नमस्कार दोस्तों, इस आलेख में मुस्लिम कानून के अनुसार तलाक क्या है? एंव तलाक कितने तरह के होते है तथा उनसे सम्बंधित प्रावधान क्या है के बारें में बताया गया है, यह आलेख विधि के छात्रो व आमजन के लिए काफी महत्वपूर्ण है
तलाक क्या होती है?
मुस्लिम विधि में विवाह को एक संस्कार नहीं बल्कि संविदा माना जाता है जिस कारण विवाह को आसानी से समाप्त (विवाह विच्छेद) भी किया जा सकता है। प्राचीन समय में विवाह विच्छेद को दाम्पत्य अधिकारों का स्वाभाविक परिणाम समझा जाता था और यह लगभग सभी राष्ट्रों में किसी न किसी रूप में प्रचलन में था|
मुस्लिम विधि में भले ही लगभग सभी विद्वान तलाक़ को उचित मानते हो लेकिन इसके अकारण उपयोग को नैतिकता व धर्म के अनुसार जघन्य पाप माना जाता है|
पैगम्बर साहब के कथनों अनुसार – “जो मनमानी रीति से पत्नी को अस्वीकार करता है वह खुदा के शाप का पात्र होता है”, उन्होंने अपने अन्तिम समय के दौरान बिना पंच या न्यायाधीश के हस्तक्षेप के पुरुषों द्वारा तलाक़ के उपयोग को लगभग वर्जित कर दिया था|
विवाह के दोनों पक्षकारों को विवाह विच्छेद के अधिकार प्राप्त होते है, लेकिन विवाह विच्छेद के सम्बन्ध में पत्नी से ज्यादा पति को अधिकार प्राप्त होते है | पति अपनी ईच्छा के अनुसार अपनी पत्नी को तलाक़ दे सकता है तथा पति द्वारा हंसी, मजाक और नशे की अवस्था में भी तलाक़ दिया जा सकता है।
आमतौर पर हम तलाक़ को ही विवाह का समापन मानते है लेकिन ऐसा नहीं है, तलाक़ केवल मात्र विवाह विच्छेद का एक तरीका है। लेकिन ‘तलाक़ ‘ शब्द अत्यधिक प्रचलित हो जाने के कारण हम सामान्य बोलचाल की भाषा में ‘तलाक़ ‘ (Divorce) शब्द का ही प्रयोग करते है | इस आलेख में विवाह विच्छेद की रीतियों में तलाक़ का वर्णन किया गया है|
तलाक का अर्थ (Divorce)
अरबी में तलाक़ का अर्थ है — निराकरण करना या नामंजूर करना है| इसके अलावा तलाक़ का अर्थ – अस्वीकृत करना, निरस्त करना, मंसूख करना, छुटकारा पाना आदि से भी लगाया जाता है। मुस्लिम विधि में तलाक़ का अर्थ वैवाहिक सम्बन्ध समाप्त करना है और यह विवाह विच्छेद का सर्वाधिक प्रचलित रूप है। कोई भी वयस्क एवं स्वस्थचित्त पति अपनी पत्नी को तलाक़ दे सकता है।
मौखिक तलाक – तौर पर दिये जाने वाले तलाक़ में पति बिना किसी तलाकनामे के सिर्फ शब्दों के उच्चारण से अपनी पत्नी को तलाक़ दे सकता है और इसमें शब्दों का किसी विशेष रूप में होना जरुरी नहीं है इसमें केवल मात्र आशय की स्पष्ट घोषणा होनी चाहिए|
“मैं अपनी पत्नी को तलाक़ देता हूँ” या “मैंने तुम्हे तलाक़ दे दिया है” जैसे उच्चारण विवाह विच्छेद का आशय स्पष्ट करते है और आशय के प्रमाण की जरुरत नहीं है|
इसके अलावा ऐसे शब्द जिनसे विवाह विच्छेद का आशय स्पष्ट ना हो वहां पर आशय का प्रमाणित करना आवश्यक है| (वाजिद अली बनाम जाफर हुसैन, 1932, 6 लखनऊ 430)
लिखित तलाक – लिखित में दिये जाने वाले तलाक़ का माध्यम ‘तलाकनामा’ होता है और यह ऐसा भी दस्तावेज हो सकता है जिसके द्वारा तलाक़ दिया गया हो| तलाकनामा काजी या पत्नी के सरंक्षक या अन्य साक्षियों की उस्थिति में लिखा जा सकता है इसमें पत्नी की उपस्थिति आवश्यक नहीं है| लिखित में दिया गया तलाक़ दस्तावेज की तारिख से प्रभावी होता है, ना की पत्नी द्वारा उसकी प्राप्ति की तारीख से|
शिया विधि में तलाक़ मौखिक होता है इसमें तलाक़ देने के समय दो साक्षियों की उपस्थिति होनी आवश्यक है| शिया विधि में तलाक़ अरबी भाषा में तथा एक निश्चित प्रारूप में होता है, यदि पति अरबी भाषा का जानकार नहीं है तब ऐसी सुरत में पति अपनी तरफ से किसी ऐसे प्रतिनिधि को नियुक्त कर सकता है जो अरबी भाषा में तलाक़ का उच्चारण कर सकता है|
लेकिन किसी करणवश यदि ऐसा कोई प्रतिनिधि नहीं मिले तब ऐसी विशिष्ट परिस्थिति में किसी अन्य भाषा में तलाक़ का उच्चारण किया जा सकता है| (दिलशादा मासूद बनाम गुलाम मुस्तफा, ए.आई.आर. 1986, जम्मु और कश्मीर 80)
गूंगे पति द्वारा तलाक – गूंगे पति द्वारा अपनी पत्नी को दिया गया तलाक़ तभी वैध और प्रभावी माना जाएगा जब ऐसा तलाक़ स्वीकारात्मक व समझ में आने लायक इशारों से किया गया हो|
पत्नी की उपस्थिति में तलाक – पति द्वारा तलाक़ के शब्दों का उच्चारण पत्नी की मौजुदगी में या पत्नी को सम्बोधित करके किया जाना चाहिए, यदि पत्नी उपस्थित नहीं है तब उसके नाम से या तलाक़ के शब्द इतने स्पष्ट हो की वे पत्नी की और निर्देश करते हो|
विवशता, नशे या हंसी-मजाक की हालत में तलाक
(क) विवशता में तलाक – सुन्नी विधि में विवशता या नशे में दिया गया तलाक़ वैध और प्रभावी माना जाता है| पति का आशय पत्नी को तलाक़ देने का नहीं है लेकिन अपने पिता को खुश करने के लिए दिया गया तलाक सुन्नी विधि में वैध माना जाता है| जबकि शिया विधि में इस प्रकार का तलाक़ वैध और प्रभावी नहीं होता है|
(ख) नशे में तलाक – सुन्नी विधि के अनुसार पति द्वारा ईच्छा के विपरीत नशा नहीं लिया गया हो या उसे नशा नहीं दिया गया हो, उस सुरत में दिया गया तलाक़ मान्य होता है जबकि शिया विधि में ऐसा तलाक़ अमान्य होता है|
(ग) मजाक में तलाक – सुन्नी विधि में हंसी, खेल, मजाक की भूल में तलाक़ का उच्चारण करने पर मान्य होता है, लेकिन शिया विधि में ऐसा तलाक़ मान्य नहीं होता है|
केस – कुन्ही मोहम्मद बनाम आयिशाकूट्टी ए.आई.आर. 2010 एन.ओ.सी. 992 केरल)
इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा कहा गया है कि – मुस्लिम विधि के अन्तर्गत मुस्लिम पति अपनी पत्नी को एकतरफा तलाक़ दे सकता है और उसके लिए कारण बताने की भी आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह स्वैच्छिक (मनमाना) नहीं होना चाहिए। पवित्र कुरान की यह मंशा है कि तलाक़ की प्रक्रिया युक्तियुक्त होनी चाहिए। हालांकि मुस्लिम पति कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है|
इसी तरह कौसर बी के मुल्ला बनाएँ स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र के मामले में भी कहा गया कि – तलाक़ युक्तियुक्त कारणों पर दिया जाना चाहिए तथा तलाक़ देने से पहले पति पत्नी के मध्य समझौते के प्रयास किये जाने चाहिए। (ए.आई.आर. 2007 एन.ओ.सी. 419 मुम्बई)
तलाक के प्रकार | types of divorce
विवाह विच्छेद की रीतियों में से तलाक विवाह समापनं की एक रीती है जो मुख्यत: दो प्रकार का होता है –
(i) तलाक-उल-सुन्नत (Talak- ul-sunnat)
तलाक-उल-सुन्नत से तात्पर्य ऐसे तलाक से है जो पैगम्बर द्वारा प्रतिपादित परम्पराओं पर आधारित होता है।
इसे दो उपभागों में बांटा गया है —
(क) तलाक-अहसान (Talak ahsan) – इसका शाब्दिक अर्थ — अति उत्तम, सर्वश्रेठ, बहुत अच्छा है। तलाक़ अहसान को तलाक का सर्वोत्तम प्रकार माना जाता है। स्वयं पैगम्बर द्वारा इसे मान्यता प्रदान की गई थी। इसमें –
(a) पति द्वारा एक ही वाक्य में तलाक़ के शब्दों का उच्चारण किया जाता है|
(b) ऐसे उच्चारण के समय पत्नी का पाक अवस्था (मासिक धर्म की स्थिति में नहीं) में होना आवश्यक है,
यदि स्त्री मासिक धर्म के अधीन नहीं है (वृद्धवस्था या अन्य किसी कारण से) या पति और पत्नी एक दुसरे से दूर है तब यह जरुरी नहीं है की तलाक़ का उच्चारण पत्नी की पाक अवस्था में किया जाए और यदि विवाह का समागम नहीं हुआ है तब अहसान रूप से तलाक़ का उच्चारण पत्नी के मासिक धर्म के समय में किया जा सकता है|
(c) पत्नी को इद्दत की अवधि पूर्ण करनी होती है तथा इस अवधि में सम्भोग से परहेज करना आवश्यक है।
तलाक-अहसन को इद्दत की अवधि पूर्ण होने से पूर्व प्रतिसंहत किया जा सकता है और ऐसा प्रतिसंहरण अभिव्यक्त अथवा आचरण द्वारा हो सकता है, जैसे पति द्वारा पत्नी के साथ संभोग कर लेना आचरण द्वारा प्रतिसंहरण का अच्छा उदाहरण है। लेकिन इद्दत की अवधि पूर्ण हो जाने पर यह तलाक़ अप्रतिसहरणीय (Irrevocable) हो जाता है।
(ख) तलाक–ए-हसन (Talak-e-hasan) – “तलाक–ए-हसन” शब्द का अर्थ — उत्तम, अच्छा है। तलाक- अहसन के बाद इसे दूसरी श्रेणी का तलाक़ का अच्छा तरीका माना जाता है। इसमें तलाक़ शब्द का उच्चारण तीन बार अलग अलग समय समय में होता है और इसके लिए यह आवश्यक है की प्रत्येक उच्चारण के समय उनके मध्य सम्भोग नहीं हुआ हो,
उदाहरण के लिए – पति द्वारा अपनी पत्नी को तीन महीने में यानि एक-एक महीने के अन्तराल में लिखित या मौखिक रूप से तलाक़ दिया जाता है और तीसरे महीने में पत्नी को तलाक़ देने पर यह औपचारिक रूप से मान्य हो जाता है|
यदि पति इन तीन महीने के अन्तराल में सम्भोग कर लेता है तब यह तलाक़ प्रतिसंहत (Revoke) हो जाता है और यदि संभोग नहीं किया जाता है तो तलाक़ अप्रतिसंहरणीय हो जाता है।
यानि तलाक–ए-हसन में निम्न शर्ते पूर्ण होनी आवश्यक है —
(a) तलाक़ के शब्दों का तीन बार उच्चारण किया जाना और ऐसा उच्चारण तीस-तीस दिन के अन्तराल में किया जाना,
(b) यदि पत्नी मासिक धर्म की अवस्था में है तो ऐसा उच्चारण पाक अवस्था में किया जाना आवश्यक है,
(c) और प्रत्येक उच्चारण के समय पति द्वारा पत्नी के साथ संभोग नहीं करना अपेक्षित है।
(ii) तलाक-उल-बिद्दत (Talak-ul-bidaat)
तलाक़-उल-बिद्दत को तलाक-उल-बैन भी कहा जाता है तथा इसे तलाक का घृणित अथवा पापमय रूप माना जाता है। शाफई और हनफी विधि भले ही इस तलाक़ को मान्यता देती है लेकिन इन विधियों में भी इसको घृणित माना गया है|
शिया विधि में तलाक-उल-बिद्दत को मान्यता प्रदान नहीं की गई है। यह विधि इसे निन्दनीय अथवा पापमय तलाक़ मानती है, तलाक-उल-बिद्दत में तलाक़ के लिए निम्न बातें आवश्यक थी –
(क) इसमें तलाक़ के वाक्यों का एक ही बार उच्चारण किया जाता है, जैसे “मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक़ देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक़ देता हूँ” अथवा “मैं तुम्हें तीन बार तलाक़ देता हूँ”|
(ख) इसमें स्त्री के तुह्र (पाक अवस्था) में तलाक का एक ही उच्चारण किया जाता है जिसमें विवाह विच्छेद करने का आशय स्पष्ट होता हो|
यहाँ पर तलाक में हुए कुछ बदलाव को भी जानना उचित होगा –
जैसे – सायराबानो का ऐतिहासिक प्रकरण –
सायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए.आई.आर. 2017 एस.सी. 4609) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने तलाक-उल-बिद्दत को अवैध एंव असंवैधानिक मानते हुए कहा कि तलाक-उल-बिद्दत यानि तीन तलाक मुस्लिम धर्म की स्वतंत्रता का अंग नहीं है और यह कुरान की व्यवस्था के अनुरूप भी नहीं है।
माननीय न्यायालय ने अपने बहुमत के निर्णय में तीन तलाक़ यानि तलाक-उल-बिद्दत को अपास्त करते हुए कहा कि यह तुरन्त प्रभावी एवं अविखण्डनीय होने से संविधान के अनुच्छेद 14, 21 एवं 25 का अतिक्रमण करता है और यह मनमाना एवं एक-पक्षीय है। क्योंकि तलाक-उल-बिद्दत में तलाक़ के वाक्यों का एक ही बार उच्चारण किया जाता है जिससे यह तलाक़ अप्रतिसंहरणीय हो जाता है, इस कारण से यह एक-पक्षीय एवं मनमाना है|
अमीरुद्दीन बनाम खातून बीबी, (1917, 39 इलाहाबाद 371) तथा सारा भाई बनाम रवियाबाई (1905, 30 बम्बई 537) के मामलों के अनुसार – तलाक़ के वाक्यों का एक ही बार उच्चारण करने पर तलाक़ अप्रतिसंहरणीय हो जाता है, और ऐसे तलाक़ के अप्रतिसंहरणीय होने के लिए इद्दत की अवधि पूर्ण करना आवश्यक नहीं है।
तलाक-उल-बिद्दत में दण्डनीय अपराध –
मुस्लिम स्त्री (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के अनुसार – तलाक-उल-बिद्दत अवैध एवं शून्य होगा तथा ऐसा तलाक़ देने वाला व्यक्ति तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास एवं जुर्माने से दण्डनीय होगा|
हालाँकि तलाक-उल-बिद्दत को अपास्त कर दिया गया है, लेकिन फिर भी अध्ययन की दृष्टी से इसका उल्लेख किया गया है|
तलाक-उल-बिद्दत के अन्य अर्थ –
तलाक़ -ए-बैन — जब तलाक़ अप्रतिसंहरणीय (Irrevocable) हो जाता है। तब उसे ‘तलाक़ -ए-बेन’ (Talak-a-bain) कहा जाता है।
तलाक़ -ए-सरीह – जब तलाक़ स्पष्ट शब्दों में दिया जाता है तब वह ‘तलाक़ -ए-सरीह’ कहलाता है।
तलाक़ -ए-कनायत – जब तलाक के शब्द अस्पष्ट या संदिग्ध होते है, तब उसे ‘तलाक़ -ए-कनायत’ कहा जाता है।
तलाक़ -ए-तालिक – किसी घटना विशेष पर आधारित तलाक को ‘तलाक- ए-तलाक़ ‘ के नाम से जाना जाता है।
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