नमस्कार दोस्तों, इस लेख में धारा 75 सीपीसी के तहत कमीशन क्या है, किन परिस्थितियों में एवं किस प्रकार कमीशन जारी किया जा सकता है | कमिश्नर को कोन कोनसी शक्तियां प्राप्त होती है का उल्लेख किया गया है। यदि आप वकील या विधि के छात्र है अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है, तब कमीशन (Commission) जारी करने की न्यायालय की शक्ति को जानना आपके लिए बेहद जरुरी है –

कमीशन क्या है

विधिशास्त्र का यह सुस्थापित सिद्धान्त है कि सभी प्रकार की न्यायिक कार्यवाहियाँ पक्षकारों की उपस्थिति में एवं न्यायालय के समक्ष संचालित होनी चाहिए। साक्षियों के कथन भी न्यायालय के समक्ष लेखबद्ध किये जाने अपेक्षित है इसके अलावा कई बार विवादास्पद स्थलों का निरीक्षण आदि करना भी आवश्यक हो जाता है।

लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी उत्पन्न हो जाती है कि यह सब कार्य न्यायालय के समक्ष सम्पादित होने असम्भव हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में इन कार्यों का सम्पादन कमीशन (Commission) के माध्यम से कराया जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश 26 तथा धारा 75 से 78 में कमीशन (commission) के बारे में प्रावधान किया गया है।

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कमीशन कब जारी किया जा सकता है –

संहिता की धारा 75 एवं आदेश 26 के अनुसार निम्नांकित प्रयोजनों के लिए कमीशन जारी किया जा सकता है –

(क) किसी व्यक्ति के परीक्षण के लिए,

(ख) स्थानीय अनुसंधान के लिए,

(ग) लेखों की परीक्षा एवं समायोजन के लिए,

(घ) विभाजन (partition) के लिए,

(ङ) वैज्ञानिक, तकनीकी अथवा विशेषज्ञीय अनुसंधान के लिए,

(च) न्यायालय की अभिरक्षा में की शीघ्रतया क्षयशील प्रकृति की सम्पत्ति के विक्रय के लिए, तथा

(छ) कार्यालयीन अथवा लिपिकीय कार्यों के अनुपालन के लिए

(1) व्यक्ति के परीक्षण के लिए 

आदेश 26 नियम 1 के अनुसार ऐसे व्यक्तियों अथवा साक्षियों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी किया जा सकेगा जो-

(क) न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अन्दर निवास करते हैं,

(ख) न्यायालय में उपस्थित रहने के लिए मुक्त हैं, अथवा

(ग) बीमार या दुर्बल होने के कारण न्यायालय में उपस्थित होने में असमर्थ है।

उपरोक्त परिस्थितियों में व्यक्तियों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी किया जा सकता है लेकिन यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।

लेकिन संहिता के आदेश 26 नियम 1 के उपबंध वहाँ लागू नहीं होते है जहाँ कोई रोगग्रस्त व्यक्ति न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहता हो और उसके परीक्षण हेतु कमीशन जारी करने के लिए आवेदन किया गया हो।

केस – बख्तावर खाँ बनाम नूर मोहम्मद, ए. आई. आर. 1986 राजस्थान 167

इस मामले में एक 73 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति के परीक्षण के लिए जो फ्रेक्चर (fracture) के कारण चलने-फिरने में असमर्थ था, कमीशन जारी किये जाने को उतम माना गया है क्योंकि ऐसे मामलों में चिकित्सीय प्रमाण पत्र पेश किया जाना आवश्यक नहीं है।

लेकिन यदि कोई साक्षी अपने निजी कार्यों में अत्यधिक व्यस्त है उस स्थिति में यह व्यस्तता कमीशन जारी किये जाने का आधार नहीं हो सकती|

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(2) स्थानीय अनुसंधान के लिए

माननीय न्यायालय संहिता के आदेश 26 नियम 9 के तहत स्थानीय अनुसंधान (local investigation) के लिए कमीशन जारी कर सकता है। इस नियम के अनुसार जहाँ न्यायालय वाद के किसी भी प्रक्रम पर उचित एवं आवश्यक समझे, निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए कमीशन जारी कर सकता है –

(क) किसी विवादग्रस्त विषय के स्पष्टीकरण के लिए,

(ख) किसी सम्पत्ति का बाजार मूल्य अभिनिश्चत करने के लिए, अथवा

(ग) मध्यवर्ती लाभों (mesneprofits), हानिपूर्ति (damages), वार्षिक शुद्ध लाभों (annual net profits) आदि का अभिनिश्चय करने के लिए।

स्थानीय अनुसंधान के लिए कमीशन जारी करना या नहीं करना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। यदि शाश्वत व्यादेश के वाद में विवादित भूमि का माप पहले ही किया जा चुका हो, वहाँ स्थल निरीक्षण की आवश्यकता नहीं रह जाती है।

केस – पी. अचूतन बनाम चाम्बलीकृन्द हरीजन फिशरीज डवलपमेन्ट कॉऑपरेटिव सोसायटी (ए. आई. आर. 1996 केरल 276)

इस मामले में भूमि के अतिक्रमण को रोकने के लिए संस्थित वाद में भूमि के नाप एवं सीमांकन के प्रयोजनार्थ कमीशन जारी करने को उचित ठहराया गया है।

इसी प्रकार एक अन्य मामले में बेदखली के वाद में विवादास्पद स्थल के निरीक्षण के लिए कमीशन जारी करने की अनुशंसा की गई।

संहिता के नियम 10 के अन्तर्गत कमिश्नर को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है और माननीय न्यायालय ऐसी रिपोर्ट पर गुणावगुण के आधार पर (on merits) विचार कर सकता है। इसके अलावा कमिश्नर को साक्ष्य में बुलाया जाना आवश्यक नहीं है।

यदि न्यायालय कमिश्नर की रिपोर्ट से असंतुष्ट है तब न्यायालय अग्रिम जाँच का आदेश दे सकता है, लेकिन कमिश्नर की रिपोर्ट में मामूली विसंगतियों के आधार पर दूसरे कमिश्नर की नियुक्ति को समुचित नहीं माना गया है। दूसरे कमिश्नर की नियुक्ति केवल तभी की जा सकती है जब न्यायालय पहले कमिश्नर की नियुक्ति से संतुष्ट नहीं हो।

इस सम्बन्ध में आर. विजयूडू बनाम एन. रामचन्द्र रेड्डी, ए. आई. आर. 2005 एन. ओ. सी. 140 आन्ध्रप्रदेश का मामला प्रमुख है|

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(3) वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए

सीपीसी के आदेश 26 नियम 10क, में वैज्ञानिक अनुसंधान (scientific investigation) के लिए कमीशन जारी किए जाने के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार जब न्यायालय की यह राय हो कि उसके समक्ष विचाराधीन किसी वाद में वैज्ञानिक अनुसंधान का कोई प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है और उसका सही रूप में समाधान नहीं हो पा रहा है तब न्याय हित में न्यायालय ऐसे प्रश्न पर अनुसंधान अथवा जाँच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कमीशन जारी कर सकेगा।

(4) लिपिकीय कार्यों के अनुपालन के लिए

सीपीसी के आदेश 26 नियम 10 ख में लिपकीय कार्यों के अनुपालन (performance of ministerial act) के लिए कमीशन जारी करने के सम्बन्ध में प्रावधान किये गये है। इसके अन्तर्गत जब न्यायालय की यह राय हो कि उसके समक्ष विचाराधीन किसी वाद में किसी लिपिकीय कार्य के अनुपालन का कोई प्रश्न अन्तग्रस्त है और उसका सही रूप से समाधान नहीं हो पा रहा है तब न्याय हित में न्यायालय ऐसे प्रश्न को हल करने के लिए अर्थात् ऐसे लिपिकीय कार्य का अनुपालन करने के लिए कमीशन जारी कर सकता है।

(5) चल सम्पत्ति के विक्रय के लिए

सहिता के आदेश 26 नियम 10ग के अन्तर्गत ऐसी चल सम्पत्ति के विक्रय के लिए कमीशन जारी किया जा सकता है जो सम्पति न्यायालय की अभिरक्षा में है, इस सम्बन्ध में निम्न प्रावधान किये गये है –

(क) शीघ्रतया एवं प्रकृत्या नष्ट (Speedy and natural decay) होने वाली सम्पति

(ख) ऐसी सम्पति जिसे परिरक्षित किया जाना न्यायालय के लिए सुविधाजनक नहीं है, तथा

(ग) ऐसी सम्पति जिसका विक्रय किया जाना न्याय हित में है।

(6) लेखों की परीक्षा के लिए

संहिता के आदेश 26 नियम 11 के अन्तर्गत जहाँ न्यायालय की यह राय हो कि किसी वाद में लेखों का परीक्षण एवं उपयोजन (examination and adjustment of accounts) आवश्यक है, वहाँ न्यायालय इस कार्य के लिए कमीशन जारी कर सकेगा।

कमिश्नर की रिपोर्ट साक्ष्य में ग्राह्य होगी और यदि न्यायालय ऐसी रिपोर्ट से असंतुष्ट है तो उसमें अग्रिम जाँच का आदेश दिया जा सकता है कमिश्नर की रिपोर्ट अभिलेख का भाग होती है तथा ऐसे मामलों में कमिश्नर का परीक्षण सारभूत नहीं है।

(7) अचल सम्पत्ति के बँटवारे के लिए

संहिता के आदेश 26 नियम 13 में अचल सम्पत्ति के बँटवारे (partition of immovable property) के लिए कमीशन जारी किए जाने के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार जहाँ किसी वाद में प्रारम्भिक डिक्री पारित कर दी गई हो, वहाँ ऐसी डिक्री में घोषित किये गये अधिकारों के अनुसार सम्पत्ति को विभाजित या पृथक् करने के लिए न्यायालय द्वारा कमीशन जारी किया जा सकता है।

(8) उच्च न्यायालय द्वारा कमीशन जारी किया जाना

सीपीसी के आदेश 26 नियम 19 एवं 20 के अन्तर्गत उपबंधित प्रावधानों के अनुसार – जब उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि कोई विदेशी न्यायालय उसके क्षेत्राधिकार के अन्दर निवास करने वाले किसी व्यक्ति का साक्ष्य अभिप्राप्त करना चाहता है, वहाँ वह अपने क्षेत्राधिकार के अन्दर किसी व्यक्ति के लिए या किसी न्यायालय के लिए ऐसे साक्षी की परीक्षा हेतु कमीशन जारी कर सकेगा।

उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा कमीशन विदेशी न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के किसी पक्षकार के आवेदन पर अथवा राज्य सरकार के किसी विधि अधिकारी के आवेदन पर जारी किया जा सकता है।

कमिश्नर को प्राप्त शक्तियाँ –

संहिता के आदेश 26 के नियम 16 में कमिश्नर की शक्तियों का उल्लेख किया गया। है, यह शक्तियाँ निम्नलिखित है –

(1) कमिश्नर ऐसे विषयों में जो निर्दिष्ट किये गये है, पक्षकारों की, साक्षियों की या ऐसे अन्य व्यक्तियों की परीक्षा कर सकेगा जिन्हें वह साक्ष्य के लिए बुलाना उचित समझता है।

(2) जाँच के विषय से सुसंगत दस्तावेजों और अन्य चीजों को मंगा सकेगा और उनकी परीक्षा कर सकेगा।

(3) युक्तियुक्त समय में वह ऐसे भवन या भूमि में प्रवेश कर सकेगा जिसका उल्लेख आदेश में किया गया है।

साक्षियों को बुलाये जाने, उनकी उपस्थिति और उनकी परीक्षा से सम्बद्ध विषयों के सम्बन्ध में कमिश्नर, जब तक कि वह स्वयं सिविल न्यायालय का न्यायाधीश नहीं हो, शास्ति अधिरोपित नहीं कर सकेगा। शास्ति अधिरोपित करने के लिए वह सिविल न्यायालय से आवेदन कर सकेगा।

संहिता के नियम 18 के तहत पक्षकार के उपस्थित नहीं होने पर कमिश्नर द्वारा एक पक्षीय कार्यवाही की जा सकती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कमिश्नर द्वारा पक्षकारों के बीच किसी विवाद का विनिश्चय अथवा निस्तारण नहीं किया जा सकता है।

केस – पुटप्पा बनाम रामप्पा (ए. आई. आर. 1996 कर्नाटक 257)

इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, शाश्वत व्यादेश के वाद में जहाँ सम्पत्ति पर कब्जे का प्रश्न अन्तर्ग्रस्त हो, वहाँ कमिश्नर द्वारा सम्पत्ति के कब्जे के प्रश्न का विनिश्चय नहीं किया जा सकता है। लेकिन माननीय न्यायालय द्वारा  कमिश्नर की रिपोर्ट पर विश्वास करते हुए मामले के किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है।

न्यायलय द्वारा नियुक्त कमीशन के खर्चे –

सीपीसी के आदेश 26 नियम 15 में कमीशन के खर्चों के सम्बन्ध में प्रावधान किये गए है, इसके अनुसार न्यायालय के आदेशानुसार कमीशन का खर्चा निर्धारित समय में उस पक्षकार को न्यायालय में जमा कराना होगा जिसके आवेदन पर कमीशन जारी किया गया है।

केस – केन्टोनमेन्ट बोर्ड बनाम छज्जूमल एण्ड संस, 1968 एम. पी. एल. जे. 425

इस मामले में कमिश्नर के खर्चों में कमिश्नर का शुल्क, कमीशन जारी करने तथा उसके निष्पादन पर होने वाला आनुषंगिक व्यय को सम्मिलित माना गया है।

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संदर्भ – बुक सिविल प्रक्रिया संहिता चतुर्थ संस्करण (डॉ. राधा रमण गुप्ता)