हेल्लो दोस्तों, इस आलेख में अनुच्छेद 1 – 4 (संघ और उसका राज्य क्षेत्र) भाग – 1 का उल्लेख दिया गया है, यहाँ सामान्य bare act के तहत संविधान को बताया गया है, उम्मीद है यह लेख आपको पसंद आयेगा, आपके सुझाव हमारे लिए प्रेणादायक होगें –
संघ और उसका राज्य क्षेत्र | अनुच्छेद 1 – 4
भारतीय संविधान – भारत का संविधान एक ऐसा जिवंत लिखित एंव पवित्र दस्तावेज है जिससे शासन प्रणाली संचालित होती है| हमारा यह संविधान विश्व के प्रमुख देशों के संविधान की विशेषताए समाये हुए है|
संविधान के मूल प्रारूप में 22 भाग 395 अनुच्छेद एंव 9 अनुसूचियां थी जिनमे भविष्य के अनुरूप संशोधन होता रहा है| इसे बनाने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगाने के बाद अंत में इसे सम्पूर्ण भारत वर्ष में 26 जनवरी 1950 को लागु किया गया है|
उद्देशिका
हम भारत के लोग, भारत की एक संपूर्ण प्रभुत्व–संपन
समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने
के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को,
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता
और अखंडता सुनिश्चित करने वाली
बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज
तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी
संवत दो हजार छड़ विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान
को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते है।
Article 1 – 4 (संघ और उसका राज्य क्षेत्र)
अनुच्छेद 1 – संघ का नाम और राज्यक्षेत्र
(1) भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
(2) राज्य और उनके राज्य क्षेत्र के होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
(3) भारत के राज्यक्षेत्र में,
(क) राज्यों के राज्यक्षेत्र,
(ख) पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और
(ग) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किए जाएं, समाविष्ट होंगे।
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अनुच्छेद 2 – नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
संसद् विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनको स्थापना कर सकेगी।
अनुच्छेद 2 (क) – सिक्किम का संघ के साथ सहयुक्त किया जाना|
[संविधान (छत्तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) निरसित]
अनुच्छेद 3 – नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों सीमाओं या नामों में परिवर्तन
संसद विधि द्वारा –
(क) – किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी
(ख) किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी:
(ग) किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी:
(घ) किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी
(ड़) किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी;
- परंतु इस प्रयोजन के लिए कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना और जहां विधेयक में अंतर्विष्ट प्रस्थापना का प्रभाव राज्यों में से किसी के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस राज्य के विधान- मंडल द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी अवधि के भीतर जो निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाए या ऐसी अतिरिक्त अवधि के भीतर जो राष्ट्रपति द्वारा अनुज्ञात की जाए, प्रकट किए जाने के लिए वह विधेयक राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित नहीं कर दिया गया है और इस प्रकार विनिर्दिष्ट या अनुज्ञात अवधि समाप्त नहीं हो गई है, संसद् के किसी सदन में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।
स्पष्टीकरण –
(1) इस अनुच्छेद के खंड (क) से खंड (ङ) में “राज्य” के अंतर्गत संघ राज्यक्षेत्र है, किंतु परंतुक में “राज्य” के अंतर्गत संघ राज्यक्षेत्र नहीं है।
(2) खंड (क) द्वारा संसद् को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के किसी भाग को किसी अन्य राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के साथ मिलाकर नए राज्य या संघ राज्यक्षेत्र का निर्माण करना है।
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अनुच्छेद 4 –
पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां –
(1) अनुच्छेद 2 या अनुच्छेद 3 में निर्दिष्ट किसी विधि में पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी (जिनके अंतर्गत ऐसी विधि से प्रभावित राज्य या राज्यों के संसद् में और विधान-मंडल या विधान-मंडलों में प्रतिनिधित्व के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट हो सकेंगे जिन्हें संसद् आवश्यक समझे।
(2) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।
Source Indian Constitution – Bare Act