इस आलेख में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का अधिनियम के अनुसार गठन किस प्रकार होता है तथा इसके क्या क्या कार्य है एंव साथ में इसकी शक्तियों के बारें में बताया गया है –

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन | NALSA

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 3 में राष्ट्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के गठन की व्यवस्था की गई है, जिसके अधीन राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन इस प्रकार से होगा –

(i) भारत का मुख्य न्यायाधीश – मुख्य संरक्षक

(ii) उच्चतम न्यायालय का सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश – कार्यकारी अध्यक्ष

(iii) अन्य सदस्य।

कार्यकारी अध्यक्ष का नाम भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित किया जायेगा तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी। लेकिन राष्ट्रपति ऐसी नियुक्ति करने से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करेगा|

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्यों की योग्यता व अनुभव सम्बन्धी शर्ते केन्द्र सरकार द्वारा तैय की जाती है|

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सदस्य सचिव एंव शक्तियां –

अधिनियम की धारा 3 के तहत गठित राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का एक सदस्य सचिव (Member-secretary) भी होता है जिसकी नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के पश्चात् केन्द्रीय सरकार द्वारा की जाती है तथा उसकी अर्हताएं व अनुभव सम्बन्धी शर्ते भी केन्द्रीय सरकार द्वारा तैय की जायेगी|

अधिनियम के अनुसार सदस्य सचिव ऐसी शक्तियों का प्रयोग एंव ऐसे सभी तरह के कार्यों का निर्वहन करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किये जाये या कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा समनुदेशित किये जाये या सौंपे जाए|

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्यों एंव सदस्य सचिव की पद पर बने रहने की अवधी व सेवा शर्ते वही होगी जो केन्द्रीय सरकार भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से विहित करेगी|

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कर्मचारियों की नियुक्ति –

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अपने कार्यों एंव कर्तव्यों के सुचारु रूप से संचालन के लिए अधिनियम के अधीन आवश्यक संख्या में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करती है। ऐसी नियुक्तियाँ भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के पश्चात् केन्द्रीय सरकार द्वारा की जाती तथा इनकी संख्या, वेतन, भत्ते एवं सेवा शर्तें भी मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से केन्द्रीय सरकार निर्धारित करती है।

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के – (क) प्रशासनिक व्यय, (ख) सदस्य सचिव के वेतन, भत्ते एवं पेंशन, तथा (ग) अन्य कर्मचारी वृन्दों के वेतन, भत्ते और पेंशन भारत की समेकित निधि (consolidated fund of India) से वहन किये जाते है।

इसके अलावा राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के सभी आदेश एवं विनिश्चय सदस्य सचिव अथवा ऐसे अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित (authenticate) किये जायेंगे जिसे कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा प्राधिकृत किया जायेगा तथा इसका कोई भी कार्य अथवा कोई कार्यवाही मात्र इस कारण अविधिमान्य नहीं समझी जायेगी कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण में कोई पद रिक्त रहा है या इसके गठन में कोई त्रुटि रह गई है।

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राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्य –

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 4 में इसके कार्यों का वर्णन किया गया है, इसके अनुसार राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के निम्नलिखित मुख्य कार्य –

(i) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन विधिक सेवायें सुलभ कराने हेतु नीतियाँ एवं सिद्धान्त प्रतिपादित करना,

(ii) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन विधिक सेवायें सुलभ कराने हेतु प्रभावी एंव कम लागत की योजनाएँ तैयार करना,

(iii) राज्य प्राधिकरणों तथा जिला प्राधिकरणों को निधियों का बंटवारा करना,

(iv) उपभोक्ता संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण एवं समाज के कमजोर वर्ग के उत्थान हेतु सामाजिक न्याय विषयक मामलों के माध्यम से समुचित कदम उठाना,

(v) सामाजिक कार्यकर्ताओं को विधिक ज्ञान के लिए प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करना,

(vi) समाज के कमजोर वर्ग को विधिक अधिकारों से अवगत कराने तथा उन्हें लोक अदालत के माध्यम से अपने मामलों का निस्तारण कराने के लिए प्रेरित करना तथा इस हेतु –

(क) ग्रामीण क्षेत्रों,

(ख) मजदूर बस्तियों, तथा

(ग) अन्य क्षेत्रों में विधिक सहायता शिविरों का आयोजन करना

(vii) बातचीत, माध्यस्थ एवं समझौतों के माध्यम से मामलों के निस्तारण हेतु लोगों को प्रोत्साहित करना,

(viii) विधिक सेवाओं के क्षेत्र में शोध की प्रवृति को बढ़ावा देना,

(ix) संविधान के अनुच्छेद 51(क) भाग 4(क) के अधीन नागरिकों के मूल कर्तव्यों को प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाना,

(x) विधिक सहायता कार्यक्रमों का समय समय पर मूल्यांकन करना,

(xi) विधिक सेवा स्कीमों की क्रियान्विति के लिए राज्य एवं जिलों के स्वैचिक एंव सामाजिक संगठनों तथा संस्थानों को अनुदान उपलब्ध करना,

(xii) बार कौंसिल ऑफ इंडिया से परामर्श कर विश्वविद्यालयों एंव महाविद्यालयों में विधिक शिक्षा एवं विधिक सेवा क्लीनिकों का विकास करना,

(xiii) विधिक साक्षरता (Legal Literacy) तथा विधिक चेतना (Legal awareness) का प्रचार-प्रसार करना,

(xiv) विधिक सहायता के क्षेत्र में कार्य करने हेतु स्वैच्छिक संगठनों को तैयार करन,

(xv) विधिक सेवा कार्यक्रमों की क्रियान्विति के लिए निम्नांकित के मध्य समन्वयन स्थापित करना –

(क) राज्य प्राधिकरण,

(ख) जिला प्राधिकरण,

(ग) उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति,

(घ) उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति,

(ङ) तालुका विधिक सेवा समिति, तथा

(च) विधिक सेवाओं से जुड़े अन्य संगठन।

अधिनियम की धारा 5 में यह कहा गया है कि, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए सरकारी अथवा गैर-सरकारी संगठनों के साथ समन्वय स्थापित कर आवश्यक कार्य करने का प्रयास करेगा।

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