नमस्कार दोस्तों, इस लेख में अपराध के कारण | Causes of Crimes in Criminology | भारत में अपराध के मूल कारण क्या क्या है? | Discuss the various causes of Crimes के बारे में बताया गया है, यदि आप वकील, विधि के छात्र या न्यायिक प्रतियोगी परीक्षा की  तैयारी कर रहे है, तो ऐसे में आपको समाज में फैले विभिन्न अपराध के कारणों के बारे में जानना जरुरी है – 

परिचय (अपराध के कारण) –

अपराध एक सार्वभौमिक समस्या है, जो प्रत्येक देश, राज्य एंव समाज में किसी भी रूप या मात्रा में मौजुद है| यह निरंतर चलने वाली प्रकिया है जिसका सम्बन्ध सीधे तौर पर मानव के आचरण से है, जिस तरह समय एंव परिस्थितियों के अनुसार मानव के आचरण में बदलाव होना स्वाभाविक है, उसी तरह अपराध के कारण भी एक स्थान (देश) से दुसरे स्थान में अलग-अलग हो सकते है|

जहाँ यूरोपीय देशो ने अपराध के प्रति व्यक्तिनिष्ठ पद्वति को अपनाया तो वही अमेरिका ने वस्तुनिष्ठ पद्वति को अपनाया| इस प्रकार अपराध से सम्बंधित सभी कारणों का अध्ययन एक स्थान पर कर पाना असंभव है, इसलिए इस आलेख में कुछ ऐसे अपराध के कारण का वर्णन किया गया है जो सामान्तया प्रत्येक देश में समय के अनुसार लागु होते है तथा जो किसी न किसी सम्प्रदाय अथवा विचारधारा (School) पर आधारित है|

अपराध के कारण | Causes of Crime –

अध्ययन की दृष्टि से अपराध के कारणों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया  जा सकता है, जो निम्न है –

(i) शारीरिक कारण (Physical Conditions) –

इसे वैयक्तिक कारण भी कहा जाता है, विख्यात अपराधशास्त्री लोम्ब्रोसो इसके प्रबल समर्थक माने जाते है। लोम्ब्रोसो प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने बताया कि, अपराधी व्यक्तियों की शारीरिक एवं मानसिक दशाएं, अन्य सामान्य व्यक्तियों से कुछ अलग होती है और ऐसा वंशानुगत होता है। उन्होंने अपराध और वंशानुक्रमण में परस्पर सम्बन्ध स्थापित कर जन्मजात अपराधी की अवधारणा को जन्म दिया जिसे अपराधिकता का सिद्वांत (Theory of Atavisam) नाम दिया गया।

अनेक अपराधशास्त्रियों ने शारीरिक कारणों को अपराध का कारण मानते हुए इसे निम्नांकित भागों में बांटा है –

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(क) आयु (Age) –

अपराध को प्रभावित करने वाला यह पहला लक्षण है जो अपराध की आवृत्ति एंव उसके प्रकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। अपराधशास्त्री बर्क इसके समर्थक माने जाते है उनके अनुसार 15 से 16 वर्ष की आयु के व्यक्ति सामान्य अपराध एंव 25 से 26 वर्ष की आयु के व्यक्ति गम्भीर प्रकृति के अपराध कारित करते है|

वृद्धावस्था में यौन अपराध अधिक होते है, हेस्टिंग ने इसका कारण युवकों द्वारा पैतृक नियंत्रण से मुक्त होने की इच्छा से अपराध कर बैठना बताया है| इसके अलावा सामान्यता महिलाऐं अपनी ही आयु के पुरुषों की अपेक्षा अपराध कम करती है|

(ख) लिंग (Sex) –

आयु की तरह लिंग का भी अपराध से सीधा सम्बन्ध है, अपराधशास्त्रियों का मानना है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक अपराध कारित करते है। इसका कारण पुरुषों का स्वभाव आक्रमणशील होना है, जबकि लड़कियों का स्वभाव माताओं से निर्देशित होने से वह नियत्रिंत रहती है, इसी तरह सामाजिक मूल्यों के कारण भी उनके अपराध का प्रकाश में ना आना एक कारण हो सकता है|

पोलक के अनुसार – महिलायें विशेष प्रकार के अपराध जैसे, अपकर्षण, ठगी एंव उठाईगीरी, गर्भपात, वेश्यावृति आदि कारित करती है। जबकि गबन, समलिंगी सम्भोग आदि की प्रवृत्ति पुरुषों में अधिक पाई जाती है। प्रो. स्मिथ लैंगिक विकृति को भी अपराधों का एक कारण मानते हैं।

(ग) शारीरिक रचना (Anatomical Conditions) –

व्यक्ति की शारीरिक रचना, आकार, बनावट, आकृति आदि भी अपराध के कारण बनते हैं। इस सम्बन्ध में लोम्ब्रोसो का सिद्वांत यह बताता है कि, शरीर रचना में अपराधी गैर अपराधियों से अलग होता है| सामान्य प्रकृति एवं सौम्य स्वभाव के व्यक्ति कम अपराध करते है, जबकि असामान्य प्रकृति के व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक अपराध करते हैं।

गोरिंग के अन्वेषण के अनुसार अंग्रेज अपराधी, गैर अंग्रेज अपराधी की तुलना में मात्र लम्बाई और वजन में कम होते थे इसका कारण छोटे कद के कारण उनको सरकारी ना मिलना, खेल की टीमों में चयन ना होना, उनमे समाज के प्रति घृणा भर देते है और वे अपराध के द्वारा बदला लेने के लिए प्रेरित होते है|

कुरूप, विकलांग, बौने व्यक्ति समाज में हेय, घृणा एवं उपहास के पात्र समझे जाते है जिनके कारण उनमें कुण्ठा का भाव उत्पन्न हो जाता है और वे अपराध की ओर प्रवृत्त होने लग जाते हैं। अपराधशास्त्री गोरिंग इसके समर्थक माने जाते हैं।

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(घ) भौतिक और शारीरिक क्रियात्मक दोष (Physical and Physiological Defects) –

कुछ अपराधशास्त्रि व्यक्ति की मानसिक दशा को भी अपराध का मुख्य कारण मानते है। मन्द बुद्धि, मनोविक्षिप्त, पागल, जड़, उन्मत्त, विकृत चित्तता आदि विकृत मानसिकता के लक्षण वाले व्यक्ति अधिक अपराध कारित करते हैं, क्योंकि उन लोगों में कार्य की प्रकृति एवं उससे होने वाले परिणामों को समझने की क्षमता नहीं होती है।

इसी तरह अंधापन, बहरापन, लंगड़ापन आदि जैसी शारीरिक कमियाँ भी अनेक बार अपराध के कारण बन जाती है| आर.एस.बेने के अनुसार समाज जब इन लोगों पर निरंतर अपनी प्रतिक्रिया देता रहता है, तब ये व्यक्ति अपने प्रति की गई प्रतिक्रियाओं का उत्तर अपराध द्वारा देते है|

जोडार्ड ने परीक्षण द्वारा यह साबित किया कि, अपराधी सामान्यतया मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त होते हैं। वे मन्द बुद्धि भी होते हैं। गोरिंग ने भी विभिन्न अपराधियों का बुद्धि परीक्षण कर यह साबित करने का प्रयास किया है कि अपराधी व्यक्ति कम बुद्धि के होते हैं।

डोनाल्ड आर टेफ्ट ने प्रज्ञा (Prudence) और आपराधिकता में निकट का सम्बन्ध बताते हुए कहा है कि, मन्द बुद्धि वाले व्यक्ति स्वभाव से आलसी एवं भीरू होते हैं। उनमे सोचने व समझने की क्षमता भी नहीं होती है, इसीलिए वे प्रकृति एवं परिणामों पर विचार किये बिना अपराध कर बैठते हैं। ऐसे व्यक्ति लैंगिक अपराध कम कारित करते हैं क्योंकि उनमें कामवासना का अभाव होता है।

अपराधशास्त्रि सदरलैण्ड अपराध के लिए बुद्धिहीनता की बजाए बुद्धि की तीव्रता को अधिक महत्त्व देते है, उनके अनुसार कुछ अपराधों में बुद्धि की अधिक आवश्यकता होती है, जैसे – ठगी, कूट रचना, आपराधिक षडयन्त्र आदि। ऐसे अपराध प्रखर बुद्धि के व्यक्ति योजना बनाकर ही कारित कर सकते हैं।

अपराधियों का अध्ययन करने से यह भी पता चलता है कि, रोगग्रस्त भोजन, रोग एंव बुरा स्वास्थ्य भी अपराध के कारण बनते है|

(ii) पारिवारिक कारण (Family Conditions) –

अपराध के कारण में दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण परिवार है क्योंकि व्यक्तित्व के निर्माण में परिवार का अद्वितीय स्थान है| परिवार ही बच्चे के साथ उसकी बढाती उम्र तक सबसे अलग एंव घनिष्ट सम्बन्ध रखता है उसको परिवार में जैसा वातावरण मिलता है वह वैसा ही आचरण करता है।

इस कारण यह कहा भी गया है कि – परिवार जीवन की प्रथम पाठशाला है, जिसमे बच्चे के भविष्य की आधारशिला रखी जाती है| क्योंकि बच्चा ना ही तो अपराधी पैदा होता है और ना ही गैर अपराधी, यदि परिवार के सदस्य अनुचित आचरण करते है तो बच्चे भी उनका अनुसरण कर वैसा ही आचरण करने लग जाते है|

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डोनाल्ड आर. टेफ्ट के अनुसार, परिवार न केवल प्रथम अपितु सर्वाधिक सजातीय, एकीकृत एंव अन्तरंग सामाजिक पाठशाला है। माता-पिता का प्रेम एंव विश्वाश ही बच्चे माँ आदर, निष्ठा, आपस में प्यार आदि की भावनाओं का विकास करता है, यदि बच्चा इनसे वंचित रहता है तो निश्चित ही उसके समाज विरोधी बनने की सम्भावना बन जाती है|

निम्नलिखित पारिवारिक परिस्थितियाँ अपराध के कारण में अधिक उत्तरदायी मानी जाती है –

(क) पारिवारिक नियन्त्रण का अभाव

(ख) परिवार का विघटन

(ग) परिजनों के प्रति उपेक्षा

(घ) साहचर्य की कमी

(ङ) भावनात्मक तनाव, आदि

सदरलैण्ड के मतानुसार, निम्नाकिंत परिवार के बच्चे अपराधी बन जाते है –

(क) जिस परिवार का वातावरण अनैतिक, व्यसनयुक्त एवं आपराधिक होता है

() परिवार के अन्य सदस्यअपराधी, अनुचित आचरण एंव मद्यपान करने वाले हो|

(ख) जिस परिवार में माता-पिता या दोनों में से किसी एक का अभाव होता है,

(ग) जो परिवार अशिक्षित, कुप्रथाओं का अनुसरण करने वाला, असंवेदनशील एवं रोगग्रस्त होता है

(घ) जिसमें परिजनों के साथ सौतेला व्यवहार, उनकी उपेक्षा एवं ईर्ष्या आदि की जाती है और जो अत्यधिक भीड़ भरा होता है, (ङ) माता का घर से बाहर कार्य करना, बेरोजगारी, परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होना आदि के कारण अपराधी तत्वों की ओर अग्रसित होने लग जाता है।

इस प्रकार परिवार एवं पारिवारिक वातावरण व परिस्थितियाँ भी अपराध के कारण में अपना अहम् भूमिका निभाती है।

(iii) सामाजिक कारण –

समाज एवं सामाजिक परिस्थितियाँ भी अपराध का एक प्रमुख कारण है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है जो समाज में रहकर ही अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता है। इस प्रकार समाज में उसे जैसा वातावरण मिलता है, वह वैसा ही बन जाता है। भारत में अनेक अपराध कुरीतियों की वजह से उत्पन्न होते है, जिनमे बाल-विवाह एंव दहेज़ प्रथा ऐसी बुराई है जिनके दूषित परिणाम हमें आए दिन देखने को मिलते है|

दहेज की माँग को लेकर नवविवाहित महिलाओं को यातनाएँ देना एंव उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता है, जिससे वह आत्महत्या करने के लिए विवश होकर आत्महत्या कर बैठती है या मनचाहा दहेज़ ना मिलने पर सास, ससुर, पति द्वारा उनकी (पत्नी) असामान्य परिस्थितियों में हत्या कर दी जाती है|

ओंकार सिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान के मामले में समाज की सती प्रथा को भी अपराध माना गया है। (1988 राजस्थान विधि पत्रिका 1)

सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज का व्यक्ति भी सभ्य एवं सुसंस्कृत होता है। यदि समाज की पृष्ठभूमि आपराधिक है तो उसका सदस्य भी आपराधिक प्रवृत्ति का ही होगा। इसके साथ-साथ कई बार व्यक्ति के साथ समाज का सौतेला एवं उपेक्षित व्यवहार भी उसे अपराधी बना देता है।

अनेक बार छोटी-छोटी बातों पर समाज द्वारा समाज के किसी व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है जिससे व्यक्ति में कुण्ठायें पैदा हो जाती है और वह अपराध की ओर कदम बढ़ाने लगता है।

(iv) आर्थिक कारण (Economic Conditions) –

आर्थिक दशा एंव अपराध में निकट का सम्बन्ध है, जैसा कि हम जानते है कि, निर्धनता, अर्थाभाव, आर्थिक विषमताये आदि अपराध के अहम् कारण है। यानि जब परिवार आर्थिक संकट में होता है तब परिजन चोरी, वेश्यावृत्ति, व्यभिचार जैसे अपराधों की ओर बढ़ने लगते हैं।

रोजगार के आभाव में आर्थिक स्थिति दयनीय होने से व्यक्ति निराशावश आत्महत्या कर बैठते है और कभी कभी महिलाएं वैश्यावृति या इस तरह के घृणित अपराध को करने के लिए भी विवश हो जाती है|

बकारिया के मतानुसार – निर्धनता, भुखमरी आदि से व्यक्ति में निराशा उत्पन्न होती है यानि बेकारी एवं बेरोजगारी भी अनेक अपराधों एवं दुष्प्रवृत्तियों को जन्म देती है इससे व्यक्ति चोरी, आवारागर्दी, वेश्यावृत्ति, यौन-शोषण, भिक्षावृत्ति, नशा आदि अपराध की ओर बढ़ता है।

प्लेटो ने अपराध का मुख्य कारण प्रलोभन को माना है। मनुष्य का लोभ, प्रलोभन, स्वार्थ एवं अधिक धन प्राप्त करने की इच्छा भी अपराध को जन्म देती है, जिससे व्यक्ति चोरी, लूट, डकैती, आपराधिक न्यास भंग, छल, कपट, तस्करी, कालाबाजारी, मिलावट, रिश्वत आदि तरह के अपराध करता है।

अरस्तू के अनुसार – धन अथवा स्वर्ण की लालसा ही अपराधों का मूल कारण होती है और अधिकांश अपराध मात्र आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं किये जाकर बिना मेहनत अतिरिक्त धन या वस्तुयें प्राप्त करने के लिए किये जाते हैं।

(v) राजनैतिक दशाएं –

इसमें कोई आशंका नहीं है कि राजनीतिक कारण भी अपराधों के लिए उत्तरदायी हैं। वर्तमान समय में यह आम धारणा बन चुकी है कि अधिकांश अपराधियों को राजनेताओं का संरक्षण मिलता है। ऐसे व्यक्ति बिना किसी निःसंकोच एवं निडर होकर अपराध करते हैं, क्योंकि शासन व प्रशासन उनके प्रभाव में होता है।

राजनितिक व्यक्ति कानून का उल्लंघन करने वालो को सुरक्षा प्रदान करते है जिसे राजनितिक भ्रष्टचार की संज्ञा दी जा सकती है| राजनितिक तंत्र अपने फायदे के लिए वैश्यावृति, जुआखोरी एंव मद्यपान के लिए सरकारी तंत्र से छुट दिलाते है तथा अपनी व संगठन की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए आपराधिक तत्वों के साथ सांठ-गांठ बनाये रखने में उनकी भागीदारी में निरंतर वृद्धि हो रही है|

वर्तमान समय में यह स्थिति हो गई है कि, अनेक अपराधी राजनितिक पार्टी से चुनाव जीतकर सत्ता में बैठे हुए है और ये लोग विधि निर्माण से लेकर प्रशासन तक में अपना दखल देते है जिस कारण पढ़े लिखे एंव प्रतिभावान बेरोजगार युवक अपराध की ओर बढ़ रहे है|

आपराधिक तत्वों के संरक्षण के पीछे राजनेताओं का अपना स्वार्थ होता है क्योंकि चुनाव के समय ऐसे अपराधी राजनेताओं का सहयोग करते है, जैसे –

(क) चुनाव में चन्दा इक्कठा करना,

(ख) बल एवं हिंसा द्वारा मतदाताओं को वोट देने के लिए विवश करना

(ग) अपने पक्ष की पार्टी को मत देने के लिए मतदाताओं को डराना, धमकाना या भयभीत करना

(घ) बूथों पर कब्जा करना एंव उनसे मतपेटियों को छीनकर ले जाना

(च) अवैध, फर्जी मतदान कराना, आदि शामिल है।

समय समय पर निर्वाचन आयोग चुनाव जीतने वाले ऐसे उम्मीदवारों का ब्यौरा भी देता रहता है जिनका आपराधिक इतिहास होता है| इन्ही कारणों से आजकल राजनीति के अपराधीकरण की बात कही जाती है।

(vi) मनोवैज्ञानिक कारण –

अपराध के कारण में मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological cause) भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अल्फ्रेड बिनेट (Alfred Binet) जो फ्रांस के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे, उन्होंने अपनी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में निरन्तर प्रयोग करने के पश्चात् व्यक्तियों में पाई जाने वाली मन्द बुद्धि की समस्या के सम्बन्ध में मानसिक आयु तथा प्रज्ञा बुद्धि की संकल्पनाओं का प्रतिपादन किया और आपराधिकता पर उसके प्रभाव की विवेचना की।

उसके बाद अल्फ्रेड बिनेट के अनुसंधानों को अमेरिकन मनोवैज्ञानिक प्रो. जर्मन (Prof. Jerman) ने आगे बढ़ाया, उनके मतानुसार मानसिक आयु से तात्पर्य बच्चे की उस अवस्था से है जब उसमें सामान्य बुद्धि का विकास हो जाता है और उसमें कार्य की प्रकृति एवं परिणामों को समझने की क्षमता आ जाती है तथा यह क्षमता आयु के साथ-साथ बढ़ती जाती है, जिसे ‘प्रज्ञा लब्धि’ भी कहा जाता है।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रायड ने आपराधिकता की प्रवृत्ति का विश्लेषण करते हुए कहा है कि, मानव मस्तिष्क में तीन प्रमुख भावनायें सदैव आपस में टकराती रहती है, जिन्हें (क) इड (Id), इगो (Ego) तथा सुपर इगो (Super Ego), कहा जाता है।

इनके आधार पर फ्रायड ने यह निष्कर्ष निकाला है कि –

(क) अपराध के लिए इड (Id) उत्तरदायी है

(ख) जिस व्यक्ति की इगो तथा सुपर इगो कमजोर होती है वे अक्सर अपराध कारित करते हैं,

(ग) अपराध से बचने के लिए इड अर्थात् भौतिक इच्छाओं पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है, तथा

(घ) ऐसा नहीं कर पाने पर व्यक्ति में निराशा आ जाती है, वह क्रोध या सदमे का शिकार हो बैठता है जो कभी-कभी आत्महत्या का कारण बन जाता है।

डॉ. ई.ए. ह्यूटन ने भी मानसिक रूप से विकृत अपराधियों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि – प्रायः सभी मापदण्डों के अनुसार मानसिक रूप से विकृत अपराधी सामान्य व्यक्तियों से हीन होते हैं। ऐसे अपराधियों को समाज से दूर रखा जाना चाहिए। लेकिन अप्रध्शास्त्री सदरलैण्ड इस विचार से सहमत नहीं है।

मनोवैज्ञानिक अपराध के मुख्य कारण (क) भावनात्मक अस्थिरता, (ख) हीनता की भावना तथा (ग) पारिवारिक वातावरण को माना जाता है।

मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार ऐसे व्यक्ति अधिक अपराध कारित करते हैं, जो –

(i) भावनात्मक तौर पर कमजोर होते हैं

(ii) आर्थिक रूप से विपन्न एवं असुरक्षित होते हैं

(ii) आजीविका के लिए सदैव संघर्षरत रहते हैं

(iv) बेकार एवं बेरोजगार होते हैं

(v) पारिवारिक कलह से पीड़ित होते हैं

(vi) किसी प्रेम प्रसंग में निराश हो जाते हैं

(vii) किसी अप्रिय घटना के शिकार हो जाते है अथवा

(vii) शिशु काल से ही निराश होते हैं।

(vii) अन्य अपराध के कारण –

अपराधों के कुछ अन्य कारण भी माने गए है, जैसे –

(a) अश्लील साहित्य

(b) धार्मिक बंधन

(c) सांस्कृतिक संघर्ष

(d) दूषित कारावास व्यवस्था

(e) पुलिस एंव न्यायालय की छवि

(f) सह-शिक्षा

(g) नैतिक एवं चारित्रिक पतन

(h) सिनेमा, दूरदर्शन, इन्टरनेट एवं अश्लील फिल्में आदि ।

अश्लील साहित्य का व्यक्ति के मन व मस्तिष्क पर बुरा पड़ता है और यह शीघ्र ही अपराधों की ओर उन्मुख हो जाता है कामोतेजना बढ़ाने वाला साहित्य लैंगिक अपराधों (Sexual Offences) को जन्म देता है| यही स्थिति अश्लील फिल्में व टी.वी. चैनलों की है। कुछ हद तक अपराधों के लिए सह-शिक्षा को भी उत्तरदायी माना जा सकता है।

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