नमस्कार दोस्तों, इस लेख में भूमि अतिचार (Trespass to Land) क्या हैइसके प्रकार एंव भूमि अतिचार कैसे किया जाता है तथा इसमें वादी एंव प्रतिवादी के बचाव के प्रावधान तथा भूमि अतिचार के वाद में क्या साबित करना आवश्यक है आदि महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की है, उम्मीद है यह आलेख आपको पसन्द आऐगा

Table of Contents

भूमि अतिचार या स्थावर सम्पति पर अतिचार

भूमि अतिचार से तात्पर्य किसी विधिपूर्ण न्यायानुमिति के बिना भूमि के आधिपत्य (कब्जा) में हस्तक्षेप अथवा बाधा करना है एंव ऐसा हस्तक्षेप या बाधा किसी मूर्त पदार्थ के माध्यम से हो सकता है। किसी व्यक्ति के घर या भूमि में गलत ढंग से प्रवेश करना या उसके कब्जा में बाधा पहुंचाना अतिचार अथवा अनधिकार प्रवेश कहलाता है।

यानि बिना किसी विधिक औचित्य के किसी की भूमि में उसके स्वामी की सहमती के बिना प्रवेश करना या उस पर कब्जा करना या किसी प्रकार की बाधा पहुंचाना अतिचार माना जाता है, यह अचल सम्पति के प्रति किया जाने वाला एक मुख्य अपकृत्य है।

उदाहरण  किसी दूसरे व्यक्ति की जमीन पर वृक्षारापूर्ण करना भूमि अतिचार है परन्तु यदि कोई व्यक्ति अपनी भूमि पर वृक्ष लगाता है और उसकी जड़े व शाखाएँ किसी अन्य व्यक्ति की भूमि मे चली जाती है, तब उक्त कार्य भूमि अतिचार न होकर न्यूसेन्स (उपताप) होगा।

जहां कोई जमीन किसी व्यक्ति के कब्जे व आधिपत्य में है और किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा उसमे से बिना अनुमति के मिट्टी निकालना भी अतिचार है। यहां तक की बिना विधिक औचित्य के किसी की भूमि पर पैर रखना भी अतिचार (Trespass) है, चाहे उससे कोई क्षति न हुई हो।

जमीन के प्रति अतिचार के इन मामलों में वादी को नुकसान साबित करने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि जमीन का अतिचार स्वतः अभियोज्य होता है। ऐसा अतिचार या तो भूमि में प्रवेश करके या फिर किसी वस्तु के माध्यम से किया जा सकता है। लेकिन जहाँ किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति की जमीन मे प्रवेश करने का विधिपूर्ण अधिकार है, वहाँ भूमि अतिचार नही होता है। 

यह भी जाने – विधि व्यवसाय क्या है? परिभाषा, विशेषताए एंव भारत में विधि व्यवसाय का इतिहास

उदाहरण  किसी की जमीन पर पत्थर फेंकना, किसी की दीवार में कील गाड़ना या कुछ लिखना, दरवाजे अथवा खिड़की जो किरायेदार के कब्जे में है को हटाना, बिना अनुमति के किसी की भूमि में प्रवेश करना आदि कृत्य अनधिकार है।

लेकिन जहाँ किसी व्यक्ति ने बिना किसी विधिक औचित्य के किसी भूमि पर कब्जा कर उस पर अनेक प्रकार से अभिवृद्धि कर लेता है उस स्थिति में उसे बेदखल किये जाने पर वह अतिचार का तर्क नहीं ले सकता और ना ही प्रतिकर पाने का हकदार होगा।

इस सम्बन्ध में के.सी. एलेक्जेन्डर बनाम केरल राज्य (.आई.आर. (1973) एम.सी. 2498) का प्रकरण महत्वपूर्ण है

इस वाद में एक परिवार के सदस्यों द्वारा 160 एकड़ भूमि पर अनधिकार कब्जा कर उस पर मकान आदि बनाकर, वृक्ष आदि लगवाकर तथा कुआँ आदि खोदवाकर उस भूमि में अभिवृद्धि की थी।

भूमि पर इस प्रकार का कब्जा ट्रावनकोर लैण्ड कंजर्वेन्सी अधिनियम, 1910 के प्रावधानों के खिलाफ होने से उन्हे उनके द्वारा कब्जा की गई 160 एकड़ भूमि से बेदखल कर दिया गया था। वादी ने यह तर्क दिया कि उसने सद्भावपूर्वक विश्वास करके और भूमि की अभिवृद्धि के आशय से भूमि पर प्रवेश किया था।

वादी के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि यदि इस प्रकार की बात मान भी लें तो इससे भयानक परिणाम हो सकते है क्योंकि अनेक व्यक्ति इसी तरह का तर्क लेकर जानबूझकर दूसरे की भूमि पर अधिकार स्थापित करने का प्रयत्न करेंगे।

यह भी जाने – सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार एंव इसके विभिन्न प्रकार। Jurisdiction of Civil Courts

भूमि अतिचार कैसे किया जाता है?

जैसा की उपर वर्णित है की स्थावर सम्पति यानि भूमि पर अतिचार किसी व्यक्ति द्वारा बिना कानूनी औचित्य के उसमें प्रवेश करके या लाईसेन्स का दुरूपयोग करके या जानवरों द्वारा अतिचार करके किया जाता है, इस तरह भूमि पर अतिचार के प्रकार एंव उनकी विशेषताऐ निम्नलिखित है –

बिना कानूनी औचित्य के अनधिकार प्रवेश

जहां बिना किसी कानूनी औचित्य के किसी की भूमि में अनधिकार प्रवेश होता है उसे पूर्ण एवं एकाकी अधिकार का अतिलंघन माना जाता है। किसी व्यक्ति की जमीन पर बिना कानूनी औचित्य के पैर रख देना या ईंट डालना भी अनधिकार प्रवेश माना जायेगा।

कोई भी व्यक्ति जिसने किसी दूसरे की भूमि पर विधिपूर्वक प्रवेश किया है उस समय अनधिकार प्रवेश का दोषी नहीं होगा जब तक उसका यहां प्रवेश सम्बन्धी अधिकार समाप्त ना हो जाए। और उसके बाद उसके द्वारा भूमि को छोड़ने से इन्कार कर देना उसी प्रकार अनधिकार प्रवेश माना जाऐगा जिस तरह उसका आरम्भ में बिना अधिकार के प्रवेश करना माना जाता है।

यह भी जाने – विशेषज्ञ कौन होता है और साक्ष्य विधि में उसकी राय कब सुसंगत होती है | Sec 45 Evidence act

केस माधव विट्ठल बनाम माधव दास (.आई.आर. 1979 साम्ये 49)

इस वाद में प्रतिवादी, वादी के बहुमंजिले भवन के प्रथम मंजिल पर किरायेदार के रूप में रहता था तथा अपनी कार वादी के अहाते मे खड़ी करता था। वादी ने तर्क दिया कि उसकी अनुमति के बिना उसके अहाते मे कार खड़ी करना अतिचार है।

इस वाद में यह धारित किया गया कि बहु मंजिला भवन के किरायेदार का यह अधिकार है कि यदि उसके पास कोई सवारी (वाहन) है तो वह बहुमंजिला भवन के आहते मे खडी कर सकता है। परन्तु ऐसा करने में उसे किसी दूसरे व्यक्ति को कोई असुविधा कारित नहीं करनी चाहिए। वह इस अधिकार का प्रयोग भू स्वामी की अनुमति के बिना भी कर सकता है।

यह भी जाने – 

उदाहरण  सार्वजनिक मार्ग को केवल रास्ते के रूप में उपयोग करने का अधिकार है और यदि कोई व्यक्ति इसका उपयोग आवारागर्दी या अपने निवास के लिए किया जाता है या किसी समुदाय विशेष द्वारा प्रार्थना स्थल के रूप में प्रयोग किया जाता है तो उनका यह कार्य अनधिकार प्रवेश होगा। इस सम्बन्ध मे ओल्गा तेलिस बनाम बाम्बे म्यूनिसिपल कारपोरेशन (.आई.आर 1986 सु.को. 180), डॉ. पी. नवीन कुमार बनाम म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन, ग्रेटर बाम्बे (.आई.आर. 1989 बाम्बे 80) प्रमुख प्रकरण है।

यह भी जाने – अपराधों का शमन से आप क्या समझते हैं? शमनीय अपराध एंव शमन का क्या प्रभाव है?

वादी की भूमि पर वस्तुएँ रखकर

जहां वादी की भूमि पर कुछ वस्तुएँ रखी जाती या पत्थर फेंकना या उसकी सीमा का भौतिक रूप से अतिक्रमण करना या वादी की दीवार में कील-खूँटी गाड़ना, दीवार के पास कूड़ा-कचरा इकट्ठा करना आदि कार्य अनधिकार प्रवेश माने जाते है। यहाँ तक कि वादी की भूमि से शारीरिक सम्पर्क भी अनधिकार प्रवेश की श्रेणी में आता है, भले ही वहां वास्तविक प्रवेश न हुआ हो।

अनधिकार प्रवेश स्वतः अनुयोज्य होते है इसके वाद क्षति साबित किए जाने की आवश्यकता नहीं होती। चाहे कोई वास्तविक क्षति हुई हो या नही। फाउलर बनाम लैनिंग के प्रकरण में न्यायालय ने मन व्यक्त किया कि अतिचार के अपकृत्य में उपेक्षा अथवा आशय साबित किया जाना आवश्यक नहीं है। ((1959) क्यू.बी. 426)

अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) के दुरुपयोग द्वारा

सर फ्रेडरिक पोलक के अनुसार, लाइसेंस एक प्रकार की सम्मति है, जो सम्पत्ति में किसी हित के अन्तरण के बिना उससे सम्बन्धित कृत्य को दोषपूर्ण होने से रोकती है जो बिना सम्मति के दोषपूर्ण होता है। लाइसेंस किसी व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं देता है, परन्तु जो कार्यवाही के अभाव में गैरकानूनी रही हो, वह उसी को कानूनी रूप देता है।

लेकिन जहां कोई व्यक्ति कब्जा रखने वाले किसी व्यक्ति की भूमि पर उसकी सहमति या लाइसेंस लेकर प्रवेश करता है और लाइसेंस की अवधि समाप्त हो जाने पर भी उस भूमि को छोड़ने से इन्कार करता है वहां वह अतिचारी के रूप में दायी होगा और यह माना जाऐगा की प्रारम्भ से ही उसका कब्जा बिना लाइसेंस के रहा है।

आरम्भ से ही अतिचार –

जब कोई व्यक्ति किसी विधिपूर्ण अधिकार से किसी परिसर मे प्रवेश करता है और प्रवेश करने के पश्चात दोषपूर्ण कार्य करके उस प्राधिकार का दुरुप्रयोग करता है तब उस व्यवहार के कारण वह व्यक्ति उस सम्पत्ति के सम्बन्ध में आरम्भ से ही अतिचारी माना जाएगा तथा वह अपने प्रवेश तथा बाद के सभी कृत्यों के प्रति नुकसानी के लिये दायी होगा।

उदाहरण  किराया वसूल करने अधिकार या आदेश-निष्पादन का अधिकार, सराय में प्रवेश आदि के कार्य यदि अधिकार या लाइसेंस का दुरुपयोग करके किये जाते है और जिससे चोरी या अन्य क्षतिकारक कृत्य या किसी को मारना आदि कृत्य होते है तो इनको करने वाला आरम्भ से हो अनधिकार प्रवेशकर्ता माना जाऐगा, भले ही उसका प्रवेश कानून के अनुसार क्यों ना रहा हो।

मिक्स कारपेन्टर्स के वाद मे छ बढई एक सराय मे गये और वहाँ अ लोगो ने कुछ शराब और डबल रोटी का आदेश दिया| शराब पीने और डबल रोटी खाने के बाद उन लोगों ने उसका भुगतान करने से इंकार कर दिया। इसमें यह धारित किया गया कि इस मामले मे आरम्भतः अतिचार का कोई मामला नही बनता।

प्रारम्भ से ही अनधिकार प्रवेश के सिद्धान्त के लागू होने के लिए दो शर्तें आवश्यक है

(अ) प्रवेश का अधिकार कानून या नियम के अनुसार दिया गया होना चाहिये, ना की किसी व्यक्ति द्वारा

(ब) वाद का कृत्य क्षतिकारक होना चाहिए यानि प्रतिवादी द्वारा ऐसा कार्य किया गया हो जिसे निश्चित रूप से गलत कार्य कहा जाये, ना की उसकी कोई भूल।

इस सम्बन्ध में सिक्स कारपेन्टर्स ((1610) 18 के.बी. 146-ए) का प्रकरण प्रमुख है। वर्तमान समय में प्रारम्भतया अतिचार का महत्व काफी कम हो गया है।

निरंतर अतिचार (Continuing Trespass) –

अनधिकार प्रवेश एक निरन्तर अपकृत्य है। जब तक अतिचारी किसी व्यक्ति की भूमि पर रहता है, तब तक अनधिकार प्रवेश भी जारी रहता है। किसी की भूमि पर पत्थर फेंकना या दीवार बनाना या दीवार के पास कचरा डालना आदि कृत्यों के सम्बन्ध में वाद हेतुक तब तक बना रहता है, जब तक ऐसी अनधिकार वाली वस्तुओं को हटा नहीं दी जाती।

अनधिकार प्रवेश का जारी रहना एक नये अनधिकार प्रवेश को जन्म देता है। अनधिकार प्रवेश के चालू रहने वाले परिणामों के फलस्वरूप केवल एक कार्यवाही होती है तथा भूतकाल में एंव भविष्य में होने वाले अनधिकार प्रवेशों के लिए पूर्ण नुकसानी प्राप्त की जा सकती है।

उदाहरण  यदि कोई व्यक्ति किसी की भूमि पर गड्ढा खोदता है और मलबा हटा देता है, उस स्थिति में उसके द्वारा भूमि छोड़ते ही अनधिकार प्रवेश समाप्त नहीं हो जाता है वरन तब तक जारी रहता है जब तक वह फिर से गड्ढे को ना भर दे।

केस कान्सकिएर बनाम गुडमैन ((1928) 1 के.बी. 421)

इस वाद में प्रतिवादी ने अपना मकान गिराते समय पास के मकान की छत पर कुछ मलबा पड़ा रहने दिया। कुछ दिनों के पश्चात् उस पड़ोस वाले मकान में वादी किरायेदार के रूप में आया। प्रतिवादी द्वारा डाले गऐ मलबे की वजह से …… गली भर जाने से मकान में पानी आ गया। न्यायालय द्वारा इसमें यह निर्णय दिया गया कि प्रतिवादी, वादी के प्रति दायित्वाधीन था यद्यपि वह (वादी) किरायेदार की हैसियत रखता था।

सम्बन्ध द्वारा अतिचार

जिस व्यक्ति को किसी कानूनी ढंग से कब्जा लेने का अधिकार हो और वह कब्जा पा जाए तब उसका कब्जा उसी समय से समझा जाऐगा जब से उसे प्रवेश पाने का अधिकार प्राप्त हो गया है। उसको अनधिकार प्रवेश के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार रहता है, भले ही उसका वास्तविक कब्जा न रहा हो।

यह सम्बन्ध द्वारा अनधिकार प्रवेश सिद्धान्त’ के रूप में जाना जाता है। क्योंकि वादी का कब्जा उस समय से होता है जब उसने प्रथम बार कब्जा पाने का अधिकार पाया हो।

वायुमण्डलीय अतिचार (Aerial Trespass) –

अनेक बार प्रश्न उठता है कि अपनी भूमि के ऊपर कितनी ऊँचाई तक किसी व्यक्ति का वायुमण्डल में कब्जा होता है और कितनी उंचाई तक वायुमण्डल में प्रवेश अनधिकार प्रवेश नहीं होता है।

इस सम्बन्ध में नियम है कि एक निश्चित या कम ऊँचाई पर वायुमण्डल में प्रवेश अनधिकार प्रवेश होता है क्योंकि वास्तव में कब्जा सिर्फ उतनी ऊँचाई तक ही होता है जितना कि वह ऐसे व्यक्ति के नियन्त्रण में होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति का मकान काफी ऊंचा है तो इसके ठीक ऊपर प्रवेश उसी प्रकार अतिचार है जिस प्रकार एक मंजिला मकान के ठीक ऊपर प्रवेश अनधिकार प्रवेश है।

लेकिन वायुयान का हजारों फीट ऊपर प्रवेश अतिचार नहीं है। क्योंकि यह स्वाभाविक नहीं है कि इतनी ऊँचाई तक किसी व्यक्ति का युक्तियुक्त रूप से कब्जा हो सकता है।

इस सम्बन्ध में इंग्लैण्ड में सिविल एविएशन ऐक्ट, 1949 तथा भारत में इण्डियन एयर ऐक्ट, 1934 (Indian Air Act, 1934) प्रमुख अधिनियम है जिनके अन्तर्गत, किसी वायुयान के उड़ने से होने वाले अनधिकार प्रवेश के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है, बशर्ते कि उड़ान भूमि से एक युक्तियुक्त ऊँचाई पर हो।

संयुक्त अभिधारी द्वारा प्रवेश

सहअभिधारी या सामान्यिक अभिधारी एक दूसरे के खिलाफ अनधिकार प्रवेश का वाद ला सकते है, यदि वे ऐसा कार्य करें जो उनके उस सम्पत्ति के अधिकार के विपरीत हो। इस प्रकार के कार्य भवन अथवा वस्तुओं को क्षति पहुँचाने के सम्बन्ध में हो सकते है अथवा मिट्टी ले जाने या किसी को निष्कासित करने अथवा सेवकों को हटाने से सम्बन्धित हो सकते है।

जानवरों द्वारा अतिचार

सामान्य विधि के तहत जानवरों को दो वर्गो में बांटा गया है – (अ) खतरनाक पशु (ब) पालतू पशु

खतरनाक प्रवृति वाले पशुओं को रखना ही अपेक्षा है, इस प्रकार के जानवरों में शेर, भालू, चीता, भेडिया आदि है जो काफी हद तक क्षति पहुंचा सकते है और जो व्यक्ति इस तरह के खतरनाक जानवरों को पालते है ऐसी स्थिति में क्षति का दायित्व भी उन्ही लोगों पर अधिरोपित किया जाता है।

इसके अलावा पालतू पशु जिसमें कुत्ता, बिल्ली, घोडा, बैल, बकरी आदि आते है उनके द्वारा किसी व्यक्ति की भूमि में बिना सहमती के किए गए अनधिकार प्रवेश और उससे होने वाली क्षति के लिए उनका स्वामी दायी माना जाऐगा।

लेकिन जिन पशुओं को बांध कर नहीं रखा जाता है उनके द्वारा किये गऐ अनधिकार प्रवेश व उससे उत्पन्न क्षति के लिए उन पशुओं के स्वामी को दायी नहीं ठहराया जा सकता।

अतिचार के लिए वाद कौन ला सकता है?

अनधिकार प्रवेश के खिलाफ केवल वही व्यक्ति वाद ला सकता है जिसका भूमि पर कब्जा हो तथा उसके कब्जे के अधिकार का उल्लंघन हुआ हो ना की सम्पत्ति के अधिकार का। इसमें वादी का स्वयं या उसके अभिकर्त्ता द्वारा भूमि पर वास्तविक कब्जा होना चाहिये।

किसी स्थान में रहने वाला व्यक्ति, अतिथि या सेवक या गाड़ी में सीट का उपयोग करने वाला व्यक्ति कभी भी अनधिकार प्रवेश के विरुद्ध वाद ला सकता है।

इसके अलावा भूमि का उपयोग करने वाला किरायेदार भी अनधिकार प्रवेश के विरुद्ध वाद ला सकता है।

जहां भूस्वामी किसी प्रयोजन के लिए अपना मकान सेवकों को दे देता है और कोई व्यक्ति उस मकान में अनधिकार प्रवेश करता है, तो कानून में कब्जा स्वामी का ही रहने से वह उस व्यक्ति के विरुद्ध वाद ला सकता है।

यदि किसी भूमि का पट्टेदार भूमि को देखरेख के लिये कोई सेवक रखता है, तो वह किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जो उसकी भूमि के प्रति अनुचित हस्तक्षेप करता है, सफलतापूर्वक वाद संस्थित कर सकता है।

संयुक्त अभिधारी या सामान्यिक अभिधारी भी एक-दूसरे पर अपने अधिकारों से असंगत कार्य किये जाने पर वाद ला सकते हैं, अन्य प्रकार से नहीं, क्योंकि उनमें से प्रत्येक कब्जा रखने का अधिकारी होता है।

भूमि अतिचार की कार्यवाही में क्या साबित करना चाहिए?

अचल सम्पत्ति (भूमि) के प्रति अनधिकार प्रवेश के खिलाफ कार्यवाही में वादी को दो बातें साबित करनी आवश्यक है –

(1) अनधिकार प्रवेश के समय वादी का वास्तविक कब्जा था तथा उसका कब्जा प्रभावी था।

(2) प्रतिवादी द्वारा वादी की भूमि पर सीधा हस्तक्षेप किया गया था। चूँकि अनधिकार प्रवेश स्वतः अनुयोज्य होता है, इसलिए इसमें क्षति साबित किए जाने की आवश्यकता नहीं होती।

भूमि अतिचार के प्रति वादी को उपचार

जिस व्यक्ति की भूमि पर अनधिकार प्रवेश हुआ है, उसे निम्नलिखित उपचार उपलब्ध होते है –

पुनः प्रवेश (Ra-entry) –

जब किसी व्यक्ति का कब्ज़ा अतिचारी द्वारा व्यवधानित किया जाता है तो उसे यह अधिकार है कि वह युक्तियुक्त बल का प्रयोग करके अपने कब्जे को अतिचारी से खाली करवा लेवें। यदि कोई व्यक्ति विधिपूर्ण अधिकार का प्रयोग करके अपने कब्जे से अतिचारी को बाहर निकाल देता है तो उसका कार्य अपकृत्य नही माना जाता है। 

केस हेमिंग्स बनाम पोजेस गोल्फ क्लब ((1920) 1 के.बी. 720)

इस वाद मे प्रतिवादी के मकान में वादी किरायेदार की हैसियत से रहता था, प्रतिवादी ने सेवा समाप्ति के बाद मकान खाली करने के लिए वादी को विधिवत रूप से सूचना दी गई थी, परन्तु वादी ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। तब  प्रतिवादी ने युक्तियुक्त बल का प्रयोग करके स्वयं परिसर में प्रवेश करके वादी और उसके सामान को बाहर निकाल दिया।

इस वाद में प्रतिवादी ने उतने ही बल का प्रयोग किया जितना इस कार्य के लिए जरूरी था, इस वाद में इस कार्य के लिए प्रतिवादी को उत्तरदायी नही माना गया क्योंकि उसकी कार्यवाही अतिचारी को आवास से बाहर करना ही था।

निष्कासन या बेदखली की कार्यवाही

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को दोषपूर्ण रीति से उसकी सहमति के बिना भूमि से बेदखल कर दिया गया है तो वह व्यक्ति वाद संस्थित करके उस भूमि का कब्जा पुनः प्राप्त कर सकता है।

इस धारा के अन्तर्गत कोई भी वाद बेकब्जा करने की  तिथि से छ: माह की समाप्ति के पश्चात संस्थित नही किया जा सकता है और ना ही ऐसा कोई वाद सरकार के खिलाफ प्रस्तुत किया जा सकता है।

मध्यवर्ती लाभ के निमित्त कार्यवाही – 

अतिचारी को बेदखल करके भूमि को पुनः अपने कब्जे मे लेने के साथ-साथ वादी को यह भी अधिकार प्राप्त होता है कि वह होने वाली क्षति के लिए प्रतिकर प्राप्त करने की कार्यवाही कर सकता है। ऐसे प्रतिकर की वसूली की कार्यवाही को मध्यवर्ती लाभ के निमित्त कार्यवाही के नाम से जाना जाता है।

अतिचारी वस्तु का जब्त करना

अतिचारी व्यक्ति की वस्तु को जब्त करने का अधिकार उस व्यक्ति को होता है जिसके कब्जे मे भूमि है। पीडित व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अतिचार के साथ होने वाले नुकसान की पूर्ति के लिए अतिचारी के पशुओं या अन्य जंगम वस्तुओ जब्त कर ले और उन्हें  अपने पास रोक कर रखे जब तक की उसकी प्रतिपूर्ति नहीं कर दी जाती|

नुकसानी के लिए वाद या नुकसानी के लिए वस्तु को जब्त करना वैकल्पिक उपाय है, इस कारण जो व्यक्ति अतिचारी की वस्तु या पशु को जब्त करता है वह नुकसानी के लिए वाद नहीं ला सकता।

भूमि अतिचार की कार्यवाही में बचाव (DEFENCES)

भूमि अतिचार की कार्यवाही में निम्न्लिखित बचाव उपलब्ध होते है –

चिरभोग (Prescription) –

प्रतिवादी अपने बचाव में यह कह सकता है कि जिस भूमि पर प्रवेश करने के आरोप में उस पर अनधिकार प्रवेश का मुकदमा चलाया गया है, उस पर उसे चिरभोग (बहुत काल में उपयोग के कारण प्रवेश का अधिकार प्राप्त था अथवा वादी ने प्रतिवादी के चिरभोगाधिकार के उपभोग में ऐसी बाधा की थी जिसे रोकने के लिए प्रवेश आवश्यक था।

अनुमति (cave) एवं अनुज्ञप्ति (Licence) –

लाइसेन्स प्राप्त होने पर कार्य कानूनी हो जाता है और इसके अभाव में गैर-कानूनी होता है। अनुमति अथवा अनुज्ञप्ति प्राप्त करने के पश्चात् अन्य व्यक्ति की भूमि पर प्रवेश करने पर उसके खिलाफ अनधिकार प्रवेश का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और यह अनुमति या अनुज्ञप्ति प्रत्यक्ष (Express) या विवक्षित (Implied) हो सकती है।

विधिक प्राधिकार (Authority of Law) –

इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के मामले आते है –

(i) कानूनी कार्यवाही का निष्पादन (Execution of legal process) – इसके अन्तर्गत किया गया प्रवेश अनधिकार प्रवेश नहीं होता है, जैसे – वारन्ट के अनुसार कुर्की और तलाशी करने वाले व्यक्ति अनधिकार प्रवेश करने पर भी दायी नहीं होते लेकिन वारन्ट गैर-कानूनी नहीं होना चाहिये तथा निष्पादन के लिए प्राप्त अधिकार की सीमा के बाहर भी नहीं होना चाहिए। जो कानूनी व्यवस्था हो, उसी के अनुसार कार्यवाही होनी चाहिये।

(ii) करस्थम् (Disticss) – यह उपाय किसी कर्तव्य या माँग की पूर्ति करने के लिये होता है, जिससे त्रुटि करने वाले व्यक्ति के कब्जे में से उनकी कोई वैयक्तिक वस्तु दायित्व पालन या पूर्ति की जमानत के रूप में पीड़ित व्यक्ति इस प्रकार लेता है कि यदि त्रुटि करने वाले व्यक्ति की त्रुटि जारी रही, तो पीड़ित व्यक्ति उस वस्तु को नुकसानी की प्राप्ति के लिये बेच सकता है।

(iii) नुकसान पूर्ति करस्थम्  कोई भूमि का स्वामी, किसी वस्तु को, जो कि उसकी भूमि पर अवैध रूप से है और उसे नुकसान पहुंचा चुकी है या पहुँचा रही है, तब तक पकड़ कर रोक सकता है जब तक कि उस नुकसान का मुआवजा न मिल जाये।

आवश्यकता के कृत्य (Acts of necessity) –

यदि किसी भूमि पर आवश्यकता पड़ने पर जाना पड़े, तो वह प्रवेश अनधिकार प्रवेश नहीं माना जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के मकान में आग लग गई है तो आग बुझाने के लिए उसकी भूमि पर उसकी सहमति के बिना प्रवेश करना अनधिकार प्रवेश नहीं होता।

आत्मरक्षा (Self defence) –

अपनी रक्षा में अथवा अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति की रक्षा में किया गया अनधिकार प्रवेश माफी योग्य होता है। यदि किसी वस्तु पर किसी व्यक्ति का अधिकार एंव कब्जा है और अन्य व्यक्ति उस वस्तु को छीनना चाहता है तब वस्तु पर अधिकार रखने वाला व्यक्ति अपने अधिकार की रक्षा के लिये उचित बल का प्रयोग कर सकता है।

पर व्यक्ति का अधिकार कोई बचाव नहीं –

जब कोई सामान्य रूप से अपने कृत्य के लिये दायी होने पर यह कहता है कि सम्पत्ति का श्रेष्ठतर स्वामित्व किसी तीसरे व्यक्ति में निहित है तो इसको पर व्यक्ति के अधिकार (Jus tertii) के आधार पर बचाव लेना कहा जाता है। परन्तु अनधिकार प्रवेश में यह बचाव नहीं माना जाता है यानि अतिचारी के खिलाफ कब्जा ही स्वामित्व का सबूत होता है।

महत्वपूर्ण आलेख –

अन्तराभिवाची वाद क्या है : परिभाषा, वाद की अन्तर्वस्तुएँ एंव सुनवाई की क्या प्रक्रिया है | धारा 88 आदेश 35 – CPC

दण्ड न्यायालयों के वर्ग और उनकी शक्तियों की विवेचना | Sec 6 CrPC in Hindi

पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण से सम्बन्धित प्रावधान – धारा 125 सीआरपीसी 1973

सिविल प्रक्रिया संहिता की प्रकृति एंव उद्देश्य | Nature and purpose of the CPC