इस लेख में भारतीय संविधान भाग 3 के अंतर्गत संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32 से 35) | Right to Constitutional Remedies | Article 32 to 35 Of Indian Constitution In Hindi का उल्लेख किया गया है, उम्मीद है कि यह लेख आपको जरुर पसंद आऐगा

संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32 से 35)

अनुच्छेद 32. इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए उपचार

(1) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए सामुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।

(2) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट है, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।

(3) उच्चतम न्यायलय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संसद, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य किन्हीं या सभी शक्तियों का किसी अन्य न्यायालय को अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के लिए विधि द्वारा सशक्त कर सकेगी।

(4) इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा।

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अनुच्छेद 32-. राज्य विधियों की संवैधानिक वैधता पर अनुच्छेद 32 के अधीन कार्यवाहियों में विचार किया जाना

संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम 1977 की धारा 3 द्वारा (13-4-1978) से निरसित।

अनुच्छेद 33. इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद् की शक्ति

संसद्, विधि द्वारा अवधारण कर सकेगी कि इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से कोई –

(क) सशस्र बलों के सदस्यों को, या

(ख) लोक व्यवस्था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बलों के सदस्यों को, या

(ग) आसूचना या प्रति आसूचना के प्रयोजनों के लिए राज्य द्वारा स्थापित किसी ब्यूरो या अन्य संगठन में नियोजित व्यक्तियों को, या

(घ) खंड (क) से खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी बल, ब्यूरो या संगठन के प्रयोजनों के लिए स्थापित दूरसंचार प्रणाली में या उसके संबंध में नियोजित व्यक्तियों को,

लागू होने में, किस विस्तार तक निर्बंधित या निराकृत किया जाए जिससे उनके कर्त्तव्यों का उचित पालन और उनमें अनुशासन बना रहना सुनिश्चित रहे।

अनुच्छेद 34. जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निबंधन

इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद् विधि द्वारा संघ या किसी राज्य की सेवा में किसी व्यक्ति की या किसी अन्य व्यक्ति की किसी ऐसे कार्य के संबंध में क्षतिपूर्ति कर सकेगी जो उसने भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी ऐसे क्षेत्र में, जहां सेना विधि प्रवृत्त थी, व्यवस्था के बनाए रखने या पुनः स्थापन के संबंध में किया है या ऐसे क्षेत्र में सेना विधि के अधीन पारित दंडादेश, दिए गए दंड, आदिष्ट समपहरण या किए गए अन्य कार्य को विधिमान्य कर सकेगी।

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अनुच्छेद 35. इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान

इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी

(क) संसद् को शक्ति होगी और किसी राज्य के विधान- मंडल को शक्ति नहीं होगी कि वह –

(i) जिन विषयों के लिए अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद (3) of 32 के खंड (3), अनुच्छेद 33 और अनुच्छेद 34 के अधीन संसद् विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी उनमें से किसी के लिए, और

(ii) ऐसे कार्यों के लिए, जो इस भाग के अधीन अपराध घोषित किए गए हैं, दंड विहित करने के लिए,

विधि बनाए और संसद् इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र ऐसे कार्यों के लिए जो उपखण्ड (ii) में निर्दिष्ट है, दण्ड विहित करने के लिए दण्ड बनाएगी,

(ख) खंड (क) के उपखंड (i) में निर्दिष्ट विषयों में से किसी से संबंधित या उस खंड के उपखंड (ii) में निर्दिष्ट किसी कार्य के लिए दंड का उपबंध करने वाली कोई प्रवृत्त विधि, जो भारत के राज्यक्षेत्र में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रवृत्त थी, उसके निबंधनों के और अनुच्छेद 372 के अधीन उसमें, किए गए किन्हीं अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए तब तक प्रवृत्त रहेगी जब तक उसका संसद् द्वारा परिवर्तन या निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है।

स्पष्टीकरण  इस अनुच्छेद में, “प्रवृत्त विधि” पद का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 372 में है।

Source Indian Constitution – Bare Act

 

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