हेल्लो दोस्तों, इस आलेख में मुस्लिम कानून के तहत विवाह विच्छेद की रीतियाँ, एक मुसलमान किन तरीकों से अपने विवाह का समापन कर सकता है यानि तलाक के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया गया है| यह मुस्लिम विधि का महत्वपूर्ण आलेख है जिसमे विवाह विच्छेद की रीतियों को आसान शब्दों में समझाया गया है|

मुस्लिम कानून में विवाह विच्छेद

विवाह के उपरांत जब पति-पत्नी के आपस में विचारों के नहीं मिलने से वैवाहिक जीवन में आशांति उत्पन्न हो जाती है या अन्य किसी कारण से उनके मध्य वैवाहिक सम्बन्ध नहीं रहते है तथा पति-पत्नी अपने विवाह को समाप्त (विवाह विच्छेद) करते है तब वह विवाह विच्छेद यानि विवाह विघटन (Dissolution of marriage) कहलाता है|

हम सभी यह जानते है की मुस्लिम विधि में विवाह एक संविदा की तरह होता है क्योंकि इसमें संविदा के तत्व विद्यमान होते है जिस कारण से विवाह को आसानी से समाप्त यानि विवाह विच्छेद किया जा सकता है।

विवाह विच्छेद की प्रथा लगभग सभी राष्ट्रों में किसी ना किसी रूप में प्रचलन में रही है और विवाह विच्छेद को दाम्पत्य अधिकारों का स्वाभाविक परिणाम समझा जाता है| इस्लाम के आरम्भ से पहले विवाह विच्छेद अत्यधिक आसान था तथा पति को असीमित अधिकार मिले हुए थे। लेकिन कालान्तर में मोहम्मद साहब ने इस व्यवस्था पर अंकुश लगाने का अथक प्रयास किया।

अमीर अली के अनुसार – पैगम्बर मोहम्मद साहब के सुधार पूर्वदेशीय विधानों के इतिहास में एक नये युग के प्रतीक है, उन्होंने पति की तलाक देने की शक्ति को सिमित करने के साथ साथ स्त्रियों को उचित आधार पर अलग हो जाने का अधिकार प्रदान किया|

पैगम्बर मोहम्मद साहब के अनुसार “यदि कोई स्त्री अपने विवाह से दुखी है तो उस सम्बन्ध का विच्छेद हो जाना चाहिए तथा ईश्वर की दृष्टि में अनुमोदित बातों में विवाह विच्छेद सबसे बुरा है”| यह सही है की पैगम्बर मोहम्मद साहब ने विवाह विच्छेद को सबसे बुरा माना है लेकिन इसे जन विरोध: की आंशका से कुछ सुधार के साथ सहन किया है|

विवाह के बाद किसी कारण से या आपसी विचारों के नहीं मिलने से पति-पत्नी अपने मध्य हुए विवाह के सम्बन्ध को विच्छेद कर सकते है। कई बार पति और पत्नी के कृत्य द्वारा भी विवाह समाप्त हो जाता है| मुस्लिम विधि में विवाह विच्छेद की अनेक रीतियां या प्रकार है जिनके द्वारा विवाह का समापन हो जाता है|

विवाह के दोनों पक्षकारों को विवाह विच्छेद के अधिकार प्राप्त होते है, लेकिन विवाह विच्छेद के सम्बन्ध में पत्नी से ज्यादा पति को अधिकार प्राप्त होते है, इस पोस्ट में पति एंव पत्नी दोनों के विवाह विच्छेद देने अधिकार का उल्लेख किया गया है|

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विवाह विच्छेद के प्रकार | Types of Divorce

सामान्य तौर पर विवाह विच्छेद दो प्रकार का होता है –

(A) न्यायालय द्वारा – विवाह के बाद जब पति – पत्नी के आपसी विचार नहीं मिलते है और उन दोनों में से कोई एक तलाक लेना चाहता है तब वह सक्षम न्यायालय के समक्ष विवाह विच्छेद (तलाक) के कारण सहित आवेदन कर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकता है|

(B) पक्षकारो (पति-पत्नी) द्वारा – विवाह के उपरांत जब पति-पत्नी के आपस में विचारों के नहीं मिलने से वैवाहिक जीवन में आशांति उत्पन्न हो जाती है या अन्य किसी कारण से उनके मध्य वैवाहिक सम्बन्ध नहीं रहते है तथा पति-पत्नी अपने विवाह को समाप्त (विवाह विच्छेद) करते है तब वह विवाह विच्छेद यानि विवाह विघटन (Dissolution of marriage) कहलाता है|

पक्षकारो में विवाह विच्छेद मुख्यतः तीन प्रकार का होता है

(क) पति द्वारा

(ख) पत्नी द्वारा

(ग) आपसी सहमति से |

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लेकिन अध्ययन की सुविधा के अनुसार विवाह विच्छेद के निम्न प्रकार है –

(1) तलाक (talaq)

अरबी में तलाक का अर्थ है — निराकरण करना या नामंजूर करना है इसके अलावा इसका अर्थ – अस्वीकृत करना, निरस्त करना, मंसूख करना, छुटकारा पाना आदि से भी लगाया जाता है।

वैसे तो मुस्लिम विधि में विवाह विच्छेद की अनेक रीतियां है जिनके द्वारा विवाह का समापन हो जाता है, लेकिन आमतौर पर हम तलाक को ही विवाह का समापन मानते है जबकि तलाक केवल मात्र विवाह विच्छेद का एक तरीका है। तलाक मौखिक तलाक एंव लिखित तलाक दोनों तरह से दिया जा सकता है|तलाक एंव तलाक के प्रकार की विस्तृत जानकारी इस आलेख में दी गई है – तलाक एंव इसके प्रकार

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(2) इला –

इला का अर्थ – शपथ या प्रतिज्ञा होता है । यदि कोई पति जो वयस्क तथा स्वस्थचित हो, जब वह खुदा की कसम (शपथ) खाकर अपनी पत्नी से यह कहता है कि वह कम से कम चार माह तक नहीं आयेगा या किसी अनिश्चित समय तक उसके साथ सम्भोग नहीं करेगा, तब इसे इला (खुला रूपी) तलाक कहा जाता है| | इला में पत्नी को मुला तथा पति को मुली कहा जाता है|

यदि पति द्वारा इला करने के चार माह तक अपनी पत्नी के साथ सम्भोग नहीं किया जाता है तब उनके विवाह का समापन हो जाता है और ऐसी स्थिति में पत्नी न्यायालय की डिक्री से पति से तलाक प्राप्त कर सकती है। (अब्दुल अजीज बनाम बसीरन बीबी, 1958 लाहौर 59 )|

निम्नलिखित स्थितियों में इला को रद्द किया जा सकता है –

(क) यदि पति चार माह की अवधि के अन्दर सम्भोग फिर से शुरू कर दें

(ख) यदि इस अवधि के अन्दर मौखिक रूप से इला को निरस्त कर दिया जाए|

(3) जिहार –

जिहार की परिभाषा – इसमें वयस्क तथा स्वस्थचित व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी की तुलना अपनी माँ या निषिद्ध आसत्तियों के भीतर आने वाली किसी स्त्री से की जाती है,  जैसे — वह यह कहता है कि “तुम मेरी माता के समान हो”| इस सुरत में जब तक पति प्रायश्चित नहीं कर लें, तब तक पत्नी को सम्भोग करने से इन्कार का अधिकार होता है|

मुल्ला के अनुसार – प्रायश्चित द्वारा आत्मशुद्धि न करने पर पत्नी को न्यायिक विवाह विच्छेद के लिए आवेदन करने का अधिकार मिल जाता है  तथा वह अपने पति को तलाक दे सकती हैं।

जिहर के विधिक प्रभाव –

(i) इसमें सम्भोग अवैध हो जाता है|

(ii) इसमें पति प्रायश्चित द्वारा शोधन का जिम्मेवार होता है

(iii) यदि पति गलती करता जाए तब पत्नी न्यायालय से तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकती है|

पति द्वारा प्रायश्चित निम्न प्रकार से हो सकता है –

(क) एक गुलाम को आजाद करना

(ख) दो महीने रोजा रख कर

(ग) साठ गरीबों को भोजन करवा कर|

अमीर अली के अनुसार – पति के लिए जिहर उसी सुरत में बन्धनकारी होगा जब तुलना करने का आशय “तिरस्कार करना हो’|

हेदाया के अनुसार – यदि पति यह घोषित करे की तुलना करने से उसका आशय अपनी पत्नी के प्रति सम्मान प्रकट करना था तब पति के शुद्धी आवश्यक नहीं होगी|

 (4) लिअन –

जब पति द्वारा पत्नी पर ‘पर-पुरुष गमन’ का कतई मनगड़त एंव झूठा आरोप लगाया जाता है तब इसे लियन कहा जाता है और इस आधार पर पत्नी को यह अधिकार मिल जाता है की वह दावा करके अपने पति को तलाक दे सकती है। इसके लिए नियमित वाद दायर करना जरुरी है| लेकिन यदि आरोप सत्य प्रमाणित होता है तो तलाक नहीं लिया जा सकता। (काबिजगाजी बनाम मदारी बीबी, 145 आई.सी. 828)

(5) तलाक-ए-तफवीज –

तलाक-ए-तफवीज में यद्यपि तलाक पत्नी की ओर से दिया जाता हैं लेकिन पत्नी को तलाक की यह शक्तियाँ पति द्वारा प्रत्यायोजित (Delegate) की जाती है। शक्तियों का ऐसा प्रत्यायोजन सशर्त या शर्त रहित हो सकता है। इस प्रकार तलाक-ए-तफवीज के अन्तर्गत पत्नी पति द्वारा प्राप्त शक्तियों के अधीन अपने पति को तलाक दे सकती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ऐसा प्रत्यायोजन किसी अन्य व्यक्ति को भी किया जा सकता है।

‘महराम अली बनाम आयसा खातून’ के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि पति पत्नि को इस शर्त के अधीन तलाक की शक्तियाँ प्रत्योजित करता है कि उसके (पति) द्वारा पत्नी की सहमति के बिना किसी अन्य स्त्री के साथ विवाह किया जायेगा तो वह (पत्नी) तलाक की शक्तियों का प्रयोग कर सकेगी, मान्य है। [ (1915) 19सी. डब्ल्यू. एन. 1226]

तलाक-ए-तफवीज भी तीन प्रकार का माना गया है –

(i) इरिव्तयार अर्थात् तलाक का अधिकार पत्नी को देना,

(ii) अमर बा-यद अर्थात् पत्नी के हाथों में मामले को सौंप देना, एवं

(iii) मशीअत अर्थात् पत्नी को उसकी इच्छानुसार करने का विकल्प देना ।

(6) खुला –

जब तलाक पत्नी की सहमति एवं प्रेरणा से दिया जाता अर्थात् पत्नी की ओर से तलाक की प्रस्थापना की जाती है तब उसे ‘खुला’ रूपी तलाक कहा जाता है। ऐसे तलाक में पत्नी पति से मुक्ति पाना चाहती है तथा इसी उद्देश्य से वह प्रतिकर के साथ पति के समक्ष तलाक का प्रस्ताव रखती है। पत्नी की और से पति को प्रतिकर किसी भी रूप में दिया जा सकता है अर्थात् वह महर की राशि भी छोड़ सकती है। [मुंशी बजूल उल रहीम बनाम लतीफुन्निसा (1861)8 एम.आई.ए. 379]

(7) मुबारत –

जब तलाक पति एवं पत्नी की पारस्परिक सहमति से दिया जाता है अर्थात् एक-दूसरे की इच्छा से दिया जाता है तब उसे ‘मुबारत’ द्वारा तलाक कहा जाता है। इसमें प्रतिकर देय नहीं होता है।

‘खुला’ एवं ‘मुबारत’ में निम्नांकित अन्तर पाया जाता है –

(i) खुला में पत्नी पति से मुक्ति पाने हेतु तलाक का प्रस्ताव करती है और पति द्वारा उसे स्वीकार किया जाता है जबकि मुबारत में तलाक का प्रस्ताव किसी भी पक्षकार द्वारा किया जा सकता है।

(ii) खुला में तलाक पत्नी की पहल एवं प्रेरणा पर होता है जबकि मुबारत में पारस्परिक सहमति से।

(iii) खुला में पत्नी की ओर से पति को प्रतिकर देय होता है जबकि मुबारत में ऐसा कोई प्रतिकर देय नहीं होता।

श्रीमती सबाह अदनन समी खान बनाम अदनन समी खान (ए.आई. आर. 2010 बम्बई 109) के मामले में बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा खुला (hula) एवं मुबारत (Mubarat) में अन्तर स्पष्ट किया गया है।

मुबारत में तलाक पति पत्नी की पारस्परिक सहमति से होता है, जबकि खुला में पत्नी द्वारा तलाक की पहल की जाती है और वही पृथक् होने का प्रस्ताव रखती है।

(मुबारत का अर्थ है परस्पर मुक्ति, जबकि खुला में विरक्ति है पत्नी की ओर से और वह अलगाव चाहती है।)

इस प्रकार तलाक अर्थात् विवाह के विघटन के उपरोक्त तरीके प्रचलित हैं। तलाकशुदा पत्नी से पुनर्विवाह- कई बार यह प्रश्न उठता है कि क्या पति अपनी तलाकशुदा पत्नी से पुनर्विवाह (Remarriage) कर सकता है? इसका उत्तर सकारात्मक तो है लेकिन यह अत्यन्त कठोरतम व्यवस्था है। कोई भी पति अपनी तलाकशुदा पत्नी से निम्नांकित शर्तें पूरी हो जाने पर ही पुनर्विवाह कर सकता है –

(i) तलाक के पश्चात् पत्नी इद्दत की अवधि पूर्ण कर ले,

(ii) ऐसी अवधि पूर्ण होने के पश्चात वह किसी अन्य पुरुष से विवाह कर ले,

(iii) ऐसे पुरुष से वास्तविक संभोग हो जाये,

(iv) वह दूसरा पति उसे स्वेच्छा से तलाक दे दे, तथा

(v) ऐसे तलाक के बाद इद्दत की अवधि पूरी हो जाये।

श्रीमती सबाह अदनन समी खान बनाम अदनन समी खान (ए.आई.आर. 2010 बम्बई 109 ) के मामले में बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि- खुला एवं मुबारत तलाक में यदि पत्नी पुनः उसी पति से विवाह करना चाहती है तो उसके लिए हलाल (Halala) का पालन किया जाना आवश्यक नहीं है। हलाल का पालन किया जाना तब आवश्यक है जब तलाक तीन बार उच्चारण द्वारा दिया जाये।

(8) धर्म परिवर्तन –

मुस्लिम स्वीय विधि के अन्तर्गत विवाह में के किसी भी पक्षकार द्वारा धर्म परिवर्तन कर दिए जाने पर विवाह अपने आप समाप्त हो जाता है। (मुन्नवर उल इस्लाम बनाम रिषु अरोड़ा, ए.आई.आर. 2014 दिल्ली 130 )

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