इस आलेख में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का अधिनियम के अनुसार गठन किस प्रकार होता है तथा इसके क्या क्या कार्य है एंव साथ में इसकी शक्तियों के बारें में बताया गया है –
जिस प्रकार से राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन होता है ठीक उसी तरह प्रत्येक राज्यों में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया जाता है| विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 6, 7 एंव 8 में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के गठन, कार्य एंव शक्तियों का उल्लेख किया गया है|
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन (Organisation of State Legal Services Authority)
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 6 के अनुसार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन निम्नाकित से मिलकर होगा –
(i) राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश – मुख्य सरंक्षक
(ii) उच्च न्यायालय का सेवारत या सेवानिवृत न्यायाधीश – कार्यकारी अध्यक्ष
(iii) अन्य सदस्य
इस प्रकार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन एक मुख्य संरक्षक, एक कार्यकारी अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों से मिलकर होता है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का संरक्षक राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होते है तथा कार्यकारी अध्यक्ष जो उच्च न्यायालय का पीठासीन अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश हो सकेगा की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से होगी|
तथा अन्य सदस्यों की नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से की जायेगी जो सरकार द्वारा निर्धारित की गई योग्यतायें व अनुभव रखते हों।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसियेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के प्रकरण राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का अध्यक्ष सामान्यतः उच्च न्यायालय का पीठासीन न्यायाधीश ही होना चाहिए परन्तु आपवादिक मामलों अथवा परिस्थितियों में ही उच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
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सदस्य सचिव (Member Secretary)
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का एक सदस्य सचिव होगा जिसकी नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा की जायेगी।
सदस्य सचिव राज्य की उच्च न्यायिक सेवा का सदस्य होगा तथा उक्त सेवा में यह जिला न्यायाधीश से कम पंक्ति का नहीं होगा। यह उन सभी कर्तव्यों का निर्वहन एवं शक्तियों का प्रयोग करेगा जो उसे समय समय पर –
(i) राज्य सरकार द्वारा सौंपी या प्रदत्त की जायें,
(ii) राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा समनुदेशित (assign) की जायें।
अधिनियम की धारा 6 (3) के परन्तुक में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव के रूप में अधिकतम 5 वर्षों की अवधि के लिए वह व्यक्ति नियुक्त किया जा सकेगा जो प्राधिकरण के गठन के पूर्व राज्य विधिक सहायता बोर्ड के सचिव के रूप में कार्य करता चला आ रहा है चाहे वह प्राधिकरण के सदस्य सचिव के रूप में नियुक्त किये जाने को योग्यता नहीं रखता हो।
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राज्य विधिक सेवा के कार्य (Functions of State Authority)
अधिनियम की धारा 7 में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यों का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार प्राधिकरण के निम्नलिखित कार्य होंगे –
(i) राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की नीति एवं निदेशों को कार्यान्वित करना,
(ii) विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए पात्र एवं हकदार व्यक्तियों को विधिक सहायता उपलब्ध कराना,
(iii) उच्च न्यायालय में लम्बित मामलों सहित अन्य मामलों के निस्तारण के लिए लोक अदालतों का आयोजन करना,
(iv) विधिक सहायता कार्यक्रमों को गति प्रदान करना,
(v) अन्य वे सभी कार्य करना जो उसे समय समय पर विनियमों द्वारा विहित किये जायें।
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अधिनियम की धारा 8 में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण निम्नांकित से समन्वय स्थापित करते हुए अपने कार्यों का निष्पादन एवं निर्वहन करेगा –
(i) सरकारी अभिकरण,
(ii) गैर सरकारी स्वैच्छिक संगठन,
(iii) गैर सरकारी स्वैच्छिक सामाजिक सेवा संस्थायें,
(iv) विश्वविद्यालय, तथा
(v) अन्य संस्थायें एवं संगठन जो विधिक सहायता के क्षेत्र में रुचि रखते हो।
कर्मचारी की नियुक्ति
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अधीन अपने कर्तव्यों के सुचारु रूप से निर्वहन के लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से आवश्यक संख्या में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति की जा सकती है तथा इन अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वेतन भत्तों एवं अन्य सेवा शर्तों का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से की जायेगी।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के –
(i) प्रशासनिक व्यय;
(ii) सदस्य सचिव एवं अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन भत्ते; तथा
(iii) पेंशन; आदि की प्रतिपूर्ति राज्य की समेकित निधि (Consolidated fund) से की जायेगी।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के समस्त आदेश एवं विनिश्चय सदस्य सचिव द्वारा अथवा ऐसे अधिकारी द्वारा जिसे इस निमित्त कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा प्राधिकृत किया जाये, अधिप्रामाणीकृत (authenticate) किये जायेंगे तथा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का कोई भी कार्य अथवा कार्यवाही मात्र इस आधार पर अविधिमान्य नहीं समझी जायेगी कि, प्राधिकरण में कोई पर रिक्त था अथवा प्राधिकरण के गठन में कोई त्रुटि रह गई थी।
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