नमस्कार दोस्तों, इस आलेख में कब्जा क्या है, इसकी परिभाषा (definition of possession) तथा कब्जे के आवश्यक तत्वों को निर्णित वाद सहित आसान शब्दों में बताया गया है, यदि आपने इससे पहले विधिशास्त्र के बारे में नहीं पढ़ा है तब आप विधिशास्त्र केटेगरी से पढ़ सकते है|
कब्जे की अवधारणा
विधिशास्त्र के अन्दर आधिपत्य अर्थात कब्जे (possession) का महत्वपूर्ण स्थान है| सांपत्तिक अधिकार के रूप में स्वामित्व के बाद कब्जे का ही स्थान है। कब्ज़ा, किसी वस्तु और व्यक्ति के बीच निरन्तर तथा वास्तविक सम्बन्ध को कहा जाता हैं। फ्रेड्रिंक पोलक के अनुसार – कब्जे से तात्पर्य किसी वस्तु पर भौतिक नियंत्रण से है|
हम सभी यह जानते हैं कि भौतिक वस्तुओं के उपयोग तथा उपभोग के बिना मानव का जीवन असम्भव है, जीवित रहने के लिए मानव को भोजन, कपड़ा और मकान चाहिये।
सामण्ड के अनुसार – मानव जीवन के लिए भौतिक वस्तुओं पर आधिपत्य होना परम आवश्यक है। उनके अनुसार कब्जा (possession) मनुष्यों और वस्तुओं के बीच आधारभूत सम्बन्धों को प्रकट करता है।
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कब्जे की परिभाषा (definition of possession)
कब्जे के सम्बन्ध में विधिशास्त्रियों ने अलग अलग परिभाषा दी है, जो निम्नलिखित है –
सामण्ड के अनुसार – किसी वस्तु और व्यक्ति के बीच निरन्तर तथा वास्तविक सम्बन्ध को कब्जा (possession) कहते हैं। किसी भौतिक वस्तु पर कब्जे से आशय यह है कि संसार का कोई भी अन्य व्यक्ति उस वस्तु पर कब्जाधारी के विरुद्ध अधिकार न रखे। इस परिभाषा से स्पष्ट है कि सामण्ड ने कब्जे का सम्बन्ध ‘वस्तु’ से माना है, न कि अधिकार से।
झकरिया (Zachariae) के अनुसार – ‘कब्जा’ किसी वस्तु तथा व्यक्ति के बीच ऐसा सम्बन्ध है जो यह दर्शाता है कि वह व्यक्ति उस वस्तु को धारण करने का आशय तथा उसके व्ययन (disposal) की क्षमता रखता है।
औचिनी (Savigny) के अनुसार – मूर्त कब्जे का सार-तत्व यह है कि कब्जाधारी अपने भौतिक बल के आधार पर अन्य व्यक्तियों की कब्जाधीन वस्तु के उपयोग या उपभोग से वर्जित रखे।
मार्कबी (Markby) के अनुसार – किसी व्यक्ति द्वारा स्वत: के लिए अपने भौतिक बल के प्रयोग से किसी वस्तु को अपने भौतिक-नियंत्रण में रखने की दृढ़ इच्छा एवं सामर्थ्य को ही ‘कब्जा’ कहा जाता है।
इहरिंग के अनुसार – “कब्ज़ा रक्षणात्मक स्वामित्व है”| इसका अर्थ यह है की कब्ज़ा स्वामित्व की ढाल है जो तथ्यत स्वामित्व रखने वाले व्यक्ति को प्राप्त होती है|
आंग्ल विधि के अनुसार कब्जे की मुख्य तीन अवधारणा है –
(i) किसी व्यक्ति का वस्तु पर कब्ज़ा और भौतिक नियत्रण दोनों हो सकता है|
(ii) किसी व्यक्ति या भौतिक नियत्रण के बिना भी वस्तु पर कब्ज़ा हो सकता है|
(iii) किसी व्यक्ति का कब्जे के बिना भी वस्तु पर भौतिक नियत्रण हो सकता है|
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कब्जे के आवश्यक तत्व क्या हैं?
कब्जे की व्याख्या करते हुए हालैंड ने लिखा है कि इसमें दो तत्वों का विद्यमान होना आवश्यक है। प्रथमत: कजाधारी का कब्जाधीन वस्तु पर वास्तविक सामर्थ्य होना चाहिए; तथा द्वितीयत: उस सामर्थ्य से लाभ उठाने की इच्छा होनी चाहिये। आंग्ल विधि में इन्हें क्रमश: ‘कार्पस’ तथा ‘एनीमस’ कहा गया है।
सैविनी ने कब्जे सम्बन्धी अपने सिद्धान्त में कब्जे के लिए दो तत्व ‘कॉरपस पजेशियांनिस’ (corpus possessionis) तथा ‘एनिमस डोमिनी’ (animus domini) बताये है। जिनमे कॉरपस पजेशियांनिस’ का अर्थ – प्रभावी नियंत्रण (effective control) तथा बाह्य हस्तक्षेप को बहिष्कृत करने की क्षमता और ‘एनिमस डोमिनी’ शब्द का अर्थ किसी वस्तु को स्वामी के रूप में धारित किये रहने की इच्छा से है।
अमेरिका के जस्टिस होम्स के अनुसार – किसी वस्तु पर कब्जा अर्जित करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति का उस वस्तु से भौतिक सम्बन्ध हो तथा साथ ही उस वस्तु के प्रति उसका एक निश्चित आशय भी हो। इससे स्पष्ट होता है कि कब्जे के साथ भौतिक एवं मानसिक, दोनों ही तत्व जुड़े रहते हैं
इस प्रकार मूर्त कब्जे के लिए उसमें दो तत्वों का होना आवश्यक है। प्रथम भौतिक अथवा वस्तुनिष्ठ (physical or objective) तत्व तथा द्वितीय मानसिक या आत्मनिष्ठ (mental or ‘subjective) तत्व।
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कब्जे के आवश्यक तत्व
रोमन विधिशास्त्रियों ने कब्जे के भौतिक तत्व को ‘कॉरपस’ (corpus) तथा मानसिक तत्व को ‘एनिमस’ (animes) कहा है। इन दोनों तत्वों को विधिक भाषा में कब्जे का काय ( COpus) तथा धारणाशय (animits) कहा जा सकता है।
कब्जे का भौतिक तत्व
कब्जे का पहला आवश्यक तत्व ‘कब्जे का काय’ है इसे कब्जे का भौतिक तत्व भी कहा जाता हैं। यह तत्व किसी वस्तु पर वास्तविक कब्जे का द्योतक है। शब्द ‘कॉरपस’ से तात्पर्य वस्तु पर एकल नियंत्रण तथा उस वस्तु के प्रति दूसरों को कब्जे से अपवर्जित रखने की क्षमता से है। कब्जाधारी को इस प्रकार की सुरक्षा निम्न प्रकार से प्राप्त हो सकती है-
(i) कब्जाधारी की भौतिक शक्ति –
कब्जाधारी की भौतिक शक्ति उसे कब्जाधीन वस्तु के उपयोग की गारन्टी दिलाती है। इसके बल पर वह अन्य व्यक्तयों से अहस्तक्षेप के सम्बन्ध में आश्वस्त रहता है।
(ii) कब्जाधारी की वैयक्तिक उपस्थिति –
अनेक दशाओं में किसी वस्तु पर कब्जा बनाये रखने के लिए कब्जाधारी की वैयक्तिक उपस्थिति आवश्यक होती है चाहे व्यक्ति शारीरिक रूप से कितना ही दुर्लब क्यों ना हो|
(iii) गोपनीयता –
कब्जाधारी व्यक्ति किसी वस्तु को इस आशय से छिपाकर रख सकता है कि उस वस्तु पर कोई बाहरी व्यक्ति हस्तक्षेप ना कर पाए|
(iv) आशय की अभिव्यक्ति –
आशय की अभिव्यक्ति से तात्पर्य किसी वस्तु पर कब्जा (possession) बनाये रखने के साथ-साथ उस वस्तु को प्राप्त करने का भी आशय होना चाहिए।
उदाहरण – यदि कोई व्यक्ति किसी दुकान का कब्जा प्राप्त करना चाहता है, तो उसे कब्जा रखने के आशय के साथ साथ उस दुकान में प्रवेश करने तथा उसका उपयोग करने की स्थिति में भी होना चाहिये।
(v) अन्य वस्तुओं के कब्जे द्वारा प्राप्त संरक्षण –
कभी-कभी एक वस्तु पर कब्जा उससे सम्बद्ध अथवा संलग्न अन्य वस्तुओं पर भी कब्जा दिलाता है। उदाहरण – व्यक्ति का किसी भूमि पर कब्जा उसे उस भूमि पर स्थित अन्य वस्तुओं, पेड़-पौधे आदि पर कब्जा भी दिलाता है।
लेकिन इस विषय में विधिक स्थिति पूर्ण स्पष्ट नहीं है। यह सिद्धान्त कब्जे की वजह से व्यक्ति को भूमि पर स्थित सभी वस्तुओं पर कब्जा प्राप्त होगा, हमेश लागू नहीं होता तथा यह वाद की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
इसका एक अच्छा उदाहरण – “साउथ स्टेफोर्डशायर वाटर वर्क्स कम्पनी बनाम शर्मन है। जिसमें कम्पनी ने प्रतिवादी को कम्पनी की भूमि पर बने जलाशय (Pond) की सफाई के लिए नियोजित किया। सफाई करते समय प्रतिवादी को जलाशय की तह में कुछ सोने की अंगुठियाँ पड़ी मिलीं।
कंपनी ने इन अंगुठियों पर अपना कब्जा बताते हुए प्रतिवादी के विरुद्ध वाद संस्थित किया। न्यायालय ने विनिश्चत किया कि कंपनी को ही उन अंगूठियों पर प्रथम कब्जा (possession) प्राप्त है न कि प्रतिवादी को|
(vi) कब्जे के काय (corpus) –
सम्बन्धी एक तत्व यह भी है कि कब्जाधरी को वस्तु पर कब्जा रखना चाहिये। परन्तु इसका यह आशय नहीं कि उस वस्तु पर कब्जाधारी का पूर्ण नियंत्रण हो। यह नियंत्रण वस्तु के अनुसार न्यूनाधिक भी हो सकता है।
उदाहरण के लिए – यदि कोई व्यक्ति मछली पकड़ने के लिए जाल फेंकता है, तो उस व्यक्ति का मछलियों पर कब्जा तब तक नहीं होता जब तक कि वे उसके जाल में नहीं फंसती।
कब्जे का मानसिक तत्व
कब्जे (possession) का दूसरा मुख्य तत्व धारणाशय (animus) हैं। इसे कब्जे का मानसिक तत्व भी कहा जाता है| इसका आशय “कब्जाधारी की कब्जाधीन वस्तु पर अपना कब्जा बनाये रखने की इच्छा” से है। सामण्ड के अनुसार – अन्य व्यक्तियों को अपवर्जित (exclude) करने का आशय कब्जे का मानसिक अथवा आत्मनिष्ठ तत्व है।
दुसरे शब्दों में कहा जा सकता है की किसी वस्तु पर भौतिक कब्ज़ा रखने वाले व्यक्ति की इच्छा उस वस्तु का उपयोग उपभोग करने की हो या ना हो लेकिन उस पर कब्ज़ा बनाये रखने की इच्छा होनी अत्यन्त आवश्यक है|
कब्जे (possession) सम्बन्धी मानसिक इच्छा के विषय में निम्न बातें उल्लेखनीय हैं –
(A) यह आवश्यक नहीं है कि कब्जा धारण किये रहने का आशय न्यायोचित ही हो, वह सदोष भी हो सकता है।
(B) किसी वस्तु पर कब्जाधारी का दावा अनन्य (exclusive) होना चाहिये अर्थात् उसमें अन्य व्यक्तियों को अपवर्जित (exclude) करने का आशय होना चाहिये। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि अपवर्जन पूर्णत: (absolute) हो।
(C) कब्ज़ा धारण करने वाला व्यक्ति किसी वस्तु को अभिरक्षा के तौर पर भी धारण कर सकता है| जैसे – किसी गिरवी रखी वस्तु पर गिरवीदार का कब्जा होता है यद्यपि उसका मानसिक आशय उस वस्तु को ऋण की अदायगी होने तक अभिरक्षा (custody) में रखने का होता है।
(D) यह आवश्यक नहीं है कि कब्जाधारी ही किसी वस्तु पर कब्ज़ा धारण करे, यह किसी अन्य व्यक्ति के लिए भी हो सकता है। उदाहरण – नौकर, अभिवक्ता, न्यासी तथा उपनिहिती आदि वस्तु को स्वयं के लिए धारण नहीं करते बल्कि अन्य व्यक्ति के लिए करते हैं।
(E) कब्जाधारी का कब्जे सम्बन्धी आशय सामान्य हो सकता है, उसका विनिर्दिष्ट (specific) होना आवश्यक नहीं है।
उदाहरण – यदि किसी व्यक्ति ने जाल में मछलियाँ पकड़ी हों, तो उन सब पर उनका कब्जा होगा, भले ही उसे उन मछलियों की निश्चित संख्या ज्ञात न हो। इसी प्रकार व्यक्ति को अपने पुस्तकालय में रखी सभी पुस्तकों पर कब्जा प्राप्त होता है, भले ही उसमें से कुछ के अस्तित्व के बारे में उसे जानकारी न हो।
कब्जे के धारणाशय (animus) – के सन्दर्भ में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा विनिश्चित एन० एन० मजूमदार बनाम राज्य का वाद उल्लेखनीय है। इस मामले में पुलिस ने अभियुक्त के घर की तलाशी इस उम्मीद से ली कि शायद वहाँ से पिस्तौल बरामद हो जाए परन्तु पिस्तौल नहीं मिली। अभियुक्त ने अपनी पत्नी से कुछ बात की और पत्नी घर से बाहर चली गई। वह तीन-चार मिनट बाद एक पिस्तौल और कुछ कारतूसों के साथ घर वापस लौटी।
पुलिस ने दण्ड संहिता की धारा 27 का सहारा लेते हुए यह तर्क प्रस्तुत किया कि यह उपधारणा की जानी चाहिए कि अभियुक्त के कब्जे में पिस्तौल थी। न्यायालय ने निर्णय दिया कि आयुध अधिनियम, 1959 (Arms Act, 1959) विशिष्ट संविधि होने के कारण ‘कब्जे’ के ‘धारणाशय’ के तथ्य को साबित किया जाना आवश्यक है। धारणाशय के अभाव में केवल कार्य का होना कब्जा साबित करने के लिए अपर्याप्त है।
कब्जे के तत्व के रूप में निर्णित महत्वपूर्ण वाद
(1) आर० बनाम हडसन –
आर० बनाम हडसन (1943 के.बी. 458) के मामले में अभियुक्त को एक लिफाफा प्राप्त हुआ जो उसी नाम के किसी अन्य व्यक्ति को संबोधित था। अभियुक्त ने उस लिफाफे को कुछ दिन अपने पास रखा और उसे खोल लिया। उसे लिफाफे के भीतर एक चैक मिला जिसे उसने अपने उपयोग में ले लिया। उसे चोरी के लिए दोषी ठहराया गया। न्यायालय ने इस वाद में कहा कि जब तक लिफाफा खोला नहीं गया था तब तक अभियुक्त का उस पर कब्जा नहीं था क्योंकि उसमें आशय का अभाव था।
(2) मेरी बनाम ग्रीन –
मेरी बनाम ग्रीन (1841 एम एण्ड डब्ल्यू 623) के वाद में किसी बढ़ई ने नीलाम में दराज वाली एक मेज खरीदी। उसे पता चला कि मेज में एक गुप्त दराज था। उसने उस दराज को तोड़कर खोल लिया और उसमें रखा धन ले लिया। यह धन विक्रेता का था जिसने केवल मेज बेची थी। विधि की दृष्टि में गुप्त दराज में रखे धन पर विक्रेता का कब्जा अभी भी बना हुआ था; यद्यपि उस पर उसका वास्तविक कब्जा नहीं था।
अत: इंग्लिश विधि के अनुसार क्रेत्ता द्वारा उस धन को लिया जाना चोरी (larceny) का अपराध माना गया। इस वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि वह व्यक्ति जो किसी वस्तु को खरीदता है, उसमें रखी मूल्यवान् चीज पर कब्जा रखने का हकदार नहीं है जो उसे उसमें छिपी हई मिलती है। उसे वह वस्तु विक्रेता को वापस कर देनी चाहिये क्योंकि विधि की दृष्टि में उस पर विक्रेता का ही कब्जा बना रहता है।
(3) इन रि कोहेन –
कोहेन तथा उसकी पत्नी जिस मकान में रहते थे उस पर पत्नी का स्वामित्व था। पति-पत्नी दोनों की मत्यु के पश्चात् मकान के विभिन्न हिस्सों में छिपाकर रखे गये अत्यधिक धन का पता चला। इस बात का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं था कि उक्त धन कब, कैसे और किसके द्वारा लाया गया था या किस कारण से छिपाकर रखा गया था।
अत: न्यायालय ने निर्णय दिया कि चूँकि उक्त धन पत्नी के स्वामित्व वाले मकान से मिला था, अत: उस पर पत्नी का ही कब्जा माना जायेगा और वह धन पत्नी की सम्पदा का ही एक अंग होगा।
(4) हिबर्ट बनाम मेक कियरनन –
इस प्रकरण को ‘गोल्फ बॉल केस के नाम से भी जाना जाता है। इस वाद में गोल्फ के मालिकों द्वारा गोल्फ क्लब के मैदान में छोड़ी हुई गेंदें एक ऐसे व्यक्ति को मिली जिसने मैदान में अनधिकृत रूप से प्रवेश किया था। उस व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा चलाये जाने पर न्यायालय ने निर्णय दिया कि वह व्यक्ति दोषी है क्योंकि जिस समय उसे गोल्फ की गेंदे मिलीं उस समय गेंदे गोल्फ क्लब के कब्जे में थीं। यह बात अलग है कि उस समय किसी को यह पता नहीं था कि गेंदे कहाँ पड़ी हैं या क्लब के मैदान में कुल कितनी गोल्फ की गेंदें पड़ी हुई हैं।
(5) रेग बनाम रिली –
रेग बनाम रिली (1853 डी.सी.सी., 149) के वाद में एक व्यक्ति अपनी भेड़ें हाक कर ले जा रहा था। उसकी भेंडों में किसी अन्य व्यक्ति की कुछ भेड़ें शामिल हो गई थीं। परन्तु यह भूल उसे तब मालूम हुई जब उसने उन सभी भेड़ों को बेच दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में उसे चोरी का अपराधी माना, क्योंकि अन्य व्यक्ति की भेड़ों पर उसका कब्जा नहीं था।
सारांश में यह कहा जा सकता है कि कब्जा तथ्यत: हो सकता है या विधित: या एक साथ दोनों ही। रोमन विधि में तथ्यत: कब्जे को ‘पजेशियो नेच्युरैलिस’ (possessio naturalis) तथा विधित: कब्जे को ‘पजेशियो सिविलिस’ (Possessio civilis) कहा गया है। विधित: कब्जे के लिए यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति को वस्तु पर वास्तविक कब्जा प्राप्त हो। वास्तव में विधित: कब्जा एक प्रकार का अधिकार है जिसे विधि द्वारा मान्य तथा संरक्षित किया जाता है।
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