इस लेख में हम अपराधशास्त्र के बारें में जानेगें जो कि कानून का एक महत्वपूर्ण विषय है| अपराधशास्त्र क्या है, इसकी परिभाषा और वर्तमान समय में अपराधशास्त्र हमारे लिए क्या महत्व रखता है को इस लेख में आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है,

अपराधशास्त्र एक परिचय –

सामान्य शब्दों में ऐसा शास्त्र जिसमे सभी प्रकार के अपराधों का अध्ययन किया जाता है, उसे अपराधशास्त्र कहते है| अपराधशास्त्र में अपराध और आपराधिक व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है, जिसमें आपराधिक गतिविधि के कारण, परिणाम और रोकथाम शामिल होते है।

यह एक ऐसा विषय क्षेत्र है जिसमे समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, कानून और अन्य विषयों के सिद्धांतों और विधियों का अध्ययन अपराध की प्रकृति और कारणों को बेहतर ढंग से समझने के साथ-साथ इसके जवाबों को समझने के लिए भी किया जाता है। यानि यह सिद्धांतों और विधियों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है।

अपराधशास्त्र में उन तत्वों का अध्ययन किया जाता है जो आपराधिक व्यवहार में योगदान करते हैं, जैसे -सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारक और इनके साथ साथ अपराधियों की आयु, लिंग, जाति और मानसिक स्वास्थ्य स्थिति का भी अध्ययन किया जा सकता हैं।

इसमें आपराधिक न्याय प्रणाली के विभिन्न घटकों, जैसे कानून प्रवर्तन, अदालतों और सुधारों के साथ-साथ इन प्रणालियों को संचालित करने वाली नीतियों और प्रथाओं का अध्ययन भी शामिल है।

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अपराधशास्त्र का अर्थ –

अपराधशास्त्र को अंग्रेजी में ‘criminology’ कहा जाता है, यह दो शब्दों अपराध और शास्त्र से मिलकर बना है जिसका अर्थ है – ‘’वह शास्त्र या विज्ञान जिसके अन्तर्गत अपराध का अध्ययन किया जाता है’’। अपराध का अध्ययन ही इसका केंद्र बिन्दु होता है|

विस्तृत अर्थों में अपराधशास्त्र उस विज्ञान को कहते है जिसमे, अपराध की व्याख्या, दण्ड व्यवस्था तथा अपराधियों की पुनः स्थापना का वैज्ञानिक अध्ययन होता है। इस प्रकार अपराधशास्त्र मुख्यतः तीन तथ्यों का अध्ययन करता है –

(i) अपराध की व्याख्या,

(ii) अपराधियों के लिए दण्ड व्यवस्था और

(iii) अपराधियों की पुनः स्थापना एंव उनमें सुधार करना।

इस प्रकार अपराधशास्त्र में अपराध की व्याख्या के साथ दण्डशास्त्र तथा अपराध का निदानशास्त्र का अध्ययन भी शामिल है, जो दण्ड विधि के क्रमिक विकास, अपराध के कारणों व अपराध के नियन्त्रण के सम्बन्ध में वैज्ञानिक विश्लेषण हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

रिचर्ड नाइस के अनुसार – “अपराधशास्त्र वह विज्ञान है जो अपराध, उसके निवारण तथा दण्ड की विधियों के अध्ययन से सम्बन्धित है” (डिक्शनरी ऑफ ‘क्रिमिनोलॉजी)

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अपराधशास्त्र की परिभाषा –

अपराधशास्त्र एक कठिन विषय है, जिसकी परिभाषा के विषय में विद्वानों के विचार अलग-अलग रहे हैं। कुछ विधिवेता इसके विधिक पहलू को अधिक महत्त्व देते है तो कुछ इसके सामाजिक पहलू को|

हालाँकि अपराधशास्त्र का मुख्य विषय अपराध और अपराधी ही है, क्योंकि अपराध मानव द्वारा ही किए जाते हैं जो समाज का एक अभिन्न अंग हैं। इसलिए अपराध को समाज से अलग नहीं किया जा सकता है। विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषा इस प्रकार है –

डॉ. कैनी (Dr. Kenny) के अनुसार – “अपराधशास्त्र अपराध विज्ञान की वह शाखा है जो अपराध के कारणों, उनके विश्लेषण एवं अपराध निवारण से सम्बन्धित है।”

सेलिन (Sellin) के अनुसार – “अपराधशास्त्र में मुख्यतः आचार सम्बन्धी आदर्शों का अध्ययन किया जाता है। आचार सम्बन्धी आदर्श एक ऐसा नियम है जो एक विशेष स्थिति वाले या विशेष समूह वाले व्यक्ति को किन्हीं परिस्थितियों में किसी विशेष प्रकार का व्यवहार करने से रोकता है।

टैफ्ट तथा इंग्लैण्ड के मतानुसार – “वृहद् अर्थों में अपराधशास्त्र वह अध्ययन है (यद्यपि अभी पूर्ण विकसित विज्ञान नहीं है) जिसकी विषयवस्तु के अन्तर्गत अपराध की व्याख्या और इसके निरोध के साथ अपराधियों एवं बाल अपराधियों के दण्ड या उपचार को सम्मिलित किया जा सकता है।”

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संकुचित अर्थों में – “अपराधशास्त्र वह अध्ययन है जो अपराध की व्याख्या करने और यह पता लगाने का प्रयास करता है कि व्यक्ति अपराधी कैसे बन जाता है।

सेथना के अनुसार – “अपराधशास्त्र अपराध के अर्थ एवं उसके संघटक कारकों का अध्ययन है तथा अपराध के नाम पर चलने वाली वस्तु के कारणों एवं उपचारों का एक विश्लेषण है।’ (M.J. Sethna, Society and the Criminal)

काल्डवेल के अनुसार – “अपराधशास्त्र अपराधी, अपराध एवं समाज द्वारा अपराध को कम करने या रोकने के लिए किए गए प्रयासों का सम्पूर्ण अध्ययन है।’ (Robert G. Caldwell, Criminology)

‘वेबस्टर शब्दकोष’ के अनुसार – “अपराधशास्त्र अपराध का सामाजिक तथ्य के रूप में वैज्ञानिक अध्ययन है या अपराधियों एवं उनके मानसिक गुणों, उनकी आदतों और उनके अनुशासन आदि का अध्ययन है।’

इलियट (Elliot) के अनुसार – “अपराधशास्त्र की परिभाषा अपराध और इसके उपचार के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में की जा सकती है।

यह परिभाषा यद्यपि अपराध एवं उनके उपचार को अपने क्षेत्र में लेती है परन्तु फिर भी अपराधशास्त्र के विस्तृत क्षेत्र एवं प्रकृति का सही बोध कराने में अपूर्ण हैं। क्योंकि इस परिभाषा में अपराधियों के दण्ड का समावेश का अभाव है।

मन्नेहियम (Mannehiem) के अनुसार – यह अपराध का वह अध्ययन है, जिसमें अपराध के प्रकार, उनके विस्तार एवं उनके गठित होने के कारणात्मक हेतुक भी सम्मिलित रहते हैं।

इन्होंने अपराधशास्त्र में दण्डशास्त्र को भी सम्मिलित कर रखा है, जिसमें दण्ड तथा अपराध से संव्यवहार करने वाले तत्समान प्रणालियों तथा गैर दण्डात्मक उपायों द्वारा अपराध- निवारण की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

सदरलैण्ड तथा क्रेसी के अनुसार – “अपराधशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जो सामाजिक घटना (Phenomenon) के रूप में अपराध की व्याख्या करते है।

इस परिभाषा में अपराधशास्त्र को अपराध का सामाजिक घटना के रूप में अध्ययन करने वाली ज्ञान शाखा माना है। अपराध को सामाजिक घटना मानना इस परिभाषा की अनिवार्य शर्त है।

उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट है कि अपराधशास्त्र की एक निश्चित सर्वसम्मत परिभाषा देना असम्भव है| इसलिए अपराधशास्त्र को इस तरह समझा जा सकता है कि – “यह ज्ञान का वह अंग है, जो अपराध, अपराधी, आपराधिक कारणात्मक एवं अपराध के सामाजिक नियन्त्रण के सम्बन्ध में अध्ययन के लिए विस्तृत विषय-वस्तु प्रदान करता है।”

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अपराधशास्त्र का महत्त्व –

अपराधशास्त्र का एक विषय के रूप में अध्ययन किए जाने में अपना महत्त्व है। मानव की अधिक धन इच्छा, भौतिक इच्छाएँ, एक दूसरे के प्रति घृणा, ईर्ष्या, सन्देह, अविश्वास आदि अपराधों के प्रमुख कारण हैं और अपराधशास्त्र के अन्तर्गत अपराध के कारण एवं उनके निवारण के उपायों पर विचार किया जाता है।

इस कारण वर्तमान समय में अपराधशास्त्र का महत्त्व बढ़ गया है, जिसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं से समझ सकते है –

(i) मानव शरीर एवं सम्पत्ति के विरुद्ध अपराध, सामाजिक और आर्थिक प्रकृति के अपराध, पर्यावरण एवं जल के प्रदूषण से सम्बन्धित अपराध, राज्य के विरुद्ध अपराध, श्रम और कारखाने की समस्याओं से सम्बन्धित अपराध आदि अपराध लोक के राजकोष पर भारी असर डालते हैं जिनका संयुक्त सर्वेक्षण से ही प्रत्येक वर्ग में व्यय धनराशि का पता लगाया जा सकता है जो अपराध समस्या के अध्ययन को आवश्यक बनाता है।

(ii) अपराधशास्त्र की यह मूल धारणा है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता, लेकिन परिस्थितियों तथा सामाजिक परिवेश से व्यक्ति अपराधी हो जाता है। इसके अधीन अपराधी की मनोवृत्ति में सुधार करके उसे समाज में विधि का पालन करने वाला सामान्य नागरिक बनाने का प्रयास किया जाता है और इस हेतु वैयक्तिक दण्ड को साधन के रूप में अपनाया जाता है।

(iii) अपराधशास्त्र का एक महत्त्व यह भी है कि इसके द्वारा सामाजिक सुरक्षा की सुदृढ़ता सुनिश्चित की जाती है जो असामाजिक तत्व तथा विधि का उल्लंघन करने वालों को सदाचारी बनाने में सहायक होती है| दण्ड का भय अपराधी को अपराध से दूर रखने के लिए शास्ति का कार्य करता है|

(iv) इसके अध्ययन से समाजसेवा भी की जा सकती है। जैसे व्यावसायियों, जो सामाजिक सेवा करते हैं उनके लिए अपराधशास्त्र की जानकारी आवश्यक है। इसी प्रकार मजिस्ट्रेट, पुलिस, अधिवक्ता, कारागार अधिकारी, परिवीक्षा एवं पैराल अधिकारियों के लिए आवश्यक है कि उन्हें अपराध तथा आपराधिक व्यवहार से जुड़े सभी पहलुओं की पर्याप्त जानकारी हो जिससे वे अपराधियों के साथ अच्छा व्यवहार कर सके|

(v) अपराधशास्त्र का उद्देश्य अपराधी के व्यवहार और उसके कारणों का अध्ययन करना  है जिससे की उसमे सुधार किया जा सके तथा उन बातों या परिस्थितियों को जो व्यक्ति के आचरण को आपराधिक स्वरूप प्रदान करती हैं समाप्त किया जा सके।

(vi) विधायकों, सांसदों को भी अपराधशास्त्र की पृष्ठभूमि का ज्ञान होना चाहिए, जिससे वे ऐसी विधियों का निर्माण करेंगे जो समाज की व्यवस्था, शान्ति और जन कल्याण के अनुकूल होंगे, इसी तरह पुलिस अधिकारीयों को भी अपराधशास्त्र का ज्ञान होगा, तब वे उत्तरदायी अधिकारियों की भाँति, न केवल अपराधियों को पकड़ने और दण्डित करने, अपितु युक्तियुक्त तरीके से भावी अपराध को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेंगे।

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(vii) इसके अध्ययन से मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश भी अपराधियों को दण्डादेश देते समय समाज के वृहत्तर हित में, उनके सुधार का भी ध्यान रखेंगे। इसके अलावा कारागार अधिकारी भी अपराधी के कारावास के समय उससे मृदुल व्यवहार कर सकेगा।

(viii) इसके अध्ययन से समाज के विभिन्न सामाजिक सम्बन्धों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है|

(ix) समाज में स्थिरता लाने, सामाजिक समस्याओं को समझाने तथा धार्मिक ज्ञान के बहाने होने वाले अपराधों की जानकारी में भी अपराधशास्त्र सहायक सिद्ध होता है|

(x) वर्तमान समय में अनेक नये अपराधों का उद्भव हुआ है, जैसे – तस्करी, कालाबाजारी, बैंकों को लूटना, स्वचालित वाहनों की चोरी, आतंकवाद, गिरोह बनाकर यात्रियों से सामान या धन लूटना, बेहोशी की दवा सुंघाकर लोगों का माल लेकर भाग जाना, साइबर अपराध आदि।

यानि जिस तरह अपराध निरोधक संस्थाएँ अपराधों को रोकने हेतु नई-नई तकनीकों एवं साधनों का उपयोग कर रही है, उसी प्रकार अपराधी भी अपराधों के नवीनतम तरीकों को अपनाने में लगे हुए हैं।

इसलिए यदि शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा अपराधशास्त्र को पाठ्यक्रम का एक विषय निर्धारित कर दिया जाए तो यह बच्चो को अपराध के बारें में अच्छी जानकारी प्रदान करेगा जिससे वे निश्चित रूप से आगे चलकर जीवन के चाहे जिस क्षेत्र में कार्यरत हों, स्वस्थ नागरिक के रूप में समाज की ओर अच्छी सेवा कर सकेंगे तथा आपराध से दुरी बनाये रखेंगे।

(xi) अपराधशास्त्र, अपराध और आपराधिक व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह एक अंतःविषय क्षेत्र है जो आपराधिक गतिविधियों के कारणों और परिणामों को समझने के लिए समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, कानून और अन्य विषयों से सिद्धांतों और विधियों पर आधारित है।

(xii) इसका अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह हमें अपराध की प्रकृति और आपराधिक व्यवहार को समझने में मदद करता है, जो बदले में प्रभावी अपराध रोकथाम और हस्तक्षेप रणनीतियों, साथ ही नीतियों और कानूनों के विकास को सूचित कर सकता है।

(xiii) इसके अलावा यह हमें व्यक्तियों, समुदायों और समाज पर अपराध के प्रभाव को समझने और अपराध में योगदान देने वाले सामाजिक और संरचनात्मक तथ्यों की पहचान करने व उन्हें संबोधित करने में मदद कर सकता है।

इस प्रकार अपराधशास्त्र एक अत्यन्त उपयोगी विज्ञान है तथा यह अपराध के कारणों के बारे में जानकारी प्रदान करने में सहायता देने के साथ-साथ अपराध निरोध, अपराधियों के सुधार तथा उन्हें दी जाने वाली पश्चात्वर्ती संरक्षण कार्यक्रमों को समझने में भी सहायक है, समाज को अपराधविहीन बनाने की दिशा में अपराधशास्त्र का योगदान अद्वितीय हैं।

निष्कर्ष –

कुल मिलाकर, अपराध विज्ञान एक विस्तृत क्षेत्र है जो अपराध की प्रकृति और कारणों को बेहतर ढंग से समझने के साथ सिद्वान्तो और विधियों के साथ साथ इसके जवाबों की भी विस्तृत रूप रेखा प्रदान करता है|

आपराधिक व्यवहार, आपराधिक न्याय प्रणाली और अपराध रोकथाम रणनीतियों की एक वैज्ञानिक परीक्षा के माध्यम से, अपराधियों का उद्देश्य अपराध और आपराधिक व्यवहार की हमारी समझ में सुधार करना और अपराध को रोकने और सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी रणनीति विकसित करना है।

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Reference :- Criminology And Penalogy (Dr. Y.S. Sharma)