हेल्लो दोस्तों, इस लेख में परिवाद पत्र क्या है (Parivad Explained in Hindi), परिवाद कौन प्रस्तुत कर सकता है? और इसके आवश्यक तत्व क्या है? का उल्लेख किया गया है|  उम्मीद है कि, यह लेख आपको जरुर पसंद आएगा  –

परिवाद पत्र क्या है –

Parivad का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है क्योंकि इसमें मौखिक कथन भी शामिल होते है| समस्त न्यायिक कार्यवाही परिवाद पेश करने पर ही शुरू होती है यानि यह किसी भी आपराधिक कार्यवाही का पहला चरण है|

परिवाद को अंग्रेजी में Complaint कहा जाता है जिसे साधारण शब्दों में शिकायत कहा जाता है और उर्दू में इसे इस्तगासा कहा जाता है|

गणेश बनाम शरणप्पा के प्रकरण अनुसार Parivad से तात्पर्य – ऐसे मौखिक या लिखित दोषारोपण से है, जो मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही के लिए प्रस्तुत किया जाता है (ए.आई.आर. 2014 एस.सी. 1198)

आपराधिक मामलों में न्यायिक कार्यवाही का आरम्भ दो तरह से होता है –

(i) पीड़ित पक्ष द्वारा पुलिस थाना के भारसाधक अधिकारी के समक्ष प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) पेश करने से, जिस पर पुलिस अधिकारी अन्वेषण (Investigation) प्रारम्भ करता है, या फिर

(ii) पीड़ित पक्ष द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष Parivad प्रस्तुत किया जाए जिस पर वह मजिस्ट्रेट अन्वेषण का आदेश देता है|

इस तरह कोई भी पीड़ित पक्ष इन दो प्रकार से अपने मामले की जाँच करवा सकता है, यह बताना उचित होगा कि, आपराधिक मामलों में Parivad का उतना ही महत्व है जितना कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) का है|

यदि पुलिस अधिकारी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) दर्ज नहीं की जाती है, तब पीड़ित पक्ष मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद पेश कर थाना में प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) दर्ज करवा अपने मामले का अन्वेषण करवा सकता है|

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परिवाद पत्र की परिभाषा –

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2(घ) में शब्द ‘परिवाद’ की परिभाषा दी गई है इसके अनुसार –

“परिवाद से इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किये जाने की दृष्टि से लिखित या मौखिक रूप में उससे किया गया वह कथन अभिप्रेत है कि किसी व्यक्ति ने चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, अपराध किया है, किन्तु इसके अन्तर्गत पुलिस रिपोर्ट नहीं है|”

इस परिभाषा का स्पष्टीकरण –

ऐसे किसी मामले में, जो अन्वेषण के पश्चात् किसी असंज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट करता है, पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट Parivad समझी जाएगी और वह पुलिस अधिकारी जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट की गई है, परिवादी समझा जाएगा|

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परिवाद पत्र के आवश्यक तत्व क्या है –

(i) Parivad लिखित या मौखिक किसी भी रूप में हो सकता है|

(ii) किसी शिकायत (लिखित या मौखिक कथन) को तभी परिवाद माना जा सकता है, जब उससे कोई अपराध का किया जाना प्रकट होता हो| यदि कोई शिकायत/कथन विधि द्वारा दण्डनीय किसी अपराध की परिधि में नहीं आता है तो उसे Parivad नहीं माना जायेगा।

(iii) परिवाद हमेशा मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है|

(iv) Parivad का मुख्य उद्देश्य इस संहिता जे अधीन उस मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किया जाना है, जिसके समक्ष Parivad पेश किया जाता है|

(v) पुलिस रिपोर्ट, परिवाद में शामिल नहीं है, उसे परिवाद केवल तभी माना जा सकता है जब अन्वेषण के पश्चात असंज्ञेय अपराध कारित होना प्रकट होता है।

(vi) Parivad में अभियुक्त के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक नहीं है, परन्तु इसमें ऐसे तथ्यों का समावेश होना जरुरी है, जो अपराध के गठन को अनिवार्य बनाते हो|

(vi) Parivad में परिवादी द्वारा साक्ष्य का उल्लेख किया जाना आवश्यक नहीं है जो परिवादी के पास है। (हलीमुद्दीन बनाम अशोक सीमेन्ट, 1976 क्रि.ला.ज. 449)

(v) Parivad का निर्धारित समय के अन्दर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।

(vi) Parivad पीड़ित पक्ष या उसके अधिवक्ता (वकील) द्वारा स्वंय पेश होकर या डाक द्वारा पेश किया जा सकता है|

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परिवाद कौन कर सकता है –

Parivad कोई भी व्यक्ति जिसे किसी अपराध के घटित होने की जानकारी है, चाहे यह उस अपराध के घटित होने से प्रभावित हुआ हो या नहीं, परिवाद प्रस्तुत कर सकता है, इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि Parivad पीड़ित व्यक्ति के द्वारा ही प्रस्तुत किया जाए, वह किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

परिवाद प्राकृतिक ही नहीं, अपितु विधिक व्यक्ति के द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है। साथ हो यह भी आवश्यक नहीं है कि परिवाद एक ही व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया जाए।

विधि में संयुक्त परिवाद करना वैध है, किन्तु धाराएँ 195 से 199 में उल्लिखित अपराधों के लिए इन धाराओं में विनिर्दिष्ट रूप ही Parivad प्रस्तुत कर सकते है, लेकिन धारा 107, 110, 144, 145 के अधीन किया गया आवेदन Parivad की परिभाषा में नहीं आता है।

परिवाद पत्र किस न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है –

Parivad मजिस्ट्रेट के समक्ष ही पेश किया जा सकता है और किसी अन्य अधिकारी को नहीं, किन्तु यदि मानहानि के लिए अभियोजन भारत के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या किसी संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक या संघ या किसी राज्य के या किसी संघ राज्य क्षेत्र के मंत्री अथवा संघ या किसी राज्य के कार्यकलापों के संबंध में नियोजित अन्य लोक सेवक के विरुद्ध है, तब परिवाद भाग 199 (2) के अधीन सेशन न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा।

लेकिन मजिस्ट्रेट ऐसा होना चाहिए, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 190 (1) (क) के अधीन अपराध का संज्ञान लेने के लिए विधि में सशक्त होना चाहिए।

मजिस्ट्रेट को धारा 203, दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन Parivad को खारिज करने वाले अपने राज्य के आदेश को वापिस लेकर पुनरुज्जीवत करने की कोई अधिकारिता नहीं है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता में ऐसा कोई उपबंध नहीं है, जो मजिस्ट्रेट को स्वयं के पारित आदेश को वापिस लेने अथवा पुनर्विलोकित करने को सशक्त करता है।

अधीनस्थ न्यायालयों को दण्ड प्रक्रिया संहिता में कोई अन्तर्निहित शक्ति प्रदान नहीं की गई है, वह केवल उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय को ही प्रदान की गई है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट –

किसी भी व्यक्ति द्वारा संज्ञेय अपराध घटित होने की लिखित या मौखिक सूचना को लिखित रूप देकर की गई वह सूचना, जो वह थानाधिकारी को देता है और थानाधिकारी उसका इन्द्राज रोजनामचा (रजिस्टर) में कर लेता है, प्रथम सूचना रिपोर्ट कहलाती है।

परिवाद व प्रथम सूचना रिपोर्ट में अन्तर –

(i) परिवाद संज्ञेय एंव असंज्ञेय दोनों अपराधों के सम्बन्ध में प्रस्तुत किया जा सकता है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट केवल संज्ञेय अपराध के सम्बन्ध में ही दी जा सकती है|

(ii) परिवाद मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने के भारसाधक अधिकारी को दी जाती है|

(iii) परिवाद प्रस्तुत करते ही मजिस्ट्रेट को उस मामले में संज्ञान प्राप्त हो जाता है जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट से मजिस्ट्रेट को संज्ञान प्राप्त नहीं होता है|

(iv) धारा 2 (घ) के अनुसार पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट परिवाद नहीं मानी जाती है, जबकि धारा 154 के अंतर्गत पुलिस अधिकारी भी किसी मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखवा सकता है|

(v) प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखवाते ही पुलिस अधिकारी को बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के उस मामले में अन्वेषण करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है जबकि इसके विपरीत परिवाद में मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद ही पुलिस अधिकारी को अन्वेषण का अधिकार प्राप्त होता है|

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संदर्भ :- बाबेल लॉ सीरीज (बसन्ती लाल बाबेल)

बूक : दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (सूर्य नारायण मिश्र)