इस आलेख में सीआरपीसी में निर्णय क्या है, निर्णय की भाषा और अन्तर्वस्तु (Language and contents of judgment), CrPC Sec. 353, 354, 355 एंव Sec. 362 | क्या किसी निर्णय में परिवर्तन हो सकता है आदि विषयों का उल्लेख किया गया है……
निर्णय किसे कहा जाता है
साधारण तौर पर निर्णय (judgment), विचारण का सार एवं अन्तिम चरण है। भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत किसी व्यक्ति का विचारण समाप्त होने के पश्चात् न्यायालय द्वारा अपना निर्णय सुनाया जाता है।
वह निर्णय ही होता है जिसके माध्यम से पक्षकारों को अनुतोष प्रदान किया जाता है अथवा उन्हें दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया जाता है
आसान शब्दों में यह कहा जा सकता है कि, न्यायालय अपने समक्ष विचारण के लिए प्रेषित व्यक्ति के दोषी होने या निर्दोष होने के बारे में अपना फैसला (judgment) देता है। निर्णय में निष्कर्ष के कारण दिये जाने आवश्यक है बिना कारण के निकाला गया निष्कर्ष अर्थहीन है।
निर्णय – धारा 353 सीआरपीसी
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में दो धाराएं यथा धारा 353 व धारा 354 निर्णय के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण है और संहिता की धारा 362 में निर्णय में परिवर्तन के सम्बन्ध में प्रावधान किये गए है|
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 353 में यह कहा गया है कि –
(i) सम्पूर्ण निर्णय देकर सुनाया जायेगा,
(ii) सम्पूर्ण निर्णय पढ़कर सुनाया जायेगा,
(iii) अभियुक्त या उसके प्लीडर द्वारा समझी जाने वाली भाषा में निर्णय (judgment) का सार पढ़कर सुनाया व समझाया जायेगा,
(iv) निर्णय खुले न्यायालय में सुनाया जायेगा,
(v) उसके प्रत्येक पृष्ठ पर पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे,
(vi) फैसला विचारण समाप्त होने के तुरन्त पश्चात् या अन्य किसी समय, जिसकी सूचना पक्षकारों को दी जायेगी, सुनाया जायेगा,
(vii) निर्णय की प्रतिलिपि निःशुल्क दी जायेगी तथा
(vii) फैसला अभियुक्त की उपस्थिति में सुनाया जायेगा। यदि वह अभिरक्षा में है तो उसे न्यायालय में लाया जायेगा।
अमीन अहमद दौसा बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के मामले में न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि फैसला संक्षिप्त एवं सारगर्भित होना चाहिए एंव उसमें प्रत्येक बिन्दु का विवेचन किया जाना अपेक्षित है। (ए.आई.आर. 2001 एस.सी. 626)
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निर्णय की भाषा एवं अन्तर्वस्तु
संहिता की धारा 354 में निर्णय की भाषा एवं उसकी अन्तर्वस्तुओं के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार – ,
(i) फैसला न्यायालय की भाषा में लिखा जाना चाहिए
(ii) उसमें अवधारणा के लिए प्रश्न, उस पर या उन पर विनिश्चय एवं विनिश्चय के कारण दिये जायेंगे,
(iii) फैसले में अपराध की धारा व उसके लिए दण्ड का उल्लेख किया जायेगा,
(iv) यदि फैसला दोषमुक्ति का है तो उस धारा का जिसमें अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया है, फैसले में उल्लेख किया जायेगा तथा अभियुक्त को स्वतंत्र किये जाने का आदेश दिया जायेगा,
(v) यदि अभियुक्त को मृत्यु दण्ड दिया जाता है तो फैसले (judgment) में यह लिखा जायेगा कि अभियुक्त को फांसी पर तब तक लटका कर रखा जाये, जब तक कि उसकी मृत्यु नहीं हो जाये,
(vi) फैसले में दण्डादेश के कारणों का स्पष्ट उल्लेख किया जायेगा और यदि दण्डादेश मृत्यु दण्ड का है तो उसके विशेष कारण दर्शाये जायेंगे।
नागेश्वर बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के मामले में न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि, निर्णय में संयत भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए अर्थात् भाषा शिष्ट एवं संसदीय होनी चाहिए। (ए.आई.आर. 1973 एस.सी. 165)
पुरुषोत्तम दशरथ बोराटे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के मामले में कहा गया कि, दण्ड सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करने वाला एवं अपराध की गम्भीरता के अनुरूप होना चाहिए। (ए.आई.आर. 2015 एस.सी. 2170)
रविशंकर उर्फ बाबा बनाम स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश के मामले में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, मृत्यु दण्ड विलक्षण प्रकृति के मामलों में दिया जाना चाहिए और वह भी तब जब मामला संदेह से परे साबित हो। (ए.आई.आर. 2019 एस.सी. 5347)
महानगर मजिस्ट्रेट का निर्णय
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 355 के अनुसार महानगर मजिस्ट्रेट के फैसले में निम्नांकित बातों का उल्लेख किया जाना अपेक्षित है-
(i) मामले की क्रम संख्या,
(ii) अपराधकारित किये जाने की तारीख,
(iii) परिवादी का नाम (यदि कोई हो),
(iv) अभियुक्त का नाम, उसके माता-पिता का नाम एवं निवास स्थान,
(v) अपराध का विवरण,
(vi) अभियुक्त का अभिवाक् एवं उसकी परीक्षा
(vii) अंतिम में,
(viii) आदेश की तारीख तथा
(viii) निर्णय अथवा निष्कर्ष के कारण।
निर्णय में परिवर्तन
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 362 में यह कहा गया है कि फैसले (judgment) या अन्तिम आदेश पर पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर हो जाने के पश्चात् उसमें निम्नांकित परिस्थितियों के अलावा किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा-
(i) लिपिकीय, या
(ii) गणितीय भूल को ठीक करना।
स्टेट ऑफ पंजाब बनाम दविन्दर पॉल सिंह भूल्लर के मामले में न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि फैसले पर हस्ताक्षर होते ही न्यायालय का कार्य समाप्त हो जाता है। उसके पश्चात् न्यायालय द्वारा फैसले में लिपिकीय या गणितीय त्रुटि को सुधारा जा सकता है। अन्य किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। (ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 364)
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि दण्डादेश में परिवर्तन अथवा उसका रूपान्तरण करना फैसले का पुनर्विलोकन करना है अर्थात् दण्डादेश में परिवर्तन फैसले के पुनर्विलोकन के तुल्य है। (अजीत सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब, ए.आई. आर. 1982 एन.ओ.सी. 219, पंजाब एण्ड हरियाणा)
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बूक : दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (सूर्य नारायण मिश्र