इस लेख में साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 एंव 75 के तहत लोक दस्तावेज (Public document) एवं प्राइवेट दस्तावेज (Private document) क्या है, लोक दस्तावेज एवं प्राइवेट दस्तावेज में अन्तर (Difference between public document and private document) तथा लोक दस्तावेज एवं प्राइवेट दस्तावेज का स्वरूप क्या है, उल्लेख किया गया है, उम्मीद है कि यह लेख आपको जरुर पसंद आऐगा –

लोक दस्तावेज एवं प्राइवेट दस्तावेज क्या है ?

लोक दस्तावेजात एवं प्राइवेट दस्तावेजात को जानने से पहले हमें दस्तावेज के बारे में जानना जरुरी है कि, दस्तावेज किसे कहते है|

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अनुसार – दस्तावेज से ऐसा कोई विषय अभिप्रेत है जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंको या चिन्हों के साधन द्वारा या उनमें से एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया है जो उस विषय के अभिलेखन के प्रयोजन से उपयोग किये जाने को आशयित हो या उपयोग किया जा सके|

इस तरह हर लेख या लेखन, शब्द जो छपे हों या जिनकी तस्वीर खिंची गई हो, नक्शा या प्लान, कोई व्यंग चित्र आदि दस्तावेज की श्रेणी में आते है|

सामान्य रूप से हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओँ में कागज के पन्ने पर लिखी गई कोई बात दस्तावेज कहलाती है, लेकिन साक्ष्य विधि की धारा 3 के अनुसार कोई भी बात चाहे वह कागज पर हो, पत्थर पर हो, लकड़ी पर हो, चित्रों या अन्य प्रतीकों के द्वारा अंकित हो, दस्तावेज कहलाई जाएगी|

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में साक्ष्य के प्रयोजनार्थ दस्तावेज दो प्रकार के यथा (i) लोक दस्तावेज (Public document) एवं (ii) प्राइवेट दस्तावेज (Private document) माने गये है|

साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 में लोक दस्तावेज एवं धारा 75 में प्राइवेट दस्तावेज की परिभाषा तथा धारा 76 में लोक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियों के बारें में उपबंध किये गये है।

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लोक दस्तावेज (Public document)

परिभाषा – ऐसे दस्तावेज जो प्रभुत्ता सम्पन्न प्राधिकारी के कार्यों के अभिलेख के रूप में है या जो शासकीय निकायों और अधिकरणों के कार्यों के अभिलेख के रूप में है या जो भारत के किसी भाग के या कामनवेल्थ के या किसी विदेश के विधायी, न्यायिक अथवा कार्यपालक कार्यों के वर्णन के रूप में है, लोक दस्तावेज होती है|

इस तरह के दस्तावेज लोक सेवक द्वारा अपने शासकीय कर्त्तव्य के निर्वहन में तैयार कर उन्हें एक विशेष अभिरक्षा में रखा जाता है, परन्तु कोई दस्तावेज लोक सेवक द्वारा अपने शासकीय कर्त्तव्य के निर्वहन में तैयार नहीं किया जाता है तब उसे लोक दस्तावेजात नहीं कहा जाएगा|

साक्ष्य के प्रयोजनार्थ धारा 74 के अन्तर्गत निम्नलिखित दस्तावेजें, लोक दस्तावेजें है –

(i) “वे दस्तावेज जो –

(क) प्रभुतासम्पन्न प्राधिकारी के:

(ख) शासकीय निकायों और अधिकरणों के;

(ग) भारत के किसी भाग के या कॉमनवेल्थ के या किसी विदेश के विधायी, न्यायिक तथा कार्यपालक लोक अफसरों के, कार्यों के रूप में या कार्यों के अभिलेख के रूप में है।”

(ii) किसी राज्य में रखे गये प्राइवेट दस्तावेजों के लोक अभिलेख

लोक दस्तावेज की परिभाषा से इसके निम्न लक्षण प्रतीत होते हैं –

(क) यह लोक हित से सम्बन्धित होता है

(ख) यह लोक सेवक द्वारा अपने पदीय (शासकीय) कर्त्तव्यों के निर्वहन में तैयार किया जाता है

(ग) इसे विशेष अभिरक्षा में रखा जाता है

(घ) इसकी प्रमाणित प्रतिलिपि को मूल साक्ष्य के तौर पर साक्ष्य में ग्राह्य किया जाता है, एंव

(ङ) ऐसे दस्तावेज अपनी अन्तर्वस्तुएँ (Contents) के बारे में निश्चायक सबूत होते हैं बशर्ते कि उनका खण्डन नहीं किया गया हो।

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कुछ महत्वपूर्ण लोक दस्तावेजें –

(i) शासकीय उद्घोषणायें, सरकारी राजपत्र, अधिनियम तथा सरकारी अधिसूचना,

(ii) आर्म्स एक्ट की धारा 29 के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई अनुमति को विहित करने वाला दस्तावेज,

(iii) दखलनामा, खसरा-कागज, न्यायालयों की डिक्री, गिरफ्तारी का वारण्ट, संस्वीकृतियाँ, न्यायालय का निर्णय, चार्ज शीट, मत-पत्र,

(iv) दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करने वाले पुलिस अधिकारियों एवं मजिस्ट्रेटों के कार्यों के अभिलेखों से निर्मित आदि दस्तावेजात है|

लोक दस्तावेजात से सम्बंधित मुख्य प्रकरण –

(i) वोटर लिस्ट (गोपी किशन बनाम शंकरलाल डाकोत, ए.आई. आर. 2005 राजस्थान 114)

(ii) इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई एक्ट, 1948 के अन्तर्गत तैयार की गई ‘स्कीम’ (डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर, सी.ई.एस.सी. बनाम नावा कुमार मण्डल, ए.आई.आर. 2000 कलकत्ता 97)

(iii) डाक तार विभाग द्वारा प्रदत्त यह प्रमाण – पत्र कि किरायेदार द्वारा भू – स्वामी को भेजे गये किराये की राशि के धनादेश को भू-स्वामी ने लेने से इन्कार कर दिया (शिवनारायण चौधरी बनाम नाग एण्ड कम्पनी, ए.आई. आर, 1982 इलाहाबाद 44)

(iv) एक प्राइवेट वक्फ पत्र जो उप रजिस्ट्रार के कार्यालय में रिकार्ड पर प्राइवेट दस्तावेज के रूप में है (फजल शेख बनाम अब्दुल रहमान मियाँ, ए.आई.आर. 1991 गुवाहाटी 177)

(v) एक ऐसा करार – विलेख, जिसमें न्यास एवं सरकार के बीच यह अनुबन्धित किया गया हो कि, मन्दिरों के लिए गठित बोर्ड में गुरुद्वारा भी सम्मिलित होगा (काबुल सिंह बनाम राम सिंह, ए. आई. आर. 1986 इलाहाबाद 75)

(vi) हिन्दू विवाह रजिस्टर की प्रमाणित प्रतिलिपि (वी.डी. गृहलक्ष्मी बनाम टी. प्रशान्त, ए.आई. आर. 2012 मद्रास 34)

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प्राइवेट दस्तावेज (Private document)

साक्ष्य अधिनियम की धारा 75 में प्राइवेट दस्तावेज की परिभाषा के सम्बन्ध में कहा गया है कि –

“अन्य सभी दस्तावेजें प्राइवेट हैं।” (All other documents are private.)

साक्ष्य अधिनियम में प्राइवेट दस्तावेजात की शाब्दिक परिभाषा नहीं दी गई है, जबकि इसमें यह कहा गया है कि, – जो दस्तावेज लोक दस्तावेज नहीं हैं, वे सभी प्राइवेट दस्तावेज हैं यानि लोक दस्तावेजों को छोड़कर शेष सभी प्रकार के दस्तावेज, प्राइवेट दस्तावेज की श्रेणी में आते है, जैसे – संविदा, दान-पत्र, बन्धक- विलेख, दत्तक- विलेख, पट्टा आदि सभी प्राइवेट दस्तावेजात है।

पी.तंगखुल बनाम गंगुईरंग के प्रकरण में – ऐसे दस्तावेज को लोक दस्तावेज नहीं माना गया जो सरकारी नियमों के अनुरूप नहीं बना हो। (ए.आई.आर. 1992 गुवाहाटी 66)

कुछ महत्वपूर्ण प्राइवेट दस्तावेजात –

(i) वाद पत्र, लिखित कथन, शपथ पत्र,

(ii) बिल की रजिस्ट्रीकृत प्रति, रोजनामचा, बन्दोंबस्त मानचित्र,

(iii) विक्रय पत्र, अमीन द्वारा तैयार किया गया बँटवारा पत्र आदि|

धारा 76 – लोक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियाँ (Certified copies)

साक्ष्य अधिनियम की धारा 76 में लोक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियों (Certified copies) का मूल पाठ इस प्रकार है –

“हर लोक ऑफिसर जिसकी अभिरक्षा में ऐसी कोई दस्तावेज है, जिसके निरीक्षण करने का किसी भी व्यक्ति को अधिकार है, माँग किये जाने पर उस व्यक्ति को उसकी प्रति उसके लिए विधिक फीस चुकाये जाने पर प्रति के नीचे इस लिखित प्रमाण-पत्र के सहित देगा कि वह यथास्थिति ऐसी दस्तावेज की या उसके भाग की शुद्ध प्रति है तथा ऐसा प्रमाण-पत्र ऐसे आफिसर द्वारा दिनांकित किया जायेगा और उसके नाम और पदाभिधान से हस्ताक्षरित किया जायेगा। जब कभी ऐसा आफिसर विधि द्वारा किसी मुद्रा का उपयोग करने के लिए प्राधिकृत हैं तब मुद्रायुक्त किया जायेगा तथा इस प्रकार प्रमाणित ऐसी प्रतियाँ प्रमाणित प्रतियाँ कहलायेंगी।”

इस प्रकार प्रमाणित प्रति से तात्पर्य ऐसे किसी दस्तावेज की प्रति से है जिसकी सत्यता को प्रमाणित किया जाता है|

प्रमाणित प्रतियों का रूप –

लोक दस्तावेजों की प्रतिलिपि निर्धारित धनराशि जमा करवाने के बाद प्राप्त की जाती है, जो अधिकारी यह प्रतिलिपि देगा उसे प्रतिलिपि में निम्न बातों का उल्लेख करना होगा –

(क) कि यह मूल दस्तावेज की शुद्ध प्रति (True copy) है

(ख) उस पर प्रतिलिपि दिए जाने की तारीख अंकित होनी चाहिए

(ग) प्रतिलिपि उसे जारी करने वाले अधिकारी के नाम तथा पदाभिधान (Official title) से हस्ताक्षरित होनी चाहिए

(घ) प्रतिलिपि पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी की मुद्रा (Seal) अंकित होनी चाहिए।

श्रीमती कौशल्या बाई बनाम राधा के प्रकरण में – पटवारी द्वारा हस्ताक्षरित खालसा पंचशाला की शुद्ध प्रति को धारा 76 के अधीन प्रमाणित प्रतिलिपि नहीं माना गया है क्योंकि ऐसी दस्तावेज के असली होने की उपधारणा करने के कोई आधार नहीं थे जिससे ऐसे दस्तावेज को विश्वसनीय नहीं माना गया। (ए.आई.आर. 2005 एन.ओ.सी. 207 मध्यप्रदेश)

धारा 76 की प्रयोज्यता के लिए आवश्यक शर्ते क्या है –

(क) दस्तावेज का लोक दस्तावेज होना

(ख) ऐसी दस्तावेज का लोक ऑफिसर की अभिरक्षा में होना

(ग) ऐसे दस्तावेज के निरीक्षण करने का हर व्यक्ति को अधिकार होना

(घ) प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के लिए विहित शुल्क का भुगतान किया जाना।

साक्ष्य में ग्राह्यता –

साक्ष्य विधि की धारा 77, प्रमाणित प्रतियों की साक्ष्य में ग्राह्यता के सम्बन्ध में प्रावधान करती है, इसके अनुसार – ऐसी प्रमाणित प्रतियाँ उन लोक दस्तावेजों की या उन लोक दस्तावेजों के भागों की अन्तर्वस्तु के सबूत में पेश की जा सकेंगी जिनकी वे प्रतियाँ होना तात्पर्यित है।

यानि लोक दस्तावेजों की अन्तर्वस्तुओं (Contents) को साबित करने के लिए उनकी प्रमाणित प्रतियाँ पेश की जा सकती हैं।

‘पार्वती बनाम के. शिवलिंगम’ के मामले में यह कहा गया है कि – जन्म तिथि के सम्बन्ध में प्राधिकारी द्वारा संधारित पंजिका से निर्धारित प्रारूप में सांविधिक प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया प्रमाण-पत्र साक्ष्य में ग्राह्य है। (ए.आई.आर. 2009 एन.ओ.सी. 222 चेन्नई)

लोक दस्तावेज एवं प्राइवेट दस्तावेज में अन्तर (Difference between public document and private document)

(i) – लोक दस्तावेजात, एक लोक सेवक (Public servant) द्वारा अपने शासकीय कर्तव्य के निर्वहन में (in discharge on his public duties) तैयार किये जाते है,

जबकि प्राइवेट दस्तावेज, एक व्यक्ति द्वारा अपने निजी हित (private interest) के लिये अपने व्यक्तिगत अधिकार के अन्तर्गत तैयार किये जाते है|

(ii) – लोक दस्तावेजात निर्धारित शुल्क अदा करने पर निर्धारित समय के लिए लोक कार्यालय में (in public office) जनता के निरीक्षण के लिये उपलब्ध रहते है,

जबकि प्राइवेट दस्तावेजात व्यक्तिगत रूप से अपने अधिकारों तथा दायित्वों के प्रमाण के रूप में स्वंय व्यक्ति द्वारा रखे जाते है जिनका आमतौर पर आम व्यक्ति (Public) निरीक्षण नहीं कर सकता।

(iii) – लोक दस्तावेजात को प्रमाणित प्रतियों के माध्यम से द्वितीयक साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकता है,

जबकि प्राइवेट दस्तावेजात सामान्यतः मूल प्रति के माध्यम से न्यायालय में मूल प्रति प्रस्तुत कर साबित किये जाने चाहिये जब तक कि धारा 65 के अन्तर्गत द्वितीयक दस्तावेज प्रस्तुत करने की उन्हें अनुमति प्राप्त न हो जाये।

(iv) – प्राय लोक दस्तावेज की प्रमाणित प्रतियाँ उनका पर्याप्त एवं सक्षम साक्ष्य होती है,

जबकि निजी दस्तावेज की मूल प्रतियाँ ही उनका पर्याप्त एवं सक्षम साक्ष्य होती है यानि यह प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित की जाती है।

(v) – लोक दस्तावेज की प्रमाणित प्रतियों के आधार पर लोक दस्तावेज की प्रामाणिकता या असलीपन या वास्तविकता (genuineness of public document) के बारे में उपधारणा करने के लिये न्यायालय बाध्य होता है,

जबकि निजी दस्तावेज की प्रमाणित प्रतियों के आधार पर प्राय मूल दस्तावेज की वास्तविकता प्रामाणिकता या असलीपन के बारें में उपधारणा नहीं की जा सकती है परन्तु कुछ अपवादों को छोड़कर|

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संदर्भ – भारतीय साक्ष्य अधिनियम 17वां संस्करण (राजाराम यादव)