इस लेख में प्रशासनिक विधि के अंतर्गत प्रशासनिक कानून क्या है, इसकी परिभाषा, प्रकृति एंव कार्यक्षेत्र | Define the Administrative Law and give its scope के बारे में बताया गया है, यदि आप वकील, विधि के छात्र या न्यायिक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है, तो ऐसे में आपको प्रशासनिक विधि के बारे में जानना बेहद जरुरी है –
प्रशासनिक कानून
जब से लोक कल्याणकारी राज्यों (Welfare states) का प्रादुर्भाव हुआ है, राज्यों के कार्यों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। जन साधारण एवं जन कल्याण से जुड़े सारे कार्य राज्यों ने अपने हाथों में ले लिये हैं। परिणाम यह हुआ कि प्रशासन (Administration) अत्यन्त शक्तिशाली हो गया और उसके निरंकुश होने की सम्भावनायें प्रबल हो गई।
इन्हीं सम्भावनाओं को निर्मूल करने के लिए प्रशासनिक विधि का अभ्युदय हुआ। यह प्रशासन के विभिन्न अंगों के संगठन, शक्तियों, कृत्यों, अधिकारों एवं दायित्वों का निर्धारण करती है, इसीलिए इसे सार्वजनिक विधि की शाखा कहा जाता है।
प्रशासनिक कानून की परिभाषा
प्रशासनिक कानून की विभिन्न विधिशास्त्रियों एवं न्यायविदों ने अपने-अपने तरीके से अनेक परिभाषायें दी है। वस्तुतः यह विधि न्यायिक निर्णयों द्वारा विकसित विधि होने से आज तक इसकी कोई सार्वभौम परिभाषा नहीं दी जा सकी है।
जेनिंग्स के अनुसार – प्रशासनिक विधि प्रशासन से सम्बन्ध रखने वाली विधि है। यह प्रशासनिक प्राधिकारियों के संगठन, शक्तियों एवं कर्त्तव्यों का निर्धारण करती है। (The Law and the constitution) जेनिंग्स की यह परिभाषा इंग्लैण्ड के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है तथा इसे अनेक विद्वानों ने स्वीकार किया है।
डेविस के अनुसार – प्रशासनिक कानून एक ऐसी विधि है जो प्रशासनिक अभिकरणों (Administrative Agencies) की शक्तियों एवं प्रक्रियाओं से सम्बन्ध रखती है। प्रशासनिक अभिकरण सरकार का एक ऐसा अंग है जो न्यायालय तथा विधानमण्डल से भिन्न है तथा जो व्यक्तियों के अधिकारों को न्याय निर्णयन अथवा नियम निर्मात्री शक्तियों के माध्यम से प्रभावित करता है।
प्रशासनिक कानून में संवैधानिक विधि, कॉमन लॉ तथा अभिकरणों द्वारा निर्मित विधि सम्मिलित है। इसका अधिकांश भाग न्यायालयों द्वारा संविधान एवं परिनियमों के निर्वचन की प्रक्रिया में विकसित हुआ है। (Handbook of Administrative Law) डेविस की यह परिभाषा अमेरिकन दृष्टिकाण का प्रतिनिधित्व करती है।
डायसी के अनुसार – प्रशासनिक विधि किसी भी राज्य की विधि का वह अंग है जो राज्य के सभी प्राधिकारियों की विधिक प्रास्थिति तथा दायित्वों का, राज्य के अधिकारियों के प्रति सामान्य व्यक्तियों के अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का एवं उस प्रशासनिक प्रक्रिया का निरूपण करता है जिसके द्वारा उन अधिकारों व दायित्वों को लागू किया जाता है। (Law of the constitution).
प्रोफेसर हार्ट के अनुसार – प्रशासनिक विधि प्रशासनिक प्राधिकारियों द्वारा निर्मित विधि एवं उन प्राधिकारियों को नियन्त्रित करने की विधि को शामिल करती है।
प्रोफेसर वेड के शब्दों में – यह विधि प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यों तथा नियन्त्रण से सम्बन्ध रखती है और उनके संगठन की अपेक्षा उनके कार्यों पर अधिक बल देती है।
उपरोक्त सभी परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि प्रशासनिक विधि, सार्वजनिक विधि की एक ऐसी शाखा है जिसका सम्बन्ध शासन के विभिन्न अंगों के संगठन, शक्तियों, कृत्यों, अधिकारों एवं दायित्वों से है। यह प्रशासन के अवैध एवं अनुचित कार्यों पर नियन्त्रण रखती है। सार रूप में यह कहा जा सकता है कि यह विधि प्रशासन के विभिन्न अंगों के अधिकारों तथा उनके संगठन की विवेचना करती है।
प्रशासनिक कानून की प्रकृति
प्रशासनिक कानून की परिभाषाओं से उसकी प्रकृति (Nature) स्पष्ट हो जाती है। परिभाषाओं से यह परिलक्षित होता है कि –
(i) प्रशासनिक विधि शासन एवं प्रशासन की शक्तियों के नियन्त्रण से सम्बन्धित विधि है,
(ii) यह शासन एवं प्रशासन के संगठन, उनके अधिकारों, शक्तियों, कृत्यों एवं दायित्वों को सुनिश्चित करने वाली विधि है,
(iii) यह न्यायालयों द्वारा निर्मित विधि है, तथा
(iv) यह प्रशासनिक कार्यों पर नियन्त्रण स्थापित करने वाली ऐसी विधि है। जिसका लक्ष्य विधि के शासन (Rule of Law) एवं प्रशासनिक विवेक के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।
इसकी प्रकृति के कारण ही इसे प्रशासनिक प्राधिकारियों की शक्ति का विज्ञान कहा जाता है। जिसका अध्ययन तीन शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है –
(क) संबंध,
(ख) न्यायिक,
(ग) कार्यपालिक।
प्रशासनिक कानून की प्रकृति का निरूपण करते हुए प्रोफेसर डेविस ने यह कहा है कि, प्रशासनिक विधि प्रशासकीय शक्तियों, प्रक्रियाओं तथा न्यायिक पुनर्विचार (Judicial Review) की विधि से सम्बन्ध रखती है। यह उन सभी सारभूत विधियों (Substantial Law) का उल्लेख नहीं करती जो प्रशासनिक अभिकरणों द्वारा अंगीकृत की जाती है।
प्रशासनिक कानून को प्राधिकरणों के उन्हीं कार्यों तक सीमित रखा गया है जो उनके विधि निर्मात्री अथवा न्याय निर्णयन की शक्तियों से सम्बन्धित है। यह कार्यपालिका अथवा प्रशासकीय कार्यों के न्यायिक पुनर्विचार को भी सम्मिलित करती है।
प्रकृति के सन्दर्भ में ही प्रोफेसर फ्रीउन्ड के विचार भी उद्धरणीय है। फ्रीउन्ड के अनुसार, “प्रशासनिक विधि की प्रमुख समस्याएँ उन सभी विधियों से सम्बन्धित है जो अधिकारी की गुण शक्ति, उनके कार्य, उनकी शक्तियों के उचित प्रयोग के लिए प्रक्रियात्मक अपेक्षायें, प्रशासनिक कार्यों पर न्यायिक नियन्त्रण के लिए उचित अनुतोष तथा प्रशासकीय शक्ति की अधिकारिता तथा उसके क्रियान्वयन के प्रश्नों से जुड़े होते है।”
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रशासनिक आदेशों के द्वारा व्यक्ति के विहित अधिकारों को नहीं छीना जा सकता है। (Administrative order cannot take away vested rights.) (यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एशियन फूड इण्डस्ट्रीज, ए.आई.आर. 2007 एस.सी. 250)
इस प्रकार प्रशासनिक कानून प्रशासन की शक्तियों की प्रकृति तथा इन शक्तियों के प्रयोग की पद्धति से संव्यवहार करती है।
प्रोफेसर ग्रिफिथ के अनुसार प्रशासनिक विधि इस बात की जाँच करती है कि –
(i) प्रशासन किन-किन शक्तियों का प्रयोग करता है,
(ii) इन शक्तियों के प्रयोग में प्रशासन द्वारा किस प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है,
(iii) प्रशासन की शक्तियों की परिसीमायें क्या हैं, तथा
(iv) प्रशासन के अवैध एवं अनुचित कार्यों के विरुद्ध क्या-क्या उपचार (remedies) उपलब्ध है।
प्रशासनिक कानून की प्रकृति के अनुरूप इसका लक्ष्य है –
(क) प्रशासनिक शक्तियों के प्रयोग को लोकहित (public interest) के विपरीत जाने से निवारित करना,
(ख) प्रशासनिक शक्तियों के दुरुपयोग को रोकना तथा उनके प्रयोग को विधि शासन (Rule of law) के अनुरूप सुनिश्चित करना,
(ग) प्रशासनिक विवादों का प्रशासनिक न्यायाधिकरणों (Administrative Tribunals) द्वारा निपटारा करवाना,
(घ) नागरिक अधिकारों एवं हितों को संरक्षण प्रदान करना,
(ङ) प्रशासनिक अधिकारियों को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाना,
(च) नागरिकों को समुचित उपचार उपलब्ध कराना, आदि।
चेयरमैन एण्ड मैनेजिंग डायरेक्टर, यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक बनाम पी.सी. कक्कड़’ (ए.आई. आर. 2003 एस. सी. 1571) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा भी यही कहा गया है कि प्रशासनिक अधिकारियों की नीति निर्धारण प्रक्रिया की कमी को दूर करने के लिए प्रशासनिक न्यायाधिकरणों द्वारा न्यायिक पुनर्विलोकन (Judicial review) की शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है।
‘ए. शनमुगम बनाम ए. के. आर. वी.एम.एन.पी. संगम’ (ए.आई. आर. 2012) एस.सी. 2010) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि – प्रशासनिक एवं न्यायिक कार्यवाहियों का मुख्य उद्देश्य सत्य की खोज करना तथा पक्षकारों के साथ न्याय करना है। (Object of administrative and judicial proceedings is to discern truth and do justice.)
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रशासनिक विनिश्चयों के ऋजु (fair) होने की उपधारणा की जाती है। इनमें न्यायालय द्वारा तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जाता जब तक वे दुर्भावनापूर्ण अथवा असंगत (malafide or irrelevant) न हो। (ऑल आसाम मोडर्न चक्की मिल एसोसियेशन बनाम स्टेट ऑफ आसाम, ए.आई.आर. 2017, एन.ओ.सी. 589 गुवाहाटी)
प्रशासनिक कानून का क्षेत्र
प्रशासनिक कानून के क्षेत्र (scope) के विषय में प्रोफेसर वेड के विचार यहाँ उद्धरणीय है उनके अनुसार, “सार्वजनिक प्राधिकारियों का संगठन, उनकी कार्य शैली, उनके प्रशासकीय एवं न्यायिक अधिकार तथा उन अधिकारियों का न्यायिक नियन्त्रण ही इंग्लैण्ड की प्रशासनिक विधि का क्षेत्र है।”
प्रशासनिक कानून के क्षेत्र के सम्बन्ध में भारत के लिए भी यही बात लागू होती है। भारत में प्रशासनिक अधिकारियों की बढ़ती हुई शक्तियों के सन्दर्भ में उन पर नियन्त्रण स्थापित किया जाना आवश्यक है ताकि वे निरंकुश अर्थात् तानाशाह नहीं बन सके। यही कारण है कि प्रशासनिक कार्यों को न्यायिक नियन्त्रण के अधीन रखा गया है।
प्रशासनिक कानून के क्षेत्रान्तर्गत निम्नांकित बातों को सम्मिलित किया गया है –
(i) इसमें विभिन्न प्रशासनिक निकायों का अध्ययन किया जाता है, जैसे- केन्द्रीय, राजस्व बोर्ड, टैरिफ आयोग, जाँच आयोग, सलाहकारी बोर्ड, वेज बोर्ड, आदि।
(ii) इसमें प्रशासनिक अभिकरणों के न्यायिक कृत्यों का अध्ययन भी किया जाता है, जैसे औद्योगिक न्यायाधिकरण, आयकर पुनर्विचार न्यायाधिकरण आदि।
(iii) प्रशासनिक अभिकरणों की विधि निर्माण की क्षमता, शक्तियों का प्रत्यायोजन शक्तियों के दुरुपयोग की दशा में न्यायिक नियन्त्रण के माध्यम से उपचार उपलब्ध कराना आदि।
(iv) प्रशासकीय शक्तियों का दुरुपयोग किये जाने पर जारी की जाने वाली विभिन्न प्रकार की रिटों, यथा – बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण, अधिकार- पृच्छा, आदि का अध्ययन।
(v) नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों का अनुपालन सुनिश्चित करने की गारन्टी ।
(vi) केन्द्र तथा राज्य सरकार का अपने प्राधिकारियों द्वारा की गई संविदा सम्बन्धी तथा अपकृत्य सम्बन्धी दायित्व,
(vii) लोक निगम (Public corporation) आदि ।
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संदर्भ – बुक प्रशासनिक विधि (डॉ. गंगा सहाय शर्मा)