कानून के क्षेत्र में “अपकृत्य” (Tort) एक ऐसा असंवैधानिक कार्य है, जिससे किसी व्यक्ति को हानि होती है और उस हानि की पूर्ति के लिए हर्जाना लिया जाता है।
अपकृत्य, अपराध नहीं है, लेकिन कानून की दृष्टि में गलत होता है। विधि के छात्रों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए इसका स्पष्ट ज्ञान अत्यंत आवश्यक है, आइए इसे विस्तार से समझते हैं-
परिचय: अपकृत्य क्या है?
अपकृत्य एक ऐसा शब्द है जिसके शब्दार्थ से ही उस प्रकार के कृत्यों या कार्य का बोध होता है जो अनुचित है। यदि सामान्य अर्थों में कहे तो समस्त अनुचित कार्य अपकृत्य कहलाते हैं। अपकृत्य के दुष्कृति, अनुचित तथा गलत (wrong व tort) जैसे कई पर्यायवाची शब्द है जिनका लगभग समान अर्थ निकलता है।
अपकृत्य विधि का इतिहास
अपकृत्य की धारणा अपराध की धारणा से भी बहुत प्राचीन है क्योंकि प्राचीन समय में व्यक्तियों को नुकसान या अपकृत्य की स्थिति में उनको क्षतिपूर्ति दिलाई जाती थी। अपकृत्य विधि अंग्रेजों की देन है, जिनके आने से पहले इस तरह की कोई विधि भारत में प्रचलित नहीं थी। जब अंग्रेज भारत में आये तो उन्होंने इंग्लैण्ड के कानूनों को भारत में लागू किया।
भारत में अपकृत्य विधि का उद्भव सन् 1726 के एक राजपत्र द्वारा हुआ क्योंकि सन् 1726 के चार्टर द्वारा ही प्रेसीडेन्सी नगरों (बम्बई, कलकत्ता और मद्रास) में मेयर न्यायालयों की स्थापना की गई और इंग्लैण्ड की सामान्य विधि (कॉमन ला) इन न्यायालयों में लागू हो गई।
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अपकृत्य का अर्थ
टार्ट (TORT) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के टार्टम (Tortum) शब्द से हुई है, जिसे अंग्रेजी में wrong व हिन्दी में गलत, अनुचित या अपकृत्य कहते है।
अपकृत्य संम्बन्धी दायित्व संविदा भंग से अलग ऐसा दायित्व है जो सामान्यत कानूनी कर्तव्यों का पालन न करने के कारण उत्पन्न होता है। जैसा की हम जानते है अपकृत्य एक गलत कार्य है, और उसी गलत कार्य पर जब विधि द्वारा कानूनी कार्यवाही की जाती है तो वह अपकृत्य विधि कहलाती है।
अपकृत्य की परिभाषा
सामान्यतः अपकृत्य का अर्थ सरल है परन्तु इसकी परिभाषा कठिन है फिर भी विभिन्न विधिशास्त्रियों ने इसकी सुस्पष्ट परिभाषा देने की कोशिश की है-
क्लार्क और लिण्डसेल के अनुसार- “दुष्कृति एक अपकार है जो संविदा से भिन्न होता है और जिसका आम कानूनी कार्यवाही ही एक समुचित उपाय है।
डॉ. विनफील्ड के अनुसार ‘अपकृत्यपूर्ण दायित्व विधि द्वारा मूलतः पूर्वनिश्चित कर्तव्य भंग करने से उत्पन्न होता है यह कर्तव्य समान्य व्यक्तियों के प्रति होता है और इसके उल्लंघन के लिए उपचार अनिर्धारित नुकसानी के लिए वाद चला कर किया जाता है।’
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डॉ. अन्डरहिल के अनुसार दुष्कृति एक ऐसा कार्य या कार्यलोप है जो विधि द्वारा अनाधिकृत है एवम संविदा से भिन्न है तथा जिसमें-
(अ) किसी व्यक्ति के निरपेक्ष अधिकार का अतिलंघन होता है।
(ब) किसी व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के उसके सापेक्ष अधिकार का अतिलंघन होता है।
(स) किसी लोक अधिकार का अतिलंघन होता है।
जिसके फलस्वरूप किसी व्यक्ति विशेष को ऐसी सारवान और विशेष क्षति पहुँचती है जो समान्य व्यक्तियों को पहुँचायी गयी या समान्य व्यक्तियों द्वारा सहन की जाने वाली क्षति से अधिक होती है और जिससे क्षतिग्रस्त पक्षकार द्वारा लाये गये मुकदमें पर हर्जाने के लिए कार्यवाही की जाती है।”
फ्रेजर के अनुसार- “अपकृत्य किसी व्यक्ति के लोकबंधी अधिकार का सामान्य रूप से उल्लंघन है जिसमें पीडित पक्षकार को क्षतिपूर्ति का वाद लाने का अधिकार होता है।”
परिसीमन अधिनियम 1963 की धारा 2 (m) के अनुसार “अपकृत्य एक ऐसा सिविल अपकार है जो केवल संविदा भंग अथवा न्यास भंग नहीं है।”
सामण्ड के अनुसार अपकृत्य एक सिविल दोष है जो कि अपराध – से अलग है तथा इसके भंग होने पर अनिर्धारित हर्जाने की रकम मांगी जाती है। तथा यह संविदा भंग-न्यास भंग या साम्यिक आधारों से अलग है।
उपरोक्त परिभाषाओं से यह तो स्पष्ट है कि अपकृतय कोई अपराध नहीं है तथा इसमें क्षतिकर्ता, क्षतिपूर्ति करने का पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है।
चूंकि सामण्ड ने अपकृत्य को (Torts) बताया है क्योंकि यह उन सभी अपकृत्यों को शामिल करता है जिसमें विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को कई अधिकार प्रदान किये गये है साथ ही उन अधिकारों के लिए संरक्षण व उपचार भी है।
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उपचार विहिन अधिकार अर्थहीन होते है इसलिए कहा गया है कि “जहाँ अधिकार है वहाँ उपचार है। “इस कारण सामण्ड की परिभाषा अधिक व्यापक है, जबकि विनफील्ड ने अपकृत्य को (Tort) कहा है जो कि संकुचित अर्थ देता है।
आवश्यक तत्व
उक्त परिभाषाओं में निम्न तत्वों का मुख्य रूप से बोध होता है-
(i) अपकृतय एक दीवानी दोष (civil wrong) है।
(ii) यह संविदा भंग (Breach of contract) न्यास भंग (Breach of trust) से भिन्न है।
(iii) अपकृत्यजनक दायित्व का उद्भव विधि द्वारा पूर्व निश्चित कर्तव्य भंग से होता है।
(iv) विधिक कर्तव्य एवं दायित्व सभी व्यक्तियों के प्रति होते है।
(v) इसका उपचार अनिर्धारित क्षतिपूर्ति के लिए वाद लाना होता है।
प्रमुख विशेषताएँ
(i) अपकृत्य विधि किसी व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित विधि है। विशेष परिस्थितियों में व्यक्तियों के मध्य, साधारण कानून के अनुसार अधिकार व कर्तव्य उत्पन्न होते है। इन कर्तव्यों व अधिकारों का उल्लंघन ही अपकृत्य कहलाता है।
(ii) अपकृत्य उन अनुचित कृत्यों से भिन्न होता है जो पूर्णरूपेण संविदा भंग के अन्तर्गत आते है।
(iii) अपकृतय का उपचार दीवानी न्यायालय में क्षतिपूर्ति के लिए वाद दायर करके प्राप्त किया जा सकता है।
(iv) अपकृत्य एवं अपराध दोनों भिन्न है।
(v) अपकृत्यपूर्ण दायित्व समाज के सभी व्यक्तियों के विरूद्ध होता है अतः समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपकृत्य न करने के लिए बाध्य है। यह एक लोकलक्षी अधिकार है।
(vi) अपकृतय विधि का मुख्य उद्देश्य क्षतिपूर्ति है अर्थात पीड़ित को यथासम्भव उस अवस्था में ला देना जिसमें कि वह अपकृत्य से पूर्व था।
(vii) अपकृतय में हमेंशा अनिर्धारित क्षतिपूर्ति ही माँगी जाती है।
अपकृत्य तथा संविदा में अन्तर
कुछ कृत्य संविदा एवं अपकृतय दोनों में वाद का कारण बन सकते हैं तथा समान रूप से साथ-साथ दोनों में कार्यवाही की जा सकती है।
उदाहरण के लिए टिकट लेकर यात्रा करने वाले यात्री द्वारा, गन्तव्य पर न पहुँचाने पर संविदा के अन्तर्गत तथा ड्राईवर की लापरवाही से हुई क्षति के लिए क्षतिपूर्ति के लिए अपकृत्य में एक ही व्यक्ति द्वारा दावा दायर किया जा सकता है।
इसी प्रकार यदि कोई पिता किसी चिकित्सक से अपने पुत्र के ऑपरेशन के लिए संविदा करता है और कोई क्षति हो जाती है तो पिता संविदा भंग एवं अपकृतय में, और पुत्र अपकृतय के अन्तर्गत दावा दायर कर सकता है। अपकृतय एवं संविदा दोनों में निम्नलिखित अन्तर है-
(1) अपकृतय में कर्तव्य का आरोपण कानून के द्वारा होता है, सहमति के आधार पर नहीं जबकि संविदा में कर्तव्य की उत्पत्ति सहमति पर आधारित है।
(2) अपकृतय के मामले में लोकबन्धी अधिकारों का उल्लंघन होता है, जो सामान्य कानून के अन्तर्गत उत्पन्न होता है, जबकि संविदा भंग में व्यक्तिगत अधिकार भंग होता है जिसके प्रति व्यक्ति वचनबद्ध है।
(3) अपकृतय में क्षतिपूर्ति सदैव अनिर्धारित होती है। तथ्यों के आधार पर न्यायालय इसका निर्धारण करता है जबकि संविदा में क्षतिपूर्ति सदैव पूर्व निर्धारित रहती है अथवा संविदा की शर्तों के आधार पर उसका निर्धारण किया जाता है।
अपकृत्य तथा संविदा कल्प में अन्तर
अर्द्ध-संविदा अथवा संविदा कल्प में उत्पन्न दायित्व सहमति पर आधारित नहीं होता फिर भी उन्हें अपकृतय नहीं माना जाता क्योंकि दायित्व का आधार अवैध समृद्धि है, जो किसी विशिष्ट व्यक्ति के प्रति होता है, जिसने या तो गलत ढंग से किसी अन्य की सेवा स्वीकार की है अथवा वस्तु का उपयोग किया है।
अतः अर्द्ध-संविदा में व्यक्तिगत अधिकार का भंग होता है जबकि अपकृतय में लोकबन्धी अधिकारों का उल्लंघन। इसी प्रकार अर्द्ध-संविदा में भी निर्धारित क्षतिपूर्ति उपाय उपलब्ध है, जो कि अपकृत्य में प्राप्त अनिर्धारित क्षतिपूर्ति से भिन्न है।
अपकृत्य तथा न्यास भंग में अन्तर
न्यासी उस सम्पत्ति का दुरुपयोग करता है, जो उसे न्यास के रूप में किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए प्राप्त हुई है। न्यास भंग में न्यासी को निर्धारित प्रतिकर देना होता है, जबकि अपकृतय में सदैव अनिर्धारित क्षतिपूर्ति होती है।
न्यास भंग एवं अन्य साम्यिक भंग में एक ऐतिहासिक अन्तर है कि इसका निर्धारण इंग्लैण्ड में चान्सरी न्यायालय करती थी जबकि अपकृतय का निर्धारण कॉमन लॉ न्यायालय करती थी।
अन्तर-
(1) अपकृतय एक ऐसा सिविल दोष है जो न तो मात्र संविदा का उल्लंघन है और न न्यास का उल्लंघन है और न ही साम्यिक दायित्व का। जबकि ऐसा सिविल दोष जो अपकृतय की परिधि में नहीं आता है, न्यास भंग है
(2) अपकृतय में नुकसानी अनिर्धारित होती है जबकि न्यास-भंग में नुकसानी निर्धारित होती है।
(3) अपकृतय में नुकसानी का संदाय कर्तव्य भंग करने वाले व्यक्ति को करना होता है जबकि न्यास-भंग में ऐसा संदाय न्यासी को करना होता है।
(4) अपकृतय के लिए वाद कॉमन लॉ के अन्तर्गत सामान्य न्यायालयों में लाया ला सकता है जबकि न्यास-भंग के लिए वाद चांसरी न्यायालयों में लाना होता है।
अपकृत्य तथा संविदा भंग में अन्तर
संविदा-भंग और अपकृतय दोनों में समानता यह है कि दोनों ही कर्तव्य-भंग से उत्पन्न होते है। संविदा-भंग में अधिकार करार द्वारा परस्पर-आबद्ध दो पक्षों की आपसी सहमति से निर्धारित होता है। अपकृत्य में किसी पक्ष की सहमति का प्रश्न ही नहीं उठता है, क्योंकि सामान्य कानून द्वारा प्राप्त अधिकार क्षतिग्रस्त पक्ष में पहले से ही निहित होता है।
(1) अपकृतय के मामले में व्यक्ति उन कर्तव्यों का उल्लंघन करता है जो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से विधि द्वारा निर्धारित किये जाते हैं, परन्तु संविदा-भंग उन कर्तव्यों को भंग करने से है जिन्हें करने या न करने के लिए कोई व्यक्ति हानि को अपकृत्य नहीं माना जाता।
(2) ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अपकृत्य का कानून सामान्य विधि का अंश है जबकि न्यास-भंग चान्सरी न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आते है।
डॉ. विनफील्ड इनमें एक अन्य प्रभेद बताते है। यदि कोई न्यासी उस सम्पत्ति का दुरूपयोग करता है जो उसे न्यास के रूप में किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए प्रात हुई थी तो ऐसे न्यासी के विरूद्ध प्रतिकर का दावा किया जा सकता है, लेकिन नुकसानी का अन्दाजा न्यास-सम्पत्ति की हुई हानि को देखकर लगाया जाता है।
(3) संविदा-भंग के समान न्यास भंग में भी नुकसानी की धनराशि पूर्वनिर्धारित होती है। परन्तु अपकृत्य के मामलों में नुकसानी की धनराशि अनिर्धारित होती है।
(4) न्यास-भंग के मामले में न्यासी का कर्तव्य केवल हिताधिकारी के प्रति होता है, परन्तु अपकृत्य विधि के अन्तर्गत कर्तव्य सदैव जन साधारण के प्रति होता है।
दुष्कृति व अपराध से अन्तर्भेद
अपकृतय अपराध से बहुत भिन्न है। प्रोफेसर सी.एस. केनी ने इस बात की विस्तार से व्याख्या की है कि अपकृत्य, अपराध से तथा कानून की अन्य शाखाओं से कितना भिन्न है। अपकृतय , अपराध से निम्नलिखित बातों में भिन्न है-
(i) अपकृत्य सर्वसाधारण के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है जबकि अपराध जनता के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को भंग करने पर उत्पन्न होता है जिससे समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
(ii) अपकृतय व्यक्ति-विशेष के विधिक अधिकार को भंग करता है, परन्तु अपराध समाज के प्रति अवैध कृत्य है।
(iii) अपकृत्य के मामलें में क्षतिग्रस्त पक्ष के द्वारा दीवानी का वाद संस्थित किया जाता है, अन्य किसी के द्वारा नहीं। परन्तु अपराध के मामले में ता अपराध समाज के प्रति होता है, अतः अपराध में अपराधी के विरूद्ध कार्यवाही राज्यों द्वारा की जाती है।
(iv) अपकृतय के मामले में क्षतिग्रस्त पक्षकार को क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है जबकि अपराध के मामले में अपराधी को दण्ड दिया जाता है।
(v) अपकृतय के मामले में क्षतिपूर्ति या प्रतिकर के रूप में प्राप्त धनराशि क्षतिग्रस्त व्यक्तियों को मिल जाती है, परन्तु अपराधी से अर्थदण्ड के रूप में प्राप्त धनराशि राजकीय कोष में चली जाती है।
(vi) अपकृतय के मामले में क्षतिग्रस्त व्यक्ति की क्षतिपूर्ति करना न्यायालय का मुख्य उद्देश्य होता है, परन्तु अपराध के मामलें में अपराधी की अपराध करने की प्रवृत्ति को रोकने तथा अपराधी को सुधारने के लिए दण्ड दिया जाता है।
(vii) अपराध तथा अपकृत्य में ऐतिहासिक आधार पर अन्तर है। अपकृत्य की तुलना में अपराध के कानून का उदय बाद में हुआ। सर हेनरी मेन ने अपनी पुस्तक ‘एन्शियन्ट लॉ में लिखा है कि प्रारम्भिक जातियों में अपराध का कानून दण्ड विधि के रूप में न होकर अपकृतय विधि के रूप में हुआ था।
(viii) क्षतिकर्ता को अपकृतय के दायित्व से क्षतिग्रस्त व्यक्त्ति मुक्त कर सकता है। अपकृत्य एक व्यक्तिगत अपकार होता है। अतः क्षतिग्रस्त पक्षकार वादी के रूप में अपकृत्य का वाद लाता है।
किसी भी समय क्षतिग्रस्त व्यक्ति क्षतिकर्ता से समझौता करके वाद वापस भी ले सकता है। किन्तु अपराध के दायित्व से छूट देने का अधिकार क्षतिग्रस्त व्यक्ति को नहीं होता केवल राज्य ही आपराधिक दायित्व से मुक्ति या क्षमा दे सकता है।
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