बम्बई में न्याय प्रशासन का विकास | Administration Of Justice In Bombay

इस आलेख मै बम्बई में न्याय प्रशासन का विकास किस प्रकार और कितने चरणों में हुआ को आसान शब्दों में समझाया गया है, यदि आप भारत के कानूनी इतिहास में रूचि रखते है तब आपके लिए यह आलेख और भी उपयोगी है

बम्बई में न्याय प्रशासन

सन 1661 मै पुर्तगाल के राजा ने अपनी बहन का विवाह ब्रिटिश सम्राट चालर्स द्वितीय के साथ एक संधि के रूप में करके बम्बई को दहेज़ में सौंपा दिया था| उसके बाद 27 मार्च 1968 को ब्रिटिश सम्राट चालर्स द्वितीय ने बम्बई को एक चार्टर के अंतर्गत 10 पौंड वार्षिक लगान में कंपनी को सौंप दिया| इसी दिन से बम्बई में कंपनी प्रशासन का उदय हो गया|

इस प्रकार सन 1668 में कंपनी ने बम्बई में न्याय प्रशासन को प्रारम्भ किया जिसमे कानून बनाने तथा आंगल न्यायालयों पर न्याय व्यवस्था स्थापित करने का अधिकार कंपनी को मिल गया|

बम्बई में न्याय प्रशासन के चरण

बम्बई में न्याय प्रशासन के विकाश को तीन चरणों में विभक्त किया गया है

प्रथम चरण (सन 1670 से 1683)

प्रथम चरण को भी दो योजनाओ या दो उप चरणों में रखा गया है (1670 से 1672 तथा 1672 से 1683 तक)

बम्बई में सन 1670 में राज्यपाल जेराल्ड आंगियर (Gerald Aungier) के कार्यकाल में न्यायिक प्रशासन सुधार की पहली योजना शुरू की गई थी, इस योजना में दो प्रकार के न्यायालय बने –

(i) निम्न स्तरीय न्यायलय

(ii) उच्च स्तरीय न्यायलय

जेराल्ड आंगियर बहुत ही सद्भावी, शांति प्रिय और न्याय पसंद था इसलिए उनकी न्यायिक व्यवस्था भी सुगम व सरल थी| प्रत्येक न्यायालय में पांच न्यायाधीश होते थे| इन न्यायालयों को 200 झिरोफिस (Xeraphins) तक के दीवानी (Civil) मामलों में सुनवाई करने का आधिकार था|

इन न्यायालयों में भारतीयों को भी न्यायाधीश बनाने का प्रावधान था लेकिन फिर भी यह कामयाब नहीं हुई जिसका कारण यह था की इनके अंदर व्यापारी न्यायाधीश होते थे जिन्हें कानून का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था जिस कारण से सही निर्णय नहीं हो पाता था|

प्रथम चरण में जो न्याय व्यवस्था बनाई गई थी वह 1683 में केजविन के विद्रोह के कारण नष्ट हो गई थी और फिर आगामी एक वर्ष तक कोई न्याय पालिका लागु नहीं की जा सकी|

द्वितीय चरण (सन 1684 से 1690)

सन 1684 से 1690 का दौर बम्बई में न्यायिक प्रशासन का द्वितीय चरण माना जाता हें इस समय दो प्रकार के न्यायलय बने –

(i) सामुद्रिक अर्थात नौ सेना न्यायालय (Admirality Court)

इस कोर्ट की स्थापना सन 1684 में सूरत में की गई थी और उसके बाद इसे बम्बई में स्थापित किया गया| इस न्यायालय को सामुद्रिक मामलो की सुनवाई करने का अधिकार दिया गया लेकिन बम्बई में सिविल एंव आपराधिक मामलों को सुनाने वाला अन्य कोई न्यायालय नहीं होने के कारण इन मामलों को सामुद्रिक न्यायालय ने सुनवाई करना शुरू कर दिया था|

सामुद्रिक अर्थात नौ सेना न्यायालय (Admirality Court) से दीवानी (Civil) एंव आपराधिक मामलों का अधिकार कंपनी के गवर्नर चाइल्ड (Child) तथा न्यायाधीश डॉ.सेंट जॉन के बीच मतभेद बढ़ जाने के कारण इसका अधिकार वापस ले लिया|

(ii) कोर्ट ऑफ़ जूडीकेचर (Court Of Judicature)

सन 1685 में बम्बई में सिविल एंव आपराधिक मामलों को सुनाने के लिए एक नये न्यायालय कोर्ट ऑफ़ जूडीकेचर की स्थापना की गई| इसके प्रथम न्यायाधीश वॉक्स (Vaux) बनाए गये| इन न्यायालयों में सुनवाई जूरी द्वारा की जाती थी|

सन 1690 में मुग़ल नौ सैनिक सिद्दी याकुब द्वारा बम्बई पर आक्रमण कर बम्बई को अंग्रेजो से छीन लेने के कारण सन 1690 से सन 1718 तक कुछ समय के लिए ये न्यायालय समाप्त हो गए  जिस कारण बम्बई में कोई न्यायालय स्थापित नहीं हो सके ऐसी स्थति सन 1718 तक बनी रही|

तृतीय चरण (सन 1690 से 1718)

बम्बई में सन 1690 से 1718 तक अन्तराल के समय के बाद यानि लगभग 30 वर्षो के बाद वापस न्यायिक प्रशासन को शुरू किया गया और बम्बई में वापिस कोर्ट ऑफ़ जूडीकेचर की स्थापना की गई|

कोर्ट ऑफ़ जूडीकेचर न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश अंग्रेज अधिकारी और नौ अन्य न्यायाधीश होते थे| न्यायाधीश के रूप मे चार भारतीय तथा बाकी अंग्रेज न्यायाधीश होते थे| अंग्रेज न्यायाधिशो को English Justices तथा भारतीय न्यायाधिशो को Black Justices कहा जाता था|

इन न्यायालयों को सिविल, आपराधिक एंव वसीयत सम्बन्धी मामलों को सुनने का अधिकार था और यह सप्ताह में एक दिन बुधवार को मामलो की सुनवाई करता था तथा मामलो का निपटारा साम्य, न्याय के आधार होता था|

इसमें भारतीय व्यकित्यो के मामलो की सुनवाई के लिये मध्यस्थो (Arbitrators) की नियुक्ति की गई| यह न्यायिक प्रशासन 10 फ़रवरी 1728 तक लागु रहा उसके बाद सन 1726 के चार्टर के द्वारा नई न्यायिक व्यवस्था का आगमन हुआ|

1726 के राजलेख द्वारा कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास प्रेसीडेन्सी के गवर्नरों को विधि बनाने की शक्ति सौंपी गयी। 1726 के राजलेख द्वारा कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास प्रेसीडेन्सी के गवर्नरों को विधि बनाने की शक्ति सौंपी गई। 1726 के चार्टर के द्वारा भारत स्थित कंपनी को नियम, उपनियम तथा अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी।

इन न्यायालयों के द्वारा दिए गये फैसलों के विरुद्ध सपरिषद राज्यपाल के न्यायालय में अपील करने का प्रावधान था

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