इस आलेख में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन अधिनियम के अनुसार किस प्रकार होता है तथा इसके क्या क्या कार्य है एंव साथ में इसकी शक्तियों के बारें में बताया गया है –
देश में जहाँ शीर्षस्थ पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण तथा राज्यों में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों की व्यवस्था की गईं है, वहीं जिला स्तर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया है। इनका मुख्य उद्देश्य जिला स्तर पर विधिक सहायता कार्यक्रम को गति प्रदान करना है।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 9 में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Service Authorities) के गठन के बारे में प्रावधान किया गया है। इस धारा के अनुसार प्रत्येक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में जिला न्यायाधीश, अध्यक्ष होगा तथा अध्यक्ष के अलावा उतनी संख्या में अन्य सदस्य होंगे जीतनी राज्य सरकार द्वारा सुनिश्चित की जायेगी।
इसके सदस्यों की अर्हताओं (Qualifications) एवं अनुभव (Experience) का निर्धारण उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा की जायेगी।
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सदस्य सचिव –
प्रत्येक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में एक सचिव की भी नियुक्ति की जायेगी। ऐसे सचिव की नियुक्ति जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष के परामर्श में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा की जायेगी। लेकिन सचिव के पद पर ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जा सकेगा जो जिला मुख्यालय पर सिविल न्यायाधीश या अधीनस्थ न्यायाधीश से अन्यून पद पर पदस्थापित होगा।
सदस्य सचिव ऐसी शक्तियों का प्रयोग एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा जो उसे अध्यक्ष द्वारा समनुदेशित (assign) की जायेगी।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्यों एवं सचिव की पदावधि तथा अन्य शर्तें वे होगी जो उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा विहित की जाये।
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कर्मचारियों की नियुक्ति
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अपने कृत्यों के सफल संचालन के लिए उतनी संख्या में जितनी की उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा विहित की जाये, अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकेगा। ऐसे अधिकारियों जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के प्रशासनिक खर्चों एवं सचिव, अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन आदि की प्रतिपूर्ति राज्य की समेकित निधि से की जायेगी।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के आदेश एवं विनिश्चय सचिव अथवा ऐसे अधिकारी द्वारा जिसे इस निमित्त जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष द्वारा प्राधिकृत किये जाये, अधिप्रमाणित किये जायेंगे तथा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का कोई भी कार्य अथवा कार्यवाही मात्र किसी पद रिक्ति या जिला प्राधिकरण के गठन में त्रुटि के कारण अविधिमान्य नहीं समझी जायेगी ।
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जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्य एंव शक्तियां
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 10 में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यों पर प्रकाश डाला गया है। इस धारा के अनुसार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्य निम्नलिखित होंगे –
(i) राज्य प्राधिकरण द्वारा प्रत्यायोजित (Delegated) कार्यों का निर्वहन करना।
(ii) जिले की तालुक विधिक सेवा समितियों (Taluk Legal Services Committee) के क्रियाकलापों (activities) एवं अन्य विधिक सेवाओं में समन्वय (coordination) स्थापित करना।
(iii) जिले में लोक अदालतें (Lok-Adalats) आयोजित करना।
(iv) राज्य प्राधिकरण द्वारा निर्धारित अन्य कार्यों का निर्वहन करना।
इसी अधिनियम की धारा 11 में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का यह भी कर्तव्य होगा कि, वह विधिक सेवाओं को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं, विश्वविद्यालयों एवं अन्य संगठनों से समन्वय रखते हुए निर्धन व्यक्तियों को विधिक सहायता प्रदान करने की दिशा में कार्य करे।
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