हेल्लो दोस्तों, इस लेख में भारतीय दण्ड संहिता क्या है?, यह भारत में कब लागू हुई तथा भारतीय दण्ड संहिता की मुख्य विशेषताएं क्या है? (Explain the characteristics of the Code of Criminal Procedure, 1973) का उल्लेख किया गया है| उम्मीद है कि, यह लेख आपको जरुर पसंद आएगा –

भारतीय दण्ड संहिता क्या है?

समाज में मानव के कुछ व्यवहार ऐसे होते हैं जिसकी कानून और समाज इजाजत नहीं देता और जब व्यक्ति कानून विरोधी व्यवहार करता है तब उसे इसके परिणामों का भी सामना करना पड़ता है।

खराब व्यवहार यानि कानून विरोधी व्यवहार को अपराध या जुर्म कहते हैं और इसके परिणाम को दण्ड कहा जाता है तथा दण्ड से सम्बंधित सभी तरह का ब्यौरा दण्ड प्रक्रिया संहिता यानि भारतीय दण्ड संहिता में दिया गया |

दंड प्रक्रिया संहिता को संक्षिप्त रूप से ‘सीआरपीसी’ नाम से जाना जाता है। जब भी कोई अपराध किया जाता है तब हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जांच करने में अपनाती है।

एक प्रक्रिया पीड़ित के सम्बन्ध में और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (अभियुक्त) के सम्बन्ध में होती है। दंड प्रक्रिया संहिता में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता के द्वारा ही अपराधी को दण्ड दिया जाता है |

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भारतीय दण्ड संहिता भारत में कब लागू हुई?

जैसा की हम जानते है कि विधि दो तरह की (i) सारभूत अर्थात् मौलिक विधि (Substantive Law), (ii) प्रक्रियात्मक विधि Procedural Law) होती है।

सारभूत विधि में अधिकारों एवं कर्त्तव्यां का उल्लेख मिलता है तथा प्रक्रियात्मक विधि में उनके प्रवर्तन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। सीआरपीसी एक प्रक्रियात्मक विधि है जो आपराधिक मामलों के अन्वेषण, जाँच, विचारण आदि की प्रक्रिया के बारे में प्रावधान करती है।

भारत में सर्वप्रथम सन् 1898 में दण्ड प्रक्रिया संहिता अधिनियमित की गई थी| बीसवीं शताब्दी के दौरान विज्ञान, उद्योग, संचार आदि में हुए विकास के कारण हमारे देश में अनेक परिवर्तन हुए जिससे अपराध प्रशासन के क्षेत्र में भी नई समस्याएं उत्पन्न होने से उनके समाधान के लिए पुरानी संहिता में सन 1923 एंव सन 1955 में विस्तृत संशोधन किए गए|

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उद्योग, संचार, नगरीकरण आदि क्षेत्रो में विस्तार होने के साथ साथ सामाजिक एंव आर्थिक समस्याए उत्पन्न हो गई जिस कारण समाज में नये नये अपराधों का जन्म हुआ|

जिसके फलस्वरूप पुरानी दण्ड संहिता के स्थान पर सन् 1973 में नई दण्ड प्रक्रिया संहिता संसद द्वारा अधिनियमित की गई तथा यह दिनांक 01-04-1974 से लागु की गई।

इस संहिता का विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है पहले यह जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं थी, लेकिन जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की पाँचवीं अनुसूची की प्रविष्टि संख्या 9 द्वारा इसे सम्पूर्ण भारत पर लागू कर दिया गया है।

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भारतीय दण्ड संहिता की मुख्य विशेषताएं क्या है?

(i) भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता में कुल 37 अध्याय एवं 484 धारायें हैं ।

(ii) इस संहिता की मुख्य विशेषता न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक् करना है। मजिस्ट्रेट के कार्यों को न्यायिक एवं कार्यपालिकीय मजिस्ट्रेट के बीच विभाजित कर दिया गया है

(iii) आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किये जाने की समय सीमा 60 दिन एवं 90 दिन निर्धारित कर दी गई है। यदि इस अवधि में आरोप पत्र प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो अभियुक्त सांविधिक जमानत (Statutory bail) पर छूटने का हकदार हो जाता है।

(iv) दण्डादेश की अवधि में से अभिरक्षा में की अवधि को कम कर दिये जाने का प्रावधान किया गया है।

(v) नई संहिता में गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों से तथा जमानतीय मामलों में जमानत पर छूटने के अधिकार से अवगत कराये जाने की व्यवस्था की गई है।

(vi) साक्षियों के समन डाक द्वारा भेजे जाने की व्यवस्था की गई है।

(vii) छोटे मामलों (Petty Cases) में अभियुक्त को डाक द्वारा अभिवचन प्रस्तुत करने तथा समन में विनिर्दिष्ट अर्थदण्ड की राशि जमा कराने की सुविधा प्रदान की गई है। ऐसे मामलों में उन्हें न्यायालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है।

(viii) ऐसे व्यक्तियों से जिनकी आजीविका का कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं है, अच्छे आचरण के लिए प्रतिभूति की माँग करने का प्रावधान हटा दिया गया है एवं नये प्रावधान को उन व्यक्तियों तक सीमित कर दिया गया है जो कोई संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) कारित करने के लिए अपने आपको छिपा रहा है।

(ix) आदतन अपराधियों से प्रतिभूति की माँग किये जाने के प्रावधान को अब तस्करी, कालाबाजारी आदि समाज विरोधी अपराधों तक विस्तृत कर दिया गया है ।

(x) प्रतिभूतियों की कार्यवाहियों के लिए अब समय सीमा का निर्धारण कर दिया गया है।

(xi) प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक प्रति सूचना देने वाले व्यक्ति को दिये जाने का प्रावधान किया गया है।

(xii) यदि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज किये जाने से इन्कार कर दिया जाता है तो उसे डाक द्वारा जिला पुलिस अधीक्षक को भेजे जाने की व्यवस्था की गई है।

(xiii) जमानत सम्बन्धी नियमों को कुछ उदार बनाया गया है। यदि कोई व्यक्ति सम्बन्धित न्यायालय के क्षेत्र से बाहर गिरफ्तार किया जाता है तो उसे ऐसे व्यक्ति को क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायालय में ले जाने जाने की बजाय गिरफ्तार किये जाने वाले स्थान के निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकेगा और ऐसा मजिस्ट्रेट उसे जमानत पर छूटने का आदेश दे सकेगा।

(xiv) अनुसंधान के दौरान साक्ष्य के लिए बुलाये जाने वाले व्यक्तियों को राज्य सरकार की ओर से व्यय दिये जाने का प्रावधान किया गया है।

(xv) अभियुक्त को निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गई है।

(xvi) अभियोजन पेश करने तथा प्रसंज्ञान लिये जाने की समय सीमा निर्धारित कर दी गई है।

(xvii) सेशन मामलों में प्रारम्भिक जाँच की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है ।

(xviii) जूरी द्वारा विचारण की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है।

(xix) संहिता में तृतीय श्रेणी मजिस्ट्रेट का प्रावधान नहीं रखा गया है।

(xx) अन्तरिम आदेशों के विरुद्ध पुनरीक्षण किये जाने का प्रावधान हटा दिया गया है।

(xxi) संक्षिप्त विचारण के क्षेत्र को विस्तृत कर दिया गया है। अब दो वर्ष तक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराधों को संक्षिप्त विचारण के दायरे में कर दिया गया है।

(xxii) अब दो वर्ष तक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराधों का विचारण समन मामलों के विचारण की तरह किये जाने का प्रावधान किया गया है।

(xxiii) अभियुक्त को दण्ड के प्रश्न पर सुनवाई का अवसर प्रदान किया गया है।

इस तरह नई दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 का उद्देश्य अभियुक्त के लिए कुछ स्थापित नियम जो प्राकृतिक न्याय की अवधारणा के अनुरूप है के अनुसार उचित विचारण को सुनिश्चित करना है|

भारतीय दण्ड संहिता 1973 का आशय जहाँ तक संभव हो सके क़ानूनी प्रक्रिया को सरल तथा अन्वेषण एंव विचारण को द्रुतगामी बनाना है और इसके अलावा इस संहिता का मुख्य उद्देश्य समाज के गरीब वर्गों के उचित एंव सुलभ न्याय उपलब्ध करवाना है|

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संदर्भ :- बाबेल लॉ सीरीज (बसन्ती लाल बाबेल)

बूक : दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (सूर्य नारायण मिश्र)