हेल्लो दोस्तों, इस लेख में हम मुस्लिम विधि के अन्तर्गत वक्फ की परिभाषा, एक वैध वक्फ के आवश्यक तत्व तथा यह किस तरह निर्मित किया जाता है के बारें में जानेगें जो मुस्लिम विधि का महत्वपूर्ण विषय है| इस लेख में Wakf kya hai or yah kaise banata hai को आसान शब्दों में समझाने का प्रयास किया गया है|

वक्फ – एक परिचय

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत वक्फ का महत्वपूर्ण स्थान है। वक्फ संस्था की उत्पत्ति इस्लाम धर्म के साथ हुई मानी जाती है तथा इसके विधिशास्त्र के उद्भव का श्रेय मुस्लिम विधिवेत्ताओं को जाता है| इसका सम्बन्ध मुसलमानों की धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक भावना से जुड़ा हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ – निरोध या रोक लगाना है अथवा प्रबन्धित करना है। वक्फ के अधीक्षक, रक्षक या प्रबंधक को “मुतवल्ली कहा जाता है|

मुस्लिम विधि में वक्फ, पैगम्बर मोहम्मद साहब द्वारा स्थापित नियम पर आधारित है, इसका अर्थ है – “सम्पति को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वामित्व के अन्तर्गत स्थित कर देना तथा उससे उत्पन्न लाभ एंव उत्पादों को मानव की भलाई के लिए लगाना”| इस प्रकार वक्फ़ का निर्माण होते ही उसकी सम्पति में वाकिफ (जो सम्पति को वक्फ करता है) का स्वामित्व समाप्त हो जाता है और उसका स्वामित्व ईश्वर मै निहित हो जाता है|

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वक्फ की परिभाषा

वक्फ़ की विभिन्न विधिवेत्ताओं द्वारा भिन्न-भिन्न परिभाषा दी गई है –

अबू हनीफ़ा के अनुसार “वक्फ़ से तात्पर्य किसी विशिष्ट वस्तु को स्वत्वधारी के स्वामित्व में रोके रखना तथा उसके लाभ या आय को गरीब लोगों या उत्तम उद्देश्यों में लगाना है।”

मुल्ला के अनुसार “वक्फ़ से तात्पर्य इस्लाम में आस्था रखने वाले व्यक्ति द्वारा किसी सम्पत्ति का मुस्लिम विधि द्वारा मान्य किसी धार्मिक, पवित्र या पूर्व प्रयोजन के लिए स्थायी समर्पण है।”

मुसलमान वक्फ विधि मान्यकरण अधिनियम, 1913 के अनुसार वक्फ़ मुस्लिम पंथ में आस्था रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा उसकी सम्पत्ति का ऐसा स्थाई समर्पण है जिसका उपयोग मुस्लिम विधि द्वारा मान्य किसी धार्मिक, पवित्र या खैराती उद्देश्यों के लिए किया जाता है।”

वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 3(द) के अनुसार “वक्फ़ से तात्पर्य इस्लाम को मानने वाले किसी व्यक्ति द्वारा किसी चल या अचल सम्पत्ति का मुस्लिम विधि द्वारा मान्य पंथीय, पवित्र या खैराती उद्देश्यों के लिए स्थायी समर्पण (त्याग) है।”

शिया विचारधारा शरअ-उल-इस्लाम का कहना है कि, “ वक्फ़ एक ऐसी संविदा है जिसका प्रभाव यह होता है कि मूल (सम्पति) प्रतिबंधित हो जाती है और उसका फलोपभोगअबद्ध (फ्री) रह जाता है”|

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वैध वक्फ के आवश्यक तत्व

एक वैध वक्फ़ के निम्नलिखित आवश्यक तत्व है –

सम्पत्ति का स्थायी समर्पण

यह एक वैध वक्फ़ का पहला आवश्यक तत्व है, स्थायी समर्पण के बिना सम्पति का वक्फ़ नहीं किया जा सकता है। वक्फ़ के लिए सम्पत्ति का स्थायी अर्थात् शाश्वत समर्पण आवश्यक है। एक समय विशेष के लिए वक्फ़ का निर्माण नहीं किया जा सकता।

इसमें तीन बातें मुख्य प्रतीत होती है –

(अ) समर्पण होना चाहिए,

(ब) ऐसे समर्पण का स्थाई होना आवश्यक और

(स) समर्पण किसी सम्पति का होना चाहिए|

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मुल्ला के अनुसार “वक्फ़ के लिए सम्पत्ति का स्थायी समर्पण आवश्यक है। किसी परिसीमित अवधि जैसे 20 वर्ष के लिए निर्मित वक्फ़ विधिमान्य नहीं होता। साथ ही वह उद्देश्य जिसके लिए वक्फ़ निर्मित किया गया है स्थायी प्रकृति का होना चाहिये।”

हबीब असरफ बनाम सैय्यद वजीहुद्दीन के प्रकरण में ऐसे वक्फ़ को शून्य माना गया, “जिसमें यह शर्त रखी गई हो कि अव्यवस्था के समय वक्फ़ की सम्पत्ति वाकिफ के पास आ जायेगी एवं उसके उत्तराधिकारियों के बीच उस सम्पत्ति का विभाजन कर दिया जायेगा क्योंकि इसमें सम्पत्ति का स्थायी समर्पण नहीं है। [(1933)144 आई.सी.654]

मुस. पीरन बनाम हाफिज मोहम्मद के प्रकरण में सम्पत्ति का स्थायी समर्पण नहीं होने के कारण ऐसे वक्फ़ को शून्य माना गया है जिसमें मकान एक निश्चित अवधि के लिए पट्टे पर धारित भूमि पर बना हुआ है। (ए.आई. आर. 1966 इलाहाबाद 201)

अभिषेक शुक्ला बनाम हाईकोर्ट ऑफ जूडिकेचर इलाहाबाद के मामले में यह कहा गया है कि – विवादित नजूल भूमि जिस पर वक्फ़ के निर्माता का स्थायी कब्जा नहीं हो, का वक्फ़ सृजित नहीं किया जा सकता। (ए.आई.आर. 2018 इलाहाबाद 32)

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वक्फ की विषय-वस्तु

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत वक्फ़ किसी सम्पत्ति का निर्मित किया जा सकता है और इसकी विषय-वस्तु में सिर्फ अचल सम्पति का ही नहीं वरन चल सम्पति (कंपनी के अंश, वचन पत्र, धन) का भी मान्य वक्फ़ किया जा सकता है। वक्फ़ मूर्त एंव अमूर्त सम्पति का भी हो सकता है|

अब्दुल शकूर बनाम अबू बफर के मामलें में कहा गया है कि “कम्पनी के अंश, राजकीय वचन पत्र एवं मुद्रा का भी वक्फ निर्मित किया जा सकता है”। [(1930)54 बम्बई 358]

इसी तरह मोहम्मद बदरुल बनाम शाह हुसैन के वाद में कहा गया कि, “मुशा अर्थात् सम्पत्ति के अविभाजित हिस्से का भी वक्फ निर्मित किया जा सकता है चाहे सम्पत्ति विभाजन योग्य हो या नहीं”। (ए.आई.आर. 1935 इलाहाबाद 278)

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वाकिफ

वैध वक्फ के लिए वाकिफ अर्थात् वक्फ निर्मित करने वाले व्यक्ति का –

(अ) मुसलमान

(ब) वयस्क

(स) स्वस्थचित्त तथा

(द) सम्पत्ति का स्वामी, होना आवश्यक है और वह (वाकिफ) सम्पति के समर्पण के समय वाकिफ उस सम्पत्ति का स्वामी होना चाहिए।

इस तरह एक गैर-मुसलमान भी वक्फ़ का निर्माण कर सकता है|

इस सम्बन्ध में मुस. मुन्दरिया बनाम श्यामसुन्दर का अच्छा प्रकरण है जिसमे यह निर्णित किया गया कि, यदि वक्फ़ का उद्देश्य मुसलमान धर्म के अनुसार धार्मिक, पवित्र एवं खैराती है तथा उसके स्वयं के धर्म के विरुद्ध न हो तब एक गैर-मुसलमान द्वारा भी वक्फ निर्मित किया जा सकता है। (ए.आई. आर. 1963 पटना 98)

हैदर हुसैन बनाम सुदामा प्रसाद के वाद में यह निर्णित किया गया कि, यदि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति का व्ययन करने का अधिकार रखता है तब उसके द्वारा ऐसी सम्पत्ति का वक्फ़ निर्मित किया जा सकता है। [(1940) 15 लखनऊ 30]

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वक्फ का उद्देश्य या प्रयोजन

एक वैध वक्फ के लिए यह आवश्यक है कि समर्पण ऐसे उद्देश्यों के लिए होना चाहिए जिसे मुस्लिम विधि के अन्तर्गत मान्य धार्मिक, पवित्र एवं खैराती (Religious, Pious and Charitable) माना जाता हो, इसके अलावा वक्फ़ वाकिफ के परिवार, बच्चों एव वंशजों के लिए भी हो सकता है।

वक्फ मान्यकारी अधिनियम, 1913 की धारा 3 में वक्फ़ के कुछ उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है| लेकिन यहाँ निर्णित वादों एंव मुस्लिम विधिवेत्ताओ के ग्रंथो के आधार पर एक वैध वक्फ के उद्देश्यों का उल्लेख किया है

(i) मस्जिद एवं उसके इमाम द्वारा पूजा/नमाज करने हेतु उपबंध,

(ii) महाविद्यालय को दान एवं उसमें अध्यापन कार्य करने वाले प्राध्यापकों के लिए उपबंध,

(iii) जल सेतु पुलों एवं कारवां सरायों के लिए,

(iv) गरीब लोगों को शिक्षा, दान एवं उनको मक्का हज यात्रा हेतु मदद,

(v) अली मुर्तजा का जन्म दिवस मनाना,

(vi) इमामबाड़ा की मरम्मत कराना,

(vii) मोहर्रम के महीने में ताजिये निकालना एवं जुलूसों के लिए ऊंटों एंव दुलदुल की व्यवस्था कराना,

(viii) वाकिफ के परिजनों का वार्षिक फातिहा करना,

(ix) खानकाह का सरंक्षण करना,

(x) कुरान शरीफ की रस्म अदा करना,

(xi) मस्जिदों में चिराग जलाना,

(xii) सार्वजनिक स्थानों एवं निजी मकानों में कुरान का पथ करना,

(xiii) मक्का में तीर्थ यात्रियों के लिए निःशुल्क विश्राम स्थल एंव भोजनालय बनाना,

(xiv) वाकिफ के निर्धन सम्बन्धियों एवं आश्रितों का अनुरक्षण,

(xv) फकीरों को दान देना,

(xvi) ईदगाह को अनुदान देना, आदि ।

मोहम्मद खान राउत्तर बनाम ए. रहमान के मामले में निर्णित किया गया कि, “जहाँ वक्फ़ विलेख में उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो या कोई संदिग्धता हो तो पश्चात्वर्ती आचरण एवं परिस्थितियों से ऐसी संदिग्धता का निवारण किया जा सकता है”। (1968 केरल एल.टी. 564)

मुस्लिम विधि में वैध वक्फ के निर्माण के लिए निम्न उद्देश्यों को अवैध माना गया है

(i) इस्लाम द्वारा निषेधित उद्देश्यों, जैसे – मन्दिर, चर्च आदि का निर्माण एवं संधारण

(ii) शिया विधि के अनुसार वाकिफ की संसारिक जायदाद की मरम्मत के लिए निर्मित वक्फ,

(iii) किसी अज्ञात व्यक्ति के हित या पक्ष में निर्मित वक्फ,

(iv) ऐसे उद्देश्य जो निश्चित नहीं है, आदि।

सशर्त, घटनापेक्ष एवं अनिश्चित नहीं होना

एक वैध वक्फ़ के लिए यह आवश्यक है कि वह –

(i) शतं रहित हो,

(ii) घटनापेक्ष (Contingent) नहीं हो, तथा

(iii) निश्चित हो ।

यदि वक्फ़ को प्रतिबंधित करने वाली कोई शर्त अधिरोपित की जाती है तो वह वैध नहीं होगी। इसी प्रकार किसी घटना के घटने या न घटने की शर्त पर निर्मित किया गया वक्फ़ विधिमान्य भी नहीं होगा। इसके साथ ही वक्फ़ के उद्देश्यों का निश्चित होना भी आवश्यक है।

मोरिस बनाम बिशप ऑफ डरहम एंव रणछोड़दास बनाम पार्वती बाई के मामलों में भी यह निर्णित किया गया कि, “उद्देश्य की अस्पष्टता के आधार पर निर्मित वक्फ वैध नहीं कहा जा सकता”।

वक्फ का पंजीयन

यह वैध वक्फ़ का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, वक्फ अधिनियम, 1955 की धारा 36 में वक्फ का रजिस्ट्रीकरण होना आवश्यक है। यदि कोई वक्फ सन् 1955 के अधिनियम अनुसार प्रत्येक के प्रभाव में आने से पूर्व निर्मित किया गया है तो ऐसे वक्फ का रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के प्रभाव में आने की तिथि से तीन माह में करा दिया जाना अपेक्षित है। इस तरह अब वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 36 में रजिस्ट्रीकरण के बारे में प्रावधान किया गया है।

वक्फ कैसे निर्मित किया जा सकता है

मुस्लिम विधि में वक्फ़ सम्बन्धी कोई प्रारूप विहित नहीं किया गया है, यह मौखिक एंव लिखित किसी भी तरह से हो सकता है| मुस्लिम विधि के अनुसार वक्फ़ निम्नलिखित रीतियों से निर्मित किया जा सकता है –

घोषणा द्वारा

अबू युसुफ के अनुसार किसी सम्पत्ति के स्वामी द्वारा वक्फ़ की घोषणा करके वक्फ निर्मित किया जा सकता है। इमाम मोहम्मद के अनुसार “जब तक कि घोषणा के अतिरिक्त मुत्तवल्ली की नियुक्ति न की जाये और उसे सम्पति का कब्ज़ा ना दिया जाए, वक्फ पूर्ण नहीं होता है। ऐसी घोषणा स्पष्ट एवं असंदिग्ध होनी चाहिए।

गरीब दास बनाम मुंशी अब्दुल हमीद के वाद अनुसार “भारत वर्ष में अबू यूसुफ का मत अनुसरित किया जाता है”|

विलेख द्वारा

किसी लिखित विलेख द्वारा भी वक्फ का निर्माण किया जा सकता है। यदि ऐसे वक्फ की विषय-वस्तु एक सौ रुपये या उससे अधिक की अचल सम्पत्ति है तो उसका भारतीय रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 के अधीन रजिस्ट्रीकरण करवाना आवश्यक है।

वसीयत / इच्छा पत्र द्वारा

कोई भी व्यक्ति वसीयत (Will) द्वारा अपनी सम्पत्ति का समर्पण करके वक्फ का निर्माण कर सकता है। ऐसा वक्फ वाकिफ की मृत्यु के बाद प्रभाव में आता है और उसे वसियती वक्फ कहा जाता है| ऐसा वक्फ उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना सम्पति के एक तिहाई से अधिक पर लागु नहीं हो सकता| वासियती वक्फ का पंजीकरण आवश्यक नहीं है|

अली हुसैन बनाम फजल में भी यह निर्णित किया गया कि, “वासियती वक्फ केवल एक-तिहाई सम्पत्ति तक का ही निर्मित किया जा सकता है। (1914) 36 इलाहाबाद 431), वाकिफ अपने जीवन काल में ऐसे वक्फ को कभी भी विखण्डित (Revoke) कर सकता है।

मर्ज-उल-मौत के दौरान

मर्ज-उल-मौत के दौरान भी वक्फ का निर्माण किया जा सकता है, लेकिन यह एक-तिहाई से अधिक सम्पत्ति का नहीं हो सकता है।

चिरभोगाधिकार / स्मरणातीत उपयोग के द्वारा

कभी-कभी ऐसी सम्पत्ति का भी वक्फ़ मान लिया जाता है जिसको कि किसी व्यक्ति द्वारा समर्पित नहीं किया गया है लेकिन जिसका स्मरणातीत समय से वक्फ के रूप में उपयोग किया जाता रहा है।

अनेक बार समय बीत जाने से अक्सर प्रत्यक्ष साक्ष्य द्वारा वक्फ़ को स्थापित करना कठिन या असम्भव हो जाता है, लेकिन उसके उपयोग के साक्ष्य द्वारा वक्फ निर्मित किया जा सकता है| ‘मुल्ला’ ने ऐसे वक्फ के निम्नलिखित उदाहरण दिये है – स्मरणातीत समय से किसी भूमि का मस्जिद, कब्रिस्तान अथवा मस्जिद के संधारण के लिए उपयोग किया जाना आदि।

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संदर्भ – मुस्लिम विधि अकील अहमद 26वां संस्करण