इस आलेख में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण से सम्बन्धित कानूनी प्रावधान क्या है | भरण-पोषण करने में उपेक्षा करने या इन्कार करने पर दण्ड से सम्बन्धित प्रावधान, पत्नी कब भरण पोषण की हक़दार नहीं होती है
और किन परिस्थितियों में पत्नी को अपने पति से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है? क्या यह अधिकार अधर्मज सन्तान एवं माता-पिता को भी है आदि बातों का उल्लेख किया गया है –
भरण-पोषण का अधिकार –
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 पत्नी, सन्तान एवं माता-पिता के भरण-पोषण के अधिकार के बारे में प्रावधान करती है, इसके अनुसार यदि पर्याप्त साधनों (Sufficient means) वाला कोई व्यक्ति –
(क) अपनी पत्नी का, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या
(ख) अपनी धर्मज या अधर्मज (legitimate or illegitimate) अवयस्क सन्तान का चाहे विवाहित हो या ना हो, जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, या
(ग) अपनी धर्मज या अधर्मज सन्तान का (जो विवाहित पुत्री नहीं हैं) जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी सन्तान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या
(घ) अपने पिता या माता का, जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं, का भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इन्कार करता है, उस स्थिति में ऐसी पत्नी, सन्तान एवं माता-पिता अपने पति, पिता एवं पुत्र से प्रतिमाह भरण-पोषण की युक्तियुक्त एंव निर्धारित राशि प्राप्त करने के हक़दार होंगे।
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अमोद कुमार श्रीवास्तव बनाम स्टेट ऑफ उत्तरप्रदेश के मामले अनुसार – पुत्रियां वयस्क होने के पश्चात् भरण पोषण की तभी हक़दार हो सकती हैं जब वे किसी शारीरिक या मानसिक अयोग्यता के कारण अपना भरणपोषण करने में असमर्थ हो। (ए.आई. आर. 2009 एन.ओ.सी. 497 इलाहाबाद)।
इससे यह स्पष्ट है कि संहिता की धारा 125 के अन्तर्गत पत्नी, सन्तान एवं माता-पिता भरण पोषण पाने के हकदार है। लेकिन इसके लिए आवश्यक यह है, कि –
(क) भरण-पोषण का दावा करने वाला व्यक्ति अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो,
(ख) वह व्यक्ति जिससे भरण-पोषण का दावा किया जाता है, भरण पोषण के लिए पर्याप्त साधन (Sufficient means) रखता हो
(ग) ऐसे व्यक्ति ने अपनी पत्नी, सन्तान या माता-पिता की उपेक्षा कर रखी हो या उसने भरण-पोषण करने से इन्कार कर दिया हो।
यह पत्नी से तात्पर्य ऐसी स्त्री से भी है जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और पुनर्विवाह नहीं किया है।
रोहतास सिंह बनाम श्रीमती रामेन्द्री के मामले में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि – विवाह विच्छेद के बाद भी भरण-पोषण के प्रयोजनार्थं स्त्री पत्नी की हैसियत रखती है और वह भरण पोषण पाने की हक़दार है। (ए. आई. आर 2000, एस. सी. 952)
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अवयस्क विवाहित पुत्री का अधिकार
कई बार हमारे सामने यह प्रशन आता है कि, क्या अवयस्क विवाहित पुत्री भी अपने पिता से भरण- पोषण की माँग कर सकती है, यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संहिता की धारा 125 के अधीन ऐसी अवयस्क विवाहित पुत्री भी अपने पिता से भरण-पोषण पाने की मांग कर सकती है –
(i) जिसके पति के पास भरण-पोषण के पर्याप्त साधन नहीं हो या
(ii) जब तक वह वयस्क नहीं हो जाये।
अधर्मज सन्तान का अधिकार
संहिता की धारा 125 (1) ख एवं (ग) के अन्तर्गत अधर्मज सन्तान (illegitimate children) को भी अपने पिता से भरण-पोषण पाने का हक़दार माना गया है, यदि –
(i) वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है;
(ii) अवयस्क है; और
(iii) यदि वयस्क है तो शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
श्रीमती यमुनाबाई अनन्तराव बनाम अनन्तराव शिवराम के मामले में – अधर्मज सन्तान को अपने पिता से भरण-पोषण पाने का हक़दार माना गया है। (ए. आई. आर. 1988, ए. सी. 644)
माता-पिता का अधिकार
संहिता की धारा 125 (1) (घ) के अन्तर्गत माता-पिता भी अपने पुत्र से भरण-पोषण की मांग निम् स्थितियों में कर सकते है, यदि –
(i) वे स्वयं अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो, या
(ii) पुत्र के पास भरण-पोषण के पर्याप्त साधन हों।
डॉ. श्रीमती विजय मनोहर अरबट बनाम काशीराव राजाराम सवाई के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है कि – माता-पिता का भरण-पोषण करने का दायित्व न केवल पुत्रों का है, अपितु विवाहित पुत्रियों का भी है। (ए. आई. आर. 1987 एस. सी. 1100)
दीनबन्धु बनाम श्रीमती बिरजो बाई के मामले में यह निर्धारित किया गया है कि – सौतेली माता जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है तथा अलग रह रही है, अपने सौतेले पुत्रों से भरणपोषण पाने की हकदार है। (ए.आई. आर. 2015 छत्तीसगढ़ 136)
पत्नी का अधिकार
संहिता की धारा 125 (4) के अन्तर्गत पत्नी (Wife) निम्नलिखित स्थितियों में अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने की हक़दार नहीं मानी है –
(क) जब वह जारता ( adultery) की दशा में रह रही हो,
(ख) जब वह बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इन्कार कर दे,
(ग) जब दोनों (पति-पत्नी) आपसी सहमति से अलग अलग रहने लग जायें।
मो. अब्दुल सत्तार बनाम स्टेट ऑफ आसाम के मामले में निर्धारित किया गया है कि, जारता के आधार पर भरणपोषण की निरर्हता केवल तब तक रहती है जब तक पत्नी जारता (adultery) की दशा में रह रही हो। जैसे ही वह जारता का जीवन बन्द कर देती है, वह भरणपोषण की हक़दार हो जाती है (ए. आई. आर. 2009 एन.ओ.सी. 212 गुवाहाटी)
देवनारायण हलदर बनाम श्रीमती अनुश्री हलदर के मामले में न्यायालय द्वारा ऐसी पत्नी को पति से भरण-पोषण पाने का हक़दार नहीं माना गया जो बिना किसी युक्तियुक्त कारण के अपने पति से पृथक् रह रही थी। (ए.आई.आर. 2003, एस. सी. 2174)
पत्नी युक्तियुक्त कारण से पति से अलग रहकर भरण-पोषण का दावा कर सकती है, जब पति ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दें जिससे पत्नी को विवश होकर पति से अलग रहना पड़े, तब वह पति से अलग रहते हुए भी भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार है।
निम्नांकित दशाओं को अलग रहने का युक्तियुक्त कारण माना गया है –
(क) जब पति किसी अन्य स्त्री से विवाह कर ले
(ख) जब पति अपने साथ रखेल (concubine) रखने लग जाये
(ग) जब पति द्वारा पत्नी के साथ निर्दयता (cruelty) का व्यवहार किया जाये
(घ) जब पति नपुंसक होने के कारण लैंगिक संभोग करने में असमर्थ हो।
श्रीमती सावित्री देवी बनाम मनसाराम के मामले अनुसार – ऐसी पत्नी को अपने माता-पिता के पास रहते हुए भरण-पोषण का हक़दार माना गया जिसे पति द्वारा सताया जाता था, उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया जाता था तथा दहेज की माँग कर शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था। (ए.आई. आर. 2009 एन.ओ.सी. 508 उत्तरांचल)
भरण-पोषण की राशि
संहिता की धारा 125 के अन्तर्गत भरण-पोषण की राशि निर्धारित नहीं है। पहले यह राशि प्रति व्यक्ति अधिकतम ₹ 500/- थी, लेकिन दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा इसकी अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया है। अब यह राशि मजिस्ट्रेट के विवेक पर निर्भर करती है।
मजिस्ट्रेट द्वारा भरण-पोषण की उतनी राशि का आदेश दिया जा सकता है, जितना वह उचित समझे। सामान्यतः यह राशि पक्षकारों की हैसियत, आवश्यकता, पति की आय आदि को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है।
अनिता कृष्णकुमार बनाम कृष्ण कुमार रामचन्द्र के मामले अनुसार – भरण पोषण की राशि में परिस्थितियों में तब्दीली के आधार पर धारा 127 के अन्तर्गत परिवर्तन किया जा सकता है। यह राशि कम भी हो सकती है और अधिक भी। पति की आय को दृष्टिगत रखते हुए भरण-पोषण की राशि में वृद्धि भी की जा सकती है। (ए.आई. आर. 2003 मुम्बई 273)
जसवीर कौर बनाम जिला जज, इलाहाबाद के मामले अनुसार – भरण पोषण की राशि पक्षकारों के जीवन स्तर, आर्थिक स्थिति एवं परवर्ती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जानी चाहिये। यह राशि इतनी कम नहीं होनी चाहिये कि पत्नी एवं बच्चे सामान्य जीवन भी न जी सके। (ए.आई.आर. 1997 ए. सी. 3397)
भरण पोषण कब से देय होगा
संहिता की धारा 125 (2) के अनुसार भरण-पोषण की राशि –
(क) आदेश की तारीख से, या
(ख) आवेदन किये जाने की तारीख से, देय हो सकती है।
भरण पोषण के लिए आवेदन
संहिता की धारा 126 के अनुसार किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 125 के अन्तर्गत कार्यवाही किसी ऐसे जिले में की जा सकती है –
(क) जहाँ वह है,
(ख) जहाँ वह या उसकी पत्नी निवास करती है,
(ग) जहाँ उसने अंतिम बार, यथास्थिति, अपनी पत्नी के साथ या अधर्मज सन्तान की माता के साथ निवास किया है।
इस सम्बन्ध में कुमुदम बनाम कन्नप्पम का एक प्रमुख मामला है, इसमें पत्नी ए नामक स्थान पर निवास करती थी और वहीं पर उसके द्वारा भरण-पोषण के लिए आवेदन किया गया था।
मजिस्ट्रेट द्वारा वह प्रार्थना-पत्र इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि पति उस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में नहीं रहता था उच्चतम न्यायालय ने इसे सही नहीं माना और यह निर्धारित किया कि जहाँ पत्नी निवास करती है वहाँ आवेदन किया जा सकता है। (ए. आई. आर. 1999, एस. सी. 839)
आदेश का पालन नहीं करने पर
संहिता की धारा 125 (3) में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति भरण पोषण के आदेश का पालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो ऐसे आदेश के प्रत्येक भंग के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा भरण पोषण की राशि की वसूली के लिए वारन्ट जारी किया जा सकेगा
और वारन्ट के निष्पादन के पश्चात् प्रत्येक माह के ना चुकाये गये भरण-पोषण या उसके किसी भाग के लिए ऐसे व्यक्ति को एक माह तक की अवधि के लिए कारावास का दण्डादेश दिया जा सकेगा।
सुओ मोट बनाम स्टेट ऑफ गुजरात के मामले में उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि, यदि भरण पोषण के आदेश की पालना नहीं की जाती है तो मजिस्ट्रेट द्वारा व्यतिक्रमी (defaulter) को प्रत्येक माह के लिए एक माह तक के कारावास से दण्डित किया जा सकता है। (ए.आई. आर. 2009 एन.ओ.सी. 499 गुजरात)
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भरण पोषण की राशि अदा नहीं किये जाने पर कारावास के दण्डादेश से पति अपने दायित्व से उन्मोचित नहीं हो जाता है जबकि यह भरण-पोषण की राशि वसूल करने का एक तरीका है।
यदि भरण पोषण की राशि को पहले ही चुका दिया जाता है तो चुका देने के समय तक के लिए ही कारावास का दण्डादेश दिया जायेगा।
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संदर्भ :- बाबेल लॉ सीरीज (बसन्ती लाल बाबेल)
बूक : दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (सूर्य नारायण मिश्र)