न्यूसेंस क्या है: परिभाषा एंव इसके आवश्यक तत्व | Nuisance & its Elements

हेल्लो दोस्तों, इस लेख में हम अपकृत्य विधि के तहत न्यूसेंस क्या है इसकी परिभाषा एंव आवश्यक तत्व |  Essential Element of Nuisance in Hindi के बारें में जानेगें जो अपकृत्य विधि का महत्वपूर्ण विषय है……

न्यूसेंस क्या है | What Is Nuisance

वर्तमान समय में न्यूसेंस का शब्द बहुत अधिक प्रचलित एवं महत्वपूर्ण हो गया है। आज न्यूसेंस की कार्यवाही का सम्बन्ध विश्व की सबसे खतरनाक पर्यावरण समस्या से हो गया है इस कारण इसके अध्ययन का महत्व और भी बढ़ गया है। प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी भूमि का अबाध रूप से प्रयोग कर सके।

अगर किसी व्यक्ति के इस अधिकार में कोई भी व्यक्ति व्यवधान पहुंचाता है जिससे उसके आराम, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तब ऐसा कार्य न्यूसेंस या उपताप कहलाता है।

न्यूसेंस का तात्पर्य उन कृत्यों से है जिनसे कोई व्यक्ति बिना किसी विधिक औचित्य के अपनी भूमि पर से दूसरे की भूमि पर क्षति पहुंचाने वाली वस्तुओं को जाने या पहुँचाने के लिए अनुज्ञा प्रदान करता है।

न्यूसेंस की परिभाषा | Definition of Nuisance

न्यूसेंस (Nuisance) फ्रेंच भाषा के शब्द (Nuire) और लैटिन शब्द नोसीर (Nocere) से लिया गया है, जिसका अर्थ – हानि पहुँचाना या बाधा उत्पन्न करना होता है। न्यूसेंस दो प्रकार का होता है (i) सार्वजनिक न्यूसेंस और (ii) प्राईवेट न्यूसेंस। न्यूसेंस की कुछ परिभाषायें दी गई है लेकिन इनमें प्राइवेट न्यूसेंस के तत्व अधिक है –

स्टीफेन के अनुसार  न्यूसेंस ऐसी है जो किसी अन्य की भूमि पर वासगृह (Tenement) या भू-सम्पति (Hereditament) को आघात, असुविधा या परेशानी पहुंचाने के लिये की गई हो और अतिचार या अधिकार प्रवेश न हो|

पोलक के अनुसार  न्यूसेंस ऐसा अपकृत्य है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के सम्पत्ति के उपभोग में अथवा सामान्य अधिकारों के प्रयोग में बाधा उत्पन्न करता है।

डॉ० विनफील्ड के अनुसार  न्यूसेंस किसी व्यक्ति के भूमि के या उनके ऊपर या उससे सम्बन्धित किसी अधिकार के प्रयोग या उपभोग में अवैध हस्तक्षेप है।

ब्लैकस्टोन के अनुसार  किसी सम्पति पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति के अधिकार को आघात पहुंचाना ताकि उसके उपभोग में अवरोध उत्पन्न हो और अन्य द्वारा सम्पत्ति या अधिकार का गलत ढंग से प्रयोग किया जाय, न्यूसेंस (Nuisance) कहलाता है। यह उपेक्षा (असावधानी) के कारण भी उत्पन्न हो सकता है, लेकिन न्यूसेंस को उपेक्षा सम्बन्धी कानून का अंग नहीं माना जाता।

गुजरात उच्च न्यायालय ने उषा बेन बनाम भाग्यलक्ष्मी चित्र मन्दिर के प्रकरण में कहा कि, न्यूसेंस एक ऐसा शब्द है जिसकी एक परिभाषा नहीं दी जा सकती है। यह एक ऐसा अपकृत्य है जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है या भावनाओं को ठेस पहुंचाता है जो दूसरे को असुविधा, दोष अथवा क्षति पहुँचाता है। (ए.आई.आर. 1978, गुरज 13)

न्यूसेंस के एक अनुयोज्य अपकृत्य होने के लिए यह जरुरी है कि – कोई गलत कार्य हुआ हो तथा उस कार्य से दूसरे को क्षति हुई हो या असुविधा तथा क्षोभ (annoyance) कारित हुआ हो। किसी मामले में न्यूसेंस की कार्यवाही के लिए ये दोनों बातें साबित करना आवश्यक है। इसके अलावा हर प्रकार की क्षति न्यूसेंस के अन्तर्गत नहीं आती है।

केस रामलाल बनाम मुस्तफाबाद आयल एण्ड कॉटन गिनिंग फैक्टरी तथा अन्य

इस वाद में पंजाब हाईकोर्ट ने न्यूसेंस की विधि पर विस्तार से विचार करते हुए निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किये –

(i) यह निर्धारित करने में कि बाद योग्य न्यूसेंस किया गया है कि नहीं, यह विचार किया जाता है कि किस सीमा तक दूसरे को असुविधा उत्पन्न की गई है। जो एक स्थान पर न्यूस होता है, दूसरे स्थान पर नहीं हो सकता अथवा विभिन्न अवस्थाओं में परिस्थितियों के अनुसार बदल सकता है।

(ii) चूँकि असुविधा की यथार्थ सीमा को ठीक ठीक से परिकलित (Calculate) नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक मामला अपने तथ्यों पर निर्भर करता है।

(iii) क्षति अथवा असुविधा, जिसके विरुद्ध वाद लाया जाता है, वास्तविक तथा सारवान् हो, जो किसी व्यक्ति की सुख-सुविधा को अथवा सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार की उपेक्षा करे| किसी मामूली, काल्पनिक और नगण्य असुविधा के खिलाफ न्यूर्सेस में नुकसानी नहीं प्राप्त की जा सकती।

(iv) सामान्यत: न्यूसेंस से पैदा होने वाला कृत्य अपकृत्य होता है।

(v) वाद योग्य न्यूर्सेस में इस बात की आवश्यकता नहीं होती कि बहुत सारी बातें गिनाई जाये। सार्वजनिक स्वास्थ्य, सम्पत्ति, सुविधा, व्यापार अथवा सार्वजनिक नैतिकता को प्रभावित करने वाला कोई एक कृत्य न्यूसेंस हो सकता है।

(vi) कुछ निश्चित अवस्थाओं अथवा दशा में क्षति पहुंचाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति अथवा खतरे की युक्तियुक्त सम्भावना या वास्तविक भय न्यूर्सेस हो सकता है।

(vii) वादी की भूमि पर इस प्रकार की ध्वनि अथवा आवाज करना जो वहाँ व्यक्तियों के शारीरिक सुख में असुविधा करे अथवा सामान्य संवेदना शक्ति वाले व्यक्ति की सुविधा में हस्तक्षेप करे, वाद योग्य न्यूसेंस होता है।

(viii) जब कोई आवाज इस प्रकार की होती है कि न्यूसेंस में आ सके तो यह प्रतिवाद कि आवाज वैध व्यापार में की गयी थी अथवा वैध मनोरंजन के सम्बन्ध में की गयी थी अथवा धार्मिक या पूजा के स्थान में की गयी थी, बचाव नहीं होता है

न्यूसेंस के तत्व

न्यूसेंस की परिभाषा के आधार पर न्यूसेंस के आवश्यक तत्वों का विवेचन किया जा सकता है। ये वे तत्व है जिन्हें नुकसानी के वाद में वादी द्वारा साबित किया जाना आवश्यक है।

सामान्यतया ऐसे तत्वों को व्यक्तिगत न्यूसेंस/अपदूषण के तत्व माना जाता है, लेकिन यह तत्व दोनों प्रकार के न्यूसेंस/अपदूषणों के लिए आवश्यक माने जाते है, यह तत्व निम्न है –

(i) अयुक्तियुक्त व्यवधानअथवा हस्तक्षेप करना

(ii) व्यवधान या हस्तक्षेप भूमि के प्रयोग के सम्बन्ध में होना

(iii) वादी को क्षति कारित होना

(i) अयुक्तियुक्त व्यवधानअथवा हस्तक्षेप

प्रत्येक बाधा या हस्तक्षेप जो वादी को क्षति कारित करती है, न्यूसेंस की श्रेणी में नहीं आटी है। आधुनिक समाज में सभी लोग अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें, इसके लिये यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति कुछ असुविधायें जो कि सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अपरिहार्य हैं, बर्दाश्त करे।

लेकिन जब यह बाधा या हस्तक्षेप अयुक्तियुक्त होता है तब व्यक्तिगत न्यूसेंस के लिए वाद लाया जा सकता है। कब हस्तक्षेप अयुक्तियुक्त हो जाता है यह बात प्रत्येक वाद के तथ्यों तथा परिस्थितियों पर निर्भर करती है। न्यूसेंस/उपताप के प्रयोजनार्थ में यह देखना आवश्यक है कि कौन-सी बात समाज में रहने वाले व्यक्तियों की सामान्य प्रथाओं में अर्थात् किसी समाज विशेष में युक्तियुक्त नहीं होकर अयुक्तियुक्त  है।

(ii) व्यवधान या हस्तक्षेप भूमि के प्रयोग में होना

भूमि के प्रयोग अथवा उपभोग में हस्तक्षेप के आधार पर हमें व्यक्तिगत न्यूसेंस में दो भेद – सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने वाला न्यूसेंस तथा व्यक्ति की शारीरिक सुख-सुविधा में हस्तक्षेप पैदा करने वाला न्यूसेंस मिलते है।

इन दोनों न्यूसेंसों के मुख्य परिणाम इस प्रकार दिखाई देते है

(अ) किसी भी सुखाचार (Easement) या अन्य प्रकार के भूमि सम्बन्धी अधिकार में गलत ढंग से बाधा डालना।

(ब) किसी गलत कार्य द्वारा किसी व्यक्ति की भूमि को क्षति पहुँचाना या किसी व्यक्ति की भूमि में अन्य हानिकारक चीजों को जाने देना, जैसे – पानी, धुआँ, गन्ध, गैस, शोर, गर्मी, कम्पन, बिजली, बीमारी के कीटाणु, पशु तथा वृक्षों की डालें दूसरे की भूमि पर फैलने देना, आदि।

न्यूसेंस/अपदूषण के उपरोक्त दोनों तत्वों से तात्पर्य है, किसी व्यक्ति की भूमि से सम्बद्ध किसी अधिकार के उपयोग उपभोग में अवैध या अयुक्तियुक्त हस्तक्षेप करना। यहाँ शब्द ‘अवैध’ एवं ‘अयुक्तियुक्त’ का अभिप्राय यह हुआ कि दैनिक जीवन का प्रत्येक कार्य अपकृत्य नहीं होता। वह अपकृत्य केवल तभी होता है जब उसे अवैध या अयुक्तियुक्त रूप से किया जाये।

केस अब्दुल हकीम बनाम अहमद खान (ए.आई.आर. 1978 इलाहाबाद86)

इस मामले में अपीलार्थी (प्रतिवादी) ने प्रत्यर्थी (वादी) के रसोई घर से तीन फीट की दूरी पर एक टॉयलेट बनाई तथा गन्दे पानी के निकास के लिए एक नाली का निर्माण कराया। टॉयलेट का सारा गंदा पानी इसी नाली से जाता था जिससे प्रत्यर्थी (वादी) के रसोई घर में दुर्गन्ध आती थी क्योंकि नाली की तरफ ही रसोई घर की खिड़की व दरवाजा था। न्यायालय ने इसे न्यूसेन्स माना।

केस राधेश्याम बनाम गुर प्रसाद (निर्णय पत्रिका 1985 मध्यप्रदेश197)

इस प्रकरण में प्रतिवादी एक परिसर में आटा पीसने की मशीन लगाना चाहता था तथा उसी परिसर में दूसरी मंजिल पर वादी रहता था। वादी का यह कथन था कि, आटा मशीन लग जाने से दिन रात शोर एवं कम्पन होगा जिससे उसका व उसके परिजनों का सुख- सुविधापूर्वक रहना कठिन हो जायेगा। न्यायालय ने इसे अपदूषण मानते हुए व्यादेश जारी किया।

केस हालीवुड सिलवर फॉक्स फार्म लि. बनाम ऐमेट (1936)2 के.बी. 468

अपदूषण के विषय पर एक अत्यन्त ही रोचक मामला है, इसमें वादी ने अपनी भूमि पर कुछ श्वेत लोमड़िया पाल रखी थी। लोमड़िया प्रजनन काल में अत्यन्त संवेदनशील होती है तथा शोरगुल के माहौल में बच्चा नहीं देती है और देती है तो वे मरे हुए होते है।

प्रतिवादी ने विद्वेष भाव से प्रेरित होकर तथा वादी को क्षति कारित करने के आशय से अपनी भूमि में बंदूक चलाई जिससे लोमड़ियाँ भयभीत हो गई और उन्होंने या तो बच्चे नहीं दिये और यदि दिये भी हो मरे हुए|

न्यायालय ने इसे अपदूषण माना और प्रतिवादी को नुकसानी के लिए उत्तरदायी ठहराया। इस वाद में न्यायालय ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी भूमि का इस तरह उपयोग नहीं कर सकता है कि उससे पड़ौसी को क्षति कारित हो।

कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि अपदूषण के मामले में भूमि के उपयोग के सम्बन्ध में अवैध, अयुक्तियुक्त या दोषपूर्ण हस्तक्षेप, बाधा अथवा व्यवधान का होना आवश्यक है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ऐसी बाधा, व्यवधान अथवा हस्तक्षेप से – (अ) स्वयं सम्पति को, (ब) सम्पति के अधिभोगी की सुख सुविधा को या (स) स्वास्थ्य; को क्षति कारित हो सकती है।

(iii) क्षति कारित होना

न्यूसेंस का तीसरा आवश्यक तत्व ‘क्षति’ है, प्रतिवादी के कृत्य अर्थात् हस्तक्षेप बाधा या अवरोध से वादी को क्षति अथवा नुकसान कारित होना आवश्यक है। साथ ही ऐसी क्षति अथवा नुकसान को साबित किया जाना भी अपेक्षित है। व्यक्तिगत अपदूषण के मामलों में भी क्षति को साबित किया जाना आवश्यक है। ऐसी क्षति दो प्रकार की हो सकती है –

(अ) सम्पति को क्षति

(ब) शारीरिक परेशानी

कुछ मामले ऐसे भी है जिनमें क्षति को साबित किया जाना आवश्यक नहीं होता, क्योंकि इनमें क्षति की उपधारणा (परिकल्पना) कर ली जाती है जैसे – अपने पेड़ की टहनियों को पड़ौसी की भूमि में लटकने देना; अपना धुआं पड़ौसी के परिसर में जाने देना, अपनी भूमि में निर्मित छत्त को पड़ौसी की भूमि में निकालना जिससे वर्षा का पानी पड़ोसी के परिसर में गिरे, आदि।

केस फ्रे बनाम प्रेन्टिस (1845)1 सी.बी. 828

इस प्रकरण में प्रतिवादी ने अपने परिसर में कार्निस का निर्माण इस तरह करवाया कि उसका कुछ भाग वादी की भूमि में आता था जिससे वर्षा का सारा पानी वादी की भूमि पर गिरता था। न्यायालय ने इसे अपदूषण मानते हुए यह उपधारणा की कि इससे वादी को नुकसानी कारित होना सम्भाव्य है।

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