परिवाद क्या है? परिभाषा, इसके आवश्यक तत्व एंव परिवाद दर्ज करने की प्रक्रिया

आपराधिक मामलों में न्यायिक प्रक्रिया का प्रारम्भ या तो पुलिस रिपोर्ट पर होता है या फिर परिवाद पर। किसी अपराध के कारित होने पर पीड़ित पक्षकार पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष प्रथम सूचना रिपोर्ट पेश कर सकता है या सक्षम न्यायालय में परिवाद (Complaint) पेश कर सकता है।

इस आलेख में परिवाद क्या है?, इसके आवश्यक तत्व एंव परिवाद दर्ज करने की प्रक्रिया तथा परिवाद का प्रारूप कैसा होता है, का उल्लेख किया गया है-

परिवाद क्या है?

“परिवाद” (Complaint) का अर्थ है – किसी व्यक्ति द्वारा न्यायालय में दिया गया वह कथन, जिसमें यह कहा गया हो कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है और उस अपराध के लिए उसे दण्ड दिया जाए|

परिवाद का मुख्य उद्देश्य मजिस्ट्रेट को यह सूचित करना है कि कोई अपराध हुआ है और उस पर कानूनी कार्रवाई की जाए। यह विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी है, जहां पुलिस तुरंत कार्यवाही नहीं कर सकती, जैसे असंज्ञेय अपराध।

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परिवाद की परिभाषा

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2(ज) में शब्द परिवाद की परिभाषा दी गई है, इसके अनुसार –

परिवाद से इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किये जाने की दृष्टि से लिखित या मौखिक रूप में किसी मजिस्ट्रेट से किया गया वह कथन है कि किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, लेकिन इसके अन्तर्गत पुलिस रिपोर्ट नहीं हो।

म्युनिसिपल बोर्ड, मिर्जापुर बनाम रेजिडेन्ट इंजीनियर, मिर्जापुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कं. के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा परिवाद की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि, परिवाद से तात्पर्य ऐसे मौखिक या लिखित दोषारोपण से है जो मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

गणेश बनाम शरणप्पा ( ए.आई.आर. 2014 एस.सी. 1198) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि- “परिवाद से तात्पर्य मजिस्ट्रेट से किये गये लिखित या मौखिक दोषारोपण से है।”

सामान्यतः पुलिस रिपोर्ट को परिवाद नहीं माना जाता है, लेकिन यदि किसी मामले में अन्वेषण के पश्चात किसी असंज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट होता है तो ऐसी दशा में पुलिस अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट को परिवाद एवं पुलिस अधिकारी को परिवादी समझा जायेगा।

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स्टेट ऑफ बिहार बनाम चन्द्रभूषण सिंह के मामले में रेलवे सम्पत्ति (अविधिपूर्ण कब्जा) अधिनियम, 1966 की धारा 8 के अन्तर्गत रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारी द्वारा प्रस्तुत जाँच रिपोर्ट को उच्चतम न्यायालय द्वारा परिवाद माना गया है।

परिवाद के आवश्यक तत्व

परिवाद की उपरोक्त परिभाषा से इसके निम्नलिखित तत्व स्पष्ट होते हैं-

(1) परिवाद लिखित या मौखिक (Written or Oral) किसी भी रूप में हो सकता है। परिवाद का प्रत्येक स्थिति में लिखित होना आवश्यक नहीं है, जैसा कि परिभाषा से ही स्पष्ट है। मजिस्ट्रेट से किया गया मौखिक कथन भी परिवाद हो सकता है।

(2) लिखित या मौखिक कथन परिवाद का रूप तभी ले सकता है जब-उससे किसी अपराध का किया जाना प्रकट होता हो। यदि किया गया कथन विधि द्वारा दण्डनीय किसी अपराध की परिधि में नहीं आता है तो उसे परिवाद नहीं माना जायेगा।

(3) परिवाद हमेशा मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, पुलिस अधिकारी के समक्ष नहीं।

(4) परिवाद का मुख्य उद्देश्य मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किया जाना है।

(5) पुलिस रिपोर्ट परिवाद में सम्मिलित नहीं है। उसे परिवाद केवल तभी माना जा सकता है जब अन्वेषण के पश्चात असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence) कारित होना प्रकट होता हो।

(6) परिवाद में अभियुक्त के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक नहीं है, वह ज्ञात अथवा अज्ञात व्यक्ति हो सकता है।

(7) परिवाद में साक्ष्य एवं साक्षियों का उल्लेख किया जाना आवश्यक नहीं है|

(8) परिवाद का निर्धारित समयावधि में प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। अवधिरुद्ध परिवाद (time barred complaint) को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज किया जाकर अभियुक्त को उन्मोचित (discharge) किया जा सकता है। 

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि परिवाद सम्बन्धी समस्त कार्यवाहियाँ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में विहित रीति से की जानी चाहिए।

परिवाद का कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है। इसका नामकरण भी कोई विशेष महत्व नहीं रखता है। परिवाद की ग्राह्यता के लिए मात्र यह देख लेना चाहिए कि क्या उसमें वर्णित ‘दोषारोपण में कुछ सार है। 

परिवाद एवं प्रथम सूचना रिपोर्ट में अन्तर-

परिवाद एवं प्रथम सूचना रिपोर्ट दोनों ऐसे दस्तावेज हैं जिनसे आपराधिक न्यायिक प्रक्रिया को गति मिलती है, लेकिन इन दोनों में कुछ अन्तर पाया जाता है, यथा-

1. परिवाद मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की जाती है।

2. परिवाद पेश होने पर मजिस्ट्रेट द्वारा जाँच की जाती है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट पेश होने पर पुलिस अधिकारी द्वारा अन्वेषण (Investigation) प्रारम्भ किया जाता है।

3. परिवाद अन्वेषण हेतु पुलिस अधिकारियों को भेजा जा सकता है, जबकि अन्वेषण हेतु मजिस्ट्रेट को नहीं भेजी जा सकती।

4. परिवाद पर जाँच के पश्चात अपराध का प्रसंज्ञान लिया जाता है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट में अन्वेषण के पश्चात आरोप पत्र या अन्तिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।

परिवाद दर्ज करने की प्रक्रिया

  1. न्यायालय का चयन (सामर्थ्य और क्षेत्राधिकार के अनुसार)

  2. परिवाद पत्र तैयार करना

  3. आवश्यक दस्तावेज और गवाह संलग्न करना

  4. न्यायालय में प्रस्तुत करना

  5. न्यायालय द्वारा प्रारंभिक परीक्षण

  6. यदि परिवाद सत्य प्रतीत हो, तो मजिस्ट्रेट आरोपी को समन जारी करता है।

परिवाद के प्रारूप

(क) अपने ही तथ्यों के आधार पर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए परिवाद का प्रारूप तैयार कीजिए।

(ख) मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किये जाने के लिए आपराधिक विविध प्रार्थना पत्र का प्रारूप तैयार कीजिए।

(1) परिवाद

सेवा में,

न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग,

सिरोही (राजस्थान)

क पत्नी ख आयु 32 वर्ष निवासी-सिरोही (राजस्थान)

परिवादिया

बनाम

च आत्मज छ आयु 41 वर्ष निवासी-सिरोही (राजस्थान)

अभियुक्त

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 354 के अन्तर्गत परिवाद,

श्रीमानजी,

परिवादिया का सविनय निवेदन है कि,

(1) परिवादिया सिरोही नगर की निवासी होकर एक साधारण एवं संभ्रान्त महिला है।

(2) अभियुक्त भी सिरोही नगर का निवासी है तथा परिवादिया एवं अभियुक्त दोनों के खेत पास-पास हैं।

(3) परिवादिया दिनांक….. को दिन के करीब…. बजे अपने खेत पर कार्य कर रही थी तभी वहाँ अभियुक्त आ पहुँचा और आते ही परिवादिया के पति के साथ गाली-गलौज करने लगा।

(4) परिवादिया ने जब अपने पति को गाली-गलौज नहीं देने के लिए कहा तो अभियुक्त क्रोधित हो गया और वह परिवादिया को भी गाली-गलौज देने लगा गया। अभियुक्त ने परिवादिया को ऐसे-ऐसे अपशब्द कहे, जिनका परिवादिया यहाँ उल्लेख नहीं कर सकती।

(5) अभियुक्त जब जोर-जोर से चिल्लाने लगा तो वहाँ आस-पास के काफी लोग इकट्ठे हो गये। लोगों ने अभियुक्त को खूब समझाया, लेकिन वह नहीं माना।

(6) अभियुक्त ने अचानक ही परिवादिया की लज्जा भंग करने तथा उसे अपमानित करने के आशय से उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया और उसकी साड़ी हटा दी तथा ब्लाउज फाड़ दिया।

(7) अभियुक्त के इस कृत्य से परिवादिया अत्यन्त लज्जित हुई और उसे लोगों के सामने शर्मिन्दा होना पड़ा।

(8) अभियुक्त का यह कृत्य भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 354 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है।

अतः प्रार्थना है कि अभियुक्त के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के लिए प्रसंज्ञान लिया जाकर उसे दण्डित किया जावे।

सिरोही हस्ताक्षर                            (परिवादिया)
दिनांक 14.1.2019                      हस्ताक्षर (अधिवक्ता)

(2) परिवाद

सेवा में,

न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग

सवाई माधोपुर (राजस्थान)

क आत्मज ख आयु 55 वर्ष निवासी-सवाई माधोपुर (राजस्थान)

परिवादी

बिरुद्ध

च आत्मज छ आयु 20 वर्ष निवासी-सवाई माधोपुर (राजस्थान)

अभियुक्त

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 379 के अन्तर्गत परिवाद

श्रीमानजी,

परिवादी का सविनय निवेदन है कि,

(1) परिवादी सवाई माधोपुर का निवासी होकर सिलाई का धंधा करता है तथा उसकी कुछ खेती भी है।

(2) परिवादी द्वारा उक्त खेत में इस वर्ष गेहूँ कि फसल बोई गई थी। फसल काफी अच्छी रही। गेहूँ की कटाई की जाकर खेत के खलिहान में ही गेहूँ की लगभग 20 बोरियाँ पड़ी हुई थीं।

(3) दिनांक….. को प्रातः जब परिवादी अपने खेत पर गया तो वहाँ गेहूँ की पाँच बोरियाँ कम मिली। परिवादी काफी चिन्तित हुआ और उसने पता लगाना प्रारम्भ कर दिया।

(4) उसे गाँव के ही एक व्यक्ति…. से पता चला कि उसने अभियुक्त को गत रात्रि में परिवादी के खेत से गेहूँ की बोरियाँ ले जाते हुए देखा है।

(5) इस पर परिवादी अभियुक्त के घर गया। वहाँ गेहूँ की पाँचों बोरियाँ पड़ी हुई थीं। जब परिवादी ने अभियुक्त को गेहूँ लौटाने के लिए कहा तो वह लड़ाई-झगड़ा करने लग गया।

(6) अभियुक्त ने बेईमानीपूर्वक आशय से परिवादी के खेत से गेहूँ की बोरियाँ ले जाकर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 379 के अन्तर्गत चोरी का दण्डनीय अपराध कारित किया है।

(7) परिवादी उक्त घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस थाने पर गया तो थाना प्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज करने से इन्कार कर दिया। इसीलिये परिवादी को माननीय न्यायालय में यह परिवाद (Complaint) प्रस्तुत करना पड़ा है।

अतः परिवादी की प्रार्थना है कि अभियुक्त के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 379 का प्रसंज्ञान लिया जाकर उसे दण्डित किया जावे तथा अभियुक्त से परिवादी को गेहूँ दिलाये जाने का आदेश प्रदान किया जाये।

सवाई माधोपुर                        हस्ताक्षर (परिवादी)

दिनांक: 17.10.2019             हस्ताक्षर (अधिवक्ता)

निष्कर्ष

परिवाद भारतीय विधिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा आम नागरिक भी बिना पुलिस के सीधे न्यायालय से न्याय की मांग कर सकता है। इससे यह साबित होता है कि भारतीय संविधान हर नागरिक को न्याय प्राप्ति का समुचित अधिकार प्रदान करता है।

अगर आप भी किसी अन्याय के शिकार हैं, तो कानून का सहारा लें – आपकी आवाज़ सुनी जाएगी।

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