हेल्लो दोस्तों, इस आलेख में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 क्या है एंव इस अधिनियम को लागू करने के क्या क्या कारण है, इसमें कितनी कमेटियां गठित की गई है तथा इस अधिनियम के तहत विधिक सेवा प्राप्त करने के हकदार व्यक्ति कौन है आदि को आसान भाषा में समझाया गया है,

विधिक सेवा प्राधिकरण –

सभी राज्यों में निःशुल्क विधिक सहायता के प्रोग्रामों को लागू करने, उनकी देख-रेख करने हेतु केन्द्र सरकार ने प्रस्ताव पारित कर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पी एन. भगवती की अध्यक्षता में 26 सितम्बर, 1980 को विधिक सहायता स्कीमों को लागू करने वाली कमेटी (Committee for Implementing Legal Aid Schemes) बनाई।

इस कमेटी का मुख्य उद्देश्य सभी राज्यों और केन्द्र प्रशासित प्रदेशों में समान रूप से निःशुल्क विधिक सहायता प्रोग्रामों को लागू करना था और उनकी देखभाल करना था। इस कमेटी ने निःशुल्क विधिक सहायता के लिए कई मॉडल स्कीम तैयार कीं जिनके तहत सभी राज्यों और केन्द्र प्रशासित राज्यों में विधिक सहायता तथा सलाहकार (Advice) बोर्ड, स्थापित किये गये तथा इस कमेटी के सम्पूर्ण खर्च को केन्द्र सरकार वहन करती है और इस हेतु अनुदान (Grant) प्रदान करती है।

लेकिन आगे चलकर यह कमेटी अपने वांछित लक्ष्य में सफल नहीं हो सकी तथा इसमें अनेक कमियां उजागर हुई। इसलिए इन कमियों को दूर करने के लिए और विधिक सहायता प्रोग्रामों का प्रभावी रूप से निरीक्षण करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य व जिला स्तर पर प्राधिकरण गठित करने की आवश्यकता महसूस की गई,

जिसके फलस्वरूप केन्द्र सरकार ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (Legal Services Authorities Act, 1987) पारित कर विधिक सहायता स्कीमों को लागू करने वाली कमेटी (CILAS) के कार्यों को उसे सोंप दिया| विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम  के अधीन गठित कमेटियाँ अब विधिक सहायता प्रोग्रामों की समुचित देखभाल कर रही हैं।

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विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त एंव सक्षम विधिक सेवाओं को प्रदान करने के लिए, कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी भी अन्य कारण से न्याय प्राप्त करने से वंचित न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए तथा लोक अदालत का आयोजन करने के लिए ताकि न्यायिक व्यवस्था समान अवसर के आधार पर सबके लिए न्याय सुगम बना सके|

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987

इस अधिनियम के अधीन निम्नलिखित विधिक सेवा प्राधिकरणों यानि कमेटियों का उल्लेख किया गया है, जैसे-

(i) राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, – जाने 

(ii) राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, – जाने 

(iii) जिला विधिक सेवा प्राधिकरण – जाने

इनके अतिरिक्त इस अधिनियम में विभिन्न विधिक सेवा समितियों का प्रावधान भी किया गया है, जैसे –

(i) उच्चत्तम न्यायालय विधिक सेवा समिति;

(ii) उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति;

(iii) तालुक विधिक सेवा समिति; आदि।

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विधिक सेवा प्राधिकरण के मुख्य उदेश्य –

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराना है। यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 39क को मूर्त रूप प्रदान करने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।

विधिक सेवा के हकदार व्यक्ति –

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 12 में उन व्यक्तियों का उल्लेख दिया गया है जो निर्धन एवं असहाय है तथा निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने के हकदार है, जैसे –

(i)  अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य,

(ii) संविधान के अनुच्छेद 23 के अन्तर्गत निर्देशित मानव व्यापार अथवा बेगार (Trafficking in human beings or beggar) से पीड़ित व्यक्ति,

(iii) कोई स्त्री अथवा बालक,

(iv) अक्षमता (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 की धारा 2 के खण्ड (झ) में यथापरिभाषित अक्षम व्यक्ति (a person with disability),

(v) निम्नांकित से पीड़ित व्यक्ति-

(क) लोक उपद्रव (mass disaster)

(ख) जातिगत हिंसा (ethnic violence)

(ग) जातिगत अत्याचार (caste atrocity)

(घ) बाढ़ (flood)

(ङ) सूखा (drought)

(च) भूकम्प (earthquake)

(छ) औद्योगिक उपद्रव (industrial disaster)

(vi) औद्योगिक कर्मकार

(vii) अभिरक्षा (custody) में होने वाला व्यक्ति जिसमें निम्नांकित भी सम्मिलित

(क) अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा 2 के खण्ड (छ) के अर्थान्तर्गत संरक्षण गृह (protective home) की अभिरक्षा,

(ख) किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की अभिरक्षा, अथवा

(ग) मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 की धारा 2 के खण्ड (छ) के अन्तर्गत मानसिक चिकित्सालय अथवा मानसिक नर्सिंग होम (psychiatric hospital or psychiatric nursing home) की अभिरक्षा,

(viii) ऐसा व्यक्ति जिसकी वार्षिक आय निर्धारित सीमा के अनुरूप है।

इस प्रकार अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत उन व्यक्तियों को विधिक सेवा प्राप्त करने का हकदार माना गया है जो आर्थिक, सामाजिक एवं शारीरिक दृष्टि से कमजोर है तथा विधिक सेवायें प्राप्त करने का अधिकार पक्ष एवं विपक्ष दोनों को होता है |

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अधिनियम की धारा 13(1) में यह कहा गया है कि विधिक सेवाओं के लिए सम्बन्धित प्राधिकरण का यह समाधान हो जाना आवश्यक है कि ऐसे व्यक्ति का ऐसा प्रथमदृष्ट्या (prima faice) मामला है –

(i) जो चलने योग्य है; अचवा

(ii) जो प्रतिरक्षा योग्य है।

फिर धारा 13(2) में यह प्रावधान किया गया है कि विधिक सेवायें प्राप्त करने के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति की आय के सम्बन्ध में उसका शपथ पत्र पर्याप्त होगा, बशर्ते कि उस पर अविश्वास करने का कोई कारण न हो।

इस प्रकार विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 निर्धन एवं कमजोर वर्ग के लोगों को निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराने की दिशा में निश्चित ही यह एक सार्थक व्यवस्था है।

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