हेल्लो दोस्तों, इस लेख में शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए.आई.आर. 2017 एस. सी. 4609) केस का विश्लेषण किया गया जिसमे उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित विधि के सिद्धान्त का उल्लेख किया गया है| उम्मीद है कि, यह लेख आपको जरुर पसंद आएगा –
शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
शायरा बानो के प्रकरण को तीन तलाक केस के नाम से भी जाना जाता है, इस प्रकरण में न्यायालय द्वारा एक एतिहासिक निर्णय दिया गया जिसमे वर्षो से विवादों में चली आ रही तीन तलाक की प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त करते हुए न्यायालय द्वारा 3:2 के बहुमत से इसे अपने निर्णय दिनांक 22-08-2017 को तीन तलाक अर्थात् तलाक-ए-बिद्दत को अवैध एवं असंवैधानिक मानते हुए अपास्त कर दिया गया।
न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन ने इस प्रकरण में कहा कि – तीन तलाक की विवादित प्रथा एक ऐसा उपकरण है जो इसे बचाने के लिए सुलह के प्रयास के बिना पति की सनक पर वैवाहिक बंधन को तोड़ने की अनुमति देता है, इसलिए तलाक का यह रूप अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है और इसे रद्द किया जा सकता है।
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भूमिका (शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया)
सायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का प्रकरण तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत से सम्बन्धित था जिसमें माननीय न्यायालय के समक्ष मुख्य रूप से निम्न बिन्दु विचारणीय थे –
(i) क्या तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम धर्म की स्वतंत्रता का एक आवश्यक अंग है ?
(ii) क्या यह कुरान की व्यवस्था के अनुरूप है ?
(iii) क्या यह मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकार का अतिलंघन करता है?
(iv) क्या यह तत्काल प्रभावी एवं अविखण्डनीय होने से मनमाना अर्थात् स्वेच्छाचारी है ?
(v) क्या यह मुस्लिम महिलाओं के लिए विभेदकारी है ?
प्रकरण के तथ्य
संक्षेप में प्रकरण के तथ्य इस प्रकार है कि शायरा बानो (पिटिश्नर) की शादी (निकाह) दिनांक 11-04-2001 को इलाहाबाद में रिजवान अहमद के साथ मुस्लिम रीति-रिवाज अनुसार निकाह पढ़ सम्पन्न हुआ था और उनके वैवाहिक सम्बन्धो से दो सन्तान यथा मोहम्मद इरफान एवं उमेरा नाज हुई, जो दोनों संताने सायरा बानो (पिटिशनर) के साथ रह रही थी ।
शायरा बानो के पति रिजवान अहमद का यह कहना था कि सायरा बानो अक्सर अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए चली जाया करती थी और दिनांक 09-04-2015 को सायरा बानो अपने पति को साहचर्य से वंचित कर अपने माता-पिता के पास चली गई।
रिजवान अहमद ने उसे वापस आने के लिए कई बार फोन किये तथा वह उसे लेने के लिए सायरा बानो के पीहर (माता पिता) के घर भी गया लेकिन दिनांक 09-08-2015 को शायरा बानो ने अपने पति (रिजवान अहमद) के पास आकर रहने से साफ तौर पर मना कर दिया।
उसके बाद पति की ओर से दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना की याचिका भी पेश की गई, लेकिन बात नहीं बनी। अन्त में दिनांक 10-10-2015 को रिजवान अहमद द्वारा तलाकनामा निष्पादित करते हुए सायरा बानो (पिटिश्नर) को तलाक दे दिया गया।
रिजवान अहमद द्वारा पिटिशनर को तीन तलाक देते हुए यह कहा गया कि, “मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, तलाक देता हूँ, तलाक देता हूँ। आज से तुम मेरे लिए हराम हो, मैं तुम्हारे लिए हराम हूँ। अब तुम अपना जीवन यापन स्वतंत्रता पूर्वक किसी भी प्रकार कर सकती हो।”
पिटिशनर द्वारा इस तलाक की विधि मान्यता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में यह याचिका पेश की गई।
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याचिका के विधिक बिन्दु
शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के समक्ष दोनों पक्षों की ओर से तर्क प्रस्तुत किये गये जिसमे शायरा बानो (पिटिशनर) की ओर से यह तर्क पेश किया गया कि –
(i) तीन तलाक अर्थात् तलाक-ए-बिद्दत अवैध एवं असंवैधानिक है।
(ii) यह पिटिशनर के मूल अधिकारों का अतिक्रमण करता है।
(iii) यह मुस्लिम महिलाओं के साथ विभेद करता है।
(iv) यह कुरान की व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
(v) यह मुस्लिम धर्म की स्वतंत्रता का अंग नहीं है।
(vi) यह तत्काल प्रभावी एवं अविखण्डनीय होने से मनमाना, एक तरफा एवं स्वेच्छाचारी है।
(vii) इसमें पारस्परिक समझाइश की कोई सम्भावना नहीं रह जाती है।
वहीँ दूसरी तरफ सायरा बानो के पति रिजवान अहमद की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि तीन तलाक की व्यवस्था –
(क) उसकी धार्मिक स्वतंत्रता का अंग है।
(ख) यह कुरान एवं शरियत की व्यवस्था के अनुरूप है।
(ग) पिटिशनर द्वारा पति को साहचर्य से वंचित कर दिये जाने के कारण उसे तलाक देने का अधिकार है।
इस तरह शायरा बानो ने ‘तीन तलाक’ अर्थात् ‘तलाक-ए-बिद्दत’ को अवैध एवं असंवैधानिक घोषित करने की प्रार्थना की तो वहीं पति द्वारा इस याचिका को खारिज किये जाने की माँग की गई।
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माननीय न्यायालय का निर्णय
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की पीठ द्वारा बहुमत से निर्णय पारित किया गया। मुख्य न्यायाधीश जे. एस. खेहर तथा न्यायाधीश अब्दुल नजीर ने विसम्मत निर्णय दिया जबकि न्यायाधीश कूरियन जोसफ, न्यायाधीश आर. एफ. नरीमेन तथा न्यायाधीश यू.यू. ललित द्वारा बहुमत का निर्णय दिया गया।
उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में ‘तीन तलाक’ अर्थात् ‘तलाक-ए-बिद्दत’ को अवैध एवं असंवैधानिक मानते हुए अपास्त (Set aside ) कर दिया।
विधि के सिद्धान्त
इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि के निम्नांकित महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये –
(1) तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम धर्म की स्वतंत्रता का अंग नहीं है। (संविधान का अनुच्छेद 25 )
( 2 ) यह मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकारों का अतिक्रमण करता है। (संविधान का अनुच्छेद 21)
(3) यह तुरन्त प्रभावी एवं अविखण्डनीय होने से मनमाना, एक तरफा एवं विभेदकारी है। (संविधान का अनुच्छेद 14 )
(4) यह कुरान की व्यवस्था के अनुरूप नहीं है, क्योंकि इसमें समझाइश की कोई सम्भावना नहीं रह जाती है।
(5) नैतिकता, स्वास्थ्य आदि आधारों पर तीन तलाक की प्रथा को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
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संदर्भ :- Law Series – Basanti Lal Babel (2022)
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