हेलो दोस्तों, इस आलेख में अपकृत्य कानून के अन्तर्गत अपराध और अपकृत्य में क्या अंतर है? | अपकृत्य और संविदा में प्रमुख अंतर | Difference Between Tort And Crime के बारे में बताया गया है| अपकृत्य विधि एक ऐसा टॉपिक है जो हमारे आसपास दिन प्रतिदिन घट रही छोटी-छोटी घटनाओ के बारे में जानकारी देती है
अपकृत्य तथा अपराध
अपकृत्य, अपराध से बहुत भिन्न है। प्रोफेसर सी० एस० केनी ने इस बात की विस्तार से व्याख्या की है कि अपराध, अपकृत्य से तथा कानून की अन्य शाखाओं से कितना भिन्न है। इस तरह अपकृत्य तथा अपराध में प्रमुख अंतर निम्नलिखित है –
(i) अपकृत्य सर्वसाधारण के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है, जबकि अपराध जनता के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को भंग करने पर उत्पन्न होता है जिससे समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
(ii) अपकृत्य व्यक्ति विशेष के विधिक अधिकार को भंग करता है, परन्तु अपराध समस्त समाज के प्रति अवैध कृत्य है।
(iii) अपकृत्य के मामले में क्षतिग्रस्त पक्ष के द्वारा दीवानी का वाद संस्थित किया जाता है, अन्य किसी के द्वारा नहीं। परन्तु अपराध के मामले में अपराध समाज के प्रति होता है; अत: अपराध में अपराधी के विरुद्ध कार्यवाही राज्य द्वारा की जाती है।
(iv) अपकृत्य के मामले में क्षतिग्रस्त पक्षकार को क्षतिपूर्ति प्रदान किया जाता है जबकि अपराध के मामले में अपराधी को दण्ड दिया जाता है।
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(v) अपकृत्य के मामले में क्षतिपूर्ति या प्रतिकर के रूप में प्राप्त धनराशि क्षतिग्रस्त व्यक्ति को मिल जाती है, परन्तु अपराध में अपराधी से अर्थदण्ड के रूप में प्राप्त धनराशि राजकीय कोष में चली जाती है।
(vi) अपकृत्य के मामले में क्षतिग्रस्त व्यक्ति की क्षतिपूर्ति करना न्यायालय का मुख्य उद्देश्य होता है, परन्तु अपराध के मामले में अपराधी की अपराध करने की प्रवृत्ति को रोकने तथा अपराधी को सुधारने के लिए दण्ड दिया जाता है।
(vii) अपराध तथा अपकृत्य में ऐतिहासिक आधार पर अन्तर है। अपकृत्य की तुलना में अपराध के कानून का उदय बाद में हुआ। सर हेनरी मेन ने अपनी पुस्तक ‘एन्शियन्ट लॉ’ (Ancient Law) में लिखा है कि प्रारम्भिक जातियों में अपराध का कानून दण्ड विधि के रूप में न होकर अपकृत्य विधि के रूप में हुआ था।
(viii) क्षतिकर्ता को अपकृत्य के दायित्व से क्षतिग्रस्त व्यक्ति मुक्त कर सकता है। अपकृत्य एक व्यक्तिगत अपकार होता है। अतः क्षतिग्रस्त पक्षकार वादी के रूप में अपकृत्य का वाद लाता है। किसी भी समय क्षतिग्रस्त व्यक्ति क्षतिकर्ता से समझौता करके वाद वापस भी ले सकता है।
किन्तु अपराध के दायित्व से छूट देने का अधिकार क्षतिग्रस्त व्यक्ति को नहीं होता; केवल राज्य ही आपराधिक दायित्व से मुक्ति या क्षमा दे सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 की सांविधानिकता के प्रश्न पर विचार समय अपराध एवं अपकृत्य के अन्तर को भी स्पष्ट किया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह नहीं कहा जा सकता कि अपकृत्य से उत्पन्न क्षति व्यक्ति विशेष तक ही सीमित रहती है – एक व्यक्ति को पंहुचाई क्षति अन्तत: समाज तक पहुँचती है।
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क्या एक ही कार्य अपकृत्य तथा अपराध के रूप में हो सकता है
एक क्षति या अनुचित कार्य जब एक ही व्यक्ति के प्रति किये गये कृत्य के रूप में समझा जाता है तो अपकृत्य हो जाता है ओर जब वही कार्य सामान्य समाज के प्रति किया गया समझा जाता है तो अपराध भी हो सकता है।
जैसे किसी व्यक्ति के ऊपर आक्रमण, अपमान-लेख (Libel), सम्पत्ति के प्रति अपकृत्य, असावधानी, उपापराध (Misdemeanour) आदि ऐसे अनुचित कार्य हैं जो अपकृत्य तथा अपराध दोनों श्रेणी में आते हैं।
किसी व्यक्ति की सुरक्षा के अधिकार की अवहेलना में उसके ऊपर हमला करना अपकृत्य होता है परन्तु जब हमले (Assault) से समस्त समाज की सुरक्षा के खतरे की भी सम्भावना होती है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है।
इस प्रकार सार्वजनिक मार्ग में अवरोध उत्पन्न करना जिससे समाज के लोगों को अनेक प्रकार की असुविधा होती है एक सार्वजनिक उपापराध है जो दण्ड-विधि के अन्तर्गत दण्डनीय है।
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जब किसी व्यक्ति को उस अपराध के परिणामस्वरूप मार्ग पर जाते हुए उससे टकराकर क्षति कारित होती है तो वह व्यक्ति अवरोध उत्पन्न करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध नुकसानी या क्षतिपूर्ति का वाद लाकर उससे प्रतिकर अभिप्राप्त कर सकता है।
लेकिन जब एक ही अनुचित कृत्य अपराध एवं अपकृत्य दोनों की श्रेणी में आता है तो इसके पहलू भी भिन्न-भिन्न होते हैं। अपराध एवं अपकृत्य के रूप में इसकी परिभाषा भी भिन्न हो जाती है।
जो बचाव (Defence) अपकृत्य के मामले में रखा जा सकता है, वही अपराध में नहीं हो सकता है तथा अभियोग (Prosecution) और अपकृत्य सम्बन्धी कार्यवाही के उद्देश्य तथा परिणाम भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
सामंड के अनुसार – ऐसे सभी मामलों में दीवानी तथा आपराधिक उपचार अनुकल्पिक (Alternative) नहीं वरन् समवर्ती (Concurrent) हुआ करते हैं जो एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं।
क्षतिकर्ता आपराधिक तौर पर कारावास अथवा अन्य दण्ड का भागी हो सकता है तथा सिविल वाद द्वारा क्षतिग्रस्त व्यक्ति को नुकसानी के लिये भी बाध्य किया जा सकता है।
भारतीय न्यायालयों ने यह स्पष्ट रूप से निर्णीत किया है कि एक ही दोषपूर्ण कार्य के लिये क्षतिग्रस्त व्यक्ति क्षतिकर्ता से क्षति की धनराशि वसूल कर सकता है तथा क्षतिकर्ता को आपराधिक रूप से दण्ड का भागी बनाया जा सकता है। भारत में बहुत से ऐसे वाद हुए हैं जो अपराध तथा अपकृत्य दोनों की कोटि में रखे गये।
एक ही कार्य अपकृत्य तथा अपराध व संविदा–भंग भी होता है –
अपकृत्य तथा अपराध एवं संविदा-भंग का भेद भी किसी निश्चित कत्य के व्यावहारिक रूप पर आधारित होता है। किसी भी एक कृत्य में कुछ मामलों में तीनों बातें एक साथ भी हो सकती हैं।
उदाहरणार्थ – एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से दुर्व्यपदेशन (Misrepresentation) द्वारा माल लेता है तथा बाद में उस माल को बेचकर प्राप्त धनराशि को अपने इस्तेमाल में व्यय कर लेता है।
ऐसे मामले में अनुचित कार्य करने वाला व्यक्ति तीनों कृत्य करता है। गलत बताकर माल प्राप्त करना धोखे का कार्य कहा जायेगा, क्योंकि यह आम समाज के प्रति अपराधपूर्ण कार्य है, धोखा देकर किसी व्यक्ति से माल लेना मालिक के सम्पत्ति के अधिकार के विरुद्ध अनुचित कार्य होगा, इसलिये यह उस व्यक्ति के प्रति की गई हानि है और इसे अपकृत्य कहेंगे।
अन्त में इसे संविदा-भंग भी माना जायेगा क्योंकि ऐसे मामलों में संविदा निहित होती है जिनमें अनुचित कृत्य करने वाले व्यक्ति को मालिक की धनराशि वापस करनी होती है और उसके विरुद्ध भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 के अन्तर्गत भी वाद चलाया जा सकता है।
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