नमस्कार, इस आलेख में अपराध किसे कहते है, इसकी परिभाषा | अपराध के प्रकार | Apradh की विभिन्न अवस्थायें एंव उसकी तैयारी एवं प्रयत्न में प्रमुख अन्तर क्या है के बारे में बताया गया है जो LL.B., LL.M. या प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी कर रहे छात्रो के लिए काफी महत्वपूर्ण है|
परिचय – अपराध (Crime)
हम सभी यह जानते है कि मानव एक सामाजिक प्राणी है जो समाज में रहना पसन्द करता है| मानव अपने जीवन की शुरुआत से ही Apradh से परिचित है| अगर हकीकत में यह देखा जाए तो कोई भी ऐसा समाज नहीं है जिसमे अपराध की धारणा का जन्म नहीं हुआ हो|
Apradh अलग अलग जगहों में अलग अलग रूप में हो सकता है, यदि देखा जाए तो मानव जीवन की व्यस्तता, लोकतन्त्रात्मक पद्वति में सत्ताप्राप्ति की तीव्र इच्छा, मान-प्रतिष्ठा और सर्वोपरि अकिंचनता आदि मनुष्य को आपराधिक प्रवृति की और ले जाती है|
इसी प्रकार मानव इतिहास को देखा जाए तब हमें पता चलता है कि मानव सभ्यता पर सबसे घातक और जघन्य कार्य स्वंय मानव द्वारा ही किये गए है, इससे यह मालूम होता है कि अपराध मानव समाज का एक अंग रहा है यानि अपराध विहीन समाज की कल्पना एक कोरे सपने की तरह है|
अपराध की धारणा सभी स्थान, समय व समाज में एक जैसी नहीं होती है, किसी स्थान, समय व समाज में जो कार्य Apradh माने जाते है हो सकता है की वही कार्य अन्य स्थान, समय व समाज में केवल त्रुटी या एक साधारण कार्य माना जाता हो|
जैसे जैसे मानव की प्रगति व विकास हुआ है वैसे वैसे अपराधो की मात्रा और स्वरूप में बदलाव आया है|
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अपराध किसे कहते है –
अपराध का अर्थ – अंग्रेजी भाषा में अपराध को “क्राइम (crime)” कहा जाता है, यह लैटिन भाषा के शब्द “क्रिमेन (Crimen) से बना है जिसका अर्थ निर्णय देना होता है| ग्रीक भाषा में क्रिमेन शब्द का अर्थ “अलगाव” है और संज्ञा के रूप में यह शब्द किसी निर्णय का बोध कराता है|
अपराध की परिभाषा – ऐसा कृत्य जो भारतीय दण्ड संहिता या यथा परिभाषित विशेष या स्थानीय विधि के अन्तर्गत दण्डनीय हो अपराध कहलाता है अथवा ऐसा कृत्य या कार्य जिसके करने से किसी स्थान विशेष के कानून का उल्लंगन होता है, उसे अपराध कहा जाता है|
इसी तरह विधि द्वारा निषिद्व घौषित किये गए मानव आचरणों को Apradh कहा जाता है|
आसान शब्दों में – अपराध (crime) एक ऐसा कार्य या कार्यों का संगठन है जिससे राज्य की शांति भंग होती है या हिंसा उत्पन्न होती है या साधारण जन–जीवन दूषित होता है और जिसके लिए विधि में निर्धारित दंड की व्यवस्था की गई है, अपराध राज्य या व्यक्ति अथवा दोनों के विरुद्ध हो सकता है।
कानून में अपराध क्या है?
भारतीय दंड संहिता के अनुसार, धारा 40 के खण्ड 2 व 3 में वर्णित अध्यायों और धाराओं में के सिवाए “अपराध” शब्द इस संहिता द्वारा दण्डनीय की गई किसी बात का द्यौतक है।
अनेक विधिवेत्ताओं और लेखकों ने क्राइम की परिभाषा भिन्न भिन्न तरह से की है| उनका मानना था कि Apradh की समुचित परिभाषा देना एक कठिन कार्य है क्योंकि इसका क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है तथा स्थान, समय व समाज के अनुसार क्राइम में परिवर्तन होते रहते है जिस कारण इसे एक परिभाषा में समझना संभव ही नहीं है|
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अपराध (crime) के विषय में विद्वानों की परिभाषा –
रसेल के अनुसार – Apradh को परिभाषित करना एक ऐसा कार्य है जिसे आज तक किसी लेखक ने संतोषजनक रूप से सम्पादित नहीं किया है।
प्रोफेसर केनी के शब्दों में – अपराध ऐसे दोष हैं जिनकी अनुशास्ति दांडिक है और जो किसी निजी व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार से क्षम्य नहीं है लेकिन यदि क्षम्य है भी तो केवल क्राउन द्वारा ही क्षम्य है।
लेकिन इस परिभाषा की आलोचना इस आधार पर की गई कि, “अनेक ऐसे अपराध होते है जिनका आपसी सहमति के द्वारा उपशमन (क्षम्य) किया जा सकता है|
ब्लैकस्टन के अनुसार – Apradh वह कार्य है जिसे लोक विधि के उल्लंघन में जो इसे निषिद्ध या आदेशित करती हैं कारित किया या छोड़ दिया जाता है|
सदरलैंड के अनुसार – Apradh सामाजिक मूल्यों के लिए एक ऐसा घातक कार्य है जिसके लिए समाज दण्ड की व्यवस्था करता है|
ऑस्टिन के मतानुसार – वह सदोष कार्य जिस पर कार्यवाही संप्रभु या उसके अधीनस्थ अधिकारी करते हैं, अपराध है।
मिलर के शब्दों – Apradh किसी कार्य का कारित किया जाना अथवा लोप है जिसे विधि राज्य द्वारा अपने नाम से चलाई गई किसी कार्यवाही के माध्यम से दण्ड के अधिरोपण की धमकी के साथ करने को निषिद्ध या समादिष्ट करता है|
गोपाल बनाम कर्नाटक राज्य के प्रकरण में माननीय न्यायालय ने अपराध के सम्बन्ध में कहा कि “अपराध को एक ऐसे कार्य के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है, जिससे उसके कर्ता को विधिक दण्ड दिया जा सकता हो|
इससे उस कार्य को किए जाने के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है जो विशेष रूप से कानून द्वारा निषिद्ध है तथा वह कार्य सदाचार या सामाजिक मूल्यों के खिलाफ भी एक दण्डनीय अपराध हो सकता है| (2000, 6, SCC 168)
शब्द ‘Crime’ (अपराध) को कभी-कभी शब्द ‘Offence’ या Criminal offence के साथ समानार्थक रूप में सभी कार्य या लोप जो दण्डनीय है, के अर्थ में लिया जाता है।
इसके विपरीत शब्द ‘Crime’ (अपराध) को सीमित अर्थ में अभ्यारोपणीय Apradh के रूप में लिया जाता है, लेकिन अभिव्यक्ति ‘Offence’ (अपराध) या Criminal offence (अपराध) को संक्षिप्त दोषसिद्धि पर दण्डनीय अपराध के रूप में लिया जाता है।
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अपराध के प्रकार –
बेंथम ने अपराध को चार भागों में वर्गीकृत किया है, जो निम्नलिखित है –
(i) प्राइवेट अपराध –
यह क्षतियां अपराधी को स्वयं को छोड़कर, किसी अन्य व्यक्ति को कारित की गई क्षतियाँ हैं।
(ii) परावर्तक अपराध या स्वयं के विरुद्ध अपराध –
इसमें अपराधी द्वारा स्वयं पर क्षति कारित की जाती है, किसी अन्य पर नहीं लेकिन स्वयं को कारित की गई इन क्षतियों का प्रभाव किसी अन्य पर भी पड़ सकता है।
(iii) अर्ध लोक अपराध –
ऐसा Apradh जिसे लोगों के एक ऐसे समूह पर कारित किया गया हो, जिसे समुदाय का एक भाग कहा जा सकता है लेकिन पूर्ण समुदाय नहीं।
उदाहरण – धार्मिक पंथ, वाणिज्यिक कम्पनी, निगम या सामान्य हितों से बंधे लोगों के संगम आदि।
(iv) लोक अपराध –
यह सम्पूर्ण समुदाय अर्थात् राज्य के सभी सदस्यों या अनगिनत व्यक्तियों को प्रभावित करने वाले अपराध हैं। बेंथम ने प्राइवेट और परावर्तक अपराधों में से प्रत्येक को चार कोटियों – शरीर, सम्पत्ति, ख्याति और दशा के विरुद्ध किए जाने वाले अपराधों में वर्गीकृत क्या हैं।
अपराध की विभिन्न अवस्थायें या चरण –
कोई भी कृत्य एक-दम से क्राइम का रूप नहीं लेता है और ना ही दण्डनीय होता है, उसे दण्डनीय होने के लिए अनेक अवस्थाओं (Stages) से गुजरना होता है। जिसे हम Apradh की विभिन्न अवस्थायें या प्रक्रम भी कह सकते है, जो निम्न है –
(i) आशय (Intention) –
यह Crime की पहली अवस्था है क्योंकि कोई भी कार्य या क्राइम बिना आशय के कारित नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक कार्य के पीछे व्यक्ति के मन में कुछ न कुछ भावनायें अवश्य छुपी होती हैं, इसी को ‘आशय (intention)’ कहा जाता हैं।
आशय एक मानसिक अवस्था है, यह जब तक किसी व्यक्ति के मन में रहता है वह दंडनीय नहीं होता है। IPC की धारा 34 में आशय की परिभाषा दी गई है| जिसके अनुसार –
“जब कि कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तिओं में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो|
उदाहरण – ‘क’ जो ‘ख’ की हत्या करने की योजना बनाता है, इस प्रकार ‘क’ का आशय ‘ख’ की हत्या करने का है फिर आशय का भी दुराशय होना आवश्यक है। केवल क्राइम कारित करने का विचार करना या मन में विचार आना मात्र दण्डनीय नहीं है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा ओमप्रकाश (ए.आई.आर. 1961 एस.सी.सी. 1782) के मामले में यह कहा गया है कि, आशय क्राइम कारित करने की प्रथम अवस्था है। आशय की अभिव्यक्ति किसी न किसी कार्य में होनी आवश्यक है तभी क्राइम का गठन होता है।
लेकिन अपवाद स्वरूप आशय को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 120 क एवं 120 ख के अन्तर्गत ‘आपराधिक षड्यन्त्र’ (Criminal Conspiracy) के रूप में दण्डनीय Crime माना गया है।
(ii) तैयारी (Preparation) –
Crime की दूसरी अवस्था ‘तैयारी’ (Preparation) है। जिस प्रकार आशय के बिना कोई क्राइम कारित नहीं किया जा सकता है उसी तरह तैयारी के बिना भी कोई क्राइम घटित नहीं किया जा सकता है।
तैयारी, आशय के बाद की अवस्था है क्योंकि व्यक्ति क्राइम घटित करने का मन बनाकर उसकी तैयारी में लग जाता है। Crime कारित करने के लिए साधनों को संग्रहीत करना भी तैयारी है।
उदाहरण – ‘ए’ जो ‘बी’ की हत्या करना चाहता है या ‘बी’ के मकान में चोरी करना चाहता है और इसी आशय के साथ ‘ए’ जहर, अस्त्र-शस्त्र या सीढियों की व्यवस्था करता है तब यह कार्य तैयारी कहलायेगा।
लेकिन यहाँ यह स्पष्ट करना उचित होगा कि तैयारी मात्र क्राइम नहीं है। तैयारी को कार्य रूप में परिणित किया जाना आवश्यक है।
इस सम्बन्ध में रामक्का (1884, 8 चेन्नई 5) का एक मामला है जिसमें एक महिला आत्महत्या करने के लिए कुएँ की तरफ दौड़ती है लेकिन उसे बीच में ही रोक लिया जाता है। इसे आत्महत्या का प्रयास नहीं मानकर केवल आशय व तैयारी माना गया।
लेकिन अपवाद स्वरूप भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अन्तर्गत निम्न तैयारियों को दण्डनीय अपराध माना गया है –
(a) भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की तैयारी (धारा 122),
(b) भारत सरकार के साथ शान्तिपूर्ण सम्बन्ध रखने वाले राष्ट्र के साथ लूटपाट करने की तैयारी (धारा 126),
(c) डकैती करने की तैयारी करना (धारा 399) आदि।
(iii) प्रयत्न (Attempt) –
प्रयत्न Crime की तीसरी महत्वपूर्ण अवस्था है और इसे दण्डनीय Apradh माना गया है। प्रयत्न जिसे ‘प्रयास’ (Attempt) भी कहा जाता है| आशय एवं तैयारी से व्यक्ति अपराध करने के लिए उत्प्रेरित होता है और प्रयत्न ही है जो क्राइम को पूर्णता की ओर ले जाता है।
केस – अमन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा (ए.आई.आर. 2004 एस.सी. 1497)
इस मामलें में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि, प्रयत्न से तात्पर्य ऐसे कार्य से है जिसे यदि नहीं रोका जाये तो वह उस कार्य को पूर्णता तक पहुंचा देता है”।
केस – अभयानन्द बनाम स्टेट (ए.आई.आर. 1961 एस.सी. 1698)
इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि, तैयारी पूर्ण होने के पश्चात् प्रयत्न प्रारम्भ होता है और किसी कृत्य का किया जाना क्राइम के निमित्त अगला कदम है।
उदाहरण – ‘क‘ चोरी करने के आशय से ‘ख‘ की जेब में हाथ डालता है लेकिन जेब में कुछ नहीं मिलता। इसी प्रकार ‘क‘ चोरी करने की नीयत से ‘ख‘ के सन्दूक का ताला तोड़ता है लेकिन सन्दूक में कुछ नहीं मिलता। इस प्रकार यह सभी कार्य चोरी करने के प्रयत्न है जो दण्डनीय Apradh है।
भारतीय दण्ड संहिता में निम्न प्रयत्नों को पृथक् तौर पर दण्डनीय Apradh माना गया है –
(a) भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने का प्रयत्न करना,
(b) किसी अपराधी को दण्ड से बचाने के लिए उपहार आदि प्राप्त करने का प्रयत्न करना (धारा 213)
(c) किसी व्यक्ति को कूटकृत सिक्का लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करना (धारा 39)
(d) हत्या करने का प्रयत्न करना (धारा 307)
(e) आपराधिक मानव वध करने का प्रयत्न करना (धारा 308)
(f) आत्महत्या करने का प्रयत्न करना (धारा 309)
(g) लूट या डकैती का प्रयत्न करना (धारा 393, 397 एवं 398)
(h) रात्रि प्रच्छन्न गृह अतिचार या रात्रि गृह भेदन करते समय किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करना (धारा 460) आदि। इसके अलावा अनेक ऐसे ‘प्रयत्न (Attempt)’ भी है, जिन्हें IPC की धारा 511 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध माना गया है।
(iv) अपराध का निष्पादन
Crime का आखिरी चरण अपराध का निष्पादन होता है। क्राइम घटित करने के लिए व्यक्ति सबसे पहले उस कृत्य का आशय या विचार करता है, फिर तैयारी करता है इन दोनों अवस्था के बाद व्यक्ति अपराध घटित करने का प्रयत्न करता है और यदि प्रयत्न सफल हो जाता है, तो वह कार्य पूर्ण क्राइम का रूप ले लेता है और Apradh की विषय वस्तु के अनुसार जो क्राइम के लिए दण्ड संहिता में विहित किया गया है दण्डनीय होता है|
तैयारी एवं प्रयत्न में प्रमुख अन्तर
(a) ‘तैयारी’ Crime की दूसरी अवस्था है, जबकि ‘प्रयत्न’ इसकी तीसरी अवस्था।
(b) ‘तैयारी’ से तात्पर्य क्राइम कारित करने के साधनों को संग्रहीत करना है, जबकि ‘प्रयत्न’ से तात्पर्य है क्राइम कारित करने की चेष्टा करना है।
(c) तैयारी अपने – आप में कोई क्राइम नहीं है जबकि ‘प्रयत्न’ अपने – आप में एक क्राइम है।
(d) कुछ अपवादों को छोड़कर तैयारी को भारतीय दण्ड संहिता में दण्डनीय क्राइम नहीं माना गया है लेकिन ‘प्रयत्न’ को भारतीय दण्ड संहिता में दण्डनीय क्राइम माना गया है।
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सन्दर्भ – अपराधशास्त्र एंव दण्डशास्त्र (डॉ. वाई.एस.शर्मा)