नमस्कार दोस्तों, इस आलेख में कब्जे के प्रकार (Kinds of Possession) तथा कब्जे का अर्जन (Acquisition of Possession) किस तरह प्राप्त किया जाता है का उदाहरण सहित वर्णन किया गया है| अगर आपने इससे पहले विधिशास्त्र के बारे में नहीं पढ़ा है तब आप विधिशास्त्र केटेगरी से पढ़ सकते है
कब्जा | Possession
कब्जे की संकल्पना से विधि के अंतर्गत स्वामित्व (ownership), हक (title) तथा सम्पत्ति (property) आदि सम्बन्धी अधिकारों को अच्छी तरह से समझने में पर्याप्त सहायता मिलती है। विधि के अन्तर्गत कब्जे (Possession) को स्वामित्व का प्रथम दृष्ट्या प्रमाण माना गया है।
सर हेनरी मेन के अनुसार – कब्जे से आशय किसी वस्तु के साथ ऐसे संपर्क से है जो अन्य व्यक्तियों को उस वस्तु के उपभोग से अपविर्जत करता है अर्थात अन्य व्यक्तियों को उस वस्तु या सम्पति के उपयोग उपभोग से रोकता है|
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कब्जे के प्रकार | Types of Possession
कब्जा को मुख्यतः निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
मूर्त कब्जा तथा अमूर्त कब्जा
किसी भौतिक वस्तु के कब्जे को ‘मूर्त कब्जा’ (Corporeal Possession) कहते हैं, जैसे मकान, भूमि, मेज, घड़ी आदि। भौतिक वस्तु पर वास्तविक कब्जे को छोड़कर अन्य प्रकार के कब्जे को ‘अमूर्त कब्जा’ (incorporeal possession) कहते हैं। उदाहरण – दूसरे व्यक्ति को भूमि से होकर जाने का मार्गाधिकार या प्रतिष्ठा सम्बन्धी अधिकार आदि।
रोमन विधि में मूर्त कब्जे को possessio corporis तथा अमूर्त कब्जे को possessio juris कहते हैं। कुछ विधिवेत्ताओं के अनुसार वास्तविक कब्जा सदैव मूर्त होता है तथा अमूर्त कब्जा एक ऐसी संकल्पना है जो वास्तविक कब्जे से कुछ न्यूनता प्रकट करती है।
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तात्कालिक तथा मध्यवर्ती कब्जा
जब कोई व्यक्ति स्वंय प्रत्यक्ष तौर पर कब्ज़ा अर्जित करता है तो उसे तात्कालिक कब्ज़ा कहा जाता है और जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से कब्ज़ा प्राप्त करता है तो उसे मध्यवर्ती कब्जा (Possession) कहा जाता है|
सामण्ड के अनुसार – ऐसा कब्जा जो व्यक्ति स्वयं व्यक्तिगत रूप से प्रत्यक्षतः अर्जित करता है ‘तात्कालिक कब्जा’ कहलाता है और ऐसा कब्जा जो किसी दूसरे व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त होता है, ‘मध्यवर्ती कब्जा’ कहलाता है।
उदाहरण – क बाजार से स्वयं पुस्तक खरीद कर लाता है, तो उस पुस्तक पर क का तात्कालिक कब्जा होगा, लेकिन यदि क पुस्तक खरीदने के लिए अपने नौकर ख को बाजार भेजता है, तो क उस नौकर ख के कब्जे के माध्यम से पुस्तक का मध्यवर्ती कब्जाधारक तब तक बना रहेगा जब तक नौकर ख वह पुस्तक क को नहीं सौंप देता और जैसे ही पुस्तक क के हाथ में आएगी उस पर क का तात्कालिक कब्जा हो जाएगा।
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सामण्ड ने मध्यवर्ती कब्जे के तीन प्रकार बताए हैं –
(i) ऐसा मध्यवर्ती कब्जा – जिसे कोई व्यक्ति अपने नौकर या अभिकर्ता के माध्यम से अर्जित करता है। इसमें जिस व्यक्ति के माध्यम से कब्जा प्राप्त होता है वह कब्जाधीन वस्तु को दूसरे के लिए धारित करता है तथा उस पर अपने किसी निजी हित का दावा नहीं करता।
(ii) दूसरे प्रकार के मध्यवर्ती कब्जे में – कोई व्यक्ति किसी वस्तु पर दूसरे के लिए तथा स्वयं के हित के लिए कब्जा रखता है किन्तु वह उस दूसरे व्यक्ति के स्वामित्व के बेहतर हक को स्वीकार करता है तथा कब्जाधीन वस्तु मांगी जाने पर उसे लौटाने के लिए किसी भी क्षण तैयार रहता है।
(iii) तीसरे प्रकार के मध्यवर्ती कब्जे में – व्यक्ति किसी दूसरे की वस्तु पर स्वयं के हित के लिए वास्तविक कब्जा (Possession) उस समय तक बनाये रखता है जब तक कि कोई विनिर्दिष्ट शर्त पूरी नहीं हो जाती या निर्धारित अवधि पूर्ण नहीं हो जाती। साथ ही वह उस दूसरे व्यक्ति के उस वस्तु सम्बन्धी हक को स्वीकार करता है जिसके लिए उसने वह वस्तु धारण की है तथा जिसे वह अस्थायी दावा (claim) समाप्त होते ही उस दूसरे व्यक्ति को लौटाने के लिए तैयार है।
उदाहरण – यदि कोई व्यक्ति ऋण की अदायगी की प्रतिभूति के रूप में अपने गहने ऋण देने वाले व्यक्ति के पास गिरवी रखता है, तो यद्यपि उन गहनों पर वास्तविक कब्जा गिरवीदार का होता है किन्तु गिरवी रखने वाले व्यक्ति का उन पर मध्यवर्ती कब्ज़ा (Possession) माना जायेगा। इसका कारण यह है कि गहने गिरवीदार के अस्थायी कब्जे में हैं किन्तु गिरवी रखने वाला व्यक्ति उसके अनन्य उपयोग का दावा नहीं छोड़ता है|
यहाँ स्पष्ट करना उचित होगा की सभी प्रकार के मध्यवर्ती कब्जे में एक ही वस्तु पर एक साथ दो व्यक्ति कब्जा रखते हैं। मध्यवर्ती कब्जे के अस्तित्व का प्रयोग किसी तीसरे व्यक्ति के विरुद्ध ही किया जा सकता है न कि तात्कालिक कब्जाधारी के विरुद्ध।
तथ्यतः एंव विधित: कब्जा
(i) तथ्यतः कब्जा – जब किसी व्यक्ति द्वारा वस्तु को स्वंय धारण किया जाता है या उस पर भौतिक नियत्रण स्थापित कर लिया जाता है तब वह तथ्यत: कब्जा कहलाता हैं। साधारण शब्दों में किसी व्यक्ति और वस्तु के बीच जो सम्बन्ध होता है उसे तथ्यत: कब्जा (Possession) कहते है| किसी वस्तु पर तध्यतः कब्जा होना उस पर भौतिक नियंत्रण का प्रतीक होता है।
उदाहरण – यदि किसी व्यक्ति ने तोते को पिंजरे में रखा है, तो उस तोते पर उस व्यक्ति का कब्जा होगा किन्तु जैसे ही तोता उड़कर भाग जाता है, तब उस व्यक्ति का तोते पर से कब्जा समाप्त हो जाता है।
तथ्यतः कब्जे के विषय में निम्न बातें महत्वपूर्ण है –
(क) ऐसी वस्तुएँ जिन पर मनुष्य का भौतिक नियंत्रण नहीं हो सकता, कब्जे की विषयवस्तु नहीं हो सकती। उदाहरणर्थ, चन्द्रमा, सितारे आदि।
(ख) किसी वस्तु पर वास्तविक कब्जा होने के लिए व्यक्ति का उस पर भौतिक नियंत्रण होना आवश्यक है। लेकिन इसका आशय यह कभी नहीं है कि उस वस्तु को मनुष्य हमेशा ही अपने वास्तविक नियंत्रण में रखे रहे।
(ग) तथ्यत: कब्जे के लिए व्यक्ति का वस्तु पर केवल भौतिक नियंत्रण होना ही पर्याप्त नहीं है, उस व्यक्ति को अन्यों को उस कब्जे से अपवर्जित (exclude) करने की सामर्थ्य भी होना चाहिये।
(घ) कब्जे के अर्जन, त्यजन या समाप्ति के निर्धारण के लिए कब्जाधारी की उस वस्तु को धारण किये रहने की इच्छा होना महत्वपूर्ण है। लेकिन अपवाद रूप में कुछ दशाओं में बिना इच्छा या आशय के भी कब्जा (Possession) रह सकता है।
(ii) विधित: कब्जा – ऐसा कब्जा जिसमें व्यक्ति का वस्तु पर भौतिक नियत्रण नहीं होता लेकिन कब्जे का उसका आशय बना रहता है|
उदाहरण – अ का पर्स चौरी हो जाता है और पर्स पर अ का भौतिक रूप से नियत्रण नहीं होता है, लेकिन उस पर्स पर अ का मानसिक कब्ज़ा बना हुआ है इस कारण उसे विधित कब्जा (Possession) माना जाएगा|
समवर्ती कब्जा
सिविल विधि के अनुसार यह मान्यता थी कि किसी वस्तु पर एक ही समय दो व्यक्तियों का कब्जा नहीं हो सकता क्योंकि कब्जे की अनन्यता (exclusiveness) ही उसका वास्तविक मर्म है। इसका एक कारण यह है कि दो अनन्य उपयोगों के दो परस्पर दावों का एक साथ निष्पादन नहीं किया जा सकता।
लेकिन सामण्ड के अनुसार कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें दावे पृथक-पृथक् होते हुए भी वे परस्पर विरोधी या खण्डनकारी नहीं होते; जिससे उनका एक साथ निष्पादन हो सकता है। इस प्रकार के दोहरे कब्जे को समवर्ती कब्जा (concurrent possession) कहा जाता हैं। सामण्ड के अनुसार ऐसी दशाएं जिनमें समवर्ती कब्जा विद्यमान रहता है –
(i) एक ही वस्तु पर तात्कालिक तथा मध्यवर्ती कब्जे का एक साथ होना।
(ii) सह स्वामियों का आधिपत्य, अर्थात् दो या अधिक व्यक्तियों का एक ही वस्तु पर समान रूप में कब्जा और हक होना।
(iii) एक ही भौतिक पदार्थ के सम्बन्ध में मूर्त तथा अमूर्त कब्जे का साथ-साथ होना।
आन्वयिक कब्जा
आन्वयिक कब्जे को प्रतीकात्मक कब्ज़ा भी कहा जाता है| इसमें किसी वस्तु पर कब्ज़ा धारण करने वाले व्यक्ति का कब्जा प्रतीक के तौर पर होता है|
पोलक (Pollock) के अनुसार – ऐसा कब्जा जो वास्तविक कब्जा नहीं होता लेकिन विधि के प्रयोजनों के लिए उसे कब्जा माना जाता है, आन्वयिक कब्जा (Possession) कहलाता है ।
उदाहरण – किसी कमरे को ताला लगाकर उसकी चाबी किसी व्यक्ति को सौंप दी जाने पर उस कमरे के अन्दर रखी हुई सभी वस्तुओं पर चाबीधारी व्यक्ति का आन्वयिक कब्जा होगा। लेकिन कीटन (Keeton) ने इस प्रकार के आन्वयिक कब्जे को मान्य नहीं किया है क्योंकि चाबी का परिदान इस बात का द्योतक है कि कब्जे का वास्तविक अन्तरण हुआ है।
मै. एन सी एम एल इण्डस्ट्रीज लिमिटेड बनाम डेट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल लखनऊ (ऐ.आई.आर. 2018 इलाहाबाद 131) के मामले में प्रतीकात्मक कब्जा को भौतिक अथवा वास्तविक कब्जा नहीं मानकर आन्वयिक अथवा कागजी कब्जा (Possession) माना गया है|
प्रतिकूल कब्जा
जब कोई व्यक्ति, किसी अन्य व्यक्ति की ओर से किसी भूमि पर कब्जा रखता है लेकिन बाद में स्वयं को उस भूमि का वास्तविक स्वामी बताते हुए उस पर अपना हक जताता है, तो इस प्रकार से हड़पे गए कब्जे को प्रतिकूल कब्जा (Possession) कहा जाता हैं।
यदि ऐसा प्रतिकूल कब्जा एक विहित अवधि तक निर्बाध रूप से शांतिपूर्वक जारी रहता है, तो निहित अवधि की समाप्ति पर उस भूमि पर से वास्तविक स्वामी का हक समाप्त हो जाएगा और प्रतिकूल कब्जाधारी को उस भूमि का स्वामित्व प्राप्त हो जाएगा। परिसीमा अधिनियम में इसकी अवधि 12 वर्ष मानी गई है|
टी.एम. मनिका नायकर बनाम एन.जे. चन्द्रशेखर (ए.आई.आर. 2003 मद्रास 404) के मामले में यह कहा गया है की प्रतिकूल कब्जे के लिए कब्जा का 12 वर्ष की सांविधिक अवधी तक निरंतर एंव निर्विघ्न बने रहना आवश्यक है|
कब्जे का अर्जन (कब्जा केसे प्राप्त किया जाता है?) –
कब्जे के अर्जन के लिए ‘काय’ (corpus) और ‘धारणाशय’ (animus), इन दोनों तत्वों का विद्यमान होना आवश्यक है। सामान्य रूप से कब्जा तीन प्रकार से अर्जित किया जा सकता है –
ग्रहण द्वारा कब्जे का अर्जन
जब कोई वस्तु पूर्ववर्ती कब्जाधारी की सहमति के बिना प्राप्त की जाती है, तो उस वस्तु के कब्जे (Possession) को ‘ग्रहण’ (Taking) द्वारा अर्जित कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं कि जिस वस्तु को ग्रहण किया गया हो वह पहले किसी के कब्जे में रही हो, वस्तु का ग्रहणाधिकार उचित भी हो सकता है या सदोष भी हो सकता है।
परिदान द्वारा कब्जे का अर्जन
यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु के कब्जे का अर्जन पूर्व कब्जाधारी की सम्मति तथा सहयोग से करता है, तो उसे परिदान (delivery) द्वारा कब्जे का अर्जन कहते हैं।
परिदान दो प्रकार का होता है –
(i) वास्तविक परिदान – वास्तविक परिदान भी दो प्रकार से किया जा सकता है। जब कोई व्यक्ति अपनी कब्जाधीन वस्तु किसी दूसरे के सुपुर्द कर देता है, तो वह दूसरा व्यक्ति उस वस्तु पर वास्तविक परिदान द्वारा कब्जा अर्जित करेगा। वास्तविक परिदान के दूसरे रूप में वस्तु का तात्कालिक कब्जा तो अन्य व्यक्ति में अन्तरित हो जाता है किन्तु उस पर मध्यवर्ती कब्जा पहले व्यक्ति का बना रहता है।
उदाहरण – यदि कोई व्यक्ति अपनी पुस्तक कुछ समय के लिए अन्य व्यक्ति को पढ़ने के लिए देता है, तो ऐसा परिदान इस प्रकार के वास्तविक परिदान की कोटि में माना जाता है।
(ii) आन्वयिक परिदान — आन्वयिक परिदान वास्तविक परिदान से अलग होता है। आन्वयिक परिदान में केवल मध्यवर्ती कब्जे का ही अन्तरण होता है, इसमें वास्तविक कब्जे (Possession) का अन्तरण नहीं होता है।
सामण्ड ने आन्वयिक कब्जे के तीन प्रकार बताये हैं –
(क) मध्यवर्ती कब्जे का समर्पण – रोमन विधि के अन्तर्गत मध्यवर्ती कब्जे के समर्पण को ‘ट्रेडीशियो ब्रेवी मेनू’ कहा गया है। इसमें व्यक्ति अपना मध्यवर्ती कब्जा उस व्यक्ति को अन्तरित कर देता है जिसका उस वस्तु पर तात्कालिक कब्जा (Possession) पहले से ही विद्यमान होता है।
उदाहरण – यदि कोई व्यक्ति अपनी घड़ी को दुरुस्ती के लिए घड़ीसाज को देता है और बाद में उसी घड़ीसाज को वह घड़ी बेच देता है, तो ऐसी दशा में इसे मध्यवर्ती कब्जे के समर्पण द्वारा किया गया आन्वयिक परिदान माना जायेगा क्योंकि घड़ी के स्वामी ने दुरुस्ती के लिए दी गई घड़ी का अपना मध्यवर्ती कब्जा घड़ीसाज को अन्तरित कर दिया है जिसके पास घड़ी का तात्कालिक कब्जा था।
(ख) कान्स्टिट्यूटम पजेसोरियम — यह ‘ट्रेडोशियो ब्रेवी मेन’ के ठीक उल्टा है। इसमें मध्यवर्ती कब्जे का अन्तरण होता है जबकि तात्कालिक कब्जा अन्तरक में रहता है।
उदाहरण – यदि किसी व्यक्ति ने गोदाम से कुछ बोरे अनाज खरीदा तथा गोदाम वाले ने वे बोरे उस क्रेता को सुपुर्द कर दिये तथा वह इस बात पर राजी हो जाता है कि वह उन बोरों को क्रेता की ओर से अपने गोदाम में रखे रहेगा। यहां उन बोरों से सम्बन्धित मध्यवर्ती कब्जा तो विक्रय के बाद क्रेता के हाथ में आ गया किन्तु तात्कालिक कब्जा गोदाम वाले के पास ही बना रहा।
(ग) नव स्वामित्व — यह मध्यवर्ती कब्जे का अन्तरण है जबकि तात्कालिक कब्जा किसी तीसरे (अन्तरक और अन्तरिती को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति) में बना रहता है।
उक्त उदाहरण – में यदि क्रेता गोदाम में रखे हुए अपने बोरे ‘च’ नामक किसी व्यक्ति को बेच देता है, तो जैसे ही गोदाम वाला उन बोरों को पहले क्रेता की बजाय ‘च’ के लिए अपने गोदाम में रखने के लिए सहमत हो जाता है, यह माना जाएगा कि उस पहले क्रेता ने उस माल का आन्वयिक परिदान ‘च’ को प्रभावी रूप से कर दिया है।
विधि के प्रवर्तन द्वारा कब्जे का अर्जन
यदि विधि के प्रवर्तन द्वारा कोई वस्तु या सम्पत्ति एक व्यक्ति के नियन्त्रण से हटकर किसी दूसरे व्यक्ति के हाथों में आ जाती है, तो इसे विधि के प्रवर्तन द्वारा अर्जित कब्जा कहा जाता है।
उदाहरण – किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद जब उसकी सम्पत्ति उसके वारिसों को अन्तरित कर दी जाती है, तो उन वारिसों का उस सम्पत्ति पर कब्जा (Possession) विधि के प्रवर्तन द्वारा अर्जित माना जायेगा।
यहाँ यह स्पष्ट करना उचित होगा कि भारतीय सुखाधिकार अधिनियम, 1882 (Indian Easements Act, 1882) की धारा 15 के अन्तर्गत जब कोई व्यक्ति जो किसी भूमि पर प्रतिकूल कब्जा (Adverse Possession) किये हुए है और निरंतर बारह वर्षों तक सतत् निर्बाध कब्जा बनाए हुए है, तो विधि के प्रवर्तन द्वारा वह उस भूमि का स्वामित्व अर्जित कर लेगा और उसका प्रतिकूल कब्जा, वास्तविक कब्जे (Possession) में परिवर्तित हो जाएगा।
इसके साथ ही उस भूमि के वास्तविक स्वामी के स्वामित्व का लोप हो जाएगा। इस प्रकार एक विहित अवधि के बाद प्रतिकूल कब्जाधारी स्वामित्व अर्जित कर लेता है जबकि उस भूमि के वास्तविक स्वामी के स्वामित्व का लोप हो जाता है।
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Reference – Jurisprudence & Legal Theory (14th Version, 2005)