हेल्लो दोस्तों, इस आलेख में सीआरपीसी के तहत संज्ञेय अपराध की सूचना पर पुलिस अधिकारी के कर्त्तव्य तथा उसके अनुसंधान/अन्वेषण की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है| उम्मीद है कि, यह लेख आपको जरुर पसंद आएगा |

आपराधिक न्याय प्रशासन में प्रथम सूचना रिपोर्ट तथा अन्वेषण (अनुसंधान/जाँच) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। किसी मामले में अन्वेषण की प्रक्रिया, प्रथम सूचना रिपोर्ट के पश्चात् प्रारम्भ होता है और जिसके द्वारा विचारण के लिए साक्ष्य एकत्रित की जाती है अर्थात् यह सुनिश्चित किया जाता है कि अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्ट्या मामला बनता है या नहीं।

संज्ञेय अपराध में अन्वेषण की प्रक्रिया

जैसा की हम जानते है कि, प्रथम सूचना रिपोर्ट के साथ ही अनुसंधान/अन्वेषण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाता है और असंज्ञेय अपराध के सम्बन्ध में अनुसंधान प्रारम्भ करने से पूर्व मजिस्ट्रेट के आदेश की आवश्यकता होती है लेकिन संज्ञेय मामलों में अन्वेषण प्रारम्भ करने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की आवश्यकता नहीं होती।

किन्तु यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट या परिवाद संज्ञेय एवं असंज्ञेय दोनों प्रकार के अपराध से सम्बंधित है तब उस स्थिति में पुलिस अधिकारी द्वारा संज्ञेय अपराध के साथ-साथ असंज्ञेय अपराध का अन्वेषण भी किया जा सकता है। (स्टेट ऑफ उड़ीसा बनाम शरत् चन्द्र साहू ए. आई. आर. 1997 एस. सी. 1)

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पुलिस अधिकारी की शक्तियां एंव कर्तव्य / अन्वेषण की प्रक्रिया –

संज्ञेय मामलों में जाँच/अन्वेषण की प्रक्रिया का वर्णन दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 156 से 173 तक में किया गया है। संहिता की धारा 156 भारसाधक पुलिस अधिकारी को किसी संज्ञेय मामले का अन्वेषण मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किये जाने की शक्तियाँ प्रदान करती है। लेकिन फिर भी पुलिस अन्वेषण नहीं करती है तब मजिस्ट्रेट धारा 159 के तहत अन्वेषण के लिए आदेश कर सकता है।

मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट की प्रति भेजना

ज्योंही पुलिस अधिकारी के पास प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होती है, अविलम्ब उसकी एक प्रति विहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के माध्यम से संज्ञान लेने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट के पास भेजी जायेगी। (धारा 157 एवं 158)

घटनास्थल के लिए प्रस्थान

प्रथम सूचना रिपोर्ट प्राप्त होने पर भारसाधक अधिकारी स्वयं या उसका कोई अधीनस्थ अधिकारी –

(क) मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों का अन्वेषण करने,

(ख) अपराधी का पता चलाने,

(ग) उसकी गिरफ्तारी का उपाय करने के लिए घटनास्थल पर जायेगा। (धारा 157)

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साक्षियों की परीक्षा

संहिता की धारा 160 के अन्तर्गत अन्वेषण अधिकारी किसी व्यक्ति को साक्ष्य हेतु अपने समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा कर सकेगा, लेकिन निम्नांकित साक्षियों को अपने समक्ष हाजिर होने का आदेश उनके निवास स्थान से भिन्न स्थान के लिए नहीं दिया जा सकेगा

(क) यदि वह 15 वर्ष से कम आयु का पुरुष है, अथवा

(ख) कोई स्त्री है, अथवा

(ग) वह 65 वर्ष से अधिक आयु का है, अथवा

(घ) वह किसी शारीरिक या मानसिक रूप से निःशक्त व्यक्ति है।

[दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम 2013 द्वारा अन्तःस्थापित]

“इस उपधारा के अधीन किया गया कथन श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों द्वारा भी अभिलिखित किया जा सकेगा।”

संहिता की धारा 161 के अन्तर्गत अन्वेषण अधिकारी द्वारा ऐसे साक्षियों की परीक्षा की जायेगी तथा साक्षी मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के बारे में जैसा वह जानता है, सही-सही उत्तर देने के लिए आबद्ध होगा तथा ऐसे कथनों को लेखबद्ध किया जायेगा।

सही-सही उत्तर देने के लिए आबद्ध होगा – सही शब्द इस नई संहिता में जोड़ा गया है, इसमें व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है की वह प्रशन का उत्तर सही सही दे| वह व्यक्ति दोषारोपण वाले प्रश्नों के उत्तर देने से इन्कार कर सकता है|

कोई व्यक्ति जो धारा 161 के तहत प्रश्नों का झूठा उत्तर देता है, उसका भारतीय दण्ड संहिता की धारा 182 के तहत अभियोजन किया जा सकता है|

‘परन्तु यह कि बलात्संग के अपराध के सम्बन्ध में पीड़ित का कथन, पीड़ित के निवास पर या उसकी इच्छा के स्थान पर और यथासाध्य, किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा उसके माता-पिता या संरक्षक या नजदीकी नातेदार या परिक्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता की उपस्थिति में अभिलिखित किया जाएगा।”

लेकिन संहिता की  धारा 162 के अन्तर्गत अन्वेषण अधिकारी द्वारा ऐसे कथनों पर साक्षी के हस्ताक्षर नहीं लिये जा सकेंगे।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अन्वेषण के दौरान दिये गये साक्षियों के कथनों का उपयोग सारभूत साक्ष्य के रूप में नहीं किया जा सकता है। (हजारीलाल बनाम स्टेट, ए. आई. आर. 1980 एस. सी. 873)

पुलिस अधिकारी द्वारा किसी व्यक्ति को किसी प्रकार की धमकी, उत्प्रेरणा या वचन नहीं दिया जायेगा और न किसी व्यक्ति को स्वेच्छया कथन करने से निवारित किया जायेगा। (धारा 163)

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संस्वीकृतियों एवं कथनों को अभिलिखित करना

अन्वेषण की प्रक्रिया के दौरान यदि कोई अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष संस्वीकृति (confession) करना चाहे अथवा कोई साक्षी बयान (statement) देना चाहे तो अन्वेषण अधिकारी द्वारा विहित रीति से ऐसे अभियुक्त अथवा व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जायेगा और धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसे कथनों को यथाविधि लेखबद्ध किया जायेगा।

मजिस्ट्रेट द्वारा संस्वीकृति के कथन तभी लेखबद्ध किये जायेंगे जब उसका यह समाधान हो जाये कि वह स्वेच्छा से किये गये है साथ ही ऐसे कथन लेखबद्ध करने से पूर्व मजिस्ट्रेट द्वारा कथन करने वाले व्यक्ति को यह बता दिया जायेगा कि –

(क) अभियुक्त संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं है; तथा

(ख) ऐसी संस्वीकृति का उसके विरुद्ध उपयोग किया जा सकेगा।

‘परन्तु इस धारा के अधीन की गई कोई संस्वीकृति या कथन किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के अधिवक्ता की उपस्थिति में श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों द्वारा भी अभिलिखित की जा सकती है।

परन्तु यह और कि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा, जिसे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन मजिस्ट्रेट की कोई शक्ति प्रदत्त की गई है, कोई संस्वीकृति अभिलिखित नहीं की जाएगी।”

संस्वीकृति – संस्वीकृति उस व्यक्ति द्वारा की गई स्वीकृति है जिसके ऊपर अपराध का आरोप है और जो यह स्वीकार करता है की उसने अपराध किया है, लेकिन विना इरादे से की गई घोषणा संस्वीकृति नहीं मानी जाएगी|

कथन – धारा 164 के तहत साक्षी का कथन इसलिए अभिलिखित किया जाता है जिससे कि वह बाद में उसे परिवर्तित न कर सके|

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पुलिस अधिकारी द्वारा तलाशी

संहिता की धारा 165 के अधीन अन्वेषण के दौरान पुलिस अधिकारी द्वारा किसी ऐसे स्थान की तलाशी ली जा सकेगी जहाँ अपराध से सम्बन्धित किसी चीज के पाये जाने की सम्भावना है।

ऐसी तलाशी के दौरान पाई जाने वाली चीजों (वस्तुओं) की सूचियाँ तैयार की जायेगी तथा उसकी एक प्रति उस व्यक्ति को दी जायेगी जिसके स्थान की तलाशी ली गई है। एक पुलिस अधिकारी को इस धारा के तहत अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर तलाशी/खोज करने की अधिकारिता नहीं है|

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अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना

जब अन्वेषण की प्रक्रिया 24 घंटे में पूरा नहीं हो सकता हो, तब गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जायेगा और 24 घंटे के पश्चात ऐसे व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश से ही अभिरक्षा (Police Custody) में रखा जा सकेगा। इसे ‘रिमाण्ड’ भी कहा जाता है।

पुलिस अभिरक्षा की यह अवधि 15 दिनों से अधिक की नहीं हो सकेगी। “कोई मजिस्ट्रेट इस धारा के अधीन किसी अभियुक्त का पुलिस अभिरक्षा में निरोध तब तक प्राधिकृत नहीं करेगा जब तक कि अभियुक्त उसके समक्ष पहली बार और तत्पश्चात् हर बार, जब तक कि अभियुक्त पुलिस की अभिरक्षा में रहता है, व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं किया जाता है किन्तु मजिस्ट्रेट अभियुक्त के या तो व्यक्तिगत रूप से या इलैक्ट्रोनिक दृश्य सम्पर्क माध्यम से पेश किए जाने पर न्यायिक हिरासत में निरोध को और बढ़ा सकेगा।”

ऐसा व्यक्ति यदि न्यायिक अभिरक्षा (Judicial Custody) में है और अन्वेषण अभी लम्बित है तो उसे निम्नांकित कालावधि बाद जमानत पर रिहा कर दिया जायेगा –

(क) 90 दिनों के बाद, यदि मामला मृत्यु, आजीवन कारावास या 10 वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय है, और

(ख) 60 दिनों के बाद, यदि मामला अन्य किसी अपराध के सम्बन्ध में है। (राजीव चौधरी बनाम स्टेट, ए. आई. आर. 2001 एस. सी. 2369)

अन्वेषण की रिपोर्ट

संहिता की धारा 168 के तहत – जब अन्वेषण पूरा हो जाता है तब अन्वेषण अधिकारी द्वारा उसकी रिपोर्ट पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को की जायेगी।

इस धारा के तहत अन्वेषण अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 के तहत लोक दस्तावेज नहीं है, जिस कारण विचारण के पूर्व अभियुक्त रिपोर्ट की प्रति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है|

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अभियुक्त को छोड़ा जाना

अन्वेषण अधिकारी को प्रकरण के विचारण में अभियुक्त के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिलता है या अपर्याप्त साक्ष्य है या संदेह का उचित आधार नहीं है जिससे की अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाए उस दशा में ऐसा अधिकारी संहिता की धारा 169 के तहत अभियुक्त को समुचित बंध पत्र निष्पादित करने पर छोड़ देगा|

लेकिन यदि अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य हैं तब उसे संहिता की धारा 170 के तहत विचारण करने के लिए सक्षम मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जायेगा। अन्वेषण की प्रक्रिया

आरोप-पत्र पेश करना

संहिता की धारा 173 के अन्तर्गत अन्वेषण पूरा हो जाने पर अभियुक्त के विरुद्ध न्यायालय में आरोप-पत्र पेश किया जाता है, इसे ‘चालान’ अथवा ‘चार्ज शीट’ भी कहा जाता है। इसमें निम्नांकित बातों का उल्लेख किया जायेगा –

(क) पक्षकारों के नाम,

(ख) इत्तिला का स्वरूप,

(ग) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम,

(घ) क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है और यदि किया गया प्रतीत होता है तो किसके द्वारा,

(ङ) क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है,

(च) क्या उसे प्रतिभूओं सहित या रहित बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है,

(छ) क्या वह धारा 170 के अन्तर्गत अभिरक्षा में भेज दिया गया है, आदि।

(ज) जहाँ अन्वेषण भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 376, धारा 376क, धारा 376कख, धारा 376ख, धारा 376ग या धारा 376घ, धारा 376घक, धारा 376घख के अधीन किसी अपराध के सम्बन्ध में है, वहाँ क्या स्त्री की चिकित्सा परीक्षा की रिपोर्ट संलग्न की गई है। [ धारा 376 कख, धारा 376 घक एवं धारा 376घख दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा अन्तःस्थापित ]

(झ) बालिका के साथ बलात्संग के सम्बन्ध में अन्वेषण उस तारीख से जिसको पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा इत्तिला अभिलिखित की गई थी, तीन मास के भीतर, पूरा किया जाएगा।

हरदीप सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के मामले में निर्धारित किया गया कि, धारा 173 के अन्तर्गत प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट में मात्र उन बातों का उल्लेख किया जाना चाहिए जो उक्त धारा द्वारा अपेक्षित है। (ए.आई. आर. 2009 एस.सी. 483)  अन्वेषण की प्रक्रिया

संक्षिप्त में यही अन्वेषण की प्रक्रिया है।

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संदर्भ :- बाबेल लॉ सीरीज (बसन्ती लाल बाबेल)

बूक : दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (सूर्य नारायण मिश्र)