इस आलेख में महात्मा गांधी हत्याकांड का संक्षिप्त तथ्यों सहित आसान भाषा में उल्लेख दिया गया है, हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कब एंव किन्होने की तथा उस सम्बन्ध में कानूनी प्रक्रिया क्या रही थी को इस आलेख बताया गया है

महात्मा गांधी हत्याकांड

तारीख़ 30 जनवरी, 1948 के दिन हमारे राष्ट्रपिता श्री महात्मा गांधी की नाथूराम विनायक एंव उनके साथियों ने आपस में षड्यंत्र रच नाथूराम गोडसे उनके पैर छूने का बहाना करते हुए महात्मा गांधी  सामने गए और उन पर बैरेटा पिस्तौल से गोलियाँ मारकर हत्या कर दी थी| नाथूराम गोडसे, एक हिंदू महासभाई थे।

महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को की गई जिसकी एफ.आई.आर. उसी दिवस सांय 5:17 बजे दर्ज नंदलाल मेहता द्वारा तुगलक रोड थाने में दर्ज करवाई गई। पुलिस ने 27 मई, 1948 को आरोप पत्र प्रस्तुत किया,

पुलिस ने आरोप पत्र में 11 व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया जिसमे से गंगाधर दंडवती, गंगाधर जाधव व सुरदेव शर्मा को फरार घोषित किया गया तथा अभियोजन गवाहों की संख्या 149 थी|

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अपराध की धारा :-

आरोपीगण पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120बी, 109, 114, 115 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3, 4, 5 व 6 और भारतीय शस्त्र अधिनियम की धारा 19 के तहत अपराध आरोपित किए गए।

मुकदमा दिल्ली के लाल किला स्थित विशेष न्यायालय में आयोजित किया गया। 4 मई, 1948 को बॉम्बे सार्वजनिक सुरक्षा उपाय अधिनियम, 1947 की धारा 10 और 11 के तहत विशेष न्यायालय का गठन किया गया था। 22 जून 1948 को The Crown versus Nathuram Vinayak Godse and Others” के अनवान से मुकदमा शुरू हुआ, जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति आत्मा चरण ने की| 

गवाह और सबूतों की जांच 06 नवंबर, 1948 को संपन्न हुई तथा 10 फरवरी, 1949 को विशेष न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया जो फैसला 27 अध्यायों में विभाजित और 110 पृष्ठों में था।

महात्मा गांधी की हत्या के आरोपीगण एंव उनकी सजा

महात्मा गांधी की हत्या में शामिल अभियुक्तगण का विवरण और न्यायालय द्वारा दी गई सजा –

Names of Accused Persons Sentence awarded by Special Court
Nathuram Godse Death by hanging
Narayan D Apte Death by hanging
Vishnu Karkare Imprisonment for life
Digambar R Badge (approver) Was tendered a pardon on 21st June, 1948
Madanlal K Pahwa Imprisonment for life
Shankar Kisstaya Imprisonment for life
Gopal Godse Imprisonment for life
Vinayak Damodar Savarkar Acquitted
Dattatraya Parchure Imprisonment for life

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विनायक सावरकर को बरी करने के कारण –

ट्रायल कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि, विनायक सावरकर के खिलाफ अभियोजन का मामला केवल अनुमोदनकर्ता के साक्ष्य पर निर्भर है तथा विनायक सावरकर के खिलाफ अनुमोदनकर्ता के साक्ष्य को आधार बनाकर कोई निष्कर्ष निकालना असुरक्षित होगा।

इसलिए यह मानने का कोई कारण नहीं है कि दिनांक 20.01.1948 और 30.01.1948 को दिल्ली में जो कुछ हुआ उसमें विनायक डी. सावरकर का कोई हाथ था।

उच्च न्यायालय के समक्ष अपील –

सभी दोषी व्यक्तियों द्वारा शिमला में पूर्वी पंजाब उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ 02 मई, 1949 को अपील दायर की गई।

21 जून, 1949 को अपील पर निर्णय देने वाली विशेष पीठ के तीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.एन. भंडारी, न्यायमूर्ति जी.डी. खोसला और न्यायमूर्ति अछरू राम ने पांच आरोपियों की सजा को बरकरार रखा और दो आरोपियों यानी दत्तात्रय परचुरे और शंकर किस्तैया को बरी कर दिया।

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अपीलीय न्यायालय द्वारा दी गई दोषसिद्धि और सजा –

Names of
Accused
Convicted/Acquitted Execution
Nathuram
Godse
Upheld the conviction (death penalty) ( He appealed against conspiracy charge ) Hanged in Ambala Jail on 15 November, 1949th
Narayan D.
Apte
Upheld the conviction (death penalty) Hanged in Ambala Jail on 15 November, 1949
Vishnu
Karkare
Upheld the conviction Released from jail in October 1964
Madanlal K
Pahwa
Convicted Released from jail in October 1964
Shankar
Kisstaya
Acquitted
Gopal Godse Convicted Released from jail in October 1964
Dattatraya
Parchure
Acquitted

शंकर किस्ताया और दत्तात्रय परचुरे के बरी होने के कारण –

शंकर किस्ताया को बरी करने का मुख्य कारण साजिश के आरोप में दोषसिद्धि को उचित ठहराने के लिए अपर्याप्त सामग्री थी तथा दत्तात्रय परचुरे के संबंध में गवाहों की साक्ष्य अविश्वसनीय और असंतोषजनक थी और अपुष्ट वापस ली गई स्वीकारोक्ति को छोड़कर, जो वास्तव में अनैच्छिक थी, इस मामले में दत्तात्रय परचुरे की संलिप्तता के संबंध में कोई अन्य सबूत नहीं थे।

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हत्या के सम्बन्ध में उच्च न्यायालय के कुछ निष्कर्ष –

माननीय न्यायालय ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या की साजिश मौजूद थी। आप्टे और नाथूराम गोडसे पूरी योजना में “मुख्य आयोजक” बने रहे।

जस्टिस अछरू राम और जस्टिस भंडारी ने कम उम्र के कारण गोपाल गोडसे और मदनलाल पाहवा की सजा कम करने की सिफारिश की, लेकिन जस्टिस खोसला ने मदनलाल पाहवा की सजा कम करने की जस्टिस अछरू राम की सिफारिश पर असहमति जताई।

न्यायमूर्ति अछरु राम ने कहा, “दोनों काफी युवा हैं और अपने जीवन के शिखर पर हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों ही मजबूत और अधिक दृढ़ व्यक्तियों द्वारा उन पर डाले गए प्रभाव के आगे झुक गए हैं।”

न्यायमूर्ति खोसला ने अपने फैसले में कहा, “हालांकि, मैं अपने विद्वान भाई अछरु राम जे द्वारा मदनलाल पाहवा के पक्ष में की गई दया की सिफारिश से खुद को अलग करना चाहता हूं। मूल रूप से रची गई साजिश की योजना में पाहवा ने बहुत प्रमुख भूमिका निभाई है।

न्यायमूर्ति भंडारी ने कहा कि दिल्ली पुलिस के खिलाफ विशेष न्यायाधीश की टिप्पणियाँ अनुचित थीं और “किसी भी पुलिस अधिकारी के लिए, चाहे वह कितना भी सक्षम और कुशल क्यों न हो, नाथूराम को अपराध करने से रोकना असंभव था”

दिल्ली पुलिस की ओर से ढिलाई के सवाल पर, न्यायमूर्ति भंडारी ने कहा कि, “रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत मुझे संतुष्ट करते हैं –

(ए) कि पुलिस को उन परिस्थितियों को समझाने का कोई अवसर नहीं दिया गया, जिन्होंने उन्हें 30 जनवरी से पहले नाथूराम को पकड़ने से रोका और इस तरह महात्मा गांधी का जीवन बचाया।

(बी) कि मदनलाल पुलिस को साजिशकर्ताओं के नाम बताने में विफल रहे

(सी) यदि उन नामों की आपूर्ति की गई थी, तब भी पुलिस के लिए नाथूराम को गिरफ्तार करना बेहद मुश्किल था, लेकिन असंभव नहीं था, जो फर्जी नामों के तहत एक जगह से दूसरी जगह जा रहा था और जो अपना जीवन खतरे में डालकर भी महात्मा गांधी की हत्या करने पर आमादा था।

न्यायमूर्ति श्री अछरु राम ने कहा कि, “समाप्त करने से पहले मैं 20 और 30 जनवरी 1948 के बीच की अवधि के दौरान जांच में दिखाई गई ढिलाई के बारे में विद्वान विशेष न्यायाधीश द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों पर ध्यान देना चाहता हूं।

विद्वान न्यायाधीश की राय में, त्रासदी को रोका जा सकता था। मुझे कहना होगा कि मैं इन टिप्पणियों के लिए बिल्कुल भी कोई औचित्य नहीं खोज पाया हूं, जो मेरे विचार से पूरी तरह से अनावश्यक थे।

इस मामले में न्यायमूर्ति श्री खोसला ने कहा, “मैं अपने विद्वान भाइयों भंडारी और अछरू राम जेजे द्वारा निकाले गए निष्कर्षों से सहमत हूं।”

महात्मा गाँधी की हत्या में उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए सभी पांचो आरोपीगण – नाथूराम गोडसे, आप्टे, करकरे, पाहवा और गोपाल गोडसे द्वारा प्रिवी काउंसिल में अपील करने हेतु विशेष अनुमति के लिए एक याचिका दायर की गई थी जिसे अस्वीकार कर दिया गया था।

लगभग 75 वर्षों के बाद, अप्रैल 2023 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई जिसमें 1948 में महात्मा गांधी हत्या मामले में गलत सुनवाई का आरोप लगाया गया।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए अभिनव भारत कांग्रेस पर 25,000/- रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि, “यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सबसे गलत धारणा वाली याचिका है। पक्षकार किसी भी दलील या अपनी इच्छानुसार प्रार्थना के साथ सर्वोच्च न्यायालय में नहीं जा सकते है।

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