हेल्लो दोस्तों, इस लेख में ‘साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 का वर्णन किया गया है, धारा 8 में हेतु, तैयारी और पूर्व का या पश्चात् का आचरण कैसे सुसंगत है एंव किसी कार्य में इनकी क्या भूमिका होती है एंव इन तत्वों का क्या योगदान है को आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है –
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धारा 8 : हेतु, तैयारी और पूर्व का या पश्चात् का आचरण
जैसा की हम जानते है कि, किसी भी अपराध के गठन में हेतु, तैयारी एवं आचरण (Motive, Preparation and Conduct) का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है इन्हें अपराध के मुख्य तत्व भी कहा जाता है|
यह तत्व विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य को प्रभावित करते है| साक्ष्य अधिनियम की धारा 5 से 55 तक में तथ्यों की सुसंगति के बारे में बताया गया है कि कोनसे तथ्य किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य से सुसंगत है या नहीं है|
साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अनुसार “कोई भी तथ्य जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य का “हेतु या तैयारी”, दर्शित या गठित करता है, सुसंगत है।
किसी वाद या कार्यवाही के किसी पक्षकार या किसी पक्षकार के अभिकर्ता का ऐसे वाद या कार्यवाही के बारे में उसमें विवाद्यक तथ्य या उससे सुसंगत किसी तथ्य के बारे में आचरण और किसी ऐसे व्यक्ति का आचरण जिसके विरुद्ध कोई अपराध किसी कार्यवाही का विषय है, सुसंगत है, यदि ऐसा आचरण किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य को प्रभावित करता है या उससे प्रभावित होता है, चाहे वह उससे पूर्व का हो या पश्चात् का।
यह ऐसे तथ्य है जो कि विवाद्यक तथ्य को साबित या नासाबित या स्पष्टीकृत करने की प्रवृत्ति रखते है| किसी अपराध को करने में इनका अभूतपूर्व स्थान होता है,
जैसे – किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए प्रेरित करना हेतु है, उस कार्य को पूर्ण करने के लिए उसकी दिशा में बढ़ना तैयारी है तथा जब वह कार्य पूर्ण कर लिया जाता है तब वह उस व्यक्ति का आचरण हो जाता है|
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धारा 8 : तथ्यों की सुसंगति
साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 में तीन प्रकार के तथ्यों की सुसंगति के बारे में नियम बनाये गए है –
(क) वे तथ्य जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के लिए ‘हेतु’ (Motive) दर्शित या गठित करते है, हेतु वह है जो किसी व्यक्ति से कोई कार्य कराता है|
(ख) वे तथ्य जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के लिए ‘तैयारी’ (Preparation) दर्शित एवं गठित करते हैं, और
(ग) किसी वाद या कार्यवाही के किसी पक्षकार का, ऐसे कार्यवाही के सम्बन्ध में या किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के विषय के पूर्ववर्ती या पश्चात्वर्ती ‘आचरण (Conduct)’।
हेतु या कारण –
हेतु चित्त की एक अवस्था है, जो किसी व्यक्ति को कोई कार्य विशेष करने के लिए प्रेरित या उत्प्रेरित करती है| सामान्यतः प्रत्येक कार्य किसी न किसी हेतु या किसी कारण (Motive) से किया जाता है।
एक व्यक्ति के स्वेच्छा से किये गए प्रत्येक कार्य का कोई न कोई हेतु या उद्देश्य होता है और उसे करने के लिए वह व्यक्ति तैयारी भी करता है|
विगमोर ऑन इविडेंस के अनुसार – हेतु सही अर्थ में एक भावना है जिसके कारण कार्य होता है। दूसरे शब्दों में “हेतु वह है जिसके कारण मनुष्य किसी कार्य को करने के लिए विवश होता है”।
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हेतु या कारण का अर्थ –
धारा 8 का पहला नियम यह बताता है कि जिन तथ्यों से किसी कार्य को करने का हेतु प्रतीत हो, वे सुसंगत हैं। यह ऐसी शक्ति है जो किसी कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति को मजबूर करती है उसके इरादे को इतना प्रभावित कर देती है कि वह विवश-सा हो जाता है|
हेतु स्वयं में कोई अपराध नहीं है, चाहे वह कितना ही दोषपूर्ण क्यों न हो। लेकिन एक बार अपराध हो जाने पर हेतु का साक्ष्य बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। इस कारण हेतु के साक्ष्य को सुसंगत माना गया है।
हेतु का साक्ष्य कार्य तथा कार्य करने वाले व्यक्ति के सम्बन्ध दर्शाता है इसका साक्ष्य परिस्थितियों के साक्ष्य की भाँति होता है। जितना गम्भीर कार्य होगा उतना ही हेतु का साक्ष्य भी महत्वपूर्ण होगा।
हेतु की उपस्थिति या अभाव और तैयारी, अवसर, पूर्वतन तैयारी आदि सुसंगत हैं क्योंकि वे न केवल आपराधिक मनःस्थिति अर्थात् दुराशय (Mens rea) को प्रदर्शित करते हैं बल्कि अपराध किये जाने के तत्व भी प्रदान करते हैं।
हेतु व्यक्ति के मन में होता है, जिसका पता लगाना अत्यधिक कठिन होता है, परन्तु कुछ घटकों द्वारा इसका अनुमान लगाया जा सकता है, जैसे – पुरानी रंजिश का होना, धन की लालसा होना, किसी का दबाव या नुकसान का भय होना आदि|
केहरसिंह बनाम स्टेट के मामले में न्यायालय द्वारा कहा गया है कि हेतु, मस्तिष्क की दशा, आन्दोलन और प्रतिशोध की भावनाओं से भरा मन न तो अपने आप में कोई अपराध है और न अपराधी को घटना से जोड़ने के लिए पर्याप्त है| [(1988)3 एस.सी.सी. 609]
तरसीम कुमार बनाम दिल्ली प्रशासन के प्रकरण में माननीय न्यायालय द्वारा यह निर्णित किया गया कि “जब मामला परिस्थितजन्य साक्ष्य पर आधारित हो तब हेतु का साक्ष्य अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।“ (ए.आई. आर. 1994 एस.सी. 2585)
इसी तरह लोकेश शिवकुमार बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक के मामले में भी न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि – किसी मामले में दोषसिद्धि के लिए हेतु (Motive) का महत्त्व समाप्त हो जाता है, जब मामला चिकित्सकीय साक्ष्य एवं अन्य पुष्टिकारण साक्ष्य से पूर्णतया साबित अर्थात् स्थापित हो| (ए.आई.आर. 2012 एस.सी. 956)
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तैयारी (Preparation)
किसी भी अपराध को कारित करने में तीन चरण होते है – सबसे पहले किसी कार्य को करने का आशय उत्पन्न होता है फिर उस कार्य को करने की तैयारी की जाती है उसके बाद उस कार्य को पूर्ण करने के लिए प्रयत्न किया जाता है तथा प्रयत्न सफल हो जाने पर वह कार्य पूर्ण हो जाता है|
तैयारी का अर्थ – किसी अपराध या कार्य को करने से पहले उसके लिए आवश्यक सामान जुटाना, उपाय करना, उनकी व्यवस्था करना आदि तैयारी है|
उदाहरण – किसी व्यक्ति की हत्या कारित करने के लिए जहर खरीदना या चोरी करने के आशय से उपकरण प्राप्त करना आदि तैयारी के अंतर्गत आते है।
तैयारी और प्रयत्न दोनों अलग है इनमे यह अंतर यह है कि, प्रयत्न के सफल हो जाने का परिणाम अपराध की पूर्णता है जबी तैयारी मात्र से किसी अपराध का गठन नहीं होता है जबकि अपराध कारित हो जाने पर तैयारी का साक्ष्य बड़ा महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
अभियुक्त की और से तैयारी, अपराध को पूर्ण करने या अपराध के अन्वेषण से बचने या अपराधी को भगाने में सहायता करने या सन्देह से बचने के लिए हो सकती है|
तैयारी कोई अपराध के होने के पूर्व की तैयारी है जो यह दिखाने के लिए सुसंगत है कि, अमुक कार्य एक आशय से किया गया, आकस्मिक तौर पर नहीं हुआ, क्योंकि इससे यह साबित होता है की अभियुक्त ने ही अपराध को किया है|
तैयारी इस बात का भी साक्ष्य है की जैसी योजना बनी उसी क्रम में कार्य किया गया है, जिससे कार्य तैयारी अथवा योजना से कुछ न कुछ साम्य रखता है, इस कारण साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 में तैयारी को सुसंगत माना गया है|
प्रत्येक कार्य करने के लिए पहले तैयारी करनी होती है, इसलिए उसका साक्ष्य सुसंगत होता है। धारा 8 में यह कहा गया है कि विवाद्यक या सुसंगत तथ्य के घटने के लिए जो तैयारी की जाती है, वह सुसंगत तथ्य है।
आचरण (Conduct)
साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 का अंतिम भाग आचरण के साक्ष्य के बारे मे है जो साक्ष्य विधि में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि आचरण से ही व्यक्ति का दोषी मन जाहिर होता है यानि दोषी मन, दोषी आचरण पैदा करता है| यह कार्यों तथा लोपों द्वारा बना होता है|
सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्य में सबसे ज्यादा प्रभाव में जोरदार वह साक्ष्य है जो आचरण द्वारा मिलता है, इसलिए इसे सुसंगत घोषित किया गया है, धारा 8 के अनुसार – पक्षकार, पक्षकार का अभिकर्ता, पीड़ित व्यक्ति का आचरण सुसंगत है|
उदाहरण के लिए – क पर ख की हत्या का आरोप है। ग ने क से कहा कि हत्या करने वाले व्यक्ति को खोजने के लिए पुलिस आ रही है। क वहाँ से भाग जाता है। यह तथ्य सुसंगत है क्योंकि यह क के आचरण को प्रकट करता है कि हत्या उसी ने की है और ऐसा आचरण घटना के पूर्व या बाद का हो सकता है।
धारा 8 के अन्तर्गत दो प्रकार के आचरण को सुसंगत घोषित किया गया है या बनाया गया है – (i) पूर्ववर्ती आचरण (ii) पश्चातवर्ती आचरण|
(i) पूर्ववर्ती आचरण – किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किये गए कार्यों की कड़ियाँ पूर्ववर्ती आचरण में आते है, जैसे – अपराध कारित करने की तैयारी, आशय की घोषणा, किसी को धमकी देना आदि|
उदाहरण – एक पुत्र अपने पिता की हत्या के लिए अपराधी है उसका कहना है कि वह काफी वर्षों से अपने पिता से नफरत करता है, यह सुसंगत है|
(ii) पश्चात्वर्ती आचरण – किसी पक्षकार का या उसके अभिकर्ता का पश्चात्वर्ती आचरण सुसंगत है, इस श्रेणी में निम्न आते है – अभियुक्त व्यक्ति का चुप रहना, मिथ्या एंव काल्पनिक कथन करना, सबूत अथवा साक्ष्य को मिटाना, फरार हो जाना आदि|
उदाहरण – अ की हत्या कर दी जाती है, हत्या के थोड़ी देर बाद ब डांटते हुए स को कहता है कि “तुमने अ को बिना किसी कारण के मार डाला है, तुम्हे तो नरक मिलेगा”| इस बात पर स चुप रहता है, यह स के चुप रहने का आचरण है जो कहे गए शब्दों के साथ सुसंगत है|
इस प्रकार एक अन्य उदाहरण जिसमे – अ के ऊपर किसी औरत के कत्ल करने का आरोप लगा है। अनुसन्धान के दौरान अ पुलिस को एक ऐसे स्थान पर ले गई जहाँ कुछ आभूषणों को बताया तथा पेश किया जिन्हें मृतक अपनी मृत्यु के समय पहने हुई थी।
अ के अनुसंधान में यह तथ्य कि उसने पुलिस को वह स्थान दिखाया जहाँ आभूषणों को छिपाया गया था और यह तथ्य कि उसने उक्त आभूषणों को पुलिस के हवाले कर दिया, सुसंगत तथ्य होंगे और साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अन्तर्गत उन्हें सिद्ध करने की अनुमति दी जायेगी, क्योंकि यह अभियुक्त का घटना के बाद का आचरण है ।
महत्वपूर्ण आलेख –
संदर्भ :- भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, 17वां संस्करण (राजाराम यादव)