नमस्कार दोस्तों, इस आलेख में कानून की भाषा में आपराधिक षडयंत्र क्या होता है | IPC में इसके लिए सजा का प्रावधान क्या है | आपराधिक षडयंत्र के आवश्यक तत्व | Criminal conspiracy | Dhara 120a & 120b Ipc का उल्लेख किया गया है, यह आलेख विधि छात्रो के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।

आपराधिक षडयंत्र क्या है

आपराधिक षडयंत्र को अपराधों का जनक भी कहा जाता है। साधारण व्यक्ति भी आपराधिक षड्यन्त्र अपराध से परिचित है क्योंकि मनुष्य के व्यवहार एवं आचरण में यह व्यापक रूप से फैला हुआ है। प्रारम्भ में आपराधिक षडयंत्र को भारतीय दण्ड संहिता में स्थान नहीं दिया गया था लेकिन समय के साथ इसका विस्तार होने के कारण सन् 1913 में एक संशोधन द्वारा धारा 120 क एवं 120 ख के रूप में आपराधिक षड्यन्त्र (criminal conspiracy) को भारतीय दण्ड संहिता में जोड़ा गया।

आपराधिक षडयंत्र की परिभाषा

जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा कोई अवैध कार्य, वैध साधनों द्वारा किया जाता है या किसी वैध कार्य को अवैध साधनो द्वारा किये जाने का करार या समझौता (Agreement) किया जाता है तो वह आपराधिक षडयंत्र (criminal conspiracy) कहलाता है।

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भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 120 (क) के अनुसार, “जब कि दो या अधिक व्यक्ति –

(1) कोई अवैध कार्य, अथवा

(2) कोई ऐसा कार्य जो अवैध नहीं है, अवैध साधनों द्वारा, करने या करवाने को सहमत होते हैं, तब ऐसी सहमति आपराधिक षडयंत्र कहलाती है”|

परन्तु किसी अपराध को करने की कोई सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षडयंत्र तब तक न होगी जब तक कि सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा नहीं कर दिया जाता।

स्पष्टीकरण –

यह तत्त्वहीन है कि “अवैध कार्य ऐसी सहमति का चरम उद्देश्य है या उस उद्देश्य का आनुषंगिक मात्र है।”

हीरालाल हरीलाल भगत बनाम सी.बी.आई. नई दिल्ली के मामले अनुसार किन्हीं दो पक्षकारों के बीच किसी अवैध कार्य को करने का करार आपराधिक षडयंत्र है। (ए.आई.आर. 2003 एस. सी. 2545)

उच्चतम न्यायालय द्वारा एक अन्य प्रकरण रामनारायण बनाम सी.बी.आई. में भी कहा गया है कि, “षड्यंत्रकारियों का किसी अवैध कार्य को करने के लिए सहमत होना या उनके बीच किसी अवैध कार्य को करने का करार किया जाना आपराधिक षड्यंत्र है चाहे वह कार्य किया ही ना जाये। (ए.आई.आर. 2003 एस. सी. 2748)

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सजा का प्रावधान

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 120 (ख) में आपराधिक षडयंत्र के लिए दण्ड/सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार –

(1) जो कोई मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कठीन कारावास से दण्डनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यन्त्र में शरीक होगा, यदि ऐसे षड्यन्त्र के दण्ड के लिए इस संहिता में कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है, तो वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था।

(2) जो कोई पूर्ववोक्त रूप से दण्डनीय अपराध को करने के आपराधिक षडयंत्र से भिन्न किसी आपराधिक षडयंत्र में शरीक होगा,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छ:माह से अधिक की नहीं होगी या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा|

इस प्रकार आपराधिक षड्यंत्र का दण्ड निर्धारित करते समय यह धारा दो प्रकार के आपराधिक षड्यंत्रों के बीच अन्तर करती है। इस धारा के पहले खंड के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होता है और यदि ऐसे षड्यंत्र के दण्ड के लिए इस संहिता में कोई उपबंध नहीं है तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा मानो उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था।

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तथा इस धारा के दूसरे खंड के अनुसार यदि कोई व्यक्ति उपर्युक्त रूप से दंडनीय अपराध को करने के आपराधिक षड्यंत्र से अलग किसी अन्य आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होता है तो वह छह: माह तक के कठोर या सादा कारावास से या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि “जब किसी अभियुक्त को संहिता की धारा 109 के अधीन किसी अपराध के दुष्प्रेरण के लिए और धारा 120 (ख) के अधीन आपराधिक षड्यंत्र के लिए उसे दोषी माना जाता है और दुष्प्रेरक के रूप में उसका आरोप साक्ष्य के आधार पर साबित हो जाता है, तो उसे धारा 109 के अधीन ही दंडित किया जाना चाहिए ना की धारा 120 (ख) के अधीन।

आपराधिक षड्यंत्र के आवश्यक तत्त्व

मुख्य रूप से आपराधिक षडयंत्र के आवश्यक तत्व निम्नलिखित है –

(1) करार का होना

आपराधिक षड्यन्त्र का महत्वपूर्ण तत्व इसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच में किसी अवैध कार्य के लिए ‘करार या समझौता’ होना है और बिना करार या सहमति के षडयंत्र नहीं माना जाता है। इसके अलावा आपराधिक षड्यंत्र के अपराध के गठन के लिए, किसी अवैध कार्य को किये जाने का करार का होना अर्थात् सहमत होना जरुरी है।

उदाहरण – किसी व्यक्तियों द्वारा मानव जीवन को संकट में डालने के लिए बम निर्माण के उपकरणों को रखने का आपराधिक षड़यंत्र किया गया और आपस में इसका करार किया गया, तब न्यायालय ने यह माना कि आपराधिक षडयंत्र के लिए किसी गैरकानूनी कार्य करने के लिए करार किया जाना ही पर्याप्त है।

आपराधिक षड्यंत्र के अपराध के गठन के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच किसी करार का होना अर्थात् उनकी सहमति होना आवश्यक है। इसके अलावा आपराधिक षडयंत्र के मामलों में सभी षड्यन्त्रकारियों को घटनास्थल पर उपस्थित रहना आवश्यक नहीं है बल्कि उनका षड्यन्त्र में शामिल रहना मात्र ही पर्याप्त है ।

हुसैन उमर बनाम दिलीप सिंह के प्रकरण में करार को आपराधिक षड्यन्त्र का सार (Gist ) माना गया है। (ए.आई.आर. 1970 एस. सी. 45)

इसी तरह स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम कृष्णलाल के मामले में यह कहा गया की, “किसी अवैध कार्य को करने का मन बना लेना ही आपराधिक षड्यन्त्र के लिए पर्याप्त है”। (ए.आई.आर. 1987 एस. सी. (773)

केस – अमृतलाल बनाम एम्परर [(1915) 42 कोलकाता 957]

इस प्रकरण में अमृतलाल व उसके अन्य साथियों पर विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 की धारा 4 के अन्तर्गत मानव जीवन को संकट में डालने के आशय से बम निर्माण के उपकरण रखने के आरोप में आपराधिक षड्यन्त्र का प्रकरण चलाया गया।

इस प्रकरण में न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि “आपराधिक षड्यन्त्र के लिए कोई कार्य करने का करार या समझौता किया जाना पर्याप्त है तथा यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा कार्य किया जाये या नहीं।

केस – नजीर खाँ बनाम स्टेट ऑफ दिल्ली (ए.आई.आर. 2003 एस.सी. 4427)

इस मामले में कहा गया कि, “किसी अपराध को कारित करने का करार होना आपराधिक षड्यन्त्र का एक आवश्यक तत्त्व है। इसमें किसी अभियुक्त के प्रकट कार्य को साबित किया जाना आवश्यक नहीं है ।

(2) करार का अवैध कार्य करने अथवा वैध कार्य को अवैध साधनों द्वारा करने के लिए होना

आपराधिक षड्यन्त्र के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच करार या ऐसा समझौता का होना, जो करार किसी अवैध कार्य को वैध साधनों द्वारा करना या किसी अवैध साधनों द्वारा वैद्य कार्य को करने का हो।

उदाहरण  किसी स्त्री का गर्भपात कराने के लिए औषधि अथवा साधन जुटाने का करार या समझौता किया जाना आपराधिक षड्यन्त्र है।

इसी प्रकार जब किसी महिला के साथ उसे वैश्या बन जाने का करार या समझौता करना अथवा किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध सम्बन्ध स्थापित करने के लिए उसे सहमत करना आपराधिक षडयंत्र कहलाता है।

इसके अलावा कई बार यह भी देखा गया है कि किसी व्यक्ति की सम्पति हड्पने के लिए कई व्यक्तियों द्वारा साजिस रची जाती है तथा फर्जी तरीके से उस सम्पत्ति पर अवैध रूप से कब्ज़ा करने के लिए गठित योजना आपराधिक षड़यंत्र कहलाता है।

(3) करार एक से अधिक व्यक्तियों के मध्य होना

किसी भी अवैध कार्य को वैध साधनों से करने या वैध कार्य को अवैध साधनों द्वारा किये जाने का करार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच में होना जरुरी है क्योंकि किसी एक व्यक्ति द्वारा कोई अवैध कार्य किया जाना आपराधिक षड़यंत्र की श्रेणी में नहीं आता है| आपराधिक षड़यंत्र के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य करार या समझौता या किसी अवैध कार्य करने की आपसी सहमति होना अपेक्षित है ।

(4) दुराशय होना

आपराधिक षड्यन्त्र के अपराध के गठन के लिए दुराशय (Mens rea) यानि मन का दोषी होना आवश्यक है। दुराशय के अभाव में किसी व्यक्ति को आपराधिक षड्यन्त्र का दोषी नहीं माना जा सकता।

इस प्रकार आपराधिक षडयंत्र के लिए दुराशय का होना जरूरी है, बगैर दुराशय के किसी व्यक्ति को आपराधिक षड्यंत्र का दोषी नही माना जा सकता तथा जब दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा कोई षड्यंत्र का गठन किया जाता है तब उस षड़यंत्र के लिए दुराशय यानि मन का दोषी होना आवश्यक है।

केस – जेठ सूर सूरंग भाई बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (ए.आई.आर. 1984 एस.सी. 151)

इस प्रकरण में, किसी सोसायटी के अध्यक्ष को मात्र इस आधार पर कि वह सोसायटी के सभी कागजों, दस्तावेजों आदि पर हस्ताक्षर करता था तथा विवादित दस्तावेजों पर भी उसके हस्ताक्षर थे, आपराधिक षडयंत्र में शामिल नहीं माना गया क्योंकि ऐसे हस्ताक्षर करने में उसका कोई दुराशय (मन दोषी) नहीं था।

 (5) आपराधिक षड्यन्त्र एवं दुष्प्रेरण में अन्तर है

(1) षड्यन्त्र द्वारा दुष्प्रेरण में अभियुक्त षड्यन्त्र में सम्मिलित होता है, जबकि आपराधिक षडयंत्र में वह षडयंत्र के लिए सहमत होता है ।

(2) षड्यन्त्र द्वारा दुष्प्रेरण में षड्यन्त्र के अनुसरण में कई कार्य या अवैध लोप का होना आवश्यक है, जबकि आपराधिक षड्यन्त्र में केवल मात्र सहमति पर्याप्त है ।

(3) आपराधिक षड्यन्त्र का अपराध किसी आपराधिक कार्य को करने का करार करने मात्र से गठित हो जाता है, जबकि षड्यन्त्र द्वारा दुष्प्रेरण में किसी कार्य अथवा लोप (Act or omission) का किया जाना आवश्यक है ।

(4) आपराधिक षड्यन्त्र के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा कोई अपराध कारित करने के लिए सहमत होना पर्याप्त है, चाहे वह अपराध घटित हुआ हो या नहीं, जबकि षड्यन्त्र द्वारा दुष्प्रेरण में किसी अवैध कार्य या लोप का होना जरुरी है।

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