नमस्कार, इस पोस्ट में आपराधिक मानव वध क्या है, इसका अर्थ, प्रकार एंव आवश्यक तत्वों के साथ साथ भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार मानव वध कब हत्या नहीं है तथा आपराधिक मानव वध एवं हत्या में मुख्य अन्तर क्या है ? आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है, जो विधि के छात्रो के लिए काफी महत्वपूर्ण है|

आपराधिक मानव वध क्या है

मानव वध से तात्पर्य, किसी मनुष्य की हत्या यानि मृत्यु कारीत करने से है ना की किसी पशु या जीव जन्तु की मृत्यु कारित करने से है| मानव शरीर के विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों में सर्वाधिक गम्भीर अपराध सदोष मानव वध एवं हत्या का होता है|

सदोष मानव वध को आपराधिक मानव वध भी कहा जाता है तथा यह दोनों अपराध मानव शरीर के प्रति किये जाते है| मानव वध की परिभाषा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 299 धारा 300 में तथा सजा का प्रावधान धारा 302 304 में किया गया है|

मानव वध का अर्थ

मानव वध को अंग्रेजी में Homicide कहा जाता है, यह दो शब्दों से मिलकर बना होता है, (i) Homi – Human being (मानव), (ii) cide – Cut, Kill करना | इस प्रकार मानव वध (Homicide) का अर्थ मनुष्य द्वारा मनुष्य को मारना है, इस तरह –

अपराधिक मानव वध को अंग्रेजी भाषा में Culpable homicide कहा जाता है। Culpable homicide शब्द लेटिन भाषा से लिया गया है, शब्द कल्पेबल का अर्थ आपराधिक तरीके से किसी व्यक्ति को काटना या मारना होता है क्योंकि कल्पेबल के बाद आने वाला शब्द ह्यूमो मानव का प्रतीक है, होमो से अर्थ ह्यूमन है।

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मानव वध के प्रकार

(1) विधिपूर्ण मानव वध  विधिपूर्ण मानव वध भारतीय दण्ड संहिता 1860 के अध्याय 4 में वर्णित साधारण अपवाद के अंतर्गत आता है| विधिपूर्ण मानव वध एक साधारण मानव वध की श्रेणी में आता है जिसे दंडनीय अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत साधारण अपवाद में उन अपराधों को छूट दी गई है|

(2) विधि विरुद्ध मानव वध यानि अविधिपूर्ण  विधि विरुद्ध मानव वध को दंडनीय अपराध माना गया है| भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 299, धारा 300, धारा 302 व धारा 304 आपराधिक मानव वध और हत्या से सम्बंधित है इनके अध्ययन से आपराधिक मानव वध और हत्या की अवधारणा को समझा जा सकता है|

आपराधिक मानव वध व हत्या की परिभाषा

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 299 के अनुसार

जो कोई मृत्यु कारित करने के आशय से या कोई ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित हो जाना सम्भाव्य हो या यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भाव्य है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दें, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देता है तो वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है|

उदाहरण   एक गढ्ढे पर लकड़ियां और घास इस आशय से बिछाता है कि वह इससे कोई मृत्यु कारित करेगा या यह ज्ञान रखते हुए बिछाता है कि उसके इस कार्य के द्वारा किसी की मृत्यु कारित होगी और  इस विश्वास के साथ कि यह भूमि कठोर एंव समतल है उस पर चलता है और गढ्ढे में गिरकर मर जाता है, उस स्थिति में  आपराधिक मानव वध का अपराध करता है|

आसान शब्दों में – ऐसा कोई कार्य जिसमे मृत्यु कारित करने का आशय हो या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने का आशय हो जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य हो, किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देना आपराधिक मानव वध है|

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भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 300 के अनुसार –

कतिपय अपवादित दशाओं को छोड़कर आपराधिक मानव वध हत्या है, यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, या

ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी यह जानता हो कि इससे उस व्यक्ति की मृत्यु कारित होना सम्भव है जिसको वह अपहानि कारित की गई है, या

यदि वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, या

यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि पूरी सम्भावना है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर देगा जिससे मृत्यु कारित होना सम्भव है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप से क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे|

उदाहरण  की मृत्यु कारित करने के आशय से  उस पर गोली चलाता है जिससे  की मृत्यु हो जाती है तो  को हत्या का दोषी माना जाएगा|

इसी तरह  तलवार या लाठी से  को ऐसा घाव साशय करता है, जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में किसी मनुष्य की मृत्यु कारित करने में पर्याप्त है और जिससे  की मृत्यु हो जाती है| यद्यपि  का आशय  की मृत्यु कारित करने का नहीं रहा हो लेकिन फिर भी  हत्या का दोषी माना जाएगा||

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आपराधिक मानव वध के आवश्यक तत्व

(1) मृत्यु कारित करने के आशय से कोई कार्य करके किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देना|

(2) ऐसी कोई शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य हो, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देना|

(3) यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भव है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देना|

केस – घनश्याम बनाम स्टेट (1996 क्रि.लॉ.ज. 27 मुम्बई)

इस प्रकरण में पत्नि द्वारा सम्भोग से इन्कार कर दिये जाने पर पति द्वारा उसके सीने पर वेधन किया जो नैराश्य, क्षणिक आवेग व क्रोध का परिणाम था जिस कारण से उसकी मृत्यु हो गई| न्यायालय ने अभियुक्त को धारा 299 के खण्ड (2) के अन्तर्गत आपराधिक मानव वध का दोषी माना|

केस – माधो बनाम स्टेट (1995 क्रि.लॉ.ज.336 इलाहाबाद)

इस मामले में अभियुक्त व मृतक के बीच झगड़ा हो जाने पर अभियुक्त ने क्रोध में आकर अपना मानसिक सन्तुलन खो दिया और मृतक के साइन में बरदे से प्रहार क्र दिया जिससे उसकी मृत्यु ओ गई| न्यायालय ने अभियुक्त को धारा 299 के खण्ड (2) के अन्तर्गत आपराधिक मानव वध का दोषी माना|

सामान्य तौर पर यह मान लिया जाए की मृत्यु इस प्रकार से कारित की जाती है कि मृत्यु कारित करना संभव हो और कोई भी ऐसा प्रकार जिससे किसी मनुष्य की मृत्यु हो सकती है, उस कार्य या प्रकार से जब मनुष्य का वध किया जाता है तब वह आपराधिक मानव वध (Culpable homicide) का अपराध बन जाता है|

हत्या के आवश्यक तत्व

(1) हत्या का पहला आवश्यक तत्व मृत्यु कारित करने का आशय होना है|

(2) हत्या का दूसरा आवश्यक तत्व, अभियुक्त द्वारा इस आशय से शारीरिक क्षति कारित किया जाना जिसके बारे में वह जानता है कि उससे मृत्यु कारित होना सम्भव है|

स्टेट ऑफ़ उत्तरप्रदेश बनाम इन्द्रजीत के मामले में कहा गया कि “हत्या के लिए कोई औजार, उपकरण या अस्त्र-शस्त्र निर्धारित नहीं है, हत्या किसी भी औजार, उपकरण या अस्त्र-शस्त्र से कारित की जा सकती है| (ए.आई.आर. 2000 एस.सी. 3158)

(3) हत्या के तीसरे आवश्यक तत्व में अभियुक्त द्वारा कोई कार्य कर इस आशय से शारीरिक क्षति कारित किया जाना जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो|

केस – ए.रायुडू बनाम स्टेट (ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 1664)

इस मामले में अभियुक्त को हत्या का दोषी माना गया था, ना कि आपराधिक मानव वध का| इसमें पति को पत्नि के चरित्र पर सन्देह था, एक दिन उसने शराब के नशे में पत्नि की गर्दन पर चाकू से वार किया जिससे काफी खून बह गया और उसकी मृत्यु हो गई| चिकित्सकीय रिपोर्ट में इसे मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त माना गया था|

लेकिन यदि शारीरिक क्षति ऐसी है जिससे प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित होना सम्भव नहीं है तो उसे हत्या नहीं माना जायेगा|

(4)  हत्या का चौथा आवश्यक तत्व “ऐसा कार्य किया जाना जिससे मृत्यु कारित होना सम्भव हो और उसका कोई प्रतिहेतु (excuse) नहीं होना”|

[नग बालू (1921) 11 एल.बी.आर. 56] के मामले में अभियुक्त यह कहता है कि वह लोगों को सर्पदंश से निरापद कर सकता है और इसी के परिणामस्वरूप वह ख को एक सर्प से कटवाता है जिससे उसकी मृत्यु कारित हो जाती है, क को हत्या का दोषी माना गया|

आपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है?

अनेक बार हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि, किन परिस्थितियों में आपराधिक मानव वध हत्या की श्रेणी में नहीं आती है इस सम्बन्ध में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 300 के अन्तर्गत कुछ अपवाद दिए गए जिनके अधीन आपराधिक मानव वध हत्या नहीं होती है, जो अपवाद निम्नलिखित है –

अपवाद (1) – आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी उस समय जब कि वह गम्भीर व अचानक प्रकोपन से आत्मसंयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्यु कारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल व दुर्घटनावंश कारित करें,

लेकिन यह आवश्यक है कि ऐसा प्रकोपन –

()  किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि कारित करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में स्वेच्छया प्रकोपित न हो अथवा,

() – किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो अथवा,

()  किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो !

उदाहरण – अभियुक्त क अपनी पत्नि ख को पड़ोसी ग के साथ सम्भोग करते हुए देख लेता है और उसी समय वह ख एवं ग को गोली मार देता है, इसे गम्भीर एवं अचानक प्रकोपन के अन्तर्गत किया गया कृत्य माना गया|

अपवाद (2) – आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी शरीर या सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को सद्भावनापूर्वक प्रयोग में लाते हुए विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण करे दे और पूर्व चिन्तन बिना और ऐसी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से जितनी अपहानि कारित करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करने के किसी आशय के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दे, जिसके विरुद वह प्रतिरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रहा हो|

उदाहरण – क को चाबुक मारने का य प्रयत्न करता है लेकिन इस प्रकार नहीं कि क को घोर उपहति कारित हो, क एक पिस्तौल निकाल लेता है, क सद्भावनापूर्वक यह विश्वास करते हुए कि वह अपने को चाबुक लगाए जाने से किसी अन्य साधन द्वारा स्वंय को नहीं बचा सकता| वह य पर गोली चला देता है और य का वध हो जाता है, क हत्या का नहीं बल्कि आपराधिक मानव वध का दोषी है|

अपवाद (3) – आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी ऐसा लोक सेवक होते हुए या ऐसे लोक सेवक की मदद करते हुए जो लोक न्याय की अग्रसरता में कार्य कर रहा हो, उसे विधि द्वारा दी गई शक्ति से आगे बढ़ जाये और कोई ऐसा कार्य करके जिसे वह विधिपूर्ण और ऐसे लोक सेवक के नाते कर्तव्य के निर्वहन के लिए आवश्यक होने का सद्भावनापूर्वक विश्वास करता है और उस व्यक्ति के प्रति जिसकी मृत्यु कारित की गई है, द्वैषभाव के बिना मृत्यु कारित करे|

उदाहरण  पुलिस अधिकारी द्वारा एक व्यक्ति को चोरी के सन्देह में गिरफ्तार किया जाता है, वह व्यक्ति पुलिस की अभिरक्षा से बचने के लिए पुलिस वाहन से कूदता है| पुलिस अधिकारी के पास उसे रोकने का कोई और साधन नहीं होने के कारण वह उस पर गोली चलाता है जो किसी अन्य व्यक्ति को लग जाती है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है, यहाँ पर अभियुक्त को आपराधिक मानव वध का दोषी माना गया, हत्या का नहीं|

अपवाद (4) – आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि वह मानव वध अचानक झगड़ा जनित आवेश में हुई अचानक लड़ाई में पूर्व चिन्तन के बिना और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाये बिना या क्रूरतापूर्ण कार्य किये बिना किया गया हो|

उदाहरण – दो पक्षों में अचानक झगड़ा हो जाता है और उनमें से किसी एक व्यक्ति को अभियुक्त द्वारा किसी घातक हथियार से गम्भीर चोट कारित हो जाती है जिससे वह मर जाता है, अभियुक्त को आपराधिक मानव वध का दोषी माना गया|

जी.वैकटैय्या बनाम स्टेट ऑफ़ आन्ध्रप्रदेश (ए.आई.आर. 2008 एस.सी. 462) के प्रकरण में यह कहा गया की “जहाँ अभियुक्त और मृतक भाई-भाई हों तथा उनके बीच लम्बे समय से मन मुटाव चल रहा हो और दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो जाता है और अभियुक्त द्वारा मृतक के सीने में चाकू से वार कर उसकी मृत्यु कारित कर दी जाये वहां अभियुक्त धारा 300 के चौथे अपवाद का लाभ प्राप्त करने का हकदार होगा|

अपवाद (5) – आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु कारित की जाये वह अट्ठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करे या मृत्यु की जोखिम उठाये|

उदाहरण – एक पत्नि अपने पुत्र की मृत्यु के कारण अत्यन्त दुखी रहती थी, वह अपने पति से बार-बार यह निवेदन करती थी कि वह उसे मार डाले| एक दिन जब पत्नि सोई होती है तो पति उसे मार डालता है, पति को आपराधिक मानव वध का दोषी माना गया|

आपराधिक मानव वध कब हत्या होती है

इस सम्बन्ध में स्टेट ऑफ़ उत्तरप्रदेश बनाम वीरेन्द्र प्रसाद (ए.आई.आर. 2004 एस.सी. 1517) का एक अच्छा मामला है जिसमें माननीय न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि – आपराधिक मानव वध हत्या है यदि वह निम्नांकित दो शर्तों को पूरी करती हो –

(1) यह कि वह कार्य जिससे मृत्यु कारित हो जाती है, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो अथवा शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो,

(2) वह शारीरिक क्षति ऐसी हो जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो|

आपराधिक मानव वध एवं हत्या में मुख्य अन्तर

आपराधिक मानव वध और हत्या बहुत ही भ्रमित करने वाले विषय है इनके मध्य अंतर करना अत्यधिक कठिन कार्य है| क्योंकि इन दोनों अपराधों में आशय पूर्वक मनुष्य की मृत्यु कारित की जाती है| चूँकि इन दोनों अपराधों में मनुष्य की हत्या का आशय शामिल होता है लेकिन फिर भी इन दोनों के मध्य काफी अंतर है|

रेग बनाम गोविन्दा [आई.एल.आर. (1876) 1 मुम्बई 342] के मामले में न्यायमूर्ति मेलविल द्वारा आपराधिक मानव वध एवं हत्या के बीच अन्तर किया गया है। इस प्रकरण में अभियुक्त ने अपनी पत्नी को नीचे गिराकर उसकी छाती पर अपना घुटना रखकर उसको जोर से दो – तीन घूसे मारे, जिससे खून बहने लगा जिसके परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई।

न्यायमूर्ति मेलविल ने इसे आपराधिक मानव वध का मामला माना, क्योंकि अभियुक्त का अपनी पत्नी की मृत्यु कारित करने का कोई आशय नहीं था तथा पत्नी को कारित चोटें ऐसी नहीं थी जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो या मृत्यु हो जाना अधिसम्भाव्य हो।

आपराधिक मानव वध हत्या
1 मृत्यु कारित करने के आशय से मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो या यदि वह ऐसी क्षति कारित करने के आशय से किया गया जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है , जिसको वह अपहानि कारित की गई है
2 ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित हो जाना सम्भाव्य हो यदि वह किसी व्यक्ति की शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति जिसके कारित करने का आशय हो , प्रकृति के मामूली अनुक्रम में (in the ordinary course of nature) में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो
3 यह ज्ञान रखते हुए कि यह सम्भाव्य है कि उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि पूरी अधिसम्भाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है ।

 साक्ष्य के आधार पर आपराधिक मानव वध एवं हत्या

रिछपालसिंह मीणा बनाम घासी (ए.आई.आर. 2014 एस.सी. 3595) के मामले में कहा गया कि – “कोई मामला आपराधिक मानव वध के क्षेत्र में आता है या नहीं इसका विनिश्चित साक्ष्य के आधार पर किया जा सकता है”।

इसी प्रकार दरगाराम बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (ए.आई.आर. 2015 एम.सी. 1016) के प्रकरण में कहा गया कि “परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जा सकता है”।

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