इस आलेख में बीएसए की धारा 4 में वर्णित “तथ्य जो एक ही संव्यवहार के भाग है अथवा रेस जेस्टे का सिद्वान्त” के बारें में जानेगें जो साक्ष्य विधि का महत्वपूर्ण विषय है| इसके अलावा साक्ष्य विधि में रेस जेस्टे का सिद्वान्त के लाभ, ग्राह्रा तथ्य, तथ्यों की सुसंगति आदि को भी आसान शब्दों में समझाने का प्रयास किया गया है –
रेस जेस्टे का सिद्वान्त | Doctrine of Res Gestae
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 में जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है उसे रेस जेस्टे का सिद्वान्त (Principle of Res gestae) कहा जाता है। शब्द ‘रेस जेस्टे’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सम्बन्धित तथ्य’| रेस जेस्टे का सिद्धान्त आंग्ल विधि पर आधारित है|
यह शब्द लैटिन भाषा का है जिसका अर्थ है – “जो काम किया गया है” और अंग्रेजी में इसका अर्थ है – “ऐसे कथन या कार्य जो किसी संव्यवहार के साथ हुए है|
इस प्रकार धारा 4 के अनुसार ऐसे तथ्य जो विवाद के बिंदु नहीं है, लेकिन वे तथ्य विवाद की विषय वस्तु से इस तरह जुड़े हुए है कि वे तथ्य उस घटना यानि एक ही संव्यवहार के ही भाग समझे जाते है, चाहे वे एक ही समय एंव स्थान पर घटित हुए हो या अलग अलग समय एंव स्थान में घटित हुए हो, सुसंगत तथ्य माने जाते है, रेस जेस्टे कहलाते हैं।
साक्ष्य में रेस जेस्टे का सिद्वान्त का सार यह है कि – तथ्य जो यद्यपि विवाद्यक नहीं है, विवाद्यक तथ्यों से इस प्रकार संसक्त है कि वे एक ही संव्यवहार के भाग बन गये हैं और इसीलिये वे विवाद्यक तथ्य की तरह सुसंगत हो गये है तब प्रत्येक ऐसे तथ्य का साक्ष्य दिया जा सकता है|
इस धारा का मुख्य उद्देश्य विवाद्यक तथ्यों की साक्ष्य को अधिक बोधगम्य या स्पष्ट बनाना है ताकि किसी सही निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 में यह प्रावधान है कि, “जो तथ्य विवाद्यक न होते हुए भी किसी विवाद्यक तथ्य से इस प्रकार संसक्त हैं कि वे एक ही संव्यवहार के भाग हैं, वे तथ्य सुसंगत हैं, चाहे उसी समय और स्थान पर या विभिन्न समयों और स्थानों पर घटित हुए हों।”
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उदाहरण – क पर ख की पीटकर हत्या करने का आरोप है। क या ख या पास खड़े लोगों द्वारा जो कुछ भी पिटाई के समय या उससे इतने अल्पकाल पूर्व या पश्चात् कहा या किया गया था कि वह उसी संव्यवहार का भाग बन गया है, वह सुसंगत तथ्य है।
यहाँ संव्यवहार का तात्पर्य है – “कि कार्यों की लड़ी कुछ इस तरह होनी चाहिये कि वह एक-दूसरे से पूर्णतया जुड़े हों। यदि ऐसा हो तो उन कार्यों में एक दूसरे के समय की निकटता एक महत्वपूर्ण मायने रखती है।” यदि एक तथ्यों की कड़ी आपस में एक ही में जुड़ी है या नहीं यह एक तथ्य का प्रश्न है जो समय व घटना स्थल की निकटता, लक्ष्य की एकता व योजना पर निर्भर करती है| घटना के समान तथ्य जो एक ही संव्यवहार के भाग नहीं हैं, धारा 4 में सुसंगत नहीं हैं।
स्टीफेन ने अपने डाईजेस्ट में कहा है कि – “संव्यवहार तथ्यों के ऐसे समूह को कहते हैं जो एक-दूसरे से इतने जुड़े रहते हैं कि उन्हें एक ही नाम दिया जा सकता है जैसे कि कोई अपराध, संविदा, अपकृत्य अथवा जाँच पड़ताल का कोई भी ऐसा विषय जो विवाद्यक हो।
सामान्य तौर पर संव्यवहार किसी भी भौतिक कार्य (Physical acts) के लिये प्रयोग किया जा सकता है या एक के बाद एक होने वाले भौतिक कार्यों के लिये जिसमें वे कथन भी सम्मिलित होंगे जो कार्य या कार्यों के साथ होते चले गये थे|
एक ही संव्यवहार का निर्माण करने वाले तथ्य –
इसमें प्रत्येक तथ्य दुसरे तथ्य का अंश होता है तथा कोई भी ऐसा तथ्य नहीं होता है जो दुसरे तथ्य से सम्बंधित ना हो| धारा 6 के प्रयोजनार्थ अभिव्यक्ति ‘एक ही संव्यवहार’ (Same Transaction) महत्त्वपूर्ण है। धारा 4 की प्रयोज्यता के लिए किसी तथ्य का दूसरे तथ्यों के साथ एक ही संव्यवहार का भाग होना आवश्यक है।
उदाहरणार्थ – क पर ख की तलवार से हत्या करने का आरोप है। क यहाँ ख या आसपास खड़े व्यक्तियों द्वारा तलवार के वार के पूर्व या तत्काल पश्चात् किये गये कार्य या कहे गये शब्द “संव्यवहार के भाग हैं तथा सुसंगत है”।
इससे यह स्पष्ट होता है कि किसी कथन का संव्यवहार का भाग होने के लिए यह आवश्यक है कि वह घटना के घटित होने के समय का हो। यदि वह घटना के समाप्त होने के पश्चात् किया जाता है तो उसे सुसंगत नहीं माना जायेगा।
जनतेला वी राव बनाम स्टेट ऑफ आन्ध्रप्रदेश का प्रकरण है जिसमे एक बस को आग से जला दिया गया था जिससे काफी लोग क्षतिग्रस्त हो गये। उन्हें अस्पताल पहुँचाया गया तथा मजिस्ट्रेट द्वारा उनके कथन लेखबद्ध किये गये। इन कथनों को एक ही संव्यवहार का भाग नहीं माना गया, क्योंकि वे घटना के काफी समय पश्चात् किये गये थे। (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 2791)
इसी प्रकार ‘वी. चन्द्रशेखर राव बनाम पी. सत्यनारायण’ के मामले में यह कहा गया कि – अभियुक्त के पिता द्वारा मृतक के पति को किया गया यह टेलीफोन कि उसके पुत्र द्वारा मृतक की हत्या की गई हैं, एक ही संव्यवहार का भाग नहीं है। (ए.आई.आर. 2000 एस.सी. 2138)
रेस जेस्टे का सिद्वान्त को विस्तार से जानने के लिए पहले हमे तथ्यों की सुसंगति के बारे में जानना जरुरी है, क्योंकि साक्ष्य अधिनियम के अध्याय 2 (तथ्यों की सुसंगति) में रेस जेस्टे का सिद्वान्त का उल्लेख किया गया है
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तथ्यों की सुसंगति (Relevancy of Facts)
साक्ष्य विवादस्पद विषयों के निस्तारण एवं सत्य का पता लगाने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विवादास्पद विषयों के सम्बन्ध में साक्ष्य की गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। तथ्यों की सुसंगति यह निर्धारित करती है कि, किसी न्यायिक कार्यवाही में क्या तथ्य किसी पक्षकार द्वारा साबित किये जा सकते है और उन्हें साबित करने के साधन एंव तरीके क्या है?
उदाहरण के लिए क जिसके पक्ष में ख ने एक मकान का बैनामा लिखा है का कब्ज़ा पाने के लिए ख पर वाद दायर करता है और ख उस दावे को इन्कार कर देता है| इस वाद के विचारण में क यह तथ्य साबित करना चाहेगा की उसने ख से मकान ख़रीदा है तथा ख ने उसके पक्ष में बैनामा लिखा है, यह तथ्य “विवाद्यक तथ्य” के साथ साथ सुसंगत तथ्य भी है और न्यायालय ऐसे तथ्यों को साबित करने की अनुमति अवश्य देगा|
सुसंगत तथ्य एंव विवाद्यक तथ्यों को किसी भी वाद अथवा प्रकरण में साबित अथवा नासाबित करने का साक्ष्य दिया जा सकता है|
जैसा की साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में प्रावधान है कि – “किसी वाद या कार्यवाही में हर विवाद्यक तथ्य और ऐसे अन्य तथ्यों के, जिन्हें सुसंगत घोषित किया गया है, अस्तित्व या अनास्तित्व का साक्ष्य दिया जा सकेगा और किन्हीं अन्यों का नहीं।” तथ्यों की सुसंगति के सन्दर्भ में धारा 4-6 के उपबन्ध अवलोकनीय हैं।
रेस जेस्टे का सिद्वान्त के लाभ
रेस जेस्टे का सिद्धान्त का तात्पर्य है – एक ही संव्यवहार का भाग होने वाली घटनायें। रेस जेस्टे को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि वह मुख्य तथ्य की आनुषंगिक बात और उसे स्पष्ट करने वाली बात है जिसमें कार्य (act) और शब्द (word) भी शामिल है जो उससे इस प्रकार से घनिष्ट रूप से सम्बन्धित होते हैं कि वे एक ही संव्यवहार के भाग होते हैं और बिना उनके ज्ञान के मुख्य तथ्य को ठीक से नहीं समझा जा सकता है।
रेस जेस्टे का सिद्वान्त का लाभ यह है कि, यह न्यायालय को प्रत्येक संव्यवहार के सभी आवश्यक अंग को ध्यान में लेने की अनुज्ञा देता है|
प्रत्येक घटना में कुछ कार्य, लोप या कथन होते है एंव प्रत्येक ऐसा कार्य, लोप या कथन जिनसे संव्यवहार की प्रकृति पर कुछ प्रकाश पड़ता है या उसके सही चरित्र या गुण को दर्शाता है, उसे संव्यवहार का भाग माना जाएगा तथा उसका साक्ष्य दिया जा सकता है|
इस सम्बन्ध में रैटन बनाम क्वीन का प्रकरण महत्वपूर्ण है, इस मामले के तथ्य यह थे कि एक स्त्री ने गोली लगने के थोड़ी देर पूर्व टेलीफोन मिलाया और आपरेटर लड़की से कहा कि पुलिस को मिलाओ। आपरेटर अभी कुछ भी न कर पाई थी कि उस स्त्री ने जो तकलीफ से बोल रही थी, अचानक अपना पता बोल दिया और कॉल बंद हो गई। आपरेटर ने वही पता पुलिस को बता दिया।
पाँच मिनट के अन्दर उस पते पर पुलिस पहुँच गई और एक स्त्री का शव पाया। उसके पति पर उसकी हत्या का आरोप था और यह निर्णीत किया गया था कि उसके द्वारा टेलीफोन करना और उसमें जो शब्द बोले गये थे अर्थात् पुलिस माँगना, दोनों को उस घटना या संव्यवहार का भाग मानते हुए सुसंगत साक्ष्य ठहराये गये।
घबराहट की हालत में उसका टेलीफोन करना यह बताता था कि उसकी हत्या साशय थी, दुर्घटनावश नहीं थी। क्योंकि किसी दुर्घटना से पीड़ित होने वाले व्यक्ति को स्वप्न में भी यह सूझ नहीं सकता था कि वह दुर्घटना से पहले ही पुलिस को बुला ले। जो कथन टेलीफोन पर मृतक स्त्री ने किया था और उसके तुरन्त बाद होने वाली घटना में बहुत ही नजदीकी सम्बन्ध था। उसके स्थान तथा समय घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित थे।
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संव्यवहार के भाग के रूप में कार्य, कार्य लोप, कथन
जैसे – ए स्थान पर हमला करवाने के लिए क स्थान पर पैसा एकत्रित किया जाता है, ब स्थान पर हथियार तथा स स्थान पर व्यक्तियों को ट्रेनिंग दी जाती है, ये सब कार्य चाहे एक दुसरे से समय और स्थान में दूर दूर है, लेकिन फिर भी एक ही संव्यवहार के भाग माने जाएगें क्योंकि इन सभी का कार्य एक ही है|
इसी तरह कुछ कथन भी भौतिक घटनाओं के साथ होते है, जैसे – घायल होने पर प्रत्येक व्यक्ति चिल्लाता है, चाहे वह दर्द के कारण चिल्लाये, चाहे सहायता मांगने के लिए, चाहे उस आदमी का नाम पुकारे जिसने उसे चोट मार कर घायल किया है, यदि यह घटना किसी सार्वजनिक स्थान पर हुई है तो कुछ लोग एकत्रित हो जाएँगे और घटना के बारे में बातचीत करेंगे, एक ही संव्यवहार के भाग मने जाएगे|
एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्य
धारा 4 की प्रयोज्यता के लिए किसी तथ्य का दूसरे तथ्यों के साथ एक ही संव्यवहार का भाग होना आवश्यक है। समान या एक ही ‘संव्यवहार’ की परिभाषा भारतीय साक्ष्य अधिनियम में नहीं दी गयी है। संव्यवहार शब्द की वास्तव में प्रकृति ही ऐसी है कि इनकी उचित परिभाषा नहीं दी जा सकती। फिर भी इसका सामान्य अर्थ है – ‘एक कार्यकलाप’।
कोई तथ्य उसी संव्यवहार का एक भाग है अथवा नहीं, इस बात को निश्चित करने के लिए यह देखना चाहिये कि क्या वे एक-दूसरे से इस प्रकार सम्बद्ध हैं कि उनको उद्देश्य की दृष्टि से, अथवा कार्य-कारण की दृष्टि से अथवा समय की निकटता की दृष्टि से एक ही लगातार कृत्य की संज्ञा दी जा सके? लेकिन समय की निकटता एक ही संव्यवहार की अनिवार्य रूप से द्योतक नहीं है। दो कार्य एक-दूसरे से काफी समय बाद भी घटित होने पर कभी-कभी एक अनुक्रम में घटित हुए माने जा सकते हैं।
रेस जेस्टे का सिद्वान्त एवं अनुश्रुत साक्ष्य
अनुश्रुत साक्ष्य का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसने घटना होते नहीं देखी बल्कि उस घटना के बारे में उस व्यक्ति से सुना है जिसने वह घटना होते देखी है| इस तरह ऐसा व्यक्ति साक्ष्य नहीं दे सकता है क्योंकि उसका ज्ञान अनुश्रुति पर आधारित है|
लेकिन अनुश्रुत साक्ष्य तब दिया जा सकता है जब वह घटना का भाग हो, इस तरह रेस जेस्टे का सिद्धान्त अनुश्रुति (Hearsay) के साक्ष्य को अस्वीकृत करने के सिद्धान्त का एक अपवाद प्रस्तुत करता है।
इस सम्बन्ध में आर. बनाम फोस्टर का एक अच्छा प्रकरण है जिसमे एक व्यक्ति (गवाह) ने ट्रक भागते हुए देखा, लेकिन दुर्घटना नहीं। वह व्यक्ति दुर्घटना से पीड़ित व्यक्ति के पास जाता है और उससे घटना के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति उस पीड़ित व्यक्ति द्वारा कहे गये शब्दों की साक्ष्य दे सकता है, क्योंकि वह घटना का एक भाग है, चाहे उसने केवल वह बात सुनी थी, देखी नहीं| (1834 6 सी एंड सी 325)
धारा 4 के अन्तर्गत ग्राह्यता की शर्तें
यदि संव्यवहार कई कृत्यों में सम्पन्न हुआ है तो इसके लिए कि कृत्य एक ही संव्यवहार के भाग का निर्माण करे, इन कृत्यों का समय तथा स्थान एकता (unity) तथा निकटता (proximity), कार्य का निरन्तरता (continuity of time) तथा उद्देश्य या योजना की एकात्मकता से इस प्रकार जुड़ा होना चाहिए कि ये एक श्रृंखला (जंजीर) की अटूट कड़ी हो। यदि इस कार्य में एक भी कड़ी गायब है तो उन्हें एक ही संव्यवहार का भाग नहीं माना जा सकता|
जब तथ्य का कार्य के साथ-साथ किये गये कथन के रूप में ग्राह्यता का प्रश्न है तब तथ्य को धारा 4 के अन्तर्गत ग्राह्य होने के लिए निम्न का शर्तो का होना आवश्यक है –
(i) कार्य या घटना विवाद्यक या सुसंगत हो तथा कथन घटना से सम्बन्धित हो तथा कथन घटना या कार्य को स्पष्ट करता हो।
(ii) कथन सारवान रूप से घटना के दौरान या उससे अल्पकाल तत्काल (immediately) पूर्व या अल्पकाल (तत्काल) पश्चात् किया गया हो। इनके साथ अन्तराल (interval) इतना न हो कि कथनकर्त्ता को कहानी गढ़ने का अवसर प्राप्त हो।
(iii) कथन जो कार्य के साथ-साथ (words accompanying physical acts) है तथा स्पष्ट कर रहा है, मौखिक या लिखित हो सकता है।
(iv) कथन तथ्य का सबूत नहीं है। तथ्य (घटना) का स्वतंत्र साक्ष्यों द्वारा साबित किया जाना आवश्यक है। परन्तु भारतीय साक्ष्य विधि के अनुसार यदि कथन धारा 4 के अन्तर्गत है तो वह तथ्य (घटना) को साबित करने में सहायक हो सकता है।
उदाहरण – जहाँ हमलावर रात के सन्नाटे में शिकार व्यक्ति के अहाता के आंगन में घुस गया और उसने उसे पहचान लिया, मृत्यु के पूर्व उसका यह कहना कि अपीलार्थी बन्दूक लिए खड़ा था और उसने उस पर गोली चलाई थी, ऐसी परिस्थितियाँ हैं जो एक दूसरे से समय और स्थान के सामीप्य के द्वारा इतनी घुली मिली थीं कि मृतका का कथन उसी संव्यवहार का अंग बन गया था और धारा 6 के अधीन ग्राह्य था|
जेन्टेला विजय वर्धन राव बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य में कहा गया कि – यदि घटना और कथन के मध्य थोडा सा भी अन्तराल है जो की गढ़ने के लिए प्रयाप्त है, तब वह कथन “रेस जेस्टे” का भाग नहीं होगा| (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 279)
रेस जेस्टे के रूप में ग्राह्य साक्ष्य –
(i) अपराध किये जाने के स्थान और समय पर अभियुक्त द्वारा किया गया कथन,
(ii) स्त्री के विरुद्ध लैंगिक अपराधों में किसी तीसरे व्यक्ति को किये गये कथन,
(iii) वसीयतकर्त्ता द्वारा विल के रजिस्ट्रीकरण के समय किया गया कथन
(iv) दत्तक ग्रहण के प्रश्न पर विनिश्चय में दत्तक-विलेख
(v) वचनपत्र पर किसी पर्दानशीन महिला द्वारा किये गये हस्ताक्षर के बारे में उसके पति का कथन
आर. एम. मालकानी बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र में यह निर्णित किया गया है की जब कोई ऐसी बातचीत चल रही हो जो किसी संव्यवहार का भाग होने के कारण सुसंगत है तो यदि उसे तत्क्षण या उसी समय टेप कर लिया जाए तब ऐसी टेप सुसंगत तथ्य होगी तथा यह रेस जेस्टे होगी|
रेस जेस्टे के रूप में अग्राह्रा साक्ष्य –
(i) घटना के बहुत समय बाद किये गए कथन
(ii) किसी विद्यालय की बालिका को कहे गए अश्लील शब्दों के बारे मे ऐसे व्यक्ति का कथन जो घटना के बाद वहां आया हो|
(iii) बलात्कार के बारें में अभियोगी द्वारा उसके साथ किये गए बलात्कार के बारें में घटना के कुछ समय पश्चात् किया गया कथन|
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