सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार से क्या तात्पर्य है

न्यायालय का क्षेत्राधिकार

न्यायालय का क्षेत्राधिकार से तात्पर्य सक्षम न्यायालय की उस शक्ति से है जिसके तहत न्यायालय अपने क्षेत्राधिकारिता के अन्तर्गत किसी वाद, अपील या आवेदन पत्र को स्वीकार करते हुए न्यायिक कार्यवाही पूर्ण कर अपने समक्ष पेश वाद, अपील या आवेदन पत्र पर न्यायिक निर्णय देता है।

न्यायालय का क्षेत्राधिकार के प्रकार

न्यायालय में किसी वाद या आवेदन पत्र को पेश करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना चाहिए की क्या पेश किये जाने वाले वाद, अपील या आवेदन पत्र में कार्यवाही करने के लिए उस न्यायालय अधिकारिता है या नहीं है, किसी न्यायालय की अधिकारिता के सम्बन्ध में सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में प्रावधान किये गए है, संहिता के अनुसार सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार को निम्न भागो में विभाजित किया जा सकता है –

(1) विषय-वस्तु (Subject matter) सम्बन्धी क्षेत्राधिकार

(2) प्रादेशिक (Terriotorial) क्षेत्राधिकार

(3) आर्थिक (Pecuniary) क्षेत्राधिकार एवं

(4) आरम्भिक या अपीलीय (Original or appellate ) क्षेत्राधिकार।

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