हेल्लो दोस्तों, इस लेख में अपराधशास्त्र की प्रकृति और इसके क्षेत्र के बारें में जानेगें जो कि अपराधशास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है| अपराधशास्त्र की प्रकृति क्या है और अपराधशास्त्र के क्षेत्र में किन किन विषयों का अध्ययन शामिल होता है|
इस लेख में अपराधशास्त्र की प्रकृति एंव अपराधशास्त्र के क्षेत्र को आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है, उम्मीद है कि, यह लेख आपको जरुर पसंद आएगा –
अपराधशास्त्र की प्रकृति
अपराधशास्त्र की प्रकृति के बारे में अपराधशास्त्रियों के मध्य अनेक भिन्नता रही है जिस कारण से यह हमेशा विवाद का विषय रहा है| अपराधशास्त्र में अपराध का अध्ययन मानव व्यवहार के रूप में किया जाता है तथा मानव व्यवहार परिवर्तनशील एवं जटिल होने के कारण अपराध का अध्ययन वैज्ञानिक तरीके से करना ही सम्भव है।
इस प्रकार कुछ अपराधशास्त्री अपराध को विज्ञान के रूप में परिभाषित करते है और कुछ अपराधशास्त्री ऐसे है जो इसको विज्ञान नहीं मानते हैं। अपराधशास्त्र की प्रकृति को समझने के लिए इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(क) अपराधशास्त्र विज्ञान के रूप में नहीं
अपराधशास्त्र को विज्ञान नहीं मानने वाले विद्वानों में माइकल एवं एडलर प्रमुख हैं जो अपने मत के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत करते है –
(i) अपराधशास्त्र की प्रकृति स्वतन्त्र विज्ञान
माइकल एवं एडलर के अनुसार अपराधशास्त्र एक स्वतन्त्र विज्ञान नहीं है क्योंकि यह समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान आदि विज्ञानों पर आधारित है|
इस कारण समाजशास्त्र और मनोविज्ञान आनुभविक विज्ञान नहीं बन पाने के कारण अनेक विद्वान आज भी इन्हें विज्ञान नहीं मानते है, इसलिए उनके अनुसार अपराधशास्त्र को विज्ञान मानने का प्रश्न ही नहीं उठता है।
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(ii) वैज्ञानिक अध्ययन का आभाव
अपराधशास्त्र को विज्ञान नहीं मानने के पिछे एक मुख्य कारण यह भी है कि, इसका अध्ययन प्राकृतिक विज्ञान की भाँति नहीं किया जाता है| चूँकि यह एक सामाजिक घटना है जिसका अध्ययन समाज में ही सम्भव है, ना की इसका अध्ययन किसी प्रयोगशाला में किए जाने वाले प्रयोगों यथा तापक्रम, दबाव एवं अन्य भौतिक कारणों से होता है।
प्रयोगशाला से प्राप्त तथ्यों को परिस्थितियों में दोहरा कर एक सर्वमान्य निष्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं और जिसे कभी भी सत्यापित किया जा सकता है| लेकिन अपराध, मानव के व्यवहार पर आधारित होने से समय व स्थान के अनुसार बदलता रहता है इस कारण इसका अध्ययन और सत्यापन करना असम्भव है।
(iii) सर्वमान्य सिद्धान्त
जैसा की हम जानते है अपराध की प्रकृति, मानव व्यवहार पर आधारित होने से इनमे समय और स्थान के साथ-साथ परिवर्तन होता रहता है, जिस कारण से अपराध के सम्बन्ध में सर्वमान्य सिद्धान्त नहीं बनाये जा सकते क्योंकि सर्वमान्य सिद्धान्तों का निर्माण करने में अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों का सत्यापन अति आवश्यक है।
अपराध सम्बन्धी अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों का सत्यापन सम्भव नहीं है, इसलिए अपराधों का वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव नहीं होने के कारण अपराधशास्त्र विज्ञान नहीं हो सकता है। अपराधशास्त्र की प्रकृति
(iv) विश्वसनीयता
अपराधशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान जैसे विषयों में सत्यता विश्वसनीय नहीं होती है जबकि प्राकृतिक विज्ञान में सत्यता विश्वसनीय होती। अनेक विद्वानों के अनुसार मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाले सभी सामाजिक विज्ञान आज भी ऐसी स्थिति में नहीं है कि उन्हें भौतिक विज्ञानों की भाँति ‘विज्ञान’ का दर्जा दिया जा सके।
टैपट के मतानुसार अनुसार, अपराधशास्त्र को विज्ञान इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अपराधशास्त्रीय ज्ञान अभी तक अपराध-निरोध एवं अपराध-सुधार के बारे में पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है।
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(v) विश्वसनीय आंकड़ों का अभाव
जिस तरह से प्रयोगशाला में शोधकर्ता द्वारा किसी तथ्य का अध्ययन करके उसके सम्बन्ध में आंकड़े जुटाए जाते है और इन आंकड़ो का कभी भी सत्यापन किया जा सकता है|
इसी तरह प्रयोगशाला में वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से अपराधशास्त्र के सम्बन्ध में आंकड़े प्राप्त किये जाते है जिनकी विश्वसनीयता पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि अपराध एक सामाजिक घटना है जिसका केवल समाज में ही अध्ययन संभव है|
चूँकि समाज में मानव व्यवहार समय और स्थान के साथ-साथ परिवर्तन होता रहता है, इस कारण अपराधशास्त्र के अध्ययन में प्रयोगशाला जैसी नियंत्रण प्रणाली का अभाव होने से प्राप्त आकड़े विश्वसनीय नहीं हो सकते है|
(ख) अपराधशास्त्र विज्ञान के रूप में
जिस तरह अपराधशास्त्र को अनेक विद्वान विज्ञान नहीं मानते है उसी तरह अनेक विद्वान् अपराधशास्त्र को विज्ञान भी मानते हैं जो इसके पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत करते है –
(i) स्वतन्त्र विज्ञान
वुल्फगैंग ने अपराधशास्त्र को एक स्वतन्त्र ज्ञान की शाखा माना है जिसमें सैद्धान्तिक प्रत्ययवाद उसी प्रकार से विद्यमान है जैसा कि वैज्ञानिक विधि में होता है।
यह अपराध, अपराधी तथा उसके प्रति व्यक्त की गई सामाजिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन एक ऐसी दिशा मुक्त नियामक विधि से करता है, जिसे वैज्ञानिक कहा जा सकता है।
स्टीबर्ड ने अपनी पुस्तक ‘एलिमेण्ट्स आफ दी फिलॉसफी ऑफ ह्यूमन माइण्ड’ में कहा है कि मानव व्यवहार की वैज्ञानिक व्याख्या सम्भव है तथा ऐसे निष्कर्ष भी निकाले जा सकते हैं जिनको सही मानकर चलने में कोई विशेष हानि नहीं है।
(ii) सर्वमान्य सिद्धान्त
सदरलैण्ड के अनुसार, नियमों की सार्वभौमिकता पर अनावश्यक जोर दिया गया है, अपराधशास्त्र के अध्ययन में वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग बढ़ रहा है। वैज्ञानिक ढंग से हम ऐसे अपराधों का पता लगा सकते हैं जो स्थिर एवं समरूप हों और उनके सम्बन्ध में सार्वभौमिक या सर्वव्यापी सिद्धान्त बनाये जा सकते हैं, जिस कारण अपराधशास्त्र भी एक विज्ञान हो सकता है।
(iii) वैज्ञानिक अध्ययन
अनेक विद्वानों का मानना है कि, अपराधशास्त्र के अध्ययन हेतु विशुद्ध विज्ञान जैसी प्रयोगशालाएँ नहीं है फिर भी सम्पूर्ण समाज को एक प्रयोगशाला मानते हुए समाज की परिस्थितियों में समानता लाकर सिद्धान्तों का सत्यापन किया जा सकता है।
सदरलैण्ड एवं क्रेसी का मत है कि जिस प्रकार औषधि के निर्माण की प्रक्रिया सर्वप्रथम किसी विशिष्ट रोग को स्पष्ट और परिभाषित करने से प्रारम्भ होती है, उसी प्रकार अपराधशास्त्र में भी महत्त्वपूर्ण स्पष्टीकरण पूर्ण रूप से अपराध से सम्बन्धित न होकर अपराधों के किसी वर्ग या प्रकार से सम्बन्धित होता है और प्रत्येक वर्ग या प्रत्येक प्रकार की परिभाषा सर्वमान्य तत्व के रूप में दी जाती है।
उनका कहना है की अपराधशास्त्री का कार्यक्षेत्र वहीं तक सीमित नहीं है जहाँ तक विधायिका ने किसी आचरण को अपराध के रूप में परिभाषित कर दिया है।
बल्कि अपराधशास्त्री इस बात के लिए स्वतन्त्र हैं कि वे अपराध की विधायकीय परिभाषा से ऊपर उठकर उन सभी अनापराधिक आचरणों का भी अध्ययन करें, जो अपराध की तरह जान पड़ते हैं।
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(iv) घटनाओं का अध्ययन
मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार समाजशास्त्र यह नहीं बताता कि लोगों को किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार विज्ञान का उद्भव किन्हीं मूल्यों या मान्यताओं के उत्प्रेरण से नहीं होता, वह केवल घटनाओं का अध्ययन करता है। वह घटनाओं से उद्भुत समस्याओं के निराकरण का सुझाव नहीं देता।
इसी प्रकार समाजशास्त्री सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है लेकिन मान्यताओं के अनुस्थापन का सुझाव नहीं देता। इससे यह स्पष्ट होता है कि अपराधशास्त्र भी विज्ञान हो सकता है, यदि उसका लक्ष्य अपराध, अपराधी एवं बन्दियों आदि का अध्ययन करना हो।
उपरोक्त दोनों दृष्टिकोणों से यह स्पष्ट होता है, कि अपराधशास्त्र एक विज्ञान है यद्यपि यह प्राकृतिक विज्ञानों यथा भौतिकशास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान आदि से काफी पीछे है।
इसे हम एक आत्मनिर्भर ज्ञान की शाखा के रूप में स्वीकार कर सकते है तथा जैसे जैसे अन्य सामाजिक विज्ञानों (विशेष रूप से समाजशास्त्र, मनोविज्ञान एवं मनोचिकित्सा आदि) का विकास होगा, अपराधशास्त्र में भी वैज्ञानिक परिपक्वता बढ़ती जाएगी।
जिस प्रकार चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन शरीर विज्ञान, मनोविज्ञान, भौतिकी, रसायनशास्त्र आदि पर निर्भर है, उसी प्रकार अपराधशास्त्र का अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानों पर निर्भर है। अपराधशास्त्र की प्रकृति
अपराधशास्त्र का क्षेत्र (scope of Criminology)
अपराधशास्त्र में अपराध और अपराधिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है, जिसमें आपराधिक गतिविधि के कारण और परिणाम भी शामिल होते हैं| सभ्यता, संस्कृति और वैज्ञानिक ज्ञान में विकास तथा वृद्धि के परिणामस्वरूप अपराध के विषय में समाज की धारणा में परिवर्तन आया और इसी कारण अपराधशास्त्र को ज्ञान की एक स्वतंत्र शाखा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
इनमें अपराध के रुझान और पैटर्न, आपराधिक न्याय प्रणाली और इसके संस्थानों पर शोध, और अपराध को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न हस्तक्षेपों और नीतियों की प्रभावशीलता शामिल हो सकते है।
इसके अतिरिक्त, अपराध विज्ञान में अपराध पीड़ितों, अपराधियों और समुदायों पर अपराध के प्रभाव का अध्ययन भी शामिल हो सकता है। अपराध विज्ञान का क्षेत्र अंतःविषय है, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, कानून, राजनीति विज्ञान और अन्य क्षेत्रों से अनुसंधान और सिद्धांतों पर आधारित है।
अपराधशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है और सामाजिक विज्ञान के समान ही इसके विषय क्षेत्र के बारे में भी विद्वानों में मतभेद मिलता है। अपराधशास्त्र का विषय-क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है और उसको सीमित सीमा में बाँधना कठिन कार्य है।
मुख्य रूप से इसमें हम तीन प्रमुख बातों को शामिल कर सकते हैं –
(1) अपराध के कार्य-कारण का अध्ययन
(2) दण्ड प्रणाली
(3) अपराधी-सुधार एवं अपराध निवारण।
ज्ञान की अन्य शाखाओं की तरह अपराधशास्त्र भी ऐसे युगों से गुजरा है, जिनमें अनुशीलन, मनन, पर्यवेक्षण एंव अनुसंधान की कल्पित प्रणालियों द्वारा अपराध के नियंत्रण पर काफी अध्ययन किया है।
जितना ध्यान विधायकों, विधिवेताओं एवं समाजशास्त्रियों का अपराध के निवारण और अपराधियों के उपचार की ओर आकर्षित हो रहा है, उतना ही अपराधशास्त्र का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। इस रूप में अपराधशास्त्र की कार्यप्रणाली को उस वैज्ञानिक प्रणाली की संज्ञा दी जा सकती है, जिसमें न केवल अपराध का अध्ययन किया जाता है वरन् अपराधियों और दण्ड के विशिष्टकरण का भी अध्ययन किया जाता है।
इस सम्बन्ध में पाल टप्पन (Paul Tappan) और जेरोम हाल (Jerome Hall) जैसे विद्वानों का भी यह मत है कि अपराधशास्त्र दण्डशास्त्र की समाजशास्त्रीय का पर्याय है।
रोबर्ट जी. काल्डवेल
रोबर्ट जी. काल्डवेल ने अपराधशास्त्र के विषय क्षेत्र में चार बातों का समावेश किया है –
(1) दण्ड कानून की प्रकृति एवं प्रशासन तथा इसके विकास की परिस्थितियाँ
(2) अपराध के कारणों एवं अपराधियों के व्यक्तित्व का विश्लेषण;
(3) अपराधियों का सुधार एवं पुनर्वास और
(4) अपराध नियन्त्राण
सदरलैण्ड एवं क्रेसी
सदरलैण्ड एवं क्रेसी ने अपराधशास्त्र के विषय क्षेत्र को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया है –
(1) कानून बनाने की प्रक्रियाएँ (Processes of Law Making)
(2) कानून उल्लंघन की प्रक्रियाएँ (Processes of Law Breaking)
(3) कानून उल्लंघन से उत्पन्न प्रतिक्रिया (Reacting towards the breaking of laws) अर्थात् दण्डशास्त्र का अध्ययन।
उपरोक्त तीनों प्रक्रियाएँ अन्तः क्रियाओं (Interactions) के एकीक्रम (Unified Sequence) है। प्रत्येक समाज में कुछ ऐसी क्रियाएँ होती हैं जो अवांछनीय (undersirable) हैं तथा जिन्हें राजनैतिक समाज में अपराध समझा जाता है तथा वह (राजनैतिक समाज) अपनी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करता है जो दण्ड, उपचार या निरोध के माध्यम से व्यक्त की जाती है। अपराधशास्त्र की प्रकृति
इसलिए उक्त दोनों विद्वानों के मतानुसार “यह पारस्परिक अन्तः क्रिया का अनुक्रम ही अपराधशास्त्र की विषयवस्तु है।”
इलियट
इलियट ने अपराधशास्त्र के विषय क्षेत्र में चार प्रमुख बातों का शामिल किया है –
(1) अपराध की प्रकृति;
(2) आपराधिक व्यवहार से सम्बन्धित कारण;
(3) अपराधियों के व्यक्तित्व का विश्लेषणात्मक अध्ययन;
(4) अपराधियों का उपचार एवं दण्ड ।
इस प्रकार अपराधशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत मानव व्यवहार के अपराधी पक्ष का अध्ययन, आपराधिक विधि की व्याख्या एवं विधि के प्रभावशाली तरीके से प्रवर्तन (enforcement) करने हेतु दण्डनीति की व्यवस्था सम्मिलित है।
जैफरी
जैफरी ने अपराधशास्त्र के क्षेत्र में तीन समस्याओं के अध्ययन पर जोर दिया है –
(1) कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों की खोज,
(2) अपराधियों की देख-रेख तथा उनका सुधार, और
(3) अपराधी व्यवहार की वैज्ञानिक व्याख्या एवं वैधानिक दोषारोपण।
रैडजीनविच (Radzinwich)
रैडजीनविच (Radzinwich) ने अपराधशास्त्र के क्षेत्र को तीन शीर्षकों में विभाजित किया है –
(1) अपराधों के कारण,
(2) आपराधिक नीति, और
(3) आपराधिक विधि ।
उक्त विवेचन में अपराध विधि को सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि अपराध विधि अपने आप में एक अलग विषय है, उसको अपराधशास्त्र में सम्मिलित करने का अर्थ अपराधशास्त्र का सीमारहित विस्तार होगा जो अनुचित है।
आज वस्तुस्थिति यह है कि अपराधशास्त्री वास्तविकता का वैज्ञानिक विश्लेषण कर अपराधशास्त्र को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने में जुटा हुआ है।
रैकलस
रैकलस ने अपराधशास्त्र के विषय क्षेत्र में इसकी प्रमुख केन्द्रीय अध्ययन रुचियों को सम्मिलित किया है –
(1) कानून के उल्लंघनों का लेखा-जोखा रखना, गिरफ्तारियों की संख्या का संकलन करना तथा अपराधियों का तादात्म्यीकरण करना।
(2) विभिन्न देशों में आपराधिक कानूनों का उनकी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के अनुसार तुलनात्मक अध्ययन करना।
(3) बाल तथा वयस्क अपराधियों के वैयक्तिक, सामाजिक तथा आर्थिक कारकों का विश्लेषण करना ताकि उनके वैज्ञानिक अध्ययन हेतु समाजशास्त्रीय अध्ययन सामग्री उपलब्ध हो सके।
(4) उन सिद्धान्तों एवं उपकल्पनाओं का प्रतिपादन, परीक्षण एवं संशोधन करना जो अपराध तथा बाल अपराध की घटनाओं का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने में सहायक हैं।
(5) अपराधी व्यवहार के उन तत्वों का स्पष्टीकरण करना जिन्हें वैज्ञानिक रूप से अपराध घोषित किया जाता है।
(6) उन अपराधियों का वैयक्तिक तथा सामाजिक अध्ययन करना जो अपनी मानसिक मनोविकृतियों के फलस्वरूप प्रथम बार अपराध करते हैं पर स्वभाव से अपराधी नहीं होते हैं।
(7) व्यवहार विचलन की उन समस्याओं का अध्ययन करना तथा उनके नियन्त्रण की विधियों की खोज करना जो असामाजिक कृत्यों, जैसे वेश्यावृत्ति, आत्महत्या, मादक द्रव्य व्यसन आदि आपराधिक व्यवहार को जन्म देने में प्रमुख योगदान देते हैं।
(8) आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन हेतु उन वैज्ञानिक विधियों का अध्ययन एवं खोज करना जिससे अपराध की समस्या का समाधान हो सके
(9) अपराधियों के सुधार एवं पुनर्वास की उन प्रमुख विधियों की सार्थकता एवं प्रभावशीलता का अध्ययन एवं मूल्यांकन करना जिनका प्रयोग आज हो रहा है।
(10) बाल तथा वयस्क अपराध के निरोधक कार्यक्रमों की संचालन व्यवस्था का मूल्यांकन एवं संशोधन करना।
वर्तमान समय में अपराधशास्त्र का क्षेत्र –
वर्तमान समय में यह भी विचार किया जा रहा है कि क्या अपराधशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में डैक्टीलोस्कोपी (Dactyloscopy) अर्थात् संकेत भाषा का अध्ययन, फोटोग्राफी (Photography) और टॉक्सोलॉजी (Toxology) अर्थात् विष विज्ञान जैसी तकनीकी प्रक्रियाओं का भी अध्ययन शामिल किया जाना चाहिए।
इसी प्रकार रक्त की जांच (Blood tests), झूठ को पकड़ने वाले यंत्र (Lie detector), निद्रा-विश्लेषण (Narco-analysis). सच बुलाने वाली औषधी (Truth telling drugs), सम्मोहन क्रिया (Hyponosis) की मदद से भी पुलिस और दाण्डिक न्यायालय उस अपराध से सम्बन्धित साक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिसे किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों द्वारा किया गया है।
इन तकनीकी प्रक्रियाओं के अध्ययन का एक नया नामकरण किया गया है, जिसे ‘क्रिमिनलिस्टिक्स’ (Criminalistics) के रूप में जाना जाता है। विश्व के कतिपय राष्ट्रों के विश्वविद्यालयों में जैसे आस्ट्रिया, बेल्जियम, फ्रान्स, इटली और कैलीफोर्निया में इस ‘विषय को ‘अपराधशास्त्र’ के अध्ययन में सम्मिलित कर लिया गया है।
जबकि ग्रेट ब्रिटेन और पश्चिमी जर्मनी में इस विषय का अध्ययन केवल पुलिस-महाविद्यालयों तक सीमित रखा गया है।
भारत में केवल उन संस्थानों में इस विषय का अध्ययन अपराधशास्त्र के साथ कराया जाता है जहाँ फॉरेन्सिक विज्ञान का अध्ययन कराया जाता है अन्यथा विश्वविद्यालों में समाजशास्त्र, सामाजिक कार्य और विधि के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए गए अपराधशास्त्र’ के साथ उक्त ‘क्रिमिनलिस्टिक्स’ विषय का अध्ययन नहीं कराया जाता है।’ अपराधशास्त्र की प्रकृति
निष्कर्ष
अपराधशास्त्र के अध्ययन का उद्देश्य अपराध के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण तथा अपराधियों के उपचार की ऐसी युक्तियों का अन्वेषण करना माना गया है, जिससे अपराधी समाज के भीतर अच्छे नागरिक बन जीवन व्यतीत करने में समर्थ हो सके। अपराधशास्त्र की प्रकृति
इसमें कोई आशंका नहीं कि अपराधशास्त्र की प्रमुख विषय-वस्तु अपराध और अपराधी ही है तथा इसके अन्तर्गत ऐसी सभी संस्थाएँ सम्मिलित है जो इन दोनों पर नियन्त्रण रखने हेतु कार्यरत है। यथा- पुलिस, न्यायालय, कारागार, सुधारगृह, परिवीक्षा, पैरोल आदि विशेष उल्लेखनीय है।
महत्वपूर्ण आलेख
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Reference :- Criminology And Penology (Dr. Y.S. Sharma)