अनुच्छेद 63 से 73 | भारत के उपराष्ट्रपति के संवैधानिक प्रावधान, योग्यता एवं निर्वाचन

इस आलेख में भारतीय संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 63 से 73 में क्या है? | भारत के उपराष्ट्रपति के संवैधानिक प्रावधान, योग्यता एवं निर्वाचन कैसे किया जाता है | Article 63 to 73  Indian Constitution | Election of Vice-President  के विषय में बताया गया है, उम्मीद है की यह आलेख आपको जरुर पसंद आएगा –

भारत के उपराष्ट्रपति

भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा जिसका पद देश का दूसरा उच्चतम सवैधानिक पद होगा| यह सभी जानते है की भारत के उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए होता है, लेकिन वह समय से पहले भी पाने पद का त्याग राष्ट्रपति के नाम त्याग पत्र देकर कर सकता है|

भारत के उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद 63 से 73)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 से 73 तक में भारत के उपराष्ट्रपति से सम्बंधित अनेक प्रावधान किये गए है जिनके तहत भारत के उपराष्ट्रपति अपने पद्विय कार्यो को पूर्ण करता है, उपराष्ट्रपति के संबध में संविधान के अनुच्छेद निम्नलिखित है –

अनुच्छेद 63. भारत का उपराष्ट्रपति 

भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।

अनुच्छेद 64. उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना 

 उपराष्ट्रपति, राज्यसभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नही करेगा

– परंतु जिस किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह अनुच्छेद 97 के अधीन राज्य सभा के सभापति को संदेय वेतन या भते का हकदार नहीं होगा।

अनुच्छेद 65. राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन –

(1) राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है।

 (2) जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।

(3) उपराष्ट्रपति को उस अवधि के दौरान और उस अवधि के संबंध में, जब वह राष्ट्रपति के रूप में इस प्रकार कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, राष्ट्रपति की सभी शक्तियां और उन्मुक्तियां होंगी तथा वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का जो संसद्, विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट है, हकदार होगा।

भारत के उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

भारत के उपराष्ट्रपति का निर्वाचन अनु. 66 के तहत संसद के दोनों सदन मिलकर करते है और भारत के उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बंधित किसी विषय का विनियमन संसद विधि बनाकर कर सकती है, और निर्वाचन में भारत के उपराष्ट्रपति की अर्हताए वही होगी जो राष्ट्रपति की होती है| संविधान के अनुच्छेद 66 के तहत निर्वाचन की कार्यवाही निम्न है –

अनुच्छेद 66. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन –

(1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।

(2) उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।

(3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह –

(क) भारत का नागरिक है,

(ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और

(ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है ।

(4) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।

स्पष्टीकरण – इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या ……… उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।

अनुच्छेद 67. उपराष्ट्रपति की पदावधि 

उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा,

परंतु –

(क) उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा,

(ख) उपराष्ट्रपति, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा जिसे राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत ने पारित किया है और जिससे लोक सभा सहमत है, किंतु इस खंड के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो,

(ग) उपराष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।

अनुच्छेद 68. उपराष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि

 (1) उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा।

 (2) उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने के पश्चात् यथाशीघ्र किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति, अनुच्छेद 67 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।

अनुच्छेद 69. उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान –

प्रत्येक उप-राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समझ निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात् :-

“मैं अमुक ……………………..  ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूंगा।

अनुच्छेद 70. अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन –

संसद्, ऐसी किसी आकस्मिकता में जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठीक समझे।

अनुच्छेद 71. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषय –

(1) राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और विवाद की जांच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।

(2) यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया जाता है तो उसके द्वारा यथास्थिति, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन में उच्चतम न्यायालय के विनिश्चय की तारीख को या उससे पहले किए गए कार्य उस घोषणा के कारण अविधिमान्य नहीं होंगे।

(3) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त किसी विषय का विनियमन संसद विधि द्वारा कर सकेगी।

(4) राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के रूप में किसी व्यक्ति के निर्वाचन को उसे निर्वाचित करने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों में किसी भी कारण से विद्यमान किसी रिक्ति के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 72. क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबनपरिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति 

(1) राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए सिदधदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षम, उसका विलंबन विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की –

(क) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश सेना न्यायालय ने दिया है,

(ख) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश ऐसे विषय संबंधी किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए दिया गया है जिस विषय तक संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।

(ग) उन सभी मामलों में, जिनमें दंडादेश, मृत्यु दंडादेश है, शक्ति होगी

(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात संघ के सशस्त्र बलों के किसी आफिसर की सेना न्यायालय द्वारा पारित दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की विधि द्वारा प्रदत्त शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।

(3) खंड (1) के उपखंड (ग) की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रयोक्तव्य मृत्यु दंडादेश के निलंबन परिहार या लघुकरण की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी। भारत के उपराष्ट्रपति

अनुच्छेद 73. संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार –

(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार –

(क) जिन विषयों के सम्बन्ध में संसद को विधि बनाने कि शक्ति है उन तक, और

(ख) किसी संधि या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयोक्तव्य अधिकारों, प्राधिकार और अधिकारिता के प्रयोग तक, होगा

– परंतु इस संविधान में या संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि में अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, उपखंड (क) में निर्दिष्ट कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य में ऐसे विषयों तक नहीं होगा जिनके सम्बन्ध में उस राज्य के विधान-मंडल को भी विधि बनाने की शक्ति है।

(2) जब तक संसद् अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, कोई राज्य और राज्य का कोई अधिकारी या प्राधिकारी उन विषयों में, जिनके संबंध में ससंद को उस राज्य के लिए विधि बनाने की शक्ति है, ऐसी कार्यपालिका शक्ति का या कृत्यों का प्रयोग कर सकेगा जिनका प्रयोग वह राज्य या उसका अधिकारी या प्राधिकारी इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले कर सकता था। भारत के उप-राष्ट्रपति भारत के उपराष्ट्रपति भारत के उपराष्ट्रपति

  • Source Indian Constitution – Bare Act

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