नमस्कार दोस्तों, इस आलेख में अपकृत्य तथा संविदा भंग मै अंतर | Difference Between Tort And Breach Of Contract को आसान भाषा में बताया गया है|

अपकृत्य तथा संविदा भंग

संविदा भंग और अपकृत्य दोनों में समानता यह है कि दोनों ही कर्त्तव्य भंग से उत्पन्न होते हैं। संविदा भंग में अधिकार, करार द्वारा परस्पर-आबद्ध (Mutually bound) दो पक्षों की आपसी सहमति से निर्धारित होता है तथा अपकृत्य में किसी पक्ष की सहमति का प्रश्न ही नहीं उठता है, क्योंकि सामान्य कानून द्वारा प्राप्त अधिकार क्षतिग्रस्त पक्ष में पहले से ही निहित होता है।

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अपकृत्य तथा संविदा भंग में अन्तर

अपकृत्य एवं संविदा भंग में निम्नलिखित अन्तर मिलता है –

(1) कर्त्तव्यों का निर्धारण  अपकृत्य विधि में कर्त्तव्यों का निर्धारण विधि द्वारा होता है जबकि संविदा – भंग में कर्त्तव्यों का निर्धारण संविदा द्वारा होता है।

(2) कर्त्तव्यों का उल्लंघन  अपकृत्य में व्यक्ति उन कर्त्तव्यों का उल्लंघन करता है जो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से विधि-द्वारा निर्धारित होते हैं, लेकिन संविदा-भंग में व्यक्ति उन कर्त्तव्यों का उल्लंघन करता है जिन्हें करने या न करने के लिये कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के प्रति वचनबद्ध होता है|

(3) अधिकारों (Right in Rem) का उल्लंघन  अपकृत्य के मामले में सर्वबन्धी अधिकारों (Right in Rem) का उल्लंघन होता है जबकि संविदा-भंग में किसी व्यक्ति-विशेष के (Right in personam) अधिकारों का उल्लंघन होता है।

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(4) आशय  अपकृत्य में सामान्य रूप से आशय महत्वहीन रहता है, परन्तु कुछ अपवादों में अपकृत्य में आशय पर विचार किया जाता है| संविदा भंग में भी जो व्यक्ति कर्तव्य भंग करता है, उसके आशय पर विचार नहीं किया जाता चाहे उसने संविदा-भंग सद्भाव से किया हो या अन्य किसी बड़ी घटना से बचाव के लिये किया हो|

(5) क्षतिपूर्ति – अपकृत्य में क्षतिपूर्ति सामान्यतया प्रतिकारात्मक होती है, परन्तु कुछ आपवाद के मामलों में दण्डात्मक क्षतिपूर्ति (exemplary damages) भी प्रदान की जाती है। परन्तु संविदा-भंग में संविदा की शर्तों का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति प्रतिपक्ष व्यक्ति को क्षतिपूर्ति करने के लिए प्रतिकर (Compensation) के रूप में संविदा के अन्तर्गत निर्धारित क्षतिपूर्ति देता है।

अपकृत्य में क्षतिपुर्ति की प्रकृति के बारे में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभी अपकृत्य विधि विकसित हो रही है| अत: अभी इसकी सीमा रेखाएँ पूर्णतया सुनिश्चित नहीं हैं।

(6) धनराशि का निर्धारण – अपकृत्य के मामले में क्षतिपुर्ति के लिए धनराशि पूर्वनिश्चित नहीं होती है, परन्तु संविदा भंग धनराशि संविदा की शर्तों के अन्तर्गत पूर्वनिश्चित होती है। संविदा भंग एवं अपकृत्य के मामले में क्षतिपुर्ति के रूप में दी जाने वाली धनराशि का निर्धारण विभिन्न नियमों के अनुसार किया जाता है।

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इस प्रकार संविदा भंग की कार्यवाही विशेष प्रकार के अधिकार के उल्लंघन पर पेश की जाती है जबकि अपकृत्य की कार्यवाही सामान्य अधिकारों के उल्लंघन पर प्रारम्भ की जाती है। क्षतिपूर्ति दोनों अवस्थाओं में दी जाती है किन्तु संविदा-भंग में क्षतिपूर्ति की रकम निर्धारित करने का आधार सुनिश्चित होता है जबकि अपकृत्य में क्षतिपूर्ति की रकम निर्धारित करने का आधार न्यायालय पर निर्भर करता है।

अपकृत्य और संविदा भंग विभिन्न कोटि के कृत्य हैं, परन्तु कभी-कभी ऐसे भी मामले उत्पन्न हो जाते हैं, कि एक ही कृत्य अपकृत्य एवं संविदा-भंग दोनों के अन्तर्गत रखा जा सके।

उदाहरण  एक व्यक्ति अपने पुत्र की चिकित्सा हेतु एक डॉक्टर को नियुक्त करता है। डॉक्टर के किसी अविवेकपूर्ण कार्य से पुत्र को आघात पहुँचता है। ऐसी स्थिति में पिता डॉक्टर के विरुद्ध संविदा के आधार पर मुकदमा चला सकता है और पुत्र डॉक्टर के असावधानीपूर्ण कार्य से उत्पन्न आघात के लिये क्षतिपूर्ति के लिये मुकदमा चला सकता है।

डॉ० शरद वैद बनाम पैन्त्रो जोयल वेल्स के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि यदि मरीज इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसका आशय डॉक्टर के साथ अपने उपचार के लिए संविदा करना होता है। कोई मरीज डॉक्टर के पास तभी जाता है जब उसे चिकित्सा सेवा की आवश्यकता होती है। इसलिए डॉक्टर द्वारा दी गयी चिकित्सा सेवा संविदा के अन्तर्गत नहीं आयेगी।

इस प्रकार यदि डॉक्टर ने उपचार करते समय असावधानीपूर्ण तरीके से कार्य किया है तो वह अपकृत्य के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति देने के लिए जिम्मेदार होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि जब मरीज एवं डॉक्टर के बीच स्पष्ट संविदा नहीं या संविदा करने का आशय नहीं है, तो डॉक्टर संविदा भंग के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। उसका दायित्व अपकृत्यपूर्ण होगा।

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यदि एक ही कार्य संविदाभंग तथा अपकृत्य

यदि एक ही कार्य संविदा-भंग तथा अपकृत्य दोनों के अन्तर्गत आ सके और संविदा के करार के अनुसार संविदा-भंग का प्रतिकर देय न हो तो भी अपकृत्य के दायित्व से मुक्ति नहीं होती और यदि क्षतिग्रस्त व्यक्ति दावा करे तो उसे नुकसानी मिल सकती है। किन्तु संविदा-भंग और अपकृत्य, दोनों वादों को चला कर दोनों में क्षतिपूर्ति नहीं प्राप्त की जा सकती है।

अपकृत्य एवं न्यासभंग (TORT AND BREACH OF TRUST)

केवल न्यास-भंग या दूसरे नैतिक कर्त्तव्य का पालन न करने से हुई सामान्य हानि को अपकृत्य नहीं माना जाता। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अपकृत्य का कानून सामान्य विधि (Common Law) का अंश है। न्यास-भंग चान्सरी न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आता है।

डॉ० विनफील्ड इनमें एक अन्य प्रभेद बताते हैं। यदि कोई न्यासी (Trustee) उस सम्पत्ति का दुरुपयोग करता है जो उसे न्यास के रूप में, किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए प्राप्त हुई थी, तो ऐसे न्यासी के प्रति प्रतिकर का दावा किया जा सकता है।

लेकिन नुकसानी का अन्दाजा न्यास-सम्पत्ति की हुई हानि को देख लगाया जाता है। संविदा-भंग के समान न्यास-भंग में भी नुकसानी की धनराशि पूर्वनिर्धारित होती है परन्तु अपकृत्य के मामले में नुकसानी की धनराशि अनिर्धारित होती है।

न्यास-भंग के मामले में न्यासी का कर केवल हिताधिकारी (Beneficiary) के प्रति होता है, परन्तु अपकृत्य-विधि के अन्तर्गत कर्त्तव्य सदैव जन साधारण के प्रति होता है।

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