नमस्कार दोस्तों, यह आलेख अपकृत्य विधि से सम्बंधित है, इस आलेख में अपकृत्य क्या है | What is Tort | अपकृत्य का अर्थ, परिभाषा व विशेषताओ के बारें मै बताया गया है| अपकृत्य एक ऐसा विषय है जो हमारे आस-पास दिन प्रतिदिन घट रही हर प्रकार की घटनाओ के बारे में जानकारी देता है इसलिए अपकृत्य के बारे में हर कोई चाहे वह छात्र हो या आम नागरिक जानना चाहते है|
अपकृत्य क्या है | What Is Tort
अपकृत्य का अंग्रेजी मे शाब्दिक अर्थ Wrong है ओर ‘टार्ट’ का हिन्दी भाषा में शब्द ‘अपकृत्य’ है। टार्ट (अपकृत्य) की उत्पति टॉर्टम शब्द से ही हुई थी जो एक लेटिन भाषा का शब्द है| टॉर्टम का हिन्दी अर्थ तोड़ना या मरोड़ना या फिर टेढ़ा-मेढा होता है| भारतीय अपकृत्य विधि का मूल आधार इंग्लिश विधि है इस कारण यह विधि हमारे देश भारत में अन्य विधियों की अपेक्षा नई विधि है।
अपकृत्य का अर्थ
अपकृत्य क्या है इस शब्द को साधारण रूप से जानने के लिए यह कहा जा सकता है की प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपना कार्य ऐसे तरीके से करें जिससे समाज के दूसरे व्यक्तियों की सुख-सुविधा या उनके जीवन पर कोई गलत असर न पड़े।
यदि किसी व्यक्ति के कार्य के परिणामस्वरूप किसी अन्य व्यक्ति को कोई हानि होती है तो नुकसान करने वाला व्यक्ति हानी होने वाले व्यक्ति को क्षतिपूर्ति करने को बाध्य होता है। वास्तव में अपकृत्य विधि एक व्यक्ति को अनुशासित व्यक्ति के रूप में जीवन यापन करने के संबंध में निर्देश देती है।
भारतीय उच्चतम न्यायालय ने अपकृत्य विधि के आधार को स्पष्ट करते हुए कहा कि “वास्तव में समस्त विधि इस नैतिकता पर आधारित हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी अन्य को इरादे के साथ (Intentionally) या विधि इरादे के साथ (innocently) नुकसान पहुँचाने का अधिकार नहीं रखता है |
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अपकृत्य को अनेक विद्वानों ने समय-समय पर समझाने का प्रयत्न किया है लेकिन कोई भी इसकी सार्वभोम परिभाषा नहीं दे सका। इसके कई कारण माने गए है, जैसे –
(i) अपकृत्य विधि का निरन्तर विकास होना
(ii) अपकृत्य विधि न तो संहिताबद्ध होना और न ही किसी विधान-मण्डल द्वारा पारित की गयी होना
(iii) अपकृत्य विधि का न्यायिक विनिश्चयों पर आधारित होना
अपकृत्य की परिभाषा
अपकृत्य विधि की अनेक विद्वानो द्वारा अलग अलग परिभाषा दी गई है, जो निम्न है –
सामण्ड के अनुसार – अपकृत्य एक सिविल दोष है जिसके लिए न्यायालय में वाद दाखिल करके अनिर्धारित नुकसानी (Unliquidated damages) प्राप्त की जा सकती है परंतु यह कोई संविदा भंग और न्यास भंग नहीं है|
डॉ अंडरहिल के अनुसार – कि जब किसी व्यक्ति के पूर्ण अधिकार सीमित अधिकार और सार्वजनिक अधिकार का हनन होता है तब वह उस अधिकार के हनन के कारण उसको जो क्षति हुई है उसकी क्षतिपूर्ति के लिए वह कार्यवाही कर सकता है |
डॉ० अन्डरहिल के अनुसार – “अपकृत्य संविदा से पूर्णतः मुक्त एवं विधि द्वारा अनधिकृत वह कार्य (Act) या लोप (Omission) है जो –
(i) किसी व्यक्ति के आत्यन्तिक अधिकार (Absolute right) का अतिलंघन करता है या
(ii) किसी व्यक्ति के सापेक्ष अधिकार का अतिलंघन (Infringe) करके उसको क्षति पहुँचाता है अथवा
(iii) किसी सार्वजनिक अधिकार का इस प्रकार अतिलंघन करता है
जिससे किसी व्यक्ति विशेष को सामान्य जनता की अपेक्षा अधिक क्षति पहुँचती है और जिसके परिणामस्वरूप वह क्षतिकर्ता के विरुद्ध नुकसानी प्राप्त करने के लिये मुकदमा चलाने का अधिकारी हो जाता है।”
डॉ. विनफील्ड (Dr. Winfield) ने अपकृत्य की अपेक्षा अपकृत्यपूर्ण दायित्व को परिभाषित किया है, उनके अनुसार – अपकृत्यपूर्ण दायित्व मूलतः (Primarily) कानून द्वारा निर्धारित कर्तव्य-भंग करने से उत्पन्न होता है। यह कर्तव्य-भंग व्यक्तियों के प्रति सामान्य रूप से होता है और इसका उपचार अनिर्धारित क्षतिपूर्ति के मुकदमें से किया जाता है|
इस प्रकार प्रो. विनफील्ड की परिभाषा में तीन बातें पायी जाती है –
(1) अपकृत्यपूर्ण दायित्व मूलत: कानून द्वारा निर्धारित कर्त्तव्य-भंग से उत्पन्न होता है,
(2) यह विधिक कर्त्तव्य समस्त समाज के प्रति होना चाहिये, तथा
(3) विधिक कर्त्तव्य के अतिलंघन के लिये अनिर्धारित क्षतिपूर्ति का मुकदमा दायर किया जा सकता है|
डॉ० विनफील्ड की परिभाषा की व्याख्या –
(1) – अपकृत्य का दायित्व, विधि द्वारा न कि पक्षकारों द्वारा पूर्व निश्चित किये हुये कर्तव्य भंग करने से उत्पन्न होता है –
अपकृत्यपूर्ण दायित्व की उत्पत्ति किसी कर्त्तव्य के उल्लंघन से होती है इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रतिवादी पूर्व निश्चित कर्त्तव्य का पालन करने के लिए बाध्य हो और उसकी यह बाध्यता विधि द्वारा आरोपित हो अर्थात् यदि वह अपने कर्तव्य का उल्लंघन करता है तो क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होगा। इस आधार पर अपकृत्य को संविदा से भिन्न किया जा सकता है।
अपकृत्य विधि में कर्त्तव्य का निर्धारण विधि द्वारा होता है जैसे यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह किसी दूसरे व्यक्ति का अपमान न करे, या चोरी न करे, या धोखा-धड़ी न करे किन्तु संविदा में कर्त्तव्य की अवधारणा पक्षकारों की सहमति द्वारा ही होती है जैसे एक चित्रकार कुछ धनराशि के लिए चित्र बनाता है। चित्रकार का चित्र बनाने का कर्त्तव्य विधि द्वारा निर्धारित नहीं किया गया है बल्कि इसकी अवधारणा उसकी अपनी सहमति पर निर्भर करती है।
(2) – विधि द्वारा निश्चित कर्त्तव्य सामान्य व्यक्तियों के प्रति होते हैं –
अपकृत्यपूर्ण दायित्व समाज के सभी व्यक्तियों के प्रति होते हैं। अत: जो भी कार्य सर्वबन्धी (Rights in rem) अधिकारों के विरुद्ध होते हैं, उसके सम्बन्ध में अपकृत्यपूर्ण दायित्व (Tortious liability) उत्पन्न हो जाता है।
(3) – कानून द्वारा निश्चित कर्त्तव्य के उल्लंघन का प्रतिकार क्षतिपूर्ति के वाद से –
किसी भी व्यक्ति के अपकृत्य से जो नुकसान वादी को पहुँचता है, उसके लिये वह वाद ला सकता है और न्यायालय द्वारा क्षतिपूर्ति करवा सकता है। उसमें क्षतिपूर्ति की राशि अपरिनिर्धारित (unliquidated) होती है। यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर होता है कि वह कितनी राशि निर्धारित करता है।
जस्टिस ग्रीन ने उक्त परिभाषा के समर्थन मै कहा कि जहाँ कर्त्तव्यों को पूरा न करने से दायित्व उत्पन्न होता है, वह व्यक्तिगत आभारों से स्वतन्त्र एवं भिन्न होता है, अपकृत्य कहा जाता है। डॉ. विनफील्ड की परिभाषा सर्वश्रेष्ठ समझी जाती है, लेकिन यह भी त्रुटियों से पूर्ण रूप से मुक्त नहीं है।
डॉ० विनफील्ड की परिभाषा में निम्न दोष मिलते हैं –
(i) डॉ. विनफील्ड के अनुसार अपकृत्य सम्बन्धी दायित्व प्राथमिक रूप से विधि द्वारा निर्धारित उल्लंघन से उत्पन्न होता है।
(ii) डॉ. विनफील्ड की परिभाषा की दूसरी आलोचना इस आधार पर कि उनके अनुसार अपकृत्य में दायित्व किसी करार पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि ऐसे कर्त्तव्य के उल्लंघन से उत्पन्न होता है जो “जनसाधारण के प्रतिकर्तव्य” (duty towards people generally) से होता है।
(iii) विनफील्ड की परिभाषा की आलोचना इस आधार पर भी की जा सकती है कि अपरिनिर्धारित नुकसानी के लिए वाद ही अपकृत्य का एक मात्र उपचार नहीं है। इसके अतिरिक्त अन्य उपचार जैसे आत्म-सहायता (self-help), व्यादेश (injunction) तथा भूमि एवं चल वस्तु का प्रत्यास्थापन (restitution of land and chattels) आदि भी हैं।
क्लार्क तथा लिन्डसे ने अपनी पुस्तक ला ऑफ टार्ट्स (Law of Torts) में लिखा है कि “अपकृत्य संविदा से स्वतन्त्र एक ऐसा अनुचित कृत्य है जिसके लिए उचित उपचार सामान्य विधि के अनुसार वाद संस्थित करना है।”
फ्रेजर के अनुसार – “अपकृत्य किसी व्यक्ति के प्रति अधिकार का अतिक्रमण है जिसके फलस्वरूप क्षतिग्रस्त व्यक्ति को वाद संस्थित करके नुकसानी पाने का अधिकार होता है।”
अपकृत्य विधि की विशेषताएँ | Features of tort law
(i) अपकृत्य विधि किसी व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित विधि है। व्यक्तियों के आपस मै साधारण कानून के अनुसार अधिकार व कर्तव्य उत्पन्न होते हैं। इन कर्तव्यों व अधिकारों का उल्लंघन ही अपकृत्य कहलाता है।
(ii) अपकृत्य उन अनुचित कृत्यों से भिन्न होता है जो पूर्णरूप से संविदा भंग के अन्तर्गत आते हैं।
(iii) अपकृत्य का उपचार दीवानी न्यायालय (civil court) में क्षतिपूर्ति के लिए वाद दायर करके प्राप्त किया जा सकता है।
(iv) अपकृत्य एवं अपराध दोनों अलग-अलग हैं।
(v) अपकृत्यपूर्ण दायित्व समाज के सभी व्यक्तियों के विरुद्ध होता है अत: समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपकृत्य न करने के लिए बाध्य है। यह एक लोकलक्षी (Right in Rem) अधिकार है।
(vi) अपकृत्य विधि का मुख्य उद्देश्य क्षतिपूर्ति है, अर्थात् पीड़ित व्यक्ति को यथासम्भव उस अवस्था में ला देना जिसमें कि वह अपकृत्य से पूर्व था।
(vii) अपकृत्य में हमेशा अनिर्धारित क्षतिपूर्ति (unliquidated-damages) ही माँगी जाती है।
(viii) भारतीय अपकृत्य विधि (Tort law in India) अपेक्षाकृत नई कॉमन लॉ विधि है।
(ix) अपकृत्य का उपयोग कानून में कोई ऐसे कार्य के लिए किया जाता है जिससे कोई क्षति या अपकार हुआ हो। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि उसका प्रतिकार क्षतिपूर्ति के द्वारा संभव है। अपकृत्य, संविध के उल्लंघन से संबंधित नहीं है और साथ ही में वह अपराधिक भी नहीं होता।
(x) अपकृत्य एक सिविल दोष है जिसका उपचार अपरिनिर्धारित नुकसानी के लिए कॉमन लॉ अनुयोजन है और यह संविदा भंग या कानून भंग या अन्य सामयिक बाधाओं का भंगीकरण नहीं है|
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