हेल्लो दोस्तों, इस लेख में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 499 व अपकृत्य विधि के तहत मानहानि के अपवाद (मानहानि के बचाव) के बारें में बताया गया है| मानहानि अपकृत्य विधि के साथ साथ अपराध विधि का भी महत्वपूर्ण विषय है| इस लेख में मानहानि के अपवाद को आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है|
मानहानि के अपवाद
मानहानि के अपवाद जानने से पूर्व मानहानि की परिभाषा को जानना बेहद जरुरी है, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 499 के अनुसार –
“जो कोई या तो बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, एतस्मिन्पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह व्यक्ति की मानहानि करता है।
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इस परिभाषा के चार स्पष्टीकरण है –
स्पष्टीकरण 1 – किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट सम्बन्धियों की भावनाओं को उपहत करने के लिए आशयित हो ।
स्पष्टीकरण 2 – किसी कम्पनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के सम्बन्ध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा।
स्पष्टीकरण 3 – अनुकल्प लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा। के रूप में, या व्यंग्योक्ति के रूप में अभिव्यक्त
स्पष्टीकरण 4 – कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप को हेय न करे या उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के सम्बन्ध में उसके शील को हेय न करें या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विश्वास न कराए कि उस व्यक्ति का शरीर पुगोत्पादक देशा है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्ट समझी जाती है।
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मानहानि के अपवाद
जैसा की मानहानि की परिभाषा व इसके तत्व से स्पष्ट है कि – जब हम किसी ऐसे प्रतिष्ठावान व्यक्ति के बारें में जिसकी समाज में अच्छी विचारधारा है, मान-सम्मान है और समाज उसका आदर करता है, उसे कुछ ऐसा बोल देते या चित्र बनाकर या उसका ऐसा कोई कार्टून बना देते है जिससे की समाज में उस व्यक्ति की मान, सम्मान, प्रतिष्ठा आदि को अज्ञात लगता है, तब वह मानहानि कहलाती है|
मानहानि से होने वाली क्षति को वह व्यक्ति मानहानि करने वाले के खिलाफ वाद लाकर उसकी पूर्ति कर सकता है, लेकिन मानहानि करने वाले व्यक्ति को धारा 499 व अपकृत्य विधि के अंतर्गत कुछ बचाव भी प्रदान किये गए है जो मानहानि के अपवाद कहलाते है यानि निम्नांकित दशाओं में मानहानि का अपकृत्य कारित नहीं होता है–
सत्य कथन का प्रकाशित करना
सत्य मानहानि का सबसे अच्छा बचाव होता है अर्थात यानि जिन अपमान लेखों या शब्दों के लिए आरोप लगाया जाता है, यदि प्रतिवादी द्वारा उन्हें सत्य साबित कर दिया जाता है तो वह मानहानि के लिए दोषी नहीं होगा।
इस सम्बन्ध में ‘अलेक्जेण्डर बनाम एन.ई. रेलवे’ का एक अच्छा मामला है, इसमें प्रतिवादी द्वारा वादी के विरुद्ध यह कथन प्रकाशित किया गया था कि उसे रेलगाड़ी में बिना टिकिट यात्रा करने के कारण एक पौण्ड के अर्थदण्ड से और इसमें व्यतिक्रम किये जाने पर तीन सप्ताह के कारावास से दण्डित किया गया है। यह कथन सत्य था; अत: इसे मानहानिकारक नहीं माना गया। (1865, 11 जे एन एस 619)
इसी तरह कुकसन बनाम हारवुड के वाद में कहा गया कि, किसी अफवाह की पुनरावृति करने से यह नहीं कहा जा सकता कि यह सत्य है की इस विषय में ऐसी अफवाह है, आवश्यकता तो यह साबित करने की होती है कि यह अफवाह सत्य है| (1932, 3 के.बी. 485)
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उचित एवं न्यायोचित समालोचना
उचित समालोचना से तात्पर्य ऐसी समालोचना से है जो सही समझ कर की गई हो तथा जिसके पीछे कोई विद्वेष की भावना ना हो। यदि किसी मामले में प्रतिवादी द्वारा यह साबित कर दिया जाता है कि, उसके द्वारा जो कुछ प्रकाशित किया गया वह निष्पक्ष एवं न्यायोचित समालोचना मात्र है तो उसे मानहानि के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकेगा।
ऐसी समालोचना में निम्न बातों का होना जरुरी है –
(i) लोकहित में होना
(ii) सद्भावनापूर्ण होना
(iii) न्यायोचित एवं मर्यादित होना
(iv) मत की अभिव्यक्ति मात्र होना, आवश्यक है।
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विशेषाधिकृत कथन
विशेषाधिकृत कथनों से तात्पर्य ऐसे कथनों से है जो किसी विशेषाधिकृत अवसर पर किये जाते है। ऐसे कथनों का किया जाना लोक हित में आवश्यक होता है। कभी कभी किसी निश्चित समय पर व्यक्तियों द्वारा किये गए कथनों के लिए कानून सुरक्षा प्रदान करता है, भले ही ऐसे कथन असत्य एंव विद्वेष से प्रेरित हो|
विशेषाधिकार अथवा विशेषाधिकृत अवसर दो प्रकार के होते हैं –
(i) पूर्ण विशेषाधिकार – इसे निरपेक्ष एवं सापेक्ष विशेषाधिकार भी कहा जाता है। यह ऐसे कथन होते है जिनके लिए मानहानि की कार्यवाहीं नहीं कि जा सकती चाहे ऐसे कथन कितने ही असत्य, दुर्भावनापूर्ण एवं अनौचित्यपूर्ण ही क्यों न हो। ऐसे विशेषाधिकार की जाँच किया जाना लोकहित में आवश्यक एवं उचित नहीं माना जाता। ऐसे विशेषाधिकृत कथनों में निम्न मामले आते है –
(i) संसदीय कार्यवाहियाँ
(ii) न्यायिक कार्यवाहियाँ
(iii) सैनिक तथा नौ सैनिक कार्यवाहियाँ
(v) राज्य की कार्यवाहियाँ आदि।
(ii) सीमित विशेषाधिकार – सीमित अथवा सापेक्ष विशेषाधिकार के अधीन आने वाले कथन ऐसे कथन होते है जो परिस्थिति विशेष में किये जाते है तथा दुर्भावनापूर्ण नहीं होते है। यह बचाव तभी उपलब्ध होता है जब प्रतिवादी अपने कथन को सावधानीपूर्वक ईमानदारी से करता है| इसमें निम्न कथन होते है –
(क) कर्तव्य पालन की भावना से किये गये कथन
(ख) किसी के हितों की रक्षा एवं सुरक्षा के लिए किये गये कथन
(ग) निष्पक्ष एवं सही रिपोर्ट आदि ।
इस सम्बन्ध में ‘तेजकिरन जैन बनाम संजीव रेड्डी‘ के वाद में न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि, संविधान के अनुच्छेद 105(2) के अन्तर्गत संसद में किये गये कथनों के लिए संसद सदस्य को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। (ए.आई.आर. 1970 एस.सी. 1573)
इसी तरह ‘टी. गोपाल कुट्टी बनाम एम. शंकुनी‘ के मामले में यह कहा गया है कि, किसी न्यायिक कार्यवाही के दौरान किसी न्यायालय के समक्ष किसी न्यायाधीश, अधिवक्ता, साक्षी अथवा पक्षकार द्वारा कहे गये कथनों के विरुद्ध मानहानि की कार्यवाही नहीं की जा सकती है चाहे ऐसे कथनों का कोई औचित्य ही न हों। (ए.आई. आर. 1971 केरल 180)
क्षमा याचना
जब समाचार पत्रों, पत्रिकाओ आदि में प्रकाशित अपमान लेख के सम्बन्ध में वाद या प्रतिवाद प्राप्त होता है तब प्रतिवादी को यह साबित करना चाहिए की उसके कार्य में असावधानी या विद्वेष भाव नहीं था तथा समय मिलते ही क्षमा याचना प्रकाशित कर दी गई थी, ऐसा करके वह मानहानि से बच सकता है| इस प्रकार कई बार क्षमा याचना को भी एक बचाव के रूप में मान लिया जाता है तथा इससे क्षतिपूर्ति की राशि में भी कमी हो सकती है।
लेकिन इसके लिए यह आवश्यक है कि ऐसी क्षमा याचना –
(i) टॉप कर ली जायें;
(ii) विद्वैषपूर्ण न हो; तथा
(iii) शर्त रहित हो।
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मानहानि के अपवाद (भा.द.सं. की धारा 499)
पहला अपवाद :
सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है – किसी ऐसी बात का लांछन लगाना, जो किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में सत्य है तथा इसी तरह ऐसा लांछन लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना जो लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है, मानहानि नहीं है तथा इन दोनों (लांछन लगाना या प्रकाशित करना) को साबित करने का भार हमेशा अभियुक्त पर होता है|
यदि साक्षी द्वारा यह साबित कर दिया जाता है कि प्रार्थी से सम्बंधित लांछन सही नहीं है बल्कि रंजिश से प्रेरित होकर लगाया गया है, उस स्थिति में अभियुक्त को इस अपवाद का फायदा नहीं दिया जाएगा|
दूसरा अपवाद :
लोक सेवकों का लोकाचरण – उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में लोक सेवक के आचरण के विषय में, या उसके शील के विषय में, जहाँ तक उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
यानि इस अपवाद का फायदा लेने के लिए निम्न बातो को साबित करना जरुरी है –
– ऐसा तथ्य सत्य पर आधारित था,
– ऐसा आचरण सद्भावपूर्वक किया गया हो,
– ऐसा लोकहित के लिए आवश्यक हो और
– ऐसा लांछन तभी आवश्यक था जब उसने भ्रष्ट एवं अपमानपूर्वक उद्देश्य से कार्य किया हो।
तीसरा अपवाद :
किसी लोक प्रश्न के सम्बन्ध में, किसी व्यक्ति का आचरण – किसी लोक प्रश्न के सम्बन्ध में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में, और उसके शील के विषय में, जहाँ तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उसके आगे कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
दृष्टांत –
किसी लोक प्रश्न पर सरकार को अर्जी देने में, किसी लोक प्रश्न के लिए सभा बुलाने के अपेक्षण पर हस्ताक्षर करने में, ऐसी सभा का सभापतित्व करने में या उसमें हाजिर होने में, किसी ऐसी समिति का गठन करने में या उसमें सम्मिलित होने में, जो लोक समर्थन आमंत्रित करती है, किसी ऐसे पद के किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मत देने में या उसके पक्ष में प्रचार करने में, जिसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन से लोकहितबद्ध है, य के आचरण के विषय में क द्वारा कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
चौथा अपवाद :
न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोटों का प्रकाशन – किसी न्यायालय की कार्यवाहियों की या किन्हीं ऐसी कार्यवाहियों के परिणाम की सारतः सही व सत्य रिपोर्ट को प्रकाशित करना, मानहानि नहीं है।
इसके लिए यह जरुरी नहीं है की न्यायालय की कार्यवाही उसी प्रकार से प्रकाशित की जाए जिस तरह से वह कार्यवाही हुई है, बल्कि उस कार्यवाही की सारत: सही व सत्य रिपोर्ट प्रकाशित होनी चाहिए जिससे की उसे मानहानि के अपवाद के अंतर्गत माना जा सके|
पाँचवाँ अपवाद :
न्यायालय में विनिश्चित मामले के गुणागुण या साक्षियों तथा संपृक्त अन्य व्यक्तियों का आचरण – किसी ऐसे मामले के गुणागुण के विषय में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, जो किसी न्यायालय द्वारा विनिश्चित हो चुका हो या किसी ऐसे मामले के पक्षकार, साक्षी या अभिकर्ता के रूप में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में या ऐसे व्यक्ति के शील के विषय में, जहाँ तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना, मानहानि नहीं है।
दृष्टांत –
(क) क कहता है, “मैं समझता हूँ कि उस विचारण में य का साक्ष्य ऐसा परस्पर विरोधी है कि वह अवश्य ही मूर्ख या बेईमान होना चाहिए।” यदि क ऐसा सद्भावपूर्वक कहता है तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आ जाने से मानहानि नहीं है,
(ख) लेकिन यदि क कहता है, “जो कुछ य ने उस विचारण में दृढ़तापूर्वक कहा है, मैं उस पर विश्वास नहीं करता क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह सत्यवादिता से रहित व्यक्ति है”, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता है, क्योंकि वह राय जो वह य के शील के सम्बन्ध में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है, जो साक्षी के रूप में य के आचरण पर आधारित नहीं है।
छठा अपवाद :
लोक कृति के गुणागुण – किसी ऐसी कृति के गुणागुण के विषय में, जिसको उसके कर्ता ने लोक के निर्णय के लिए रखा हो या उसके कर्ता के शील के विषय में, जहाँ तक कि उसका शील ऐसी कृति में प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।
दृष्टांत –
(क) जो व्यक्ति पुस्तक प्रकाशित करता है, वह उस पुस्तक को लोक के निर्णय के लिए रखता है।
(ख) वह व्यक्ति, जो लोक के समक्ष भाषण देता है, उस भाषण को लोक के निर्णय के लिए रखता है।
(ग) वह अभिनेता या गायक, जो किसी लोक रंगमंच पर आता है, अपने अभिनय या गायन को लोक के निर्णय के लिए रखता है।
(घ) क, य द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के सम्बन्ध में कहता है, “य की पुस्तक मूर्खतापूर्ण है, य अवश्य कोई दुर्बल पुरुष होना चाहिए। य की पुस्तक अशिष्टतापूर्ण है, य अवश्य ही अपवित्र विचारों का व्यक्ति होना चाहिए|
यदि क ऐसा सद्भावपूर्वक कहता है, तब वह इस अपवाद के अंतर्गत आता है, क्योंकि वह राय जो वह य के विषय में अभिव्यक्त करता है य के शील से वहीँ तक न कि उससे आगे सम्बन्ध रखती है जहाँ तक की य का शील उसकी पुस्तक से प्रकट होता है|
(ड़) किन्तु यदि क कहता है, “मुझे इस बात का आश्चर्य नहीं है की य की पुस्तक मुर्खतापूर्वक तथा अशिष्टतापूर्ण है क्योंकि वह एक दुर्बल और लम्पट व्यक्ति है”| क इस अपवाद के अंतर्गत नहीं आता है क्योंकि वह राय जो कि वह य के शील के विषय में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है जो य की पुस्तक पर आधारित नहीं है|
सातवाँ अपवाद :
किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर विधिपूर्ण प्राधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक की गई परिनिन्दा – किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर कोई ऐसा प्राधिकार रखता हो, जो या तो विधि द्वारा प्रदत हो या उस अन्य व्यक्ति के साथ की गई किसी विधिपूर्ण संविदा से उद्भूत हो, उस अन्य व्यक्ति के आचरण की सद्भावपूर्वक की गई कोई परिनिन्दा मानहानि नहीं है|
दृष्टांत –
किसी साक्षी के आचरण की या न्यायालय के किसी आफिसर के आचरण की सद्भावनापूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई न्यायाधीश, उन व्यक्तियों की, जो उसके आदेश के अधीन हैं, सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई विभागाध्यक्ष, अन्य शिशुओं की उपस्थिति में किसी शिशु की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला पिता या माता, अन्य विद्यार्थियों की उपस्थिति में किसी विद्यार्थी की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला शिक्षक, जिसे विद्यार्थी के माता-पिता से प्राधिकार प्राप्त है, सेवा में शिथिलता के लिए सेवक की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला स्वामी, अपने बैंक के रोकड़िए की, ऐसे रोकड़िए के रूप में ऐसे रोकड़िए के आचरण के लिए सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई बैंकर इस अपवाद के अन्तर्गत आते हैं।
आठवा अपवाद :
प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष सद्भावपूर्वक अभियोग लगाना – किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अभियोग ऐसे व्यक्तियों में से किसी व्यक्ति के समक्ष सद्भावपूर्वक लगाना, जो उस व्यक्ति के ऊपर अभियोग की विषयवस्तु के सम्बन्ध में विधिपूर्ण प्राधिकार रखते हों मानहानि नहीं है।
दृष्टांत –
यदि क एक मजिस्ट्रेट के समक्ष य पर सद्भावपूर्वक अभियोग लगाता है; यदि क एक सेवक य के आचरण के सम्बन्ध में य के मालिक से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है; यदि क एक शिशु य के सम्बन्ध में य के पिता से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है; तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।
नवाँ अपवाद :
अपने या अन्य के हितों की संरक्षा के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक लगाया गया लांछन – किसी अन्य के शील पर लांछन लगाना मानहानि नहीं है, परन्तु यह तब, जब कि उसे लगाने वाले व्यक्ति के या किसी अन्य व्यक्ति के हित की संरक्षा के लिए या लोक कल्याण के लिए, वह लांछन सद्भावपूर्वक लगाया गया हो।
दृष्टांत –
(क) क एक दुकानदार है, वह ख से, जो उसके कारोबार का प्रबन्ध करता है कहता है, “य को कुछ मत बेचना जब तक कि वह तुम्हें नकद दाम न दे दे, क्योंकि उसकी ईमानदारी के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है।” यदि उसने य पर यह लांछन अपने हितों के संरक्षा के लिए सद्भावपूर्वक लगाया है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।
(ख) क एक मजिस्ट्रेट अपने वरिष्ठ आफिसर को रिपोर्ट देते हुए, य के शील पर लांछन लगाता है। यहाँ, यदि वह लांछन सद्भावपूर्वक और लोक कल्याण के लिए लगाया गया हो, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।
दसवाँ अपवाद :
सावधानी, जो उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे कि वह दी गई है, या लोक कल्याण के लिए आशयित है – एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध सद्भावपूर्वक सावधान करना मानहानि नहीं है, परन्तु यह तब, जब कि ऐसी सावधानी उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे वह दी गई हो, या किसी ऐसे व्यक्ति की भलाई के लिए, जिससे वह व्यक्ति हितबद्ध हो, या लोक कल्याण के लिए आशयित हो ।
इस प्रकार उपरोक्त बचाव लेकर व्यक्ति मानहानि के अपकृत्य से बच सकता है|
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