माल अतिचार से आप क्या समझते है? Trespass To Goods In Hindi – Tort Law

इस आलेख में माल अतिचार से आप क्या समझते हैमाल अतिचार की परिभाषाइसके आवश्यक तत्व तथा माल अतिचार के वाद में कोन कार्यवाही करने का अधिकार रखता है आदि के बारे में बताया गया है, यह अपकृत्य विधि का एक महत्वपूर्ण विषय है….

माल अतिचार / जंगम सम्पति

जंगम सम्पत्ति को प्रभावित करने वाले अपकृत्यों को निम्नाकिंत वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

(A) जंगम सम्पत्ति के प्रति अतिचार (Trespass to goods)

(B) आरम्भ से अतिचार (Trespass ab-initio)

(C) निरोध (Detention)

(D) संपरिवर्तन (Conversion)

माल अतिचार की परिभाषा

माल अतिचार से तात्पर्य है – वादी के कब्जे के माल के साथ बिना किसी विधिक न्यायनुमत या औचित्य के भौतिक हस्ताक्षेप करना है तथा जंगम सम्पत्ति के प्रति अतिचार ऐसी सम्पत्ति के कब्जे में अनुचित हस्तक्षेप को कहा जाता है।

इसके विविध उदाहरण हो सकते है, जैसे – किसी की कार पर पत्थर फेंकना, चिड़ियों को गोली से दागना, पशुओ को पीटना या उनमें किसी प्रकार के रोग का संक्रमण कराना या पशुओं को इस प्रकार खदेड़ना ताकि वे अपने स्वामी के आधिपत्य से निकल कर भाग जाएं।

क्रोजियर बनाम कण्डे के प्रकरण में माल अतिचार को एक अवैधानिक कार्य माना गया है क्योंकि इसमें माल को पकड़कर या उसके स्थान हटाकर या सीधा नुकसान पहुँचा कर किसी की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है (1827) 6 बी. एण्ड सी. 232.

इसके अलावा घरेलू या पालतू जानवरों को हानि पहुँचाना, ऐसी वस्तुऐं यथा, गीला पैन्ट, मोम से निर्मित वस्तुएँ या संग्रहालय (Museum) में रखी हुई वस्तुओं को छुने मात्र से भी माल अतिचार का अपकृत्य हो जाता है तथा ऐसे मामलों में नुकसानी प्रत्यक्ष होनी चाहिये।

यदि नुकसानी प्रतिवादी की किसी भूल के परिणामस्वरूप हुई हो तो वह अतिचार के लिए दायी नहीं होगा, क्योंकि ऐसी दशा में किया गया कृत्य अनैच्छिक तथा आकस्मिक होता है ना कि जानबूझकर या असावधानी से।

भूमि अतिचार की तरह माल अतिचार भी स्वयं अपने आप मे कार्यवाही योग्य है यानि इसमें क्षति को साबित किये बिना वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। लेकिन यदि वादी को कोई नुकसान नहीं हुआ है तो उस स्थिति में वह केवल नाम मात्र की नुकसानी ही प्राप्त कर सकेगा और यह कब्जे के विपरीत अपकार है |

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माल अतिचार के आवश्यक तत्व

माल अतिचार के अपकृत्य के लिए दो बाते आवश्यक है जिन्हे वादी को अपने वाद में साबित करनी होती है –

(अ) कि वादी चल सम्पत्ति पर वास्तविक या आन्वयिक कब्जा रखता था तथा

(ब) कि प्रतिवादी द्वारा वादी की सम्पत्ति के कब्जे के अधिकार में अवैध रूप से बिना विधिक औचित्य के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया गया है।

केस – कर्क बनाम ग्रेगरी (1876) 1 ई. एक्स. डी. 55 –

इस प्रकरण में एक व्यक्ति की मृत्यु उस समय हुई जब कुछ लोग दावत खा रहे थे। जिस कमरे में मृतक का शव रखा हुआ था, वहाँ से मृतक की साली ने यह विश्वास करते हुए सुरक्षा की दृष्टि से कुछ आभूषण हटा कर उन्हें दूसरे कमरे में रख दिया। मृतक के निष्पादक द्वारा मृतक की साली के विरुद्ध माल के प्रति अतिचार के लिए वाद दायर किया गया। इसमें यह निर्णय हुआ कि वह (मृतक की साली) माल अतिचार के लिए दायित्वाधीन थी।

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माल अतिचार में कार्यवाही

माल अतिचार के वाद में ऐसा कोई भी व्यक्ति कार्यवाही करने का अधिकारी है, जिसके माल का कब्ज़ा प्रत्यक्षतः व्यवधानित हुआ है। सरल शब्दों में यदि वादी हस्तक्षेप के समय माल पर कब्जा रखता है तो वह अतिचारी के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है।

इसी तरह माल का स्वामी माल पर अपने सेवक अथवा अभिकर्ता या माल के वाहक अथवा उपनिहिती के माध्यम से कब्जा रख सकता है। परन्तु जब स्वामी ने अपना कब्जा त्याग दिया है तब वह कार्यवाही करने का अधिकारी नही होगा।

अतिचार, अधिपत्य के विपरीत अपकार है, ना कि स्वामित्व के। इसलिए जो कब्जेदार व्यक्ति है वह कार्यवाही कर सकता है, चाहे भले ही कोई अन्य व्यक्ति माल का स्वामी हो।

अपवाद – इस नियम के कुछ अपवाद भी है जिनमें निम्नलिखित व्यक्ति सम्पत्ति पर कब्जा ना रखते हुए भी वाद पेश कर सकते है –

(1) न्यासी – न्यासी (Trustee) उस तीसरे व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है जो हिताधिकारी (beneficiary) की सम्पति को हानि अर्थात नुकसान पहुंचाता है।

(2) निष्पादक – निष्पादक (Executor) अथवा प्रबन्धक मृत व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति के प्रति अतिचारी के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है। परन्तु यह कार्यवाही निष्पादक द्वारा मृत लेख प्रमाण पत्र व प्रबन्धक द्वारा प्रशासन पत्र पाने से पहले की जा सकती है।

(3) फ्रेनचाइज – फ्रेनचाइज (franchise) का स्वामी उस व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है जो स्वामी के प्राप्त करने के पूर्व ही माल को पकड़ लेता है।

(4) इच्छा – इच्छा पर उपनिधान के मामले में उपनिधाता तथा वस्तु का स्वामी दोनों माल अतिचार के लिए वाद दायर कर सकते है, लेकिन वे उपनिहिती या सेवक के खिलाफ अतिचार का वाद नहीं दायर कर सकते है।

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माल अतिचार की कार्यवाही में बचाव

माल के प्रति अतिचार की कार्यवाही करने में निम्नलिखित प्रतिवाद (Defences) हो सकते है –

(i) आत्मरक्षा या सम्पत्ति रक्षा

सम्पत्ति पर अधिकार रखने वाला व्यक्ति गलत ढंग से सम्पत्ति लेने वाले व्यक्ति के विरुद्ध आवश्यकतानुसार बल प्रयोग कर सकता है। चूंकि आवश्यकतानुसार बल का प्रयोग बिना औचित्य के नहीं माना जाता है।

(ii) अपने आत्यन्तिक एवं सीमित अधिकारों का प्रयोग

किसी भी सम्पत्ति का कानूनी अभिग्रहण, किराया वसूली या नुकसानी के लिये माल ले लेना गैरकानूनी कार्य नहीं होता है।

(iii) कानूनी या व्यक्तिगत अधिकार का परिपालन

कोई व्यक्ति कानून द्वारा अधिकृत होने पर किसी अन्य व्यक्ति के माल पर अधिकार कर सकता है, जैसे – कानूनी प्रक्रिया का सम्पादन, न्यूसेंस का निवारण या स्वामी के द्वारा माल विक्रय रोकने पर आदि।

(iv) वादी के अपने ही अनुचित एवं असावधानीपूर्ण कृत्य

यदि कोई व्यक्ति किसी का मार्ग अवरुद्ध करता है, जैसे –  व्यक्ति के आने जाने के रास्ते में यदि  व्यक्ति अपना कोई वाहन या कोई जानवर बांध देता है, तो इस प्रकार के अवरोध को बलपूर्वक हटाया जा सकता है।

(v) माल की बलात् वापसी

जब सम्पति के स्वामी को अपनी सम्पत्ति से गैर-कानूनी ढंग से वंचित कर दिया जाता है, तो उसे अपनी सम्पत्ति वापस लेने का अधिकार है और वह अपनी सम्पत्ति वापस लेने के लिए हमला कर सकता है।

(vi) पर-व्यक्ति का अधिकार

किसी व्यक्ति द्वारा मुकदमा चलाये जाने पर जब प्रतिवादी यह कहता है कि वादग्रस्त सम्पत्ति का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति में निहित है, तो इस प्रकार के प्रतिवाद को पर-व्यक्ति का अधिकार (Jus fertit) कहा जाता है।

प्रतिवादी यह प्रतिवाद तभी प्रस्तुत कर सकता है, जब वह सम्पत्ति के वास्तविक स्वामी द्वारा अधिकृत होकर कार्य कर रहा हो। प्रतिवाद के रूप में पर-व्यक्ति का अधिकार केवल ऐसे वादी के विरुद्ध रखा जा सकता है, जिसका सम्पत्ति पर वास्तविक या आन्वयिक किसी प्रकार का अधिकार न हो।

(vii) विबन्ध

विबन्ध (Estoppel) भी एक महत्वपूर्ण प्रतिवाद है। इसमें एक उपनिहिती (Bailee) अपने और उपनिधाता (Bailor) के बीच स्वामित्व के लिए वाद को नहीं चला सकता है। अतिचार में उपनिधाता के अधिकार के सच्चे उपयोग का आधार उसकी यह स्थिति होती है कि सम्पत्ति पर उसका कब्जा है।

लेकिन जब एक बार उपनिहिती (Bailee) नुकसानी पा लेता है तब वह माल को उपनिधाता के न्यासी (Trustee) की हैसियत से रखता है।

(viii) अधिकारपूर्ण दावा

प्रतिवादी यह दावा कर सकता है कि सम्पत्ति या माल तो वास्तव में उसका है

आरम्भ से ही अतिचार

जो व्यक्ति किसी वस्तु को कानूनी ढंग से लेने के बाद उसका दुरुपयोग करता है, तब उसका यह कृत्य आरम्भ से ही माल अतिचार माना जाता है। यह अतिचार उसी प्रकार है जिस प्रकार स्थावर सम्पत्ति के सम्बन्ध में होता है।

इसमें वादी को यह साबित करना होता है –

(a) कि माल उसके वास्तविक या आन्वयिक कब्जे में था।

(b) कि प्रतिवादी ने उसके कब्जे में गैर-कानूनी ढंग से हस्तक्षेप किया था।

कब्जा वापिस प्राप्त करने की कार्यवाही

(i) रिप्लेविन

जब किसी व्यक्ति के कब्जे से किसी वस्तु को अन्य व्यक्ति के द्वारा करस्थम् (distress) के रूप में अथवा अन्य तरीके से ले लिया जाता है, तो कब्जे से हटाया गया व्यक्ति शीघ्र एवं अस्थायी (Provisional) कब्जा रिप्लेविन की कार्यवाही द्वारा तब तक के लिए प्राप्त कर सकता है, जब तक कि पक्षकारों के अधिकारों के सम्बन्ध में निर्णय ना हो जाये।

इसमें वादी को यह साबित करना होता है कि कार्यवाही के समय वह उक्त वस्तु का स्वामी था अथवा उसके कब्जे का हकदार था और उस समय वह गैर कानूनी रूप से उक्त वस्तु के कब्जे से अलग कर दिया गया और वस्तु अनुचित रूप से रोक ली गयी।

(ii) वस्तु को रोके रखना या निरोध

किसी माल को जबर्दस्ती रोक लेना निरोध कहलाता है। इसकी कार्यवाही तब होती है जब कोई व्यक्ति किसी निश्चित वस्तु को रोक लेता है और उस व्यक्ति के पास नहीं जाने देता जो उसे पाने का हकदार है। इसकी कार्यवाही अनुचित रूप से रोकी गयी सम्पत्ति की वापसी के लिए एवं अनुचित रूप से रोके रखने के कारण हुई क्षति की, क्षतिपूर्ति के लिए की जाती है।

केस – गैरेट बनाम आर्थर चर्चिल लि० (1970) क्यू. बी. 92 –

इस वाद में यह कहा गया है कि, निरोध के दावा में, एक व्यक्ति जो उस वस्तु का कब्जा पाने का तात्कालिक रूप से हकदार है उस व्यक्ति के विरुद्ध जो उसका वास्तविक कब्जा रखता है, की उचित माँग के सम्बन्ध में बिना किसी विधिपूर्ण औचित्य के प्रदान करने में असफल या इन्कार कर देता है तो वह निरोध की कार्यवाही के लिये हकदार होता है।

इस प्रकार के प्रकरण में कार्यवाही का कारण माल को लेना या दुरुपयोग करना आदि नहीं होकर माल का अवरोध करना होता है।

निरोध के प्रति की गई कार्यवाही में वादी को साबित करना होता है –

(a) कि उसका माल विशेष और सामान्य सम्पत्ति के रूप में था और माल को अपने कब्जे में लाने का उसे अधिकार भी था,

(b) कि प्रतिवादी ने गैर-कानूनी ढंग से माल को वादी के द्वारा वापस पाने की प्रार्थना करने पर भी रोक रखा है। यानि वादी द्वारा माल वापस करने की प्रार्थना करने तथा प्रतिवादी द्वारा माल देने से इन्कार करने का भी साक्ष्य होना चाहिये।

इस प्रकार निरोध की कार्यवाही मे प्रतिवादी को या तो विनिर्दिष्ट चल सम्पत्ति वादी को लोटा देनी पड़ती है या उसे उसके मूल्य का भुगतान करना पड़ता है। 

माल का अवरोध करना (Detenue) अतिचार से अलग है क्योंकि माल के अवरोध में माल प्रतिवादी के कब्जे में होना चाहिये जबकि अतिचार में माल वादी के कब्जे में हो सकता है।

भारत में कार्यवाही

भारत में इस प्रकार के अपकृत्य के लिये कार्यवाही विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 6 एवं धारा 8 के तहत की जा सकती है जिसमें निश्चित जंगम सम्पत्ति वापस कराई जा सकती है।

धारा 7 के अधीन कोई भी व्यक्ति अपनी विनिर्दिष्ट सम्पत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस ला सकता है तथा धारा 8 के अधीन वादी विनिर्दिष्ट माल की तुरन्त वापसी का अधिकारी होता है, जिसे वह कब्जा रखने वाले व्यक्ति से वापस करवा सकता है।

उदाहरण – क व्यक्ति के कब्जे में  व्यक्ति के परिवार की मूर्ति है और  व्यक्ति, स्वयं मूर्ति का संरक्षक है। इस स्थिति में  व्यक्ति के कब्जे से  व्यक्ति मूर्ति वापस करवा सकता है।

औचित्य – अवरोध की कार्यवाही में प्रतिवादी यह सफलतापूर्वक कह सकता है कि माल पर उसका धारणाधिकार (Lien ) था माल पर धारणाधिकार होना प्रतिवादी के लिये एक अच्छी प्रतिरक्षा होती है।

निरोध के वाद में वादी मूल्यांकन की तिथि पर ‘सामानों के मूल्य, उस दिन तक की क्षति के लिये नुकसानी का अलग-अलग मूल्यांकन करवा सकता है।

(iii) संपरिवर्तन (Conversion or Trover )

संपरिवर्तन की कार्यवाही के माध्यम से भी माल का कब्जा वापिस प्राप्त किया जा सकता है। संपरिवर्तन से तात्पर्य – माल को गैरकानूनी ढंग से लाना, उपयोग करना, परिवर्तित करना और नष्ट करना आदि से है।

सामण्ड के अनुसार संपरिवर्तन किसी व्यक्ति के वस्तुओं के सम्बन्ध में ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा स्वामित्व को औचित्यपूर्ण तरीके से अस्वीकार किया जाता है।

जब तक एक प्रतिवादी अपने व्यवहार से वादी के स्वामित्व को किसी सम्पत्ति के सम्बन्ध में अस्वीकार ना कर दे, तब तक संपरिवर्तन का कारण उत्पन्न नहीं होता है। संपरिवर्तन की विस्तृत विवेचना अलग पोस्ट में की गई है।

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