का अधिकार

(1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।

(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।

(3) इस अनुच्छेद की कोई बात संसद् को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के सम्बन्ध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है ।

(4) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।

(4 क) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में (किसी वर्ग या वर्गो के पदों पर प्रोन्नति के मामलों में ज्येष्ठता परिणाम से) आरक्षण के लिए उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।

(4 ख) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को किसी वर्ष में किन्हीं न भरी गई ऐसी रिक्तियों को, जो खण्ड (4) या खण्ड (4क) के अधीन किये गए आरक्षण के लिये किसी उपबन्ध के अनुसार उस वर्ष में भरी जाने के लिए आरक्षित हैं, किसी उत्तरवर्ती वर्ष या वर्षों भरे जाने के लिए पृथक वर्ग की रिक्तियों के रूप में विचार करने से निवारित नहीं करेगी और ऐसे वर्ग की रिक्तियों पर उस वर्ष की रिक्तियों के साथ जिसमें वे भरी जा रही हैं, उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्या के सम्बन्ध में पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा का अवधारण करने के लिए विचार नहीं किया जाएगा ।

(5) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबन्ध करती है कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से सम्बन्धित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का मानने वाला या विशिष्ट संप्रदाय का ही हो !

(6) इस अनुच्छेद की कोई बात, राज्य को खंड (4) में उल्लिखित वर्गों से भिन्न नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल किन्हीं वर्गों के पक्ष में नियुक्तियों और पदों के विद्मान आरक्षण के अतिरिक्त तथा प्रत्येक प्रवर्ग में पदों के अधिकतम दस प्रतिशत के अध्यधीन, आरक्षण के लिए कोई भी उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।”

अनुच्छेद 16 के अनुसार  राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी । राज्याधीन नौकरी या पद के विषय में केवल धर्म, मूनवंश, जाति, लिंग, वंशक्रम, जन्म-स्थान, निवास के आधार पर किसी नागरिकों को अपात्र नहीं समझा जायेगा और ना ही उनमे विभेद किया जायेगा| यह  अनुच्छेद केवल राज्य के अधीन नौकरियों में अवसर की समानता का अधिकार प्रदान करता है ना की गैर-सरकारी नौकरियों में|

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अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अन्त

अस्पृश्यता का अन्त किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। “अस्पृश्यता” से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दण्डनीय होगा ।

यह अनुच्छेद अस्पृश्यता को समाप्त करता है और उसका किसी भी रूप में पालन करने से रोकता है । यह अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी अयोग्यता को लागू करने को दण्डनीय अपराध घोषित करता है। इस तरह संविधान भारतीय समाज के परम्परा से चले आ रहे इस महान् कलंक को समाप्त करने की घोषणा ही नहीं करता वरन् भविष्य में इसके किसी भी रूप में पालन करने से भी रोकता है ।

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिव राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया के प्रकरण में कहा गया कि, अस्पृश्यता से सम्बन्धित मूल अधिकार न केवल राज्य के विरुद्ध अपितु प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध उपलब्ध है। कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति के साथ अस्पृश्यता का व्यवहार नहीं कर सकता है, यदि करता है तो वह दण्डनीय अपराध होगा। (ए.आई.आर. 1982 एस.सी. 1473 )

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अनुच्छेद 18 उपाधियों का अन्त

(1) राज्य, सेना या विद्या सम्बन्धी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।

(2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नही करेगा।

(3) कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

(4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

बालाजी राघवन बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया के मामले में कहा गया है कि, भारत रत्न, पदम विभूषण, पदम भूषण, पदम श्री आदि अलंकरण अनुच्छेद 18 (1) के अन्तर्गत उपाधि अथवा खिताब नहीं है इस कारण इनका नाम के आगे या पीछे उपयोग नहीं किया जा सकता है। (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 770 )

यह अनुच्छेद राज्य के किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह भारत का नागरिक हो या विदेशी, को उपाधियाँ प्रदान करने से मना करता है । इस प्रकार यह अनुच्छेद भारत में ब्रिटिश शासन-काल में प्रचलित सामंतशाही परम्परा का अन्त करता है, लेकिन अनुच्छेद 18 सेवा या विद्या सम्बन्धी उपाधियों को प्रदान करने की अनुमति देता है, क्योंकि उससे व्यक्तियों में देश की सैनिक शक्ति को मजबूत करने तथा देश की प्रगति के लिए आवश्यक वैज्ञानिक विकास करने का प्रोत्साहन मिलता है|

Source Indian Constitution – Bare Act

महत्वपूर्ण अनुच्छेद

अनुच्छेद 1 – 4 : संघ और उसका राज्य क्षेत्र | Article 1 – 4 The Union and Its Territories

भारत में नागरिकता : अनुच्छेद 5 से 11 |  Articles 5 to 11 of the Indian Constitution

मूल अधिकार : अनुच्छेद 12-13 | Fundamental Rights Article 12 To 13 In Hindi