इस लेख में महिला अपराध के बारे में बताया गया है | कानून में महिला अपराधी कोन है और महिला अपराधी के कारण एंव इसके रोकथाम के उपाय क्या है पर संक्षेप में चर्चा की गई है, यदि आप वकील, विधि के छात्र या न्यायिक प्रतियोगी परीक्षाओं की  तैयारी कर रहे है, तब आपके लिए इसके बारें में जानना आवश्यक है –

परिचय (महिला अपराध)

भारत में महिलाओं का अतीत अत्यन्त गौरवशाली रहा है। समाज में उन्हें आदर एवं सम्मान की दृष्टि से भी देखा जाता रहा है लेकिन धीरे-धीरे बदलते परिवेश के साथ महिलाओं की स्थिति में भी बदलाव आया। महिलायें भौतिकवाद एवं पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होने लगी है, जिसके परिणामस्वरूप नारी स्वरूप लज्जा का ह्रास होने लगा और वे अपराधों की ओर उन्मुख होने लगीं।

यद्यपि पुरुषों की अपेक्षा महिला अपराधियों की संख्या अत्यन्त कम है, फिर भी यह दुखद है कि महिला जगत् में अपराधों ने अपना स्थान बना लिया है।

महिला अपराध की परिभाषा

जिस तरह अन्य अपराधों की परिभाषा नहीं दी गई है, उसी तरह महिला अपराध की भी कोई विनिर्दिष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। महिला अपराधों की स्थिति वही है जो सामान्यत पुरुष अपराधों की है।

इसलिए सहज भाव में यह कहा जा सकता है कि – महिलाओं द्वारा कारित अपराध महिला अपराध है।

सरल भाषा में यह कहा जा सकता है कि – किसी आपराधिक विधि का किसी महिला द्वारा आशयपूर्वक या दुराशय से किया गया उल्लघन, महिला अपराध है।

यदि किसी महिला की आयु 18 वर्ष से कम है तो वह किशोर अथवा बालक की श्रेणी में आ जाती है और उसके द्वारा कारित अपराध किशोर अपचार अथवा विधि विवादित किशोर द्वारा कारित अपचार कहलाता है।

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महिला अपराध के प्रमुख कारण

समाज में महिला अपराधों के अनेक कारण हैं, लेकिन इस आलेख में महिला अपराध के मुख्य-मुख्य कारण दिए गए है, जो निम्नांकित हैं –

(i) पारिवारिक वातावरण

पारिवारिक वातावरण महिला अपराधों का पहला कारण है। दूषित वातावरण वाले परिवार की महिलाये सामान्यत आपराधिक प्रवृत्ति की बन जाती है। जिस परिवार में अक्सर झगडे अथवा विवाद होते है, वहाँ उस परिवार की महिला हिंसक बनने लग जाती हैं।

परिवार में जुआ, वेश्यावृत्ति, मदिरापान आदि बुराइयाँ महिलाओं को अपराधों की ओर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि, जैसा परिवार का वातावरण होता है, महिलायें भी वैसी ही बन जाती हैं।

(ii) निर्धनता

निर्धनता अर्थात गरीबी जिस प्रकार बाल अपराधो के लिए जिम्मेवार है उसी प्रकार यह महिला अपराधों के लिए भी जिम्मेवार है। निर्धन परिवार की महिलाएं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चोरी, तस्करी, वेश्यावृत्ति जैसे अपराध कारित करने के लिए विवश हो जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं द्वारा चोरी एवं वेश्यावृत्ति जैसे अपराधों में अभिवृद्धि हुई है। इसी कारण निर्धनता अथवा अर्थाभाव को अपराधों की जननी कहा जाता है।

(iii) वासना अथवा कामोत्तेजना

कामातुर अथवा वासना के वशीभूत महिलायें व्यभिचार अथवा वेश्यावृत्ति जैसे अपराधों की ओर प्रवृत्त होने लगती हैं। वेश्यावृत्ति की ओर सामान्यत निर्धन परिवार की महिलायें उन्मुख होती हैं, जबकि व्यभिचार की ओर सम्भ्रान्त परिवार की महिलायें पहल करती हैं।

ऐसी महिलायें अपने अवैध गर्भ को छिपाने के लिए गर्भपात, शिशु हत्या, भ्रूण हत्या जैसे अपराध कारित करती हैं। सम्पन्न परिवारों में लड़कियों की स्वतन्त्रता एवं विलासिता से महिला अपराधों में काफी वृद्धि हुई है। इसके अलावा पति की नपुंसकता भी व्यभिचार एवं वेश्यावृत्ति का एक कारण है।

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(iv) उपेक्षा

परिवार में महिलाओं की उपेक्षा भी अपराध का एक अहम कारण है। जब परिवार में महिलाओं को समुचित स्थान नहीं मिलता है, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है या उन्हें बात-बात में ताने या झिडकियाँ दी जाती हैं तो महिलायें कुण्ठित होकर अपराधों की ओर कदम रखने लगती है। महिलाओं के साथ सौतेले व्यवहार से भी अपराध कारित करने की भावना प्रबल होने लगती है।

इस सम्बन्ध में पायल शर्मा बनाम अधीक्षक, नारी निकेतन, कालिन्दी विहार का एक अच्छा मामला है, इसमें उपेक्षित महिलायें स्वच्छन्द प्रकृति की नहीं बने और वे अपराधों की ओर उन्मुख नहीं हो, इसके लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि “महिलाये अपने पसन्द के व्यक्ति के साथ रहने एवं विवाह किये बिना ही समागम करने के लिए स्वतन्त्र हैं। विधि में इस पर कोई रोक नहीं है।” न्यायालय ने कहा- कानून एवं नैतिकता में अन्तर है। (ए.आई.आर. 2001 इलाहाबाद 254)

(v) विवाह-विघटन

महिला अपराधों का एक मुख्य कारण विवाह-विघटन को भी माना जाता है। विवाह विच्छेद के बाद अनेक बार महिलायें निर्धनता, अर्थाभाव, अकेलापन, हीनभावना आदि से ग्रसित होकर आत्महत्या का प्रयत्न जैसे अपराध कारित कर बैठती हैं। इतना ही नहीं, कई बार महिलायें अपने पुत्र-पुत्रियों के साथ आत्महत्या कर लेती हैं।

केस – एम. सरस्वती बनाम स्टेट ऑफ केरल (1957 क्रि. लॉज 582)

इस मामले में एक महिला ने अपने जीवन से तंग आकर तीन पुत्रों को कुएँ में फेककर उनकी हत्या कारित कर दी तथा स्वयं ने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया था। उसे विचारण न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास से दण्डित किया गया लेकिन उच्च न्यायालय ने इसमें उदारतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाया, क्योंकि वह महिला अपने पति की उपेक्षा की शिकार थी।

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(vi) पुरुष- दुष्प्रेरणा

अब धीरे-धीरे यह धारण प्रबल होने लगी है कि अधिकांश मामलों में पुरुषों द्वारा अपराध कारित करने में महिलाओं की मदद ली जाती है। चोरी, तस्करी, अफीम व स्मैक आदि के अवैध व्यापार, विषपान, व्यभिचार, वेश्यावृत्ति आदि में सामान्यतया महिलाओं को माध्यम बनाया जाता है। पुरुष ऐसे अपराधों में महिलाओं का खुलकर दुरूपयोग करते हैं जिससे महिलायें अपराधी बन जाती है।

(vii) स्वच्छन्दता

स्वच्छन्दता एवं पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी महिला अपराधों का एक प्रमुख कारण कहा जा सकता है। आज के युग में प्रत्येक महिला उन्मुक्त वातावरण में जीना चाहती है, वे अपने मामलों में पुरुषों का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करती है। पारिवारिक सम्पन्नता के कारण उनका जीवन विलासिता का जीवन बन जाता है।

यही कारण है कि आज अनेक संभ्रान्त परिवार की युवतियों परिवार से पलायन करने लगी हैं तथा वे प्रेम विवाह की शिकार होने लगी हैं जो आगे जाकर अपराध का कारण बन जाते हैं।

(viii) अश्लील साहित्य

महिला अपराधों के लिए अश्लील साहित्य, दूरदर्शन, इन्टरनेट आदि भी उत्तरदायी है। आज बाजार में अश्लील एवं कामोत्तेजक साहित्य की भरमार है। उनमें अश्लील (नग्न) चित्र एवं किस्से प्रकाशित किये जाते हैं जिन्हें पढ़कर युवतियां एवं महिलायें व्यभिचार एवं वेश्यावृत्ति जैसे अपराधों की ओर प्रवृत्त होने लगती हैं। साहित्य का मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है और अश्लील साहित्य मन को शीघ्र प्रभावित कर लेता है।

ठीक यही स्थिति दूरदर्शन एवं इन्टरनेट की है। दूरदर्शन के अनेक चैनल पारिवारिक विघटन एवं विलासिता की ओर पहल करने वाले होते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि दूरदर्शन के अनेक चैनलों से अपराध कारित करने की तकनीक सीखी जाती है।

इन्टरनेट भी इसमें पीछे नहीं है। अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक विद्यालय के बालक को इन्टरनेट पर लड़कियों के अश्लील चित्र बनाते पकड़ा गया था। बाद में उस पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अन्तर्गत अपराधिक प्रकरण भी दर्ज किया गया।

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(ix) सौन्दर्य प्रतियोगिता

इन दिनो सौन्दर्य प्रतियोगिता के प्रति महिलाओं का अत्यधिक आकर्षण बढा है। सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से महिलाओं को अर्द्धनग्न अवस्था में प्रस्तुत किया जाता है। ऐसी प्रतियोगिताओं में अनेक बार मदिरा आदि का भी खुलकर प्रयोग होता है। अतः इन सौन्दर्य प्रतियोगिताओं को भी अपराधों का एक कारण कहा जा सकता है।

इस सम्बन्ध में चन्द्र राजकुमारी बनाम पुलिस उपायुक्त, हैदराबाद का एक अच्छा प्रकरण है। इस मामले में आन्ध्रप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि – सौन्दर्य का प्रदर्शन बुरा नहीं है। सौन्दर्य प्रदर्शन योग्य भी है। लेकिन यदि उसका प्रदर्शन आपत्तिजनक रूप से किया जाता है तो वही प्रदर्शन दण्डनीय अपराध बन जाता है। (ए.आई. आर 1998 आन्ध्रप्रदेश 302)

इसी सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि इन दिनों शहरों में रात्रिकालीन क्लबों, नृत्य गृहों, बारों आदि का प्रचलन भी बढ़ा है। मनोरंजन के नाम पर इन क्लबों में वेश्यावृत्ति एवं व्यभिचार जैसे कृत्य होते हैं।

(x) संगति

महिला अपराधों का एक कारण संगति भी है। जब महिलाये आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों की संगत में आती है तो वे भी अपराधी बन जाती हैं। ऐसा सामान्यत क्लबों, समारोहों, समूहों कारागृहों आदि में होता है। यहाँ भद्र महिलायें अपराधी महिलाओं या पुरुषों की संगति में आकर स्वयं भी वैसी ही बन जाती हैं।

इस प्रकार महिला अपराधों के और भी अनेक कारण हैं। भारतीय संस्कृति का ह्रास भी उनमें से एक है।

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महिला अपराधो के रोकथाम के उपाय

समाज में महिला अपराधों की रोकथाम के लिए निम्नांकित उपाय किये जा सकते हैं –

(i) पारिवारिक वातावरण – पारिवारिक वातावरण को सुमधुर बनाया जाए। परिवार संस्कारित हो, परिवार में सौहार्दपूर्ण वातावरण हो। परिवार को जुआ, मदिरापान, वेश्यावृत्ति जैसी प्रवृत्तियों से दूर रखा जाये और पारिवारिक मर्यादाओं को अक्षुण्ण बनाये रखा जाये। परिवार में स्वच्छन्दता का स्थान नहीं हो। युवतियों पर विशेष ध्यान रखा जाये तथा यथासमय उनका विवाह कर दिया जाये।

(ii) उपेक्षा को त्यागना – परिवार में महिलाओं को समुचित स्थान दिया जाये। उनकी उपेक्षा नहीं की जाये। उनके साथ सौतेला व्यवहार नहीं किया जाये।

(iii) आर्थिक स्थिति – महिलाओं की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति की जाये। परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ रखा जाये। महिलाओं को अर्थाभाव का आभास नहीं होने दिया जाये।

(iv) सद-साहित्य का प्रकाशन – परिवार में सद-साहित्य को स्थान दिया जाये। अश्लील साहित्य, दूरदर्शन के अश्लील चैनल एवं इन्टरनेट से परिवार को दूर रखा जाये।

(v) पुनर्वास की व्यवस्था – महिला अपराधियों के पुनर्वास की व्यवस्था की जाये। उनके साथ संवेदनशीलता रखी जाये तथा उन्हें सुधरने का अवसर प्रदान किया जाये।

(vi) संगति – महिलाओ को अपराधी प्रवृत्ति के पुरुषों एवं महिलाओं की संगति से बचाया जाये तथा महिलाओं को समय-समय पर धार्मिक आध्यात्मिक एवं नैतिकता की शिक्षा दी जाये। उनमें मानवीय मूल्यों (Human Values) का संचार किया जाये और उन्हें कामवासना की प्रवृत्ति से विमुख रखा जाये।

(vii) विवाह-विघटन – विवाह-विघटन को रोका जाये तथा परिवार को टूटने से बचाया जाये।

(viii) अश्लील नृत्य गृहो, रात्रिकालीन क्लबों सौन्दर्य प्रतियोगिताओं की और महिलाओ को आकर्षित न होने दें।

(ix) महिलाओं को भीड़ वाले घरों एवं सार्वजनिक स्थानों से दूर रखा जाये।

(x) अपराध कारित करने में पुरुषों द्वारा महिलाओं का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति पर कठोर कानूनी अंकुश लगाया जाये।

(xi) महिलाओं के विरुद्ध कुप्रथाओं (सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज) आदि का उन्मूलन किया जाये।

महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा को रोकने के लिए महिलाओं का घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005 पारित किया गया है। मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा इस अधिनियम को संवैधानिक ठहराया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 15(3) के अन्तर्गत महिलाओं एवं बालकों के हितों के संरक्षण के लिए विशेष कानून बनाया जा सकता है। (डी. पॉलराज बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया एआई आर. 2009 एन.ओ.सी. 2540 चेन्नई)

यह अधिनियम इसके प्रभाव में आने की तिथि के पूर्व एवं पश्चात् के सभी कृत्यों के विरुद्ध घरेलू महिलाओं को संरक्षण प्रदान करता है। (वी.डी. भानोत बनाम सविता भानोत, ए.आई. आर. 2012 एससी 965)

महिला अपराधों को रोकने के लिए इनके अलावा और भी सार्थक उपाय किये जा सकते हैं।

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