इस लेख में भारतीय संविधान भाग 3 के अंतर्गत अनुच्छेद 29 से 31 | संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार | Right to Culture and Education का उल्लेख किया गया है, उम्मीद है कि यह लेख आपको जरुर पसंद आऐगा –
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 31)
अनुच्छेद 29. अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
(1) भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य – निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 30. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
(1क) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बंधित या निराकृत न हो जाए।
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंधन में है।
अनुच्छेद 31. संपत्ति का अनिवार्य अर्जन
संविधान चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 6 द्वारा (20-6-1979) से निरसित।
कुछ विधियों की व्यावृत्ति –
अनुच्छेद 31-क. संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृति
(1) अनुच्छेद 13 मैं अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी –
(क) किसी संपदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
(ख) किसी संपत्ति का प्रबंध लोकहित में या उस संपत्ति का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से परिसीमित अवधि के लिए राज्य द्वारा ले लिए जाने के लिए, या
(ग) दो या अधिक निगमों को लोकहित में या उन निगमों में से किसी का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समामेलित करने के लिए, या
(घ) निगमों के प्रबंध अभिकर्त्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों, निदेशकों या प्रबंधकों के किन्हीं अधिकारों या उनके शेयरधारकों के मत देने के किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
(ङ) किसी खनिज या खनिज तेल की खोज करने या उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर प्रोद्भूत होने वाल किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के लिए उपबंध करने वाल विधि इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है,
– परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है ,
– परंतु यह और कि जहां किसी विधि में किसी संपदा के राज्य द्वारा अर्जन के लिए कोई उपबंध किया गया है और जहां उसमें समाविष्ट कोई भूमि किसी व्यक्ति की अपनी जोत में है वहां राज्य के लिए ऐसी भूमि के ऐसे भाग को, जो किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन उसको लागू अधिकतम सीमा के भीतर है, या उस पर निर्मित या उससे अनुलग्न किसी भवन या संरचना को अर्जित करना उस दशा के सिवाय विधिपूर्ण नहीं होगा जिसे दशा में ऐसी भूमि भवन या संरचना के अर्जन से संबंधित विधि उस दर से प्रतिकर के संदाय के लिए उपबंध करती है जो उसके बाजार मूल्य से कम नहीं होगी।
(2) इस अनुच्छेद में, –
(क) “संपदा” पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भू-धृतियों से संबंधित विद्यमान विधि में है और इसके अंतर्गत –
(i) कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा वैसा ही अन्य अनुदान और तमिलनाडु और केरल राज्यों में कोई जन्मम् अधिकार भी होगा,
(ii) रैयतवाड़ी बंदोबस्त के अधीन धृत कोई भूमि भी होगी,
(iii) कृषि के प्रयोजनों के लिए या उसके सहायक प्रयोजनों के लिए भुत या पट्टे पर दी गई कोई भूमि भी होगी, जिसके अंतर्गत बंजर भूमि, वन भूमि, चरागाह या भूमि के कृषकों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के अधिभोग में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल हैं,
(ख) “अधिकार” पद के अंतर्गत किसी संपदा के संबंध में किसी स्वत्यधारी, उप स्वत्वधारी, अवर स्वत्वधारी, भू-भूतिधारक, रैयत, अवर रैयत या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशेषाधिकार होंगे।
अनुच्छेद 31-ख. कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण
अनुच्छेद 31 क, में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना नवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमों और विनियमों में से और उनके उपबंधों में से कोई इस आधार पर शून्य या कभी शून्य हुआ नहीं समझा जाएगा कि वह अधिनियम, विनियम या उपबंध इस भाग के किन्हीं उपबंधों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनता है या न्यून करता है और किसी न्यायालय या अधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय डिक्री या आदेश के होते हुए भी, उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक उसे निरसित या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए प्रवृत्त बना रहेगा।
अनुच्छेद 31- ग. कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
अनुच्छेद 13 में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधि, जो भाग 4 में अधिकथित सभी या किन्हीं तत्त्वों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की नीति को प्रभावी करने वाली है, इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है और कोई विधि, जिसमें यह घोषणा है कि वह ऐसी नीति को प्रभावी करने के लिए, किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं करती है,
– परंतु जहां ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे
अनुच्छेद 31-घ. राष्ट्र विरोधी क्रियाकलाप के संबंध में विधियों की व्यावृत्ति
संविधान (तैंतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 2 द्वारा (13-4-1978) से निरसित ।
Source Indian Constitution – Bare Act
महत्वपूर्ण अनुच्छेद
संविधान में मंत्रि परिषद से सम्बंधित मुख्य प्रावधान | अनुच्छेद 74 – 75
शोषण के विरुद्ध अधिकार : अनुच्छेद 23 व 24 | RIGHT AGAINST EXPLOITATION
मूल अधिकार : अनुच्छेद 12-13 | Fundamental Rights Article 12 To 13
अनुच्छेद 63 से 73 | भारत के उपराष्ट्रपति के संवैधानिक प्रावधान, योग्यता एवं निर्वाचन