इस आलेख में अपराध किसे कहते है, इसकी परिभाषा एंव ऐसे कोनसे कारण है जिनसे प्रेरित होकर मनुष्य अपराध कर बैठता है यानि क्राईम किन किन कारणों से फैलता है आदि को आसान शब्दों में समझाया गया है –
अपराध एक आवश्यक बुराई है। सृष्टि की रचना के साथ ही अपराधों का अभ्युदय हुआ है। तब से आज तक अपराधों की यह यात्रा निरन्तर चल रही है। देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार अपराधों की संख्या में कमी-वृद्धि होती रहती है।
समय के साथ-साथ नये-नये अपराध भी सामने आने लगे और अपराधों की यह श्रृंखला सामान्य चोरी से साइबर अपराधों तक पहुँच गई। आइये जानते है अपराध क्या है और इसमें किन कारणों एंव तत्वों का योगदान होता है जो क्राईम को बढ़ाने में अहम् होते है या फिर क्राईम को जन्म देते है|
अपराध क्या है ?
कानून में “क्राईम” एक ऐसा कृत्य या चूक है, जो किसी व्यक्ति, समाज, या राज्य के खिलाफ होता है और जिसे कानून द्वारा दंडनीय माना गया है।
सरल शब्दों में क्राईम एक ऐसा कार्य है जो राज्य की विधि द्वारा दंडनीय होता है और जो व्यक्ति ऐसा कार्य करता है उसे दण्डित किया जाता है| अपराध को आपराधिक न्याय प्रणाली के अंतर्गत परिभाषित किया गया है जिसकी परिभाषा समय, स्थान और समाज के आधार पर बदल सकती है|
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अपराध की परिभाषा
क्राईम एक विख्यात शब्द है जो प्राय: सभी के मुहँ से सुनने को मिलता है, अपराध शब्द को बोलना जितना आसान है उतना ही इसकी परिभाषा दिया जाना कठिन है। आज तक इसकी कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकी है।
ब्लैकस्टोन के अनुसार “क्राईम एक ऐसा कृत्य अथवा कार्यलोप है जो सार्वजनिक विधि के उल्लघन में किया जाता है तथा जो राज्य द्वारा निषिद्ध है।”
गिलिन के अनुसार “क्राईम एक ऐसा कृत्य अथवा दुराचरण है जो समाज के लिए हानिकारक एवं स्थानीय विधि का उल्लंघन है।”
गेरोफेलो के मत में “अपराध एक ऐसा कृत्य है जो मानव की दया एवं न्यायिकता की भावनाओं पर प्रहार करता है।” यानि सत्य एवं निज की प्रचलित भावना का उल्लंघन ही अपराध है।
क्रान्स एण्ड जोन्स के शब्दों में “क्राईम एक ऐसा विधिक अपकार है जिसके उपचार के तौर पर राज्य द्वारा अपराधी को दण्डित किया जाता है।”
सदरलैण्ड के अनुसार “क्राईम मानव का एक ऐसा आचरण है जिससे आपराधिक विधि का उल्लंघन अथवा अतिक्रमण होता है।”
डोनाल्ड आर. टेफ्ट के शब्दों में “क्राईम एक ऐसा कार्य है जिसका किया जाना दण्ड विधि के अधीन निषिद्ध है तथा जो किये जाने पर विधि द्वारा दण्डनीय है।”
हैल्सबरी के अनुसार- “क्राईम लोकहित के विरुद्ध एक ऐसा कृत्य है जिसे कारित करने वाले को विधिनुसार दण्डित किया जाता है।”
ऑस्टिन के मत में “क्राईम वे अवैधानिक कार्य हैं जिनके साबित हो जाने पर न्यायालय द्वारा अपराधियों को दण्ड दिया जाता है और ऐसे दण्ड मे कमी करने का एकमात्र अधिकार राज्य को होता है।”
कैनी के अनुसार “क्राईम वे अवैधानिक कार्य हैं जिनके बदले में अपराधी को दण्ड दिया जाता है और वे क्षम्य नहीं होते। यदि क्षम्य है भी तो यह अधिकार केवल राज्य को है।”
मिल्लर के शब्दों में “अपराध वे कृत अथवा अकृत उल्लंघन कार्य है जिनको विधि समादेशित या निदेशित करती है तथा ऐसे उल्लंघनों को राज्य अपने नाम से कार्यवाही करके दण्डित करता है।”
पॉल डब्ल्यू टेपन के अनुसार “क्राईम ऐसा आशयित कार्य या लोप है जो दण्ड विधि के अतिलंघन में किया गया हो और जिसके पीछे विधि द्वारा स्वीकृत कोई बचाव अथवा न्यायानुमति न हो।”
उपरोक्त सभी परिभाषाओं से स्पष्ट है कि, ऐसे सभी कार्य जो विधि द्वारा दण्डनीय है क्राईम की श्रेणी में आते है। यह मुख्य तौर पर कुछ ऐसे कारणों का उल्लेख किया गया है जो क्राईम को बढाने या उनके उद्भव में अपना अहम् योगदान देते है|
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अपराध के कारण causes of Crimes
प्रायः प्रत्येक अपराध के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य रहता है। इसे हम आशय या हेतुक भी कह सकते हैं। अपराधशास्त्र में क्राईम के कारण भिन्न-भिन्न बताये गये हैं जो किसी न किसी सम्प्रदाय अथवा विचारधारा पर आधारित हैं। जिनमे से क्राईम के उत्थान के मुख्यतया निम्नांकित कारण मानते हैं-
(1) शारीरिक कारण,
(2) पारिवारिक कारण,
(3) सामाजिक कारण,
(4) आर्थिक कारण,
(5) राजनीतिक कारण,
(6) मनोवैज्ञानिक कारण,
(7) अन्य कारण ।
1. शारीरिक कारण – इन्हें ‘वैयक्तिक कारण’ भी कहा जा सकता हैं। विख्यात अपराधशास्त्री लोम्ब्रोसो इसके प्रबल समर्थक हैं उनका कहना है कि अपराधी व्यक्तियों की शारीरिक एवं मानसिक दशा अन्य सामान्य व्यक्तियों से कुछ भिन्न होती है और ऐसा वंशानुगत होता है। इसी आधार पर लोम्ब्रोसो ने जन्मजात अपराधी की अवधारणा को जन्म दिया। इसे ‘एटाविस्ट’ का नाम दिया गया।
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शारीरिक कारणों को निम्नांकित उपवर्गों में रखा गया गया है
(क) आयु – क्राईम को प्रभावित करने वाला पहला लक्षण अपराधी की आयु है। अपराधशास्त्रियों के अनुसार, 15-16 वर्ष की आयु के व्यक्ति साधारण अपराध कारित करते हैं, जबकि 25-26 वर्ष की आयु के व्यक्ति गम्भीर प्रकृति के क्राईम कारित करते हैं। वृद्धावस्था में यौन क्राईम अधिक कारित होते हैं। अपराधशास्त्री बर्क इसके समर्थक माने जाते हैं।
(ख) लिंग – अपराधशास्त्रियों की मान्यता है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक अपराध कारित करते हैं। पोलक के अनुसार महिलायें अपकर्षण, ठगी, गर्भपात, वेश्यावृत्ति जैसे क्राईम कारित करती हैं। समलिगी सम्भोग की प्रवृत्ति पुरुषों में अधिक पाई जाती है। प्रो. स्मिथ लैंगिक विकृति को भी क्राईम का एक कारण मानते हैं।
(ग) शारीरिक रचना – व्यक्ति की शारीरिक रचना, आकार, बनावट, आकृति आदि भी अपराधों के कारण बनते है। सामान्य प्रकृति एवं सौम्य स्वभाव के व्यक्ति कम अपराध करते हैं, जबकि असामान्य प्रकृति के व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक क्राईम करते हैं। कुरूप, विकलांग, बौने व्यक्ति समाज में हेय, घृणा एवं उपहास के पात्र समझे जाते हैं जिनके कारण उनमें कुण्ठा का भाव उत्पन्न हो जाता है और वे क्राईम की ओर प्रवृत्त होने लग जाते हैं। अपराधशास्त्री गोरिंग इसके समर्थक माने जाते हैं।
(घ) मानसिक दशा- व्यक्ति की मानसिक दशा भी उसे अपराधों की ओर उन्मुख करती है। मन्द बुद्धि, मनोविक्षिप्त, पागल, जड़, उन्मत्त, विकृत चित्तता आदि विकृत मानसिकता के लक्षण हैं। ऐसे व्यक्ति अधिक अपराध कारित करते हैं, क्योंकि उनमें कार्य की प्रकृति एवं परिणामों को समझने की क्षमता नहीं होती है।
जोडार्ड ने परीक्षण द्वारा साबित किया है कि अपराधी सामान्यतया मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त होते हैं। वे मन्द बुद्धि भी होते हैं। गोरिंग ने भी विभिन्न अपराधियों का बुद्धि परीक्षण कर यह साबित करने का प्रयास किया है कि अपराधी व्यक्ति कम बुद्धि के होते हैं।
अपराधशास्त्री गेरोफेलो के विचार में अपराधी मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के होते है और यह प्रवृत्तियाँ वंशानुगत होती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती हैं।
डोनाल्ड आर. टेफ्ट ने प्रज्ञा (Prudence) और आपराधिकता में निकट का सम्बन्ध बताते हुए कहा है कि- मन्द बुद्धि वाले व्यक्ति स्वभाव से आलसी एवं भीरू होते हैं। उनमें सोचने व समझने की क्षमता भी नहीं होती है, इसीलिए वे प्रकृति एवं परिणामों पर विचार किये बिना अपराध कर बैठते हैं। ऐसे व्यक्त्ति लैंगिक अपराध कम कारित करते हैं क्योंकि उनमें कामवासना का अभाव होता है।
सदरलैण्ड ने अपराध के लिए बुद्धिहीनता की अपेक्षा बुद्धि की तीव्रता को अधिक महत्त्व दिया हैं। उनका मत है कि कुछ अपराधों में बुद्धि की अधिक आवश्यकता होती है, जैसे- ठगी, कूट रचना, आपराधिक षडयन्त्र आदि। ऐसे अपराध प्रखर बुद्धि के व्यक्ति योजना बनाकर ही कारित कर सकते हैं।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “अपराध निम्न बुद्धि स्तर का परिणाम है।”
2 पारिवारिक कारण – अपराधो का दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण पारिवारिक है। व्यक्ति का आचरण पारिवारिक परिवेश पर अधिक निर्भर करता है। परिवार में व्यक्ति को जैसा वातावरण मिलता है वह वैसा ही आचरण करता है। कहा भी गया है कि “परिवार व्यक्ति की प्रथम पाठशाला होती है।” डोनाल्ड आर. टेफ्ट का भी कहना है कि- परिवार न केवल प्रथम अपितु सर्वाधिक सजातीय, एकीकृत एक अन्तरंग सामाजिक पाठशाला है।
अपराधों के लिए मुख्यतया निम्नाकित पारिवारिक परिस्थितियाँ अधिक उत्तरदायी मानी जाती हैं-
(क) पारिवारिक नियन्त्रण का अभाव,
(ख) परिवार का विघटन:
(ग) परिजनों के प्रति उपेक्षा,
(घ) साहचर्य की कमी,
(ङ) भावनात्मक तनाव, आदि
जिस परिवार में पति-पत्नी में नित्य झगडे होते हैं; पिता शराबी या जुआरी होता है, अभिभावक व्यभिचारी होते हैं, परिजन व्यसनी होते हैं, आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, परिवार में धार्मिक वातावरण नहीं होता है, अत्यधिक भीड़ होती है. कुसंस्कार होते हैं, पारस्परिक साहचर्य का अभाव होता है, उपेक्षावृत्ति का भाव रहता है, माता-पिता में विवाह विच्छेद हो जाता है. उस परिवार में अपराधों का आधिक्य होता है।
जिस परिवार में माता-पिता नहीं होते हैं उसमें सामान्यतः अनुशासन का अभाव रहता है और अनुशासन के अभाव में व्यक्ति अपराधी बन बैठते हैं। इसी प्रकार जो परिवार आर्थिक दृष्टि से कमजोर होता है, जिसमें सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं हो पाती है, पारिवारिक सदस्य बेरोजगार होते हैं. ऐसे परिवारों में चोरी, वेश्यावृत्ति, व्यभिचार जैसे अपराध कारित करने वाले व्यक्ति होते हैं। आत्महत्या भी ऐसे ही परिवारों में अधिक होती है। बेरोजगारी आत्महत्या के प्रयत्न का प्रमुख कारण है।
पारिवारिक विघटन भी अपराधों का एक मुख्य कारण है। क्राईम शास्त्री टॉबी का मत है कि- विघटित परिवार का बच्चों एवं नवयुवतियों पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिससे उनके अपराधी बनने की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती है।
डोनाल्ड आर. टेफ्ट का कहना है कि अधिकांश परिवारों में स्वयं अभिभावक बच्चों को अपराधों की ओर ढ़केलते हैं, जैसे बच्चों को स्टेशन से कोयला चुराकर लाने के लिए कहना। इसी प्रकार आपराधिक आचरण व्यवहार एवं वातावरण वाले परिवार के सदस्य भी अपराधों का अनुसरण करने लगते हैं।
सदरलैण्ड का विचार है कि ऐसे परिवार के बच्चे अपराधी बन जाते हैं-
(क) जिस परिवार का वातावरण अनैतिक, व्यसनयुक्त एवं आपराधिक होता है,
(ख) जिसमें माता-पिता का अभाव होता है,
(ग) जो अशिक्षित, कुप्रथाओं का अनुसरण करने वाला, असंवेदनशील एवं रोगग्रस्त होता है,
(घ) जिसमें परिजनों के साथ सौतेला व्यवहार, उनकी उपेक्षा एवं ईर्ष्या आदि की जाती है और जो अत्यधिक भीड़ भरा होता है; तथा
(ड) जिसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है और परिजन बेरोजगार होते हैं।
इस प्रकार परिवार एवं पारिवारिक वातावरण व परिस्थितियाँ भी अपराधों का अहम् कारण है।
3. सामाजिक कारण – समाज एवं सामाजिक परिस्थितियाँ भी अपराधों का एक प्रमुख कारण है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहकर ही अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता है। अतः समाज में उसे जैसा वातावरण मिलता है, वह वैसा ही बन जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जैसा समाज होता है वैसा ही व्यक्ति होता है।
सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज का व्यक्ति भी सभ्य एवं सुसंस्कृत होता है। यदि समाज की पृष्ठभूमि आपराधिक है तो उसका सदस्य भी आपराधिक प्रवृत्ति का ही होगा। ऐसी कई सामाजिक व्यवस्थाएँ एवं कुप्रथाएँ है जो क्राईम का कारण बनती हैं, जैसे दहेज प्रथा, बाल-विवाह, सती प्रथा, मृत्युभोज, अस्पृश्यता आदि।
दहेज आज क्राईम का प्रमुख सामाजिक कारण माना जाता है। दहेज के कारण समाज में दहेज हत्या (Dowry-Death) के अपराध बढ़ रहे हैं। दहेज की माँग को लेकर नवविवाहित महिलाओं को यातनाएँ दी जाती हैं, उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता है, उन्हें असामान्य परिस्थितियों में या तो मार दिया जाता है या फिर आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया जाता है। यह दहेज हत्या का क्राईम है। समाज की सती प्रथा भी एक अपराध है।
इसके साथ-साथ कई बार व्यक्ति के साथ समाज का सौतेला एवं उपेक्षित व्यवहार भी उसे अपराधी बना देता है। अनेक बार छोटी-छोटी बातों पर समाज द्वारा समाज के किसी व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है जिससे व्यक्ति में कुण्ठायें पैदा हो जाती है और वह क्राईम की ओर कदम बढ़ाने लगता है।
4. आर्थिक कारण – जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है- निर्धनता, अर्थाभाव, आर्थिक विषमताये आदि क्राईम के अहम् कारण हैं। जब परिवार आर्थिक संकट में होता है तब परिजन चोरी, वेश्यावृत्ति, व्यभिचार जैसे अपराधों की ओर प्रवृत्त होने लगते हैं।
बेकारी एवं बेरोजगारी भी अनेक क्राईम एवं दुष्प्रवृत्तियों की जननी है। बेकार एवं बेरोजगार व्यक्ति चोरी, आवारागर्दी, वेश्यावृत्ति, यौन शोषण, भिक्षावृत्ति, नशा आदि की ओर बढ़ता है।
मनुष्य में लोभ, प्रलोभन, स्वार्थ एवं अधिक धन अर्जित करने की लालसा भी क्राईम को जन्म देती है। चोरी, लूट, डकैती, आपराधिक न्यास भंग, छल, कपट, तस्करी, कालाबाजारी, मिलावट, रिश्वत आदि क्राईम इसी लालसा के परिणाम है।
अरस्तू के विचार में “धन अथवा स्वर्ण की लालसा ही अपराधों का मूल कारण है। अधिकाश क्राईम मात्र आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं किये जाकर अतिरिक्त धन या वस्तुयें प्राप्त करने के लिए किये जाते हैं।”
प्लेटो भी क्राईम का मुख्य कारण प्रलोभन को मानते हैं। व्यक्ति प्रलोभन में आकर ही अनेक क्राईम कर बैठता है।
बकारिया के मत में निर्धनता, भुखमरी आदि से व्यक्ति में निराशा उत्पन्न होती है और वह क्राईम कारित करने लगता है।
डोनाल्ड आर. टैफ्ट के अनुसार अर्थाभाव एवं आवश्यकतानुसार वस्तुओं के नहीं मिलने पर व्यक्ति में आर्थिक हीनता का भाव पनपता है और वह क्राईम के द्वारा अर्थाभाव को मिटाने का प्रयास करता है। यह भी सत्य है कि आर्थिक विषमताओं से वर्ग संघर्ष का जन्म होता है और वर्ग संघर्ष अनेक क्राईम का कारण बनता है।
5. राजनैतिक कारण – क्राईम के राजनीतिक कारण भी है। आज यह एक आम धारणा बन चुकी है कि अधिकांश अपराधियों को राजनेताओं का संरक्षण मिलता है।
ऐसे व्यक्ति निःसंकोच एवं निडर होकर क्राईम करते हैं, क्योंकि शासन व प्रशासन उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। ऐसे संरक्षण के पीछे राजनेताओं का भी अपना स्वार्थ होता है। चुनाव के समय ऐसे अपराधी राजनेताओं का सहयोग करते है, जैसे-
(क) चुनाव में चन्दा अर्थात् आर्थिक सहयोग देना,
(ख) मतदाताओं को वोट देने के लिए बल एवं हिंसा द्वारा विवश करना,
(ग) मतदाताओं को डराना, धमकाना, भयभीत करना,
(घ) बूथों पर कब्जा करना,
(ङ) मतपेटियों को छीनकर ले जाना,
(च) फर्जी मतदान कराना, आदि।
यही कारण है कि आजकल राजनीति के अपराधीकरण की बात कही जाती है।
6. मनोवैज्ञानिक कारण – क्राईम का मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological cause) भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। ऊपर शारीरिक कारण शीर्षक के अन्तर्गत ‘मानसिक दशा’ उपशीर्षक में इस पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया है।
अलफ्रेड बिनेट (Alfred Binet) फ्रांस के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हुए हैं। उन्होंने अपनी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में निरन्तर प्रयोग करने के पश्चात् व्यक्तियों में पाई जाने वाली मन्द बुद्धि की समस्या के सम्बन्ध में मानसिक आयु तथा प्रज्ञा बुद्धि (Mental age and Intelligence Quotient) की संकल्पनाओं का प्रतिपादन किया और आपराधिकता पर उसके प्रभाव की विवेचना की।
अल्फ्रेड बिनेट के अनुसंधानों को आगे बढ़ाया अमेरिकन मनोवैज्ञानिक प्रो. जर्मन (Prof. Jerman) ने। उनके मत में मानसिक आयु से अभिप्राय बालक की उस अवस्था से है जब उसमें सामान्य बुद्धि का विकास हो जाता है और उसमें कार्य की प्रकृति एवं परिणामों को समझने की क्षमता आ जाती है।
यह क्षमता आयु के साथ-साथ बढ़ती जाती है, जिसे ‘प्रज्ञा लब्धि’ कहा जाता है। एक ओर वैज्ञानिक हुए है फ्रायड, जिनका इस दिशा में विशेष योगदान माना जाता है। उन्होंने आपराधिकता की प्रवृत्ति का विश्लेषण करते हुए कहा है कि मानव मस्तिष्क में तीन प्रमुख भावनायें सदैव आपस में टकराती रहती है, जिन्हें
(क) इड (Id).
(ख) इगो (Ego).
(ग) सुपर इगो (Super Ego); कहा जाता है।
इड से अभिप्राय मानव की उन प्राकृतिक इच्छाओं से है जो उनके जैविक एवं भौतिक अस्तित्व के कारण उत्पन्न होती है। उदाहरणस्वरूप किसी व्यक्ति का परिवार के लोगों के प्रति स्नेह इड (Id) की भावना के कारण होता है।
इगो (Ego) से अभिप्राय स्वयं के व्यक्तित्व के प्रति मानव की जागरूकता से है। उदाहरणस्वरूप भूख, प्यास, सम्भोग की इच्छा आदि मानव स्वभाव की नैसर्गिक क्रियायें हैं। इन इच्छाओं की पूर्ति मनुष्य वैधानिक साधनों द्वारा ही करना चाहता है, क्योंकि वह जानता है कि अवैध साधनों से की गई पूर्ति समाज में बदनामी का कारण हो सकती है और उससे उसके अहम् को चोट लग सकती है। यह जागरूकता इगो के रूप में जानी जाती है।
जबकि आत्मपरीक्षण एवं संयम की शक्ति की सुपर इगो (Super Ego) कहलाती है। जिन व्यक्तियों की सुपर इगो प्रबल होती है वे कभी क्राईम कारित नहीं कर सकते, क्योंकि उनकी सुपर इगो उन्हें सदैव अपराध से दूर रखती है।
इनके आधार पर फ्रायड ने यह निष्कर्ष निकाला है कि-
(क) अपराध के लिए इड (Id) उत्तरदायी है.
(ख) जिस व्यक्ति की इगो तथा सुपर इगो कमजोर होती है वे अक्सर क्राईम कारित करते हैं,
(ग) क्राईम से बचने के लिए इड अर्थात् भौतिक इच्छाओं पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है, तथा
(घ) ऐसा नहीं कर पाने पर व्यक्ति में निराशा आ जाती है, वह क्रोध या सदमे का शिकार हो बैठता है जो कभी-कभी आत्महत्या का कारण बन जाता है।
डोनाल्ड आर टैफ्ट के अनुसार मन्द बुद्धि वाले व्यक्ति सामान्यतः आलसी एवं भीरू प्रवृत्ति के होते हैं इसलिये वे क्राईम कारित करने से डरते हैं, जबकि प्रखर बुद्धि वाले व्यक्ति अपराध कारित करने से नहीं डरते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वे कभी पकड़ में नहीं आयेंगे। ऐसे व्यक्ति योजनाबद्ध तरीके से क्राईम कारित करते हैं।
डॉ. ई.ए. यूटन द्वारा भी मानसिक रूप से विकृत अपराधियों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया गया। उनके द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि प्रायः सभी मापदण्डों के अनुसार मानसिक रूप से विकृत अपराधी सामान्य व्यक्तियों से हीन होते हैं। ऐसे अपराधियों को समाज से दूर रखा जाना चाहिए। लेकिन सदरलैण्ड इस विचार से सहमत नहीं है।
मनोवैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में आपराधिक प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। सदरलैण्ड के अनुसार महिलाओं की अपेक्षा पुरुष इसलिये अधिक क्राईम करते हैं क्योंकि उन्हें परिवार को पालना होता है तथा संरक्षण प्रदान करना होता है, जबकि महिलाओं को आदर्श गृहिणी की भूमिका निभानी होती है।
परिवार में भी लड़कियों से शालीन, विनम्र एवं सदाचारी बनने की अपेक्षा की जाती है, जबकि लड़कों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्वतन्त्र रहें, किसी से डरे नहीं, दबे नहीं और सदैव पौरुषता का परिचय दें। यही शिक्षा पुरुषों को अपराधी बना देती है।
मनोवैज्ञानिक अपराधों के निम्नांकित कारण भी मानते हैं-
(क) भावनात्मक अस्थिरता,
(ख) हीनता की भावना, तथा
(ग) पारिवारिक वातावरण।
भावनात्मक अस्थिरता वाले लोग सही और सामयिक निर्णय नहीं ले पाते हैं जिससे वे क्राईम की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं। इसी प्रकार हीनता की भावना वाले व्यक्ति मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। वे भय, क्रोध, नफरत आदि से ग्रसित हो जाते हैं। यही उन्हें अपराधी बनाने का कारण बन जाता है। पारिवारिक विघटन एवं वातावरण भी क्राईम का एक अहम् कारण है।
मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में कुल मिलाकर ऐसे व्यक्ति अधिक क्राईम कारित करते हैं, जो-
(1) भावनात्मक तौर पर कमजोर होते हैं
(ii) आर्थिक रूप से विपन्न एवं असुरक्षित होते हैं:
(iii) आजीविका के लिए सदैव संघर्षरत रहते हैं.
(iv) बेकार एवं बेरोजगार होते हैं,
(v) पारिवारिक कलह से पीडित होते हैं;
(vi) किसी प्रेम प्रसंग में निराश हो जाते हैं,
(vii) किसी अप्रिय घटना के शिकार हो जाते हैं, अथवा
(viii) शिशु काल से ही निराश होते हैं।
7. अन्य कारण – क्राईम के कुछ अन्य कारण भी हैं, यथा-
(क) अश्लील साहित्य,
(ख) सिनेमा, दूरदर्शन, इन्टरनेट एवं अश्लील फिल्में,
(ग) सह-शिक्षा,
(घ) नैतिक एवं चारित्रिक पतन आदि।
अश्लील साहित्य का व्यक्ति के मन व मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ता है और वह शीघ्र ही क्राईम की ओर उन्मुख हो जाता है। कामोत्तेजना बढ़ाने वाला साहित्य लैंगिक क्राईम (Sexual Offences) को जन्म देता है। यही स्थिति अश्लील फिल्में व टी.वी चैनलों की है। कुछ हद तक क्राईम के लिए सह-शिक्षा को भी उत्तरदायी माना जा सकता है।
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