राज्य की उत्पत्ति और उसके सिद्धांतों को समझना राजनीतिक विज्ञान का एक महत्वपूर्ण पहलू है। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।
परिचय – राज्य
प्राचीन काल में मनुष्य अपने हितों की रक्षा और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए समूहों में रहता था। समय के साथ, ये समूह अधिक संगठित होते गए और एक जटिल संरचना, जिसे हम आज ‘राज्य’ कहते हैं, का विकास हुआ। राज्य के विकास में मानव की सामाजिक प्रवृत्ति, रिश्तेदारी, धर्म, उद्योग और युद्ध जैसी घटनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राज्य की परिभाषा
‘राज्य’ शब्द लैटिन के ‘स्टेटस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘खड़ा होना’ या ‘स्थिति’। विभिन्न विद्वानों ने राज्य की परिभाषा अपने दृष्टिकोण से अलग अलग दी है, जो निम्न है –
वुडरो विल्सन ने राज्य को एक निश्चित क्षेत्र के भीतर कानून के लिए संगठित लोगों के रूप में परिभाषित किया है।
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डलास के अनुसार राज्य स्वतंत्र व्यक्तियों का एक समूह है, जो सामान्य लाभ के लिए एकजुट होते हैं, ताकि वे शांतिपूर्वक अपने अधिकारों का आनंद ले सकें और दूसरों के साथ न्याय कर सकें।
सैल्मंड के अनुसार राज्य कुछ साधनों द्वारा कुछ निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्थापित मनुष्यों का एक संघ है।
इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि राज्य एक संगठित समाज है, जो एक निश्चित क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों, सरकार और संप्रभुता से मिलकर बना है।
राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत
राज्य की उत्पत्ति को समझाने के लिए विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं –
(1) दैवीय सिद्धांत :- इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य ईश्वर द्वारा निर्मित है और राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है। इसलिए राजा के आदेश की पालना करना प्रजा का कर्तव्य है।
(2) प्राकृतिक सिद्धांत :- यह सिद्धांत बताता है कि मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है और उसकी सामाजिक प्रवृत्ति ने राज्य की उत्पत्ति को जन्म दिया है। अरस्तू ने इस विचार का समर्थन किया, यह मानते हुए कि व्यक्ति और राज्य के हित समान हैं।
(3) सामाजिक अनुबंध सिद्धांत :- इस सिद्धांत के अनुसार राज्य लोगों के बीच हुए एक समझौते का परिणाम है, जहां उन्होंने अपने कुछ अधिकारों को राज्य को सौंप दिया ताकि उनकी सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित हो सके। हॉब्स, लॉक और रूसो इस सिद्धांत के प्रमुख समर्थक माने जाते थे।
(4) पितृसत्तात्मक सिद्धांत :- यह सिद्धांत मानता है कि राज्य का विकास परिवारों के समूहों से हुआ, जहां परिवार का मुखिया प्रमुख होता था जिसे दण्ड देने का भी अधिकार प्राप्त था। समय के साथ, इन परिवारों के समूहों ने मिलकर जनजातियों और अंततः राज्य का निर्माण किया।
(5) मातृसत्तात्मक सिद्धांत :- इस सिद्धांत के अनुसार, प्रारंभिक समाजों में मातृसत्तात्मक परिवार प्रणाली प्रचलित थी, जहां वंश परंपरा मातृ पक्ष से चलती थी तथा समय के साथ आगे जाकर इन समूहों ने मिलकर राज्य का गठन किया।
उपरोक्त सिद्धांतों के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि राज्य की उत्पत्ति एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारकों ने अपना योगदान दिया है।
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