नमस्कार दोस्तों, इस आलेख में अधिवक्ता अधिनियम के अन्तर्गत अधिवक्ता के नामांकन एंव प्रवेश की प्रक्रिया | नामांकन के लिए योग्यता, अधिवक्ता का एक राज्य से दुसरे राज्य की नामावली में नाम अन्तरित करने सम्बंधित प्रावधान | Enrolment of Advocates in India का उल्लेख किया गया है|

भारत में अधिवक्ता के नामांकन की प्रक्रिया

कानूनी क्षेत्र न्याय बनाए रखने, व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने और लोकतांत्रिक समाज के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारत में वकील, जिन्हें आमतौर पर अटॉर्नी या अभिभाषक या एडवोकेट के नाम से भी जाना जाता है|

एक अधिवक्ता नागरिक विवादों और आपराधिक मामलों के अलावा भी कानूनी मुद्दों में व्यक्तियों (ग्राहकों) का प्रतिनिधित्व करने के लिए जिम्मेदार होता है।

भारत में एक अधिवक्ता के रूप में अपना करियर बनाने के लिए, व्यक्तियों को प्रवेश और नामांकन की कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया अधिवक्ता अधिनियम 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य बार काउंसिल द्वारा स्थापित नियमों द्वारा संचालित होती है। इस आलेख भारत में अधिवक्ता के नामांकन और प्रवेश से सम्बंधित प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया है।

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अधिवक्ता अधिनियम, 1961

भारत में अधिवक्ता के नामांकन और प्रवेश से सम्बंधित मुख्य प्रावधान अधिवक्ता अधिनियम 1961 में प्रतिपादित किये गए है यानि अधिवक्ता के नामांकन और प्रवेशअधिवक्ता अधिनियम, 1961 द्वारा शासित होता है। इस अधिनियम में उन नियमों और विनियमों का निर्धारण किया गया है जो भारत में कानूनी क्षेत्र को नियंत्रित करते हैं और एक व्यक्ति के वकील बनने के लिए रूपरेखा स्थापित करते हैं।

इस अधिनियम के अधीन भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) और राज्य विधिज्ञ परिषद अधिवक्ता के नामांकन से सम्बंधित कार्यों के लिए उत्तरदायी होती हैं क्योंकि बीसीआई भारत में विधि व्यवसाय के लिए एक शीर्ष नियामक संस्था है जो कानूनी शिक्षा और पेशेवर आचरण के लिए समय समय पर मानक निर्धारित करती है।

इसी तरह अधिवक्ता अधिनियम के तहत भारत में प्रत्येक राज्य की अपनी राज्य विधिज्ञ परिषद होती है, जो अपनी नामावली में अपने अधिकार क्षेत्र में रहने वाले अधिवक्ताओं के नामांकन करती है और उनके लिए समय समय पर नियमों का प्रतिपादन करती है।

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अधिवक्ता के नामांकन के लिए योग्यता

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24 में राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में अधिवक्ता के नामांकन के लिए आवश्यक अर्हत्ताओ का उल्लेख किया गया है, जो अर्हताएं निम्नलिखित है –

(i) भारत का नागरिक होना

राज्य  विधिज्ञ परिषद की नामावली में अधिवक्ता के नामांकन की पहली आवश्यकता उसका भारत का नागरिक होना है| केवल भारत के नागरिक ही भारतीय न्यायालयों में अधिवक्ता के रूप में कार्य कर सकते है और राज्य  विधिज्ञ परिषद की नामावली में बतौर अधिवक्ता अपना दर्ज करवा सकते है|

अन्य देशों का राष्ट्रिक व्यक्ति किसी राज्य विधिज्ञ परिषद् की नामावली में अधिवक्ता के रूप में केवल तभी नामांकित किया जा सकता है जब सम्यक रूप से अर्हित भारत के नागरिक उस अन्य देश में विधि व्यवसाय के लिए अनुज्ञात हो| अधिवक्ता के नामांकन

(ii) आयु का पूरी होना

राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए 21 वर्ष की आयु पूर्ण होना आवश्यक है| 21 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति नामांकन के लिए हकदार नहीं होता है। यानि अधिवक्ता के नामांकन के लिए व्यक्ति का व्यस्क होना पर्याप्त नहीं है बल्कि 21 वर्ष की आयु पूर्ण होनी चाहिए तथा एक वकील के रूप में प्रवेश के लिए व्यक्ति की अधिकतम कोई आयु सीमा नहीं है|

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(iii) विधि स्नातक होना

अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए तीसरी सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता व्यक्ति का विधि स्नातक होना है| इस सम्बन्ध में अधिनियम की धारा 24(1)(ग) में निम्न व्यवस्था की गई है –

(क) भारत के राज्य क्षेत्र के किसी विश्वविद्यालय से 12 मार्च 1967 से पूर्व विधि की उपाधि प्राप्त कर ली हो या

(ख) भारत शासन अधिनियम, 1935 द्वारा परिनिश्चित किसी विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त कर ली हो।

इसके अलावा एक अधिवक्ता विदेशी विश्वविद्यालय से भी कानून की डिग्री प्राप्त कर सकता है बशर्ते वह विदेशी विश्वविद्यालय बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिए|

(iv) विनिर्दिष्ट शुल्क का भुगतान

राज्य विधिज्ञ परिषद् की नामावली में अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए विहित शुल्क का संदाय किया जाना भी आवश्यक है साथ ही भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के अधीन प्रभार्य स्टाम्प शुल्क यदि कोई हो तो वह भी दिया जाना अपेक्षित है।

(v) अन्य शर्तों का पूरा किया जाना

अन्त में राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए उन सभी शर्तों का पूरा किया जाना आवश्यक है जो विधिज्ञ परिषद द्वारा नियम बनाकर निर्धारित की जाएं।

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अधिवक्ताओं की नामावली

प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद, अधिवक्ता अधिनियम की धारा 17 के तहत अधिवक्ताओं की एक सूची बनाएगी जो दो भागों में विभाजित होगी| पहले भाग में वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नाम व दूसरे भाग में अन्य अधिवक्ताओं (कनिष्ठ अधिवक्ता) के नाम होगें। इससे यह स्पष्ट है की दोनों प्रकार के अधिवक्ताओं के नाम अलग अलग सूची में अंकित किये जाएगें|

जहां एक ही दिन में कई अधिवक्ता नामांकित होते है वहां राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा तैयार की गई सूची के प्रत्येक भाग में अधिवक्ताओं के नाम उनकी वरिष्ठता के आधार पर व्यवस्थित किए जाएगें तथा एक व्यक्ति को एक से अधिक बार राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में अधिवक्ता के रूप में नामांकित नहीं किया जा सकता है।

एक राज्य से दुसरे राज्य की नामावली में नाम अन्तरित किया जाना –

जैसा की हम जानते है की एक व्यक्ति एक ही परिषद में नाम दर्ज करवा सकता है एक से अधिक परिषदों में नहीं| लेकिन कोई व्यक्ति जिसका नाम पहले से ही एक राज्य की नामावली में दर्ज है और वह व्यक्ति दूसरे राज्य की नामावली में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए भारतीय विधिज्ञ परिषद (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) में आवेदन कर सकता है।

व्यक्ति द्वारा आवेदन करने पर भारतीय विधिज्ञ परिषद सम्बंधित राज्य विधिज्ञ परिषद को यह निदेश देगी कि, ऐसे व्यक्ति का नाम बिना किसी शुल्क के प्रथम वर्णित राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली से हटा कर उस अन्य राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में दर्ज किया जाए|

यदि किसी व्यक्ति (आवेदनकर्ता) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है या उसके द्वारा आवेदन सदभावनापूर्वक नहीं किया गया है, तब भारतीय विधिज्ञ परिषद ऐसे व्यक्ति को अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अवसर देने के बाद ऐसे आवेदन को ख़ारिज कर सकती है|

जब नए अधिवक्ता को जोड़े लिया जाता हैं या नाम हटा दिया जाता हैं तब राज्य विधिज्ञ परिषद अधिवक्ता सूची की अधिकृत प्रतियां प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार है।

नामांकन का प्रमाण पत्र

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 22 के अनुसार राज्य विधिज्ञ परिषद ऐसे अधिवक्ताओं के नामांकन प्रमाण पत्र जारी करेगी जिनका नाम एंव पत्ता अधिनियम की धारा 17 के तहत राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में पंजीकृत है| सामान्य भाषा में नामांकन प्रमाण पत्र को सनद भी कहा जाता है|

अधिवक्ता के नामांकन और प्रवेश के चरण

एक अधिवक्ता के रूप में प्रवेश और नामांकन के चरण निम्नलिखित हैं –

शैक्षिक योग्यता  सबसे पहले आवेदक को मान्यता प्राप्त विश्व विधालय से कानून की डिग्री प्राप्त करनी आवश्यक है।

आयु सीमा – आवेदक ने कम से कम 21 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो|

आवेदन – उपरोक्त मानदंडों को पूरा करने के बाद, आवेदक को उस अधिकार क्षेत्र की राज्य विधिज्ञ परिषद में नामांकन के लिए आवेदन करना होगा जहां वह अभ्यास करना चाहता हैं।

शुल्क का भुगतान – आवेदन के साथ आवेदक को संबंधित विधिज्ञ परिषद के पक्ष में बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से निर्धारित नामांकन शुल्क भी जमा करवाना होगा।

सत्यापन – राज्य विधिज्ञ परिषद आवेदक के आवेदन और पात्रता का सत्यापन करेगी।

नामांकन – एक बार आवेदन स्वीकृत हो जाने के बाद, आवेदक का नाम राज्य विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ताओं की नामावली में दर्ज कर लिया जाता है, जिसके बाद आवेदक उस राज्य विधिज्ञ परिषद के अधिकार क्षेत्र में विधि व्यवसाय करने के लिए पात्र हो जाता है।

भारतीय विधिज्ञ परिषद –  भारतीय विधिज्ञ परिषद में शामिल करने के लिए राज्य विधिज्ञ परिषद नामांकित वकील का विवरण भारतीय विधिज्ञ परिषद को भेजता है।

विधि व्यवसाय – अंत में नामांकित अधिवक्ता कानून का अभ्यास शुरू करने के साथ साथ विभिन्न कानूनी मामलों में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व कर सकता है और अदालतों में पेश होकर मुकदमा से सम्बंधित कार्यवाही कर सकता है।

अधिवक्ता के नामांकन के लिए अयोग्यता

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24(क) में उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है, जिनके अधीन किसी व्यक्ति का नाम राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में दर्ज नहीं किया जा सकता है और वह व्यक्ति वकील बनने के लिए अयोग्य हो जाता है, यह परिस्थितियां निम्न है –

  • ऐसे व्यक्ति जो नैतिक अधमता के अपराध का दोषी हो।
  • ऐसे व्यक्ति जिन्हें अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम 1955 के तहत दोषी ठहराया गया हो।
  • ऐसे व्यक्ति जिन्हें नैतिक अधमता के आरोप के कारण सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया हो लेकिन यह अयोग्यता जेल से रिहा होने या सेवा से बर्खास्तगी के दो साल बाद हटा दी जाती है।

इसी तरह, उपरोक्त शर्तों के तहत दोष सिद्ध कोई व्यक्ति अपराधी की परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के तहत लाभान्वित हो रहा है, तो वे अयोग्य नहीं माने जाएगें हैं।

आवेदन पत्रों का निस्तारण

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 26 के अनुसार, राज्य बार काउंसिल सभी प्रवेश आवेदन अपनी नामांकन समिति को भेजती है। यह समिति, राज्य विधिज्ञ परिषद के लिखित निर्देशों के अधीन, इन आवेदन पत्रों का तदनुसार संसाधित और निपटारा करती है।

यदि भारतीय विधिज्ञ परिषद को रेफरल या अन्य माध्यमों से पता चलता है कि किसी वकील ने गलत बयानी, धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव के माध्यम से नामांकन प्राप्त किया है, तब यह विधिज्ञ परिषद उस अधिवक्ता को अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करने के बाद उस व्यक्ति का नाम अधिवक्ता की नामावली से हटा सकती है|

नामावली से अधिवक्ता का नाम हटाना

अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 26 ए के अनुसार, राज्य विधिज्ञ परिषद के पास मृत वकील के लिए अनुरोध प्राप्त होने पर उसका नाम परिषद की नामावली से हटाने का राज्य विधिज्ञ परिषद को अधिकार प्राप्त है।

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सोर्स -बसंती लाल बाबेल

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