हेल्लो दोस्तों, इस आलेख में सीआरपीसी की धारा 260 से 265 के तहत संक्षिप्त विचारण क्या है एंव संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया (Procedure for summary trials) का उल्लेख किया गया है, उम्मीद है कि, यह लेख आपको जरुर पसंद आएगा –
संक्षिप्त विचारण क्या है | What is Summary Trial
न्याय प्रशासन का यह सार्वभौम सिद्धान्त है कि न्यायिक प्रक्रिया जितनी लम्बी एवं जटिल होगी, न्याय में उतना ही विलम्ब होगा। इस कारण कतिपय मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को संक्षिप्त करने का प्रयास किया गया है जिसका एक मुख्य उदाहरण संक्षिप्त विचारण है। दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 260 से 265 तक में ‘संक्षिप्त विचारण’ (Summary trial) के बारे में उपबंध किये गए है।
संक्षिप्त विचारण का तात्पर्य | Summary Trial
दण्ड प्रक्रिया संहिता में शब्द संक्षिप्त विचारण की परिभाषा नहीं दी गई है परन्तु सामान्यतः शब्दों में संक्षिप्त विचारण का अर्थ “शीघ्र परीक्षण” से लिया जाता है। यह एक ऐसा परीक्षण अथवा विचारण है जिसमें मामले की प्रक्रिया तो समन एवं वारन्ट मामलों जैसी ही रहती है लेकिन इसमें नियमित एवं विस्तृत साक्ष्य का लेखबद्ध किया जाना तथा लम्बा निर्णय लिखा जाना आवश्यक नहीं होता है।
वुडरोफ के अनुसार – संक्षिप्त विचारण से तात्पर्य कार्यवाहियों को संक्षिप्त में अभिलिखित किये जाने से है। इसमें विस्तृत साक्ष्य लिया जाना एवं लम्बे निर्णय लिखा जाना आवश्यक नहीं होता है।
संक्षिप्त विचारण में प्रकरणों के निर्णय विस्तृत रूप में नहीं लिखे जाते है तथा इसके अंतर्गत अभियुक्त की संस्वीकृति तथा साक्ष्यो का सारांश अभिलिखित किया जाता है| इसका मुख्य उद्देश्य मामलों का शीघ्र निस्तारण करना है। लेकिन इसका यह तात्पर्य नहीं है कि गम्भीर प्रकृति के आर्थिक अपराधों में, मात्र विलम्ब के आधार पर कार्यवाही को समाप्त (ड्रॉप) कर दिया जाये।
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संक्षिप्त विचारण की शक्ति
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 260 के अन्तर्गत संक्षिप्त विचारण करने की शक्तियाँ निम्नांकित न्यायालयों को प्रदान की गई है –
(क) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
(ख) महानगर मजिस्ट्रेट
(ग) उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट |
किन अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जाता है
CrPC की धारा 260 के अन्तर्गत ऐसे अपराधों का उल्लेख किया गया है जिनका न्यायालय द्वारा संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है –
(क) ऐसे अपराध जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय नहीं है,
(ख) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 379, 380 या 381 के अन्तर्गत चोरी, जहाँ चुराई हुई सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रुपये से अधिक नहीं हो,
(ग) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 411 के अन्तर्गत चोरी की सम्पत्ति को प्राप्त करना या रखना, जहाँ ऐसी सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रुपये से अधिक नहीं हो,
(घ) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 414 के अन्तर्गत चुराई हुई सम्पत्ति को छिपाने या उसका व्ययन करने में सहायता करना, जहाँ ऐसी सम्पत्ति का मूल्य 2,000 (दो हजार रुपये) से अधिक नहीं हो,
(ङ) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 454 या धारा 456 के अन्तर्गत अपराध,
(च) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 504 के अन्तर्गत लोक शांति भंग करने को प्रकोपित करने के आशय से अपमान और धारा 506 के अन्तर्गत कारावास से या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय अपराध,
(छ) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी का दुष्प्रेरण,
(ज) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी को करने का प्रयत्न, जब ऐसा प्रयत्न अपराध हो और
(झ) ऐसे कार्य से होने वाला कोई अपराध, जिसकी बाबत पशु अतिचार अधिनियम, 1871 की धारा 20 के अन्तर्गत परिवाद किया जा सकता हो।
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यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उपरोक्त पंक्तियों में 2,000 रुपये दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2005 द्वारा प्रतिस्थापित किये गये है, पहले यह राशि 200 रुपये थी। इस प्रकार उपरोक्त अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है।
बलवन्त सिंह बनाम एम्परर के मामले में कहा गया है कि, मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसे मामलों का संक्षिप्त विचारण नहीं किया जा सकता जो उपरोक्त सूची में नहीं आते है अर्थात् जो अपराध संक्षिप्त विचारण योग्य नहीं है। (41 क्रि. लॉ. ज. 91)
मेवालाल बनाम एम्परर के मामले में भी न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि, मजिस्ट्रेट किसी ऐसे अपराध का संक्षिप्त विचारण नहीं कर सकता जो गम्भीर प्रकृति का है और जिसका संक्षिप्त विचारण नहीं किया जा सकता है। मजिस्ट्रेट द्वारा किसी गम्भीर प्रकृति के अपराध को अपनी इच्छा से सामान्य मानकर संक्षिप्त विचारण नहीं किया जा सकता।
CrPC की धारा 260 (2) के अन्तर्गत संक्षिप्त विचारण के दौरान यदि मजिस्ट्रेट को यह लगता हो कि मामले की प्रकृति को देखते हुए उसका संक्षिप्त विचारण किया जाना वांछनीय नहीं होगा तब मजिस्ट्रेट द्वारा उन साक्षियों को पुनः बुलाया जा सकेगा जिनकी परीक्षा हो चुकी है और वह उस मामले की इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति से पुनः सुनवाई कर सकेगा।
इस तरह धारा 260 की उपधारा (2) संक्षिप्त विचारण के अवांछनीय प्रतीत होने पर मजिस्ट्रेट को प्रक्रिया में परिवर्तन करने की विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करती है।
द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 261 के अन्तर्गत द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को संक्षिप्त विचारण की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। इसके अनुसार –
उच्च न्यायालय द्वारा ऐसे किसी मजिस्ट्रेट को जो द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ रखता है, को संक्षिप्त विचारण की शक्तियाँ प्रदान की जा सकेगी।
लेकिन वह केवल ऐसे मामलों का संक्षिप्त विचारण कर सकता है जो केवल जुर्माने से या जुर्माना सहित या रहित छ: माह से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय हो और किसी अपराध के दुष्प्रेरण या ऐसे किसी अपराध को करने के प्रयत्न के लिए दण्डनीय हो।
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सक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया | Procedure for summary trials
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 262 में संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया के सम्बन्ध में प्रावधान किये गए है। इस धारा के अनुसार – संक्षिप्त विचारण में उसी प्रक्रिया का अनुसरण किया जायेगा जो समन मामलों के विचारण के लिए विनिर्दिष्ट है तथा ऐसे विचारण में तीन मास से अधिक की अवधि के कारावास का दण्डादेश नहीं किया जा सकेगा।
पब्लिक प्रोसिक्यूटर बनाम हिन्दुस्तान मोटर्स लि. के मामले में यह कहा गया है कि संक्षिप्त विचारण के लिए उसी प्रक्रिया का अनुसरण किया जायेगा जो समन मामलों के विचारण के लिए संहिता में विनिर्दिष्ट है। (ए. आई. आर. 1970 आन्ध्रप्रदेश 176)
संक्षिप्त विचारणों में अभिलेख
CrPC की धारा 263 में संक्षिप्त विचारणों में अभिलेख के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार संक्षिप्त विचारण के मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा निम्नांकित प्रविष्टियाँ की जायेगी –
(क) मामले का क्रम संख्यांक,
(ख) अपराध किये जाने की तारीख,
(ग) रिपोर्ट या परिवाद की तारीख,
(घ) परिवादी का (यदि कोई हो) नाम,
(ङ) अभियुक्त का नाम, उसके माता-पिता का नाम और निवास,
(च) वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है और वह अपराध जो साबित हुआ है (यदि कोई हो) और धारा 260 की उपधारा (1) के खण्ड (ii), (iii) या (iv) के अधीन आने वाले मामलों में उस सम्पत्ति का मूल्य जिसके बारे में अपराध किया गया है,
(छ) अभियुक्त का अभिवाक् और उसकी परीक्षा (यदि कोई हो),
(ज) निष्कर्ष,
(झ) दण्डादेश या अन्य अंतिम आदेश, और
(ज) कार्यवाही समाप्त होने की तारीख ।
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निर्णय संक्षिप्त विचारण के मामलों में
सीआरपीसी की धारा 264 के अनुसार – संक्षिप्त विचारण के प्रत्येक ऐसे मामले में, जिसमें अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन नहीं करता है, मजिस्ट्रेट द्वारा साक्ष्य का सारांश और निष्कर्ष के कारणों का संक्षिप्त कथन देते हुए निर्णय लेखबद्ध किया जायेगा। इस प्रकार संक्षिप्त विचारण वाले मामलों में निर्णय भी संक्षिप्त होना अपेक्षित है। ऐसे निर्णय में –
(क) साक्ष्य का सारांश, तथा
(ख) निष्कर्ष के कारणों का संक्षिप्त कथन, दिया जायेगा।
काले खाँ बनाम रेक्स के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि – निष्कर्ष के कारण साक्ष्य पर आधारित होना अपेक्षित है। (ए. आई. आर. 1950, इलाहाबाद 417)
अभिलेख और निर्णय की भाषा
सीआरपीसी की धारा 265 के अनुसार – संक्षिप्त विचारण का अभिलेख और निर्णय न्यायालय की भाषा में लिखा जायेगा।
अभिलेख एवं निर्णय पर मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर किये जायेंगे। हस्ताक्षर पूर्ण होना अपेक्षित है; आद्य (initial) नहीं। (सुरेन्द्रसिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तरप्रदेश, ए. आई. आर. 1954, एस. सी. 194)
हस्ताक्षरों के स्थान पर हस्ताक्षर की मुहर (seal) का प्रयोग किया जाना वर्जित है। (अब्दुल अजीज बनाम स्टेट, ए. आई. आर. 1956, इलाहाबाद 637)
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संदर्भ :- बाबेल लॉ सीरीज (बसन्ती लाल बाबेल)
बूक : दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (सूर्य नारायण मिश्र)